थल सेना प्रमुख का राजनीतिक कोर्टमार्सल


गौतम चैधरी
विगत कुछ दिनों से लगातार देश के थल सेना प्रमुख जनरल वी0 के0 सिंह पर केन्द्र सरकार की बक्रदृ’िट पर रही है। सरकार और सत्ता की टेढी नजर का खमियाजा भारत से सम्पूर्ण सुरक्षा पर पर रहा है। नित नवीन खुलासे हो रहे हैं और उन खुलासों की स्वीकार्यता के बाद भी केन्द्र सरकार डफली पीट पीट कर साबित करने का प्रयास कर रही है कि सेना के सर्वोच्च अधिकारी ने आदर्”ा और गरिमा का निर्वहण नहीं किया है। संसद के चतुरंग में एक इमानदार और रा’ट्र की नि’ठा से जुडे अधिकारी को मात्र इसलिए बरखास्त करने की मांग की जाती है कि उन्होंने अनु”ाासन का पालन नहीं किया है। सवाल यह उठता है कि सम्माननीय सांसदों की मांग को जायज ठहराया जा सकता है क्या? भारत के कथित सर्वोच्च पंचायत में सेना के “ाीर्’ा अधिकारी जनरल सिंह पर वे लोग आरोप लगा रहे हैं जिनका न तो दे”ा की संस्कृति के अनुकूल चरित्र है और न ही व्यवहार। सम्माननीय मुलायम जी सेनाधिकारी को कम बोलने की नसीहत देते हैं। भारतीय जनता पार्टी को छोड लगभग सभी दलों के नेताओं ने स्वाभिमानी और इमानदार सेनाधिकारी को बरखास्त करने की मांग की है। इस मांग में वे साम्यवादी भी “ाामिल हैं जिनकी रा’ट्रभक्ति पर लगातार प्र”न खडे होते रहे हैं। ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने प्रतंत्रता के समय अंग्रेजों का, बाद में पाकिस्तान का, 62 की लडाई में चीन का, फिर दे”ा में पल रहे पृथक्तावाद का और अभी दे”ाभक्त सेना अधिकारी के बरखास्तगी का समर्थन कर रहे हैं। जो लोग सेना प्रमुख जनरल सिंह की बरखास्तगी की मांग का तार सप्तक अलाप रहे हैं और संसद भवन के चबुतरे पर तीनग्रामी नृत्य कर रहे हैं उनके पास इस बात के क्या प्रमाण हैं कि प्रधानमंत्री को जनरल के द्वारा लिखा गया पत्र सेना प्रमुख के कार्यालय से ही लीक हुआ है। इस संसदीय लोकतांत्रिक महायज्ञ में कुछ मीडियाई पुरोहित भी अपने यज्ञमान को प्रोत्साहित कर रहे हैं। विगत दिनों एक ब्लाॅग देखने को मिला, सेना प्रमुख के खिलाफ जो भी नकारात्मक होना चाहिए वह उस ब्लाॅग पर देखने को मिला मुझे। अपने दे”ा का एक बडा व्यापारिक घराना है। उस व्यापारिक घराने के अपने मीडिया हाउस हैं, हिन्दी और अंग्रेजी भा’ाा में उसका अखबार भी निकलता है। सुना है कि उक्त व्यापारिक घराने के अखबारी ग्रुप की स्थापना बिहार के किसी समझदार ने दे”ा सेवा के लिए किया था लेकिन आजकल वह अखबार दे”ा के बदले कुछ विदे”ाी एजें”िायों की सेवा में व्यस्त है। अखबर के संस्थापक मर गये लेकिन अखबर जिंदा है। मैं उस अखबार की ओर इ”ाारा कर रहा हूं जिसपर कांग्रेस का मुख-पत्र होने का भी आरोप लग चुका है। कोई पाठक जी का आलेख देख रहा था। न जाने क्यों बेचारे एक इमानदार आदमी को पानी पी पी कर कोस रहे हैं। सो जनरल सिंह के खिलाफ इस दे”ा में सरकार के इ”ाारे पर मीडिया कोर्ट मार्”ाल जारी है। लेकिन यह सब क्यों किया जा रहा है? सरकार का प्रतिरक्षा मंत्रालय यह मान रहा है कि जनरल ने जो आरोप लगाया है वह सही है। प्रतिरक्षा मंत्रालय ही नहीं सरकार का लगभग सभी महकमा यह स्वीकार कर रहा है कि सेना प्रमुख सिंह एक इमानदार आदमी हैं। न केवल सरकार के अधिकारी अपितु सेना के अधिकारियों ने भी स्प’ट कर दिया है कि भारत की सेना और उसके प्रमुख की कोई राजनीतिक महत्वाकांझा