मुस्लिम महत्वाकांक्षाओं को भडकाना बंद करे सेकुलर दल-गौतम चौधरी

विगत कुछ महीनों से अल्पसंख्यक, खासकर इस्लाम पंथावलंबी अप्रत्याषित ढंग से उग्र हो रहे हैं। जिसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेष, आंध्रा, असम, केरल, दिल्ली एवं राजस्थान में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा की घटना है। हालांकि छिट-फुट घटनाएं उत्तराखंड, उडीसा, पंष्चिम बंगाल आदि राज्यों में भी हो रही है, लेकिन उत्तर प्रदेष, आंध्र प्रदेष तथा असम में तो संगठित रूप से हिन्दुओं की हत्या की जा रही है। सबसे आष्चर्य की बात तो यह है कि जिन राज्यों में लगातार हिन्दुओं के खिलाफ कत्लेआम जारी है, उन राज्यों की पुलिस मात्र घटनाओं और हत्याओं की मिमांषा कर बैठ जाती है। पुलिस के हालिया व्यवहार से यह स्पष्ट हो गया है कि जो लोग संगठित सांप्रदायिक अपराध में संलिप्त हैं उसको परोक्ष रूप से राज्यसत्ता का सहयोग प्रप्त है। बात यही तक जाकर नहीं रूकती, यह आगे भी जा रही है। पुलिस और प्रषासन के साथ ही साथ इस्लामी आतंकवाद पर केन्द्र एवं विभिन्न राज्य सरकारें नरमी बरत रही है। बाकायदा कानून में संषोधन कर इस्लामी चरमपंथियों को रिहा किया जा रहा है। वस्तुतः संपूर्ण देष की वर्तमान समाजिक परिवेष पर नजर दौराने से साफ दिखता है कि मुस्लिम समुदाय नकारात्मक भ्रांतियों के कारण अप्रत्याषित ढंग से एक सांस्कृतिक संक्रमनात्मक अंतरविरोध में जी रहा है। यह संभवतः पिछली शताब्दी के प्रथम चरण की पुर्णावृति जैसा है, जो मुस्लिम समुदाय को नये सिरे से एक नये प्रकार के पृथक्तावाद की ओर जाने को बाध्य कर रहा है।
हालांकि मुस्लिम पृथक्तावादी मनोवृति को कमतर दिखाने के लिए सत्ता, व्यवस्था और प्रभु वर्ग द्वारा अन्य अल्पसंख्यक समुदायों में भी असंतोष की प्रवृति को बढावा दिया जा रहा है, लेकिन अन्य अल्पसंख्यक भारतीय वहुलतावादी सांस्कृतिक अंतरताना को समझ उग्रता की रणनीति का निषेध करता है, परन्तु मुस्लिम समुदाय को यह लग रहा है कि भारत के बहुपांथिक परिवेष को वह बदलने में सक्षम हो गया है। इस मनोवृति को वर्तमान राजसत्ता के द्वारा मिल रही छूट मुस्लिम समुदाय के अन्दर शुभसंकेत के रूप में देखा जा रहा है। इसी राजनीतिक और व्यवस्थात्मक अनैतिक छूट ने मुस्लिम मनोवृति को नकारात्मक आन्दोलन और पृथक्तावादी मनोवृति की ओर जाने के लिए प्रेरित किया है।
सत्ता और प्रभुसत्ता संपन्न वर्ग के इसारे पर समाचार माध्यम एवं सूचना के विभिन्न वाहिनियों ने समाचार को तो रोकने का भरसक प्रयास किया है, लेकिन सामाजिक अंतरतानाओं पर जो लगातार रिपोटें पोस्ट की जा रही है, उससे ज्ञात हुआ है कि केवल उत्तर प्रदेष में विगत एक साल के भीतर 50 से अधिक दंगे हुए हैं और इन दंगों में 100 से अधिक लोग मारे गये हैं। यह केवल उत्तर प्रदेष का आंकडा है। केरल, कर्णाटक, महाराष्ट्र, असम अैर आंध्रा की घटनाओं को मिला दिया जाये तो यह आंकडा 300 से ज्यादा हो जाएगा। उत्तर प्रदेष के मुस्लिम वाहुल्य विभिान्न कसवों, बडे नगरों और छोटे गांवों में हिन्दुओं की लडकियों को उठा लिया जा रहा है। जब लोग प्रषासन से अपनी लडकी दिलाने की मांग करते हैं, तो प्रषासन उलटे लडकी के अभिभावक को नषीहत देकर मौन रहने को कहता हैं। ऐसी कई घटनाए इन दिनों देखने सुनने को मिली है। कुल मिलाकर देखा जाये तो हिन्दुओं के खिलाफ फिर से मुस्लमानों ने मोर्चा खोल दिया है। इस संपूर्ण मामलों का दुखद पक्ष यह है कि तमाम मामलों में सरकार अपराधियों का पक्ष लेते दिख रही है। उत्तर प्रदेष में तो यादव, मुस्लिम और राजपूतों को छोडकर अन्य सभी जातियों के खिलाफ मुस्लमान मोर्चा खोले हुए है। इस लडाई में मुस्लमानों ने बडी सुनियोजित तरीके से यह प्रचार किया है कि उत्तर प्रदेष में लडाई समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच हो रही है, जबकि सच्चाई यह है कि यह लडाई योजनाबद्ध तरीके से हिन्दू और मुस्लमानों के बीच चल रही है। हालांकि यह सत्य है कि इस लडाई में वही मारे जाते हैं जिसकी पृष्ठभूमि बसपा ही है, लेकिन बसपा पृष्ठभूमि के मुस्लिम नेताओं को निषाना नहीं बनाया जा रहा है। इन दिनों उत्तर प्रदेष में यादव, राजपूत को छोड सारे हिन्दू मुस्लिम गुंडों से लुट रहे हैं, पिट रहे हैं और कट रहे हैं। मुस्लमान एक रणनीति के तहत काम कर हरे हैं। यहां एक मामले को उधृत करना चाहूंगा।
विगत कुछ दिनों पहले चंडीगढ में उल्लेमाए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरषद मदनी आए थे। उन्होंने भरे पत्रकार वार्ता में कहा कि दिल्ली की सियासी जमात जो अभी शासन चला रही है, और उत्तर प्रदेष की मुलायम सरकार मुस्लमानों की अपनी सरकार है। इन दोनों सरकारों को मुस्लमानों की हर बातें माननी होगी। हमारा सियासी और धार्मिक सहयोग दोनों सरकारों की मजबूरी है। मियां मदनी ने स्पष्ट किया कि मुलायम को हमने सत्ता दिया है, इसलिए मुलायम यादव की सरकार मुस्लमानों की अपनी सरकार है। उन्हें हमारी हर बात माननी ही होगी। हालिया दंगा के पीछे का कारण क्या है, यह तो खोज, जांच और विभिन्न प्रकार की व्यख्याओं के गर्भगृह में बंद है, परंतु मियां मदनी की भाषा से एक बात स्पष्ट होती है कि उत्तर प्रदेष ही नहीं केन्द्र सरकार और देष के अन्य राज्यों की गैर भाजपा सरकारें मुस्लिम महत्याकांक्षाओं की आग को भडका रही है, जिसे समय रहते नहीं रोका गया तो यह दावानल का रूप धारण कर भारत के पतन का कारण बनेगा। दूसरी और भले देष के तथाकथित पंथ, धर्मनिर्पेक्ष लोग भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोग पर चलने वाली सरकार को पानी पी पी कर गालियां दे, लेकिन जहां जहां ऐसी सरकार है, वहां कांग्रेसी, या कांग्रेस नीत सरकार से ज्यादा शांति है। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेष, कर्णाटक, गोवा, गुजरात, पंजाब, हिमाचल प्रदेष आदि राज्यों में कम से कम सांप्रदायिक असंतोष की हालिया घटना देखने को नहीं मिली है। लेकिन दूसरी ओर दिल्ली, उत्तर प्रदेष, पष्चिम बंगाल, असम, उडीसा, आंध्र प्रदेष, तामिल नाडू, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड और जम्मू-कष्मीर में इन दिनों साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं बढी है। इसका सीधा संदेष यह है कि सत्ता और व्यवस्था की अल्पसंख्यक तुष्ट नीति ने मुस्लमानों की महत्वाकांक्षा को वेतरतीव ढंग से बढावा दिया है। इस बढावा को समाज में नये सिरे से वैमष्यता का बीज बोये जाने के रूप में देखा जा रहा है। एक बार फिर से कथित अल्पसंख्यक मुस्लमान अपने आप को बहुसंख्यकों के साथ मुठभेड के लिए तैयार कर रहा है। हालांकि केन्द्र पर काबीज सरकार लोगों को यह समझाने का प्रयास कर रही है कि वर्तमान मुस्लिम महत्वाकांक्षा क्षणिक है और असंतोष के कारण वर्तमान अंतरविरोध देखने को मिल रहा है। कुछ समन के बाद यह स्वतः समाप्त हो जाएगा, लेकिन सत्ता को याद रहे कि यही महत्वाकांक्षा भारतीय उपमहाद्वीप को तीन भागों में विभाजित कर चुकी है। एक ही देष का तीन राजनीतिक सेटप इसी महत्वाकांक्षा का प्रतिफल है। 
रही बात भविष्य की तो मुस्लिम महत्वाकांक्षा से केवल हिन्दुओं को ही घाटा नहीं होगा इससे मुस्लमानों को भी कुछ नहीं मिलने वाला है। जो लोग यह समझ रहे हैं कि राजनीतिक मोल-तोल में मुस्लमानों को फायदा पहुंचेगा वे भ्रम में हैं। इससे केवल कुछ इलिट मुस्लमानों को ही फायदा हो सकता है। सांप्रदायिक संघर्ष में सबसे ज्यादा घाटा उन्हें ही होता है जिनको संप्रदाय से कुछ भी फायदा नहीं हुआ और न आगे होने वाला है। हालिया जो घटनाएं देखने को मिल रही है वह प्रभू वर्ग का चित परिचित हथियार है। इस हथियार से वे विगत डेढ शताब्दी से मुस्लमानों को गुमराह करते रहे हैं। पंथ को राजनीतिक विजय का हथियार बनाने से परहेज करना चाहिए। अरब का इस्लाम राजनीति पर टिका है लेकिन भारत में इस्लाम का एक सहअस्तित्व वाला स्वरूप भी बनकर उभरा है। उस स्वरूप को बढावा देने की जरूरत है। यह सही है कि पंथों में विवाद और अंतरविरोध है, लेकिन उसका समाधान संवाद से ही संभव है। नाहक राजनीतिक महत्वाकांक्षा से मुस्लमानों को पाकिस्तान और बांग्लादेष तो मिल गया लेकिन वह पाक भूमि आज अपनों के खूंनों से ही लाल है। पष्चिम की सभ्यता लडाई में विष्वास करती है। पूरब की सभ्यता संवाद में विष्वास करता है। मुस्लमान नाहक महत्वाकांक्षा न पालें और सेकुलर दल मुस्लिम महत्वाकांक्षाओं को हवा देना बंद करें नहीं ंतो भारत का बंडाधार तो तय है ही, भारतीय मुस्लमानों को भी कोई बचाने वाला नहीं होगा। और हां इस बार सस्ते में देष का विभाजन भी नामुमकिन ही लगता है।

Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत