पार्टी के खिलाफ प्रचार से कमजोर नहीं मजबूत हो रहे हैं मोदी और शाह



गौतम चौधरी
भारतीय जनता पार्टी, केन्द्र या राज्य सरकारों के अंदर जो विभिन्न प्रकार के कथित घोटाले और अनियमित्ताओं के चर्चे हो रहे हैं, इसमें सत्यता चाहे जितनी हो लेकिन प्रचार के पीछे भाजपा की आंतरिक लडाई को भी एक पक्ष माना जा सकता है। गौर से देखेंगे तो ये मामले उन्ही लोगों के खिलाफ उठ रहे हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। यही नहीं बिहार में आए दिन चुनाव होने वाला है। जो स्थिति बन रही है उसमें बिहार चुनाव भाजपा के लिए बेहद कठिन चुनाव में से एक है। दावे के साथ तो नहीं लेकिन संभव है कि बिहार के चुनाव में भाजपा हार जाये। हालांकि मैं गलत भी हो सकता हूं, लेकिन मुङो जो लगता है, बिहार का चुनाव यदि भाजपा हारी तो उसके लिए दो कारण