नहीं है। वे सम्पूर्ण मामलों में निर्दो’ा हैं। सह भी साबित हो चुका है कि सेना प्रमुख ने जो प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है वह एक सामान्य औपचारिकता है। यह काम हर सेना प्रमुख करते रहे हैं और दे”ा के सर्वोच्च प्र”ाासक को सुरक्षा से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराते रहे हैं बावजूद इसके सेना प्रमुख सरकार के टारगेट में हैं। सेना प्रमुख को प्रधनमंत्री अच्छा बता रहे हैं, प्रतिरक्षा मंत्री बढिया बता रहे हैं तो आखिर वर्तमान केन्द्र सरकार में वे कौन लोग हैं जिसको सेना प्रमुख से एतराज है? इसकी पडताल करेंगे तो कही न कही उस पडताल का इ”ाार कांग्रेस के “ाीर्’ा नेतृत्व तक जायेगा। मीडिया का एक खास तबका इस बात को प्रचारित करने में लगा है कि सेना और सरकार के बीच उभरा वर्तमान विवाद सैन्य व्यापार से संबद्ध है। कुछ लोग यह भी मानकर चल रहे हैं कि सेना प्रमुख और सरकार के इस मामले को इसलिए भी तूल दिया जा रहा है कि अमेरिकी कंपनियों को आयुद्ध का ठेका नहीं मिल पा रहा है। विमान खरीद में अमेरिकी कंपनियों की दाल नहीं गली जिससे खफा अमेरिका का जासूसी संगठन इस मामले को हवा देने में भूमिका निभा रही है। लेकिन कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भारत ने जिस फांसीसी कंपनी के साथ विमान का सौदा किया है उसके पीछे भी एक खास प्रकार का दबाव काम कर रहा है। जानकार बताते हैं कि विगत दिनों फांस ने भारत सरकार को उन लोगों के नाम बताने पर सहमति जताई थी जिसका काला धन यूरोपिये बैंकों में रखे हैं। वर्तमान फ्रांसीसी विमान समझौता उसी का प्रतिफल बताया जा रहा है। इन दोनों मामलों में कितनी सत्यता है यह बहस और विवाद का वि’ाय हो सकता है लेकिन, दोनों मामलों को तो सरकार को ही देखना होगा। और दोनों मामला भारत की सुरक्षा और विदे”ा नीति से जुडा हुआ है। हिन्दुस्थान समाचार बहुभा’ाी संवाद समिति में उन दिनों संस्था के संपादक और प्रधान कार्यकारी अधिकारी श्रीराम जो”ाी हुआ करते थे। हिन्दुस्थान समाचार पर एक खबर चली कि प्रतिरक्षा मंत्रालय में नियुक्त पाकिस्तानी एजेंट फरार। हालांकि उस एजेंट के बारे में कोई खास हुलिया नहीं बताया गया था। फिर अन्य जगह ये खबर चली भी नहीं। उस खबर को अगर आधार बनाया जाये तो मामला गंभीर है और इसे भारतीय सुरक्षा संगठनों को गंभरता से लेना चाहिए। अगर वर्तमान विवाद की पडताल करें और संजीदगी से सोचें तो पत्र विवाद मामला सेना प्रमुख के उस बयान के बाद उछला है जब उन्होंने यह खुलासा किया कि इस दे”ा में हथियार दलालों के मन इतने बढ गये हैं कि वह सीधे सेना प्रमुख को घुस के लिए आमंत्रित करता है। उन्हेंने यह भी कहा कि इस बात की जानकारी बाकायदा प्रतिरक्षा मंत्री को भी दिया गया लेकिन उसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस प्रकरण के बाद तुरत प्रधानमंत्री को लिखे पत्र का मामला उछाला गया। यह महज संयोग नहीं हो सकता है। प्रधानमंत्री को लिखे गया पत्र हो सकता है जान बूझकर लीक किया गया हो। सेना प्रमुख का प्रधानमंत्री के नाम पत्र किसी कीमत पर नाजायज नहीं है तो फिर संसद भवन में जो सेना प्रमुख के खिलाफ अनरगल बयानबाजी की गयी या करायी गयी या फिर मीडिया में दिखाया, लिखाया गया वह क्या दे”ा की परंपरा और संस्कृति के अनुकूल तय अनु”ाासन के विपरीत नहीं है? 
