जिन्हें भविष्य की चिंता है उन्हें सुलह पर अमल करना ही होगा

गौतम चौधरी 

दिल्ली की हालिया हिंसा गंभीर है। इस पर केन्द्र सरकार को ही नहीं दिल्ली और आसपास के लोगों को भी गंभरता से चिंतन करनी चाहिए। इस हिंसा के गंभीर और दूरगामी दोनों परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। यदि इस सदी के दंगों के इतिहास को देखें तो स्वातंत्र समर से लेकर अबतक दिल्ली में तीन बड़े दंगे हुए हैं। पहला दंगा हिन्दू और मुसलमानों के बीच हुए। यह दंगा स्वतंत्रता के समय हुआ। इस दंगे में हिन्दुओं के साथ सिख खड़े थे। बड़ी संख्या में लोग मारे गए। दिल्ली उजरी और दिल्ली की एक बड़ी आबादी पाकिस्तान चली गयी। पाकिस्तान की बड़ी आबादी दिल्ली और आसपास में आगर बस गयी। 

दूसरा दंगा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई। यह दंगा सिख और हिन्दुओं के बीच था लेकिन इस दंगे की एक खासियत यह थी कि यहां मुसलमान तटस्थ था और कोने में खड़ा होकर हिन्दू-सिखों के बीच दंगों का आनंद उठा रहा था। इस बात की चर्चा समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने एक बार अपने भाषण में की थी। उन्होंने कहा था कि जब चौरासी में हिन्दू-सिख के बीच दंगे हुए तो मुसलमान खुश हुए थे क्योंकि आजादी के समय हिन्दू-सिख मिलकर मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में किए थे। अभी-अभी जो दंगा हुआ है, वह एक बार फिर से हिन्दू और मुसलमानों के बीच हुआ है। 

इस दंगा में कही न कहीं सिख तटस्थ दिख रहा है। यही नहीं पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा-राजस्थान के हिन्दू जाट भी इस दंगे से अपने आप को रख रहे हैं। इसलिए यह दंगा बेहद खतरनाम है और दिल्ली के लोगों को खासकर उन हिन्दुओं को इस दंगे को गंभीरता से लेनी चाहिए , जो तिजारत,रोजगार और किसी न किसी प्रकार के धंधे के लिए दिल्ली में आकर बसे हैं या फिर पाकिस्तान से आगर दिल्ली में बस गए हैं। इस दंगे के बाद जो भविष्य का चित्र बनेगा वह बेहद भयावह है। कुछ लोग अपने राजनीतिक हित के लिए लोगों को उकसा रहे हैं लेकिन अपने भविष्य और बच्चों की चिंता करने वालों को दिल्ली के इस दंगे से डरना चाहिए। यह ध्रुवीकरण का नया वर्जन है। 

इधर यूएससीआईआरएफ ने दिल्ली की हालिया हिंसा पर चिंता जताई है। हालांकि भारत ने इस चिंता को गैर वाजिब बताया है और कहा है कि गैर जिम्मेदाराना बयान से यूएससीआईआरएफ बचना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता मामलों संबंधी अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने दिल्ली में हिंसा पर चिंता जताते हुए भारत सरकार से अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए त्वरित कार्रवाई करने की अपील की है। मुसलमानों पर हमला संबंधी खबरों के बीच यूएससीआईआरएफ ने कहा कि भारत सरकार को लोगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए ,उनका धर्म भले ही कुछ हो। उसने हिंसा को लेकर गंभीर चिंता भी प्रकट की।

इस हिंसा से जहां एक ओर देश में आपसी सौहार्द को गिहड़ने का खतरा पैदा हो गया है वहीं दूसरी ओर विदेश में भारत की छवि खराब होने की संभावना बढ़ गयी है। हालांकि केन्द्र सरकार इस मामले को लेकर गंभीरता से काम कर रही है लेकिन जिस प्रकार से काम हो रहा है उसमें कहीं न कहीं सरकार की असफलता साफ झलक रही है। दिल्ली का हालिया दंगा पहले हुए 84 के सिख दंगे, 2002 के गुजरात दंगे और हरियाणा के जाट आरक्षण दंगे का ही नया वर्जन लग रहा है। इसमें भी बड़े पैमाने पर पेट्रोल बम, पत्थर, चाकू आदि पारंपरिक हथियारों का उपयोग हुआ है। 

राजनीतिक दल या फायदा उठाने वाले लोग दंगों की खेती करते हैं। चाहे वह कोई हो लेकिन इन्हीं दंगों ने 1946-47 के बीच लगभग 10 लाख लोगों की बलि ली थी। उस महा दंगे के कारण दो देश बने जो बाद में चलकर तीन देशों में विभाजित हो गया। आज पाकिस्तान जो भारत का सबसे खतरनाक दुश्मन बना हुआ है उसी पैदाइश भी इसी प्रकार के दंगे से हुई थी। दिल्ली उजरी और बहुत कठिन परिश्रम के बाद जाकर बसी। इसलिए दुनिया में हुए दंगों के इतिहास से हमें सीखनी चाहिए। लड़ाई के बाद मोहम्मद साहब पैगंबर ने भी हल सुलक की बात की थी। सुलह से बड़ा कोई हथियार नहीं है। शांति के सुलह जरूरी है। कुछ लोग, जो विध्वंस के व्यापारी हैं, वे दंगों के लिए उकसाएंगे लेकिन जिन्हें भविष्य की चिंता है उन्हें सुलह पर अमल करना ही होगा। 

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