अपनी घिसी-पिटी विदेश नीति को बदले भारत


गौतम चौधरी 

जब से केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनी है तब से कई क्षेत्रों में नीतियां बदली-बदली-सी दिख रही है। बदलना भी चाहिए लेकिन बदली हुई नीति स्पष्ट भी होनी चाहिए। मसलन मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की विदेश मंत्रालय की नीति की दिशा बिल्कुल अस्पष्ट है। बहुत जांच परख के बाद यही लगता है कि वर्तमान भारतीय विदेश मंत्रालय की नीति दो बिन्दुओं पर केन्द्रित हो गयी है। एक पाकिस्तान विरोध और दूसरा अमेरिका-इजरायत सामरिक गोलबंदी में अपना हित ढुंढना। इन दो सिद्धांतों पर हमारी विदेश नीति जाकर अटक गयी है। इसे अटकना नहीं चाहिए था। मुझे लगता है कि यह भटकाव है। इससे भविष्य के भारतीय राष्ट्रवाद को व्यापक क्षति उठानी पड़ सकती है।

यदि गौर से देखें तों पाकिस्तान बड़ी तेजी से बदल रहा है। उसे अब लग गया है कि इस्लामिक आतंकवाद को साथ लेकर जनरल जिया वाली नीति से उसे बड़ा घाटा हुआ है। वह अब इस नीति से अपना पिंड छुड़ाना चाहता है। पाकिस्तान को इस नीति से अपना पिंड छुड़ाना ही होगा। यदि वह इसी सिद्धांत पर चलता रहेगा तो पाकिस्तान का कई भागों में टूटना तय है। फिर बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में निवेश कर रहे चीन को भी इस्लामिक आतंकवादी की नीति पसंद नहीं है। इसलिए पाकिस्तान को अपने यहां इस्लाम के आधार पर आतंकवाद को खत्म करना ही होगा। यह भारत के लिए हितकर साबित हो सकता है। भारत में सक्रिय आतंकवादी की 95 प्रतिशत प्रयोगशाला पाकिस्तान में है। अगर पाकिस्तानी प्रयोगशाला बंद हो गया तो भारत लगभग आतंकवाद से मुक्त हो जाएगा। इसलिए अब भारतीय विदेशनीति में जो पाकिस्तान विरोध की रणनीति हावी है, उसे बदल देना चाहिए। फिलहाल पाकिस्तान में हो रहे परिवर्तन को भारत अपने हित में उपयोग कर सकता है। अब भारत को भविष्य की रणनीति पर काम करना चाहिए न कि भूतकाल के पाकिस्तान विरोध की रणनीति पर आरूढ़ रहना चाहिए।

दूसरी बात हमें यह भी समझना चाहिए कि अबतक भारत के खिलाफ पाकिस्तान संयुक्त राज्य अमेरिका और सउदी अरब की ताकत से लड़ रहा था। अब संयुक्त राज्य अमेरिका और सउदी अरब पाकिस्तान को इस क्षेत्र में भी सहयोग करने की स्थिति में नहीं है। इसलिए भी पाकिस्तान अब अपने देश में आतंकवाद की प्रयोगशाला को समाप्त करेगा। पाकिस्तान में इस्लामिक आतंकवाद का उद्भव अमूमन जनरल जियाउल हक के समय से माना जाता है। हालांकि इस्लाम का संरक्षण-संवर्धन पाकिस्तान के संविधान का अंग है लेकिन आतंकवाद के माध्यम से इसे अगल-बगल के देशों में फलाने की रणनीति जिया के समय में ही बनी। उन दिनों अमेरिकी नेतृत्व वाला नाटो और वैश्विक साम्वादी कुनवा सोवियत रूस के नेतृत्व में सक्रिय था। ये दोनों अपने-अपने क्षेत्र के विस्तार मंे लगे थे और एक दूसरे के हितों पर प्रहार कर रहे थे।

अफगानिस्तान, दोनों महाशक्तियों के युद्ध का मैदान बन गया था। चूकि अमेरिका को अफगानिस्तान से सोवियत रूस को खदेरना था इसलिए अमेरिका ने पाकिस्तान में अपना आधार मजबूत किया और तालिबान को मजबूत कर अफगानिस्तान से रूस को खदेर दिया। उन दिनों भारत का झुकाव रूस के प्रति था, दूसरी ओर भारत पाकिस्तान का घुर विरोधी था। इसलिए भारत भी इस्लामिक आतंकवाद के जद में आ गया। अब दुनिया का शक्ति संतुलन बदल गया है। रूस अब नए सिरे से अपने आप को संगठित कर रहा है। अमेरिका भी अपनी रणनीति में परिवर्तन कर रहा है। अमेरिका के साथ समस्या यह है कि वह फिलहाल अपने घरेलू झंझट को ठीक करेगा। इसके बाद दुनिया की रणनीति में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाएगा। उसने अपने ही कई सिद्धांतों का खंडन कर दिया है ऐसे में अमेरिका के साथ चलने की रणनीति किसी भी संप्रभू राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध होगा।

इन दिनों दुनिया में एक नया खिलाड़ी उभरकर आया है। वह चीन है। चीन अपनी रणनीति के बदौलत न केवल अमेरिका को मजबूर किया है अपितु रूस को भी अपने साथ जोड़ लिया है। चीन दुनिया में कई परिर्वन को जन्म देने की रणनीति पर काम कर रहा है। बड़े पैमाने पर चीन अफ्रीकी देशों में अपनी पूंजी निवेश कर रहा है। दक्षिण एशिया के देशों में भी चीन का बड़ा निवेश हो रहा है। यहां तक भी भारत के पड़ोसियों पर भी चीन ने जबरदस्त तरीके से प्रभाव जमाया है। पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान, श्रीलंका, म्यामार, मालदीप आदि भारत के पड़ोस में भी चीन ने अपनी धारदार आर्थिक-सामरिक-साम्राज्यवादी नीति से भारत को घेरने की पूरी कोशिश की है। चीन इस मामले में बहुत हद तक सफल भी हुआ है।

ऐसे में भारत की घिसी-पिटी विदेश नीति अब कारगर साबित होने वाली नहीं है। पूरे मध्य ऐशिया में व्यापक परिवर्तन होना तय है। मध्य ऐशिया से लेकर सीरिया तक बड़े आर्थिक विकास के काम होने हैं। इसमें भारत अपनी हिस्सेदारी तय कर सकता है। आर्थिक विकास और सामरिक परिवर्तन साफ-साफ दिख रहा है। अमेरिका-इजरायल के दोस्त लगातार उसका साथ छोड़ रहे हैं। मसलन नाटो का सदस्य होने के बावजूद टर्की ने अमेरिका का साथ छोड़ दिया। जौडन, सीरिया, ईरान, इराक अब चीन-रूस के खेमें में चला गया है। यूरोपिए संघ भी अब अंध अमेरिकी रणनीति पर चलने के मूड में नहीं दिख रहा है। आने वाले समय में इजरायल को भी अमेरिका के इतर अपनी रणनीति बनानी होगी, नहीं तो अरब की धरती पर उसका बहुत दिनों तक टिका रहना संभव नहीं हो पाएगा। इसलिए भारत को अमेरिका-इजरायल की वैश्विक रणनीति का पिछलगु बनने से ज्यादा वेहतर होगा खुद की रणनीति बनाए और विश्व मंच पर विकाशील देशों का नेतृत्व करे। इस दिशा में बहुत संभावना है और भारत की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। इसके माध्यम से भारत कई सामरिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करने में भी सक्षम हो जाएगा।

दूसरी जो पाकिस्तान विरोध वाली रणनीति है उसे भी भारत को लगभग छोड़ देना चाहिए। अब कश्मीर का मुद्दा भी धीरे-धीरे समाप्त होने वाला है। कश्मीर की जो वर्तमान स्थिति है उसी पर दोनों देशों को संतोष करना होगा। यह जितना जल्दी होगा दोनों देशों को उतना ही लाभ होगा। अब बड़ी लड़ाई दोनों देशों के बीच संभव ही नहीं है। पाकिस्तान भी इस सत्यता को समझ गया है और भारत भी। इसलिए सीमा विवाद को जल्द से जल्द सुलझा लेना ही दोनों देशों के हित में होगा। चीन के द्वारा बड़े पैमाने पर हो रहे विकास, पाकिस्तान के युवाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार देने वाला है। ये जो प्रचार हो रहा है कि चीन अपने लोगों को रोजगार देगा, इसमें थोड़ी सत्यता तो है लेकिन बड़े पैमाने पर यह सत्य नहीं है। चीन-पाकिस्तान काॅरिडोर में छोटे-छोटे रोजगार बड़े पैमाने पर उत्पन्न होने वाले हैं।

चीन अपने यहां से मात्र पांच लाख उच्च तकनीक एक्पर्ट को लेकर आएगा बांकी का रोजगार पाकिस्तानी युवाओं को ही मिलने वाला है। इसलिए पाकिस्तानी युवक अब रोजगार में लगेंगे। यही करण है कि अभी से आतंकवादी संगठनों को लड़ाके ढुंढने में समस्या हो रही है और आतंकवादी संगठनों के नेताओं ने चीन की इस परियोजना का विरोध भी प्रारंभ कर दिया है लेकिन इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता है। अब इस परिवर्तन को भारत अपने हित में किस प्रकार उपयोग कर सकता है यह भारत को सोचना चाहिए। यदि भारत ने अपने हितों के लिए दुनिया में हो रहे इन तमाम परिवर्तनों को साध लिया आने वाले समय में भारत चीन को भी मात दे सकता है और एशिया का बादशाह बन सकता है। यह भारत के लिए बेहतर मौका है और पाकिस्तान विरोध व अमेरिकी-इजरायल गोलबंदी का हिस्सा भारत को दुनिया की रणनीति से ही अलग कर देगा। इससे आने वाले समय में भारत को जबरदस्त घाटा हो सकता है।

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