खबरचीयों ने यहां तक कह दिया कि सेना प्रमुख ने ही जान बूझकर प्रधानमंत्री को भेजे अपने ही पत्र को सार्वजनिक करने का ‘ाडयंत्र किया है। लेकिन दूसरे दिन ही दे”ा की जांच समिति ने साबित कर दिया कि यह पत्र सेना प्रमुख के कार्यालय से लीक नहीं हुआ है। हालांकि आईबी की अभी पूरी जांच आख्या आना बांकी है, लेकिन जो संकेत आ रहे हैं वह प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर इ”ाारा करता है। पत्र लीक होने का मामला सेना के कार्यालय से संभव भी नहीं लगता है क्योंकि अगर ऐसा होगा तो यह अप्रत्या”िात है। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र का लीक होना कोई बडी बात नहीं है। प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले में पहले से बदनाम रहा है। खुद प्रधानमंत्री अपने कार्यालय पर प”न खडा कर चुके हैं। रा’ट्रवादी लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार के समय भी अभियंता द्वीवेदी की हत्या का एक मामला प्रका”ा में आया था। कहा जाता है कि उस मामले में भी प्रधानमंत्री कार्यालय से द्वीवेदी का पत्र लीक हुआ, जिसके कारण एक इमानदार अभियंता को दे”ा खो दिया। विगत दिनों जब 2जह एस्पेक्ट्रम पर जांच चल रही थी तो कुछ ऐसे मामले सामने आये जिसके कारण प्रधानमंत्री कार्यालय बदनाम हुआ। उस मामले को लेकर खुद प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह अपने कार्यालय की कारगुजारी पर खेद प्रकट कर चुके हैं। अब जरा इस बात पर भी नजर दौराना चाहिए कि प्रधानमंत्री और प्रतिरक्षा मंत्रालय में जो लोग नियुक्त हैं उसमें से महत्वपूर्ण विभाग देखने वाले अधिकारियों की सीधी ब्रिफिंग रा’ट्रीय सलाहकार परि’ाद् की अध्यक्षा को होती है। कई अधिकारी प्रधानमंत्री और दे”ा से ज्यादा चर्च के आर्कविसप और खुद मौडम सोनिया गांधी के प्रति प्रतिबध हैं। यही हाल प्रतिरक्षा मंत्रालय का है। गृहमंत्रालय और दे”ा के जासूसी संगठनों की भी कमोवेस यही स्थिति है। हालांकि अभी भी दे”ा और दे”ा की सुरक्षा के प्रति उत्तरदायित्व समझने वाले अधिकारियों की कमी नहीं है जिसके कारण व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और रूचि के लोगों का मामला अटकता रहता है लेकिन इस काम को आसान वो लाॅबी कर रही है जिसे सामान्य भा’ाा में दलाल कहा जाता है। इमानदारों को निवटाने में अपने दे”ा की मीडिया कोई कम थोडे है। 
फिर हथियारों के, न”ाों के और रा’ट्र विरोधियों तत्वों को कांग्रेस के “ाीर्’ा नेतृत्व से समर्थन मिलता रहा है। संप्रग की सरकार आते दलाल क्वात्रोकी को अभयदान दिया गया जिसपर न केवल दे”ा के “ाीर्’ा राजनेताओं को दलाली देने और बोफोर्स तोप में खुद दलाली खाने का आरोप है अपितु उसके संबंध भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे तमिल छापामारों से उजागर हो चुका है। यही नहीं आज कांग्रेस जिस युवराज को दे”ा का राजा अनाना चाह रही है वह युवराज न”ो के व्यापारी की बेटी के साथ पकडा गया था लेकिन आजतक थल सेना अध्यक्ष पर इस प्रकार के आरोप नहीं लगे। हां उन्होंने दे”ा की सुरक्षा को लेकर जो दे”ा हित में है उसकी वकालत जरूर की और सेना में जो भ्र’टाचार चरम पर है उसपर भी उन्होंने अंकु”ा लगाने का भरसक प्रयास किया लेकिन संसद में जो भ्र’ट लाॅबी केवल जनता का खूंन चूसने का काम करते रहे हैं उन्हें यह अच्छा नहीं लगा और संसदी तोप का फायर सीधे सेना प्रमुख की ओर मोड दिया गया। अपनी ही पीठ खुद थपथपाने वाले प्रतिरक्षा मंत्री ने यहां तक कह दिया कि वे खुन से अपना हाथ रंगना नहीं चाहते। साहब खुन तो इस दे”ा के हर उस इमानदार, दे”ाभक्तों का बह रहा है जिसपर आपकी कुर्सी टिकी हुई है। 
कुल मिलाकर हालिया विवाद एक सोची समझी साजि”ा का हिस्सा ही जान पडता है। जिसको कांग्रेस का “ाीर्’ा नेतृत्व हवा दे रहा है। इस काम में निःसंदेह हथियारों के दलाल “ामिल हैं और वे लोग इसको हवा दे रहे हैं जिसको दे”ा की सुरक्षा से कोई लेना देना नहीं है। दे”ा को अपने नेतृत्व पर भी भडोसा कर लेना चहिए लेकिन जो विदे”ाी एजेंट, हथियारों के दलाल, विदे”ाी पैसों पर छपने वाले अखबार और विदे”ाी चिंतन से प्रभावित लोग हैं उनकों बेनकाब करना जरूरी है।

Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत