पहले ईसाई चर्च पर लगाम लगाये सरकार


गौतम चौधरी 
लाल कुत्ता
जो भौंकता है,
काटने के लिए दौड़ता,
बडा खतरनाक है।
मैंने भी मान लिया।
कुत्ता कुछ अलग किस्म का है।
इसकी रगों में माओ और लेनिन दोनों के खून बह रह है।
यह अपने देश का नहीं,
विदेशी नस्ल का है,
क्योंकि इसके पुंछ कट हुए हैं।
ऐसे ही कुछ कुत्तों को शहर में लाया गया।
कुछ को वकील तो कुछ को पत्रकार बनाया गया।
कुछ ने संसदीय प्रणाली माल ली।
उसी प्रजाति का एक कुत्ता कल सामंत ठेकेदार के पोर्टिको में बधा मिल गया।
जिसपर हुलकाया जाता उसी को काटता।
मैंने कहा हे भगवान यह क्या हो गया!
लोगों ने कहा अब यह कुत्ता जंगली नहीं पालतू हो गया।
अखबार में एक छोटी सी खबर पढी। श्रीलंका की सरकार ने भारत सहित अरब देशों के 160 ऐसे मौलवियों को अविलंब देश छोडने को कहा है जो विगत लम्बे समय से पर्यटन वीजा पर श्रीलंका में धर्म प्रचार कर रहे थे। ये मौलवी तब्लीगी जमात के हैं और उन्हें अरब देशों में धर्म प्रचार के लिए काम करने वाली संस्था ने श्रीलंका भेजा था। फिर विगत दिनों केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश का बयान आया। उन्होंने भारत में काम कर रहे चर्च को चेतावनी दी है कि वह बेशक सेवा का काम करे लेकिन वे धर्मांतरण से अपने को अलग रखें। इस प्रकार का कठोर बयान मैं समझता हूं कि किसी भारतीय जनता पार्टी के नेता का भी इन दिनों सुनने को नहीं मिला है। कांग्रेस नेता का हालिया ताल ठोक बयान सराहनीय ही नहीं क्रांतिकारी भी माना जाना चाहिए। जयराम रमेश ने एक और बहस छेरी है। उन्होंने माओवाद प्रभावित क्षेत्र से ईसाई मिशनरियों को बाहर चले जाने को भी कहा है। इससे यह साबित होता है कि केन्द्र सरकार के पास इस बात के पक्के सबूत हैं कि माओवादी आतंकवाद को ईसाई मिशनरी खाद पानी उपलब्ध करा रहा है। जिस बात को रमेश आज ताल ठोककर कह रहे हैं उसी बात को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विगत कई वर्षों से दुहरा रहा है। देश के माओवादियों को ईसाई धर्म प्रचारकों का संरक्षण प्राप्त है, ऐसे उदाहरण भी हैं जिसे केन्द्र सरकार के साथ ही साथ कई राज्य सरकारें झुठलाती रही है। गरीबों के लिए लडाई कोई बुरी बात नहीं है लेकिन गरीबों के नाम पर देश में ईसाई आतंकवाद की जड को खाद पानी देना किसी भी हक में सही नहीं है। श्रीलंका सरकार ने जो निर्णय तब्लीगी जमात के मौलवियों के लिए किया है वही निर्णय उसे ईसाई पादरियों के लिए भी करना चाहिए था। खैर कम से कम श्रीलंका की सरकार ने तो इतनी भी ताकत दिखाई लेकिन भारत सरकार ने तो तब्लीगियों के सामने घुटने टेक दिये और सलमान रूश्दी जैसे स्वतंत्र विचारक को देश में आने से मना कर दिया। भारत में कई ईसाई और मुस्लमान धर्म प्रचारक न केवल पर्यटन वीजा पर भारत में धर्म का प्रचार कर रहे हैं अपितु वे देश में पृथक्तावाद को हवा भी दे रहे हैं। भारत के प्रत्येक राज्यों में एक नहीं 10 से अधिक ईसाई धर्म प्रचारक केवल पर्यटन वीजा पर धर्म प्रचार के दुष्कार्य में लगे हैं जिसपर भारत सरकार को श्रीलंका सरकार की तरह कार्रवाई करनी चाहिए। जिससे देश में आतंकवाद के खिलाफ माहौल बनाने में सहयोग मिलेगा। लेकिन हमारे देष में ऐसा फिलवक्त संभव नहीं है। देष की सत्ता एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में है जो कमजोर और ईसाई मिषनरियों के हाथों का खिलौना है। एक बात और जयराम जी ने ईसाई के कैथोलिक धरे को टागेट किया है जो धर्म प्रचार के व्यापक अभियान में कभी भाग ही नहीं लेता। रमेष के बयान से एक गहरे साजिष की बू आ रही है। रमेष का बायान हो सकता है ईसाई मिषनरियों की सोची समझी चाल हो। गोया भारत में धर्म प्रचार के अभियान में प्रटेस्टेंट ईसाई लगे हैं जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे प्रोटेस्टेंट देषों का समर्थन प्रप्त है। एक बात जानकारी में होनी चाहिए कि अमेरिका में जब रिपब्लिक दल की सरकार होती है तो वहां की सरकार दुनिया में प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म प्रचार के लिए अपने बजट में व्यवस्था करती है। सउदी अरब दुनिया के देषों में तब्लीगी और वहावी आन्दोलन को बढावा देने के लिए अपने बजट में प्रवधान कर रखा है। यही नहीं जब सावियत रूस में साम्यवादी मजबूत थे तो रूस भी दुनिया के देषों में साम्यवादी आन्दोलन को बढावा देने के लिए रूपये खर्च करता था। हालांकि इस मामले में चीन की नीति अलग है लेकिन चीन भी अपने सांस्कृतिक प्रचार पर पूरा ध्यान देने लगा है। भारत इस मामले में जरा ज्यादा ही पंथ निर्पेक्ष है। देष का माओवादी आतंकवाद ईसाई चर्च, कोर्पोरेट उद्योग जगत और नौकरषाह के गठबंधन का प्रतिफल है। जिसे सरकार समझने का प्रयास करे। माओवादी नेताओं को गरीब जनता से कोई लेना देना नहीं है। वे भारत को कॉरपोरेट जगत का गुलाम वाला ईसाई देश बनाना चाहते हैं जहां लोकत्र का कोई मतलब नहीं होगा। रही नौकरशाहों की बात तो वे भी उस व्यवस्था में कही न कही खप ही जाएंगे। यहां एक घटना का जिक्र करना ठीक रहेगा। मेरा एक मित्र श्यामसुन्दर है। वह साम्यवाद के चरमपंथ में विष्वास करता है। कुछ लोग उसे माओवादी भी कहते हैं लेकिन मैं उसे माओवादी नहीं मानता। कई वर्षों तक पटना हिन्दुस्तान से जुडा रहा और अपराध कवर करता था। फिर उसने रांची के किसी पत्रिका में नौकरी कर ली। आजकल बेरोजगार है। जब वह पटना हिन्दुस्तान से जुडा था तो उस समय पटना के वरीय आरक्षी अधीक्षक कुंदन कृष्णन हुआ करते थे। कृष्णन इमानदार और कठोर स्वाभाव के पुलिस अधिकारी हैं। माओवादियों के खिलाफ उन्होंने मजबूत अभियान भी चला रखा था। कुन्दन से माओवादी खौफ भी खते थे। उन दिनों बिहार में माओवादियों का बडा जोर था। जब कुन्दर जी से श्यामसुन्दर ने पुछा कि अगर देष में माओवादी प्रभावशाली भूमिका में आ गये तब तो आप जैसे प्रषासक को देश छोड कर भाग जाना पडेगा? वरीय आरक्षी अधीक्षक कृष्णन ने श्याम के सवाल का बडा महत्वपूर्ण जवाब दिया और कहा कि नहीं माओवादी सरकार चला सकते हैं वे प्रशासन नहीं चला सकते। इसलिए प्रषासन तो हमारे जैसे अधिकारियों के हाथ में ही होगा। फिर एक बात गांधीनगर के आईजी अरूण शर्मा ने बतायी। प्रशासक और प्रशासन कुछ विशेष वर्ग के हाथ में ही होता है व्यवस्था चाहे किसी के पास हो। उन्होंने यह भी बताया कि यह कनसेप्ट महाराज अजातशत्रु के महामात्य वार्षाकार ने दिया था। सुनिग्ध और वर्षाकार के योजना से ही मगध क तंत्र मजबूत हुआ था। मुझे ऐसा लगता है कि जिस नीति पर माओवादी गठजोड काम कर रहा है। वह नीति बडा ही मजबूत है जिस नीति को समझकर सरकार माओवादी अभियान को समाप्त करने का प्रयास करे। इसके लिए भारत सरकार को कुछ कठोर और ठोस निर्णय लेने की जरूरत है। जबतक ईसाई चर्च, औद्योगिक समूह और भ्रष्ट नौकरषाहों पर नकेल नहीं कसा जायेगा तबतक माओवादी समस्या का समाधान संभव नहीं है।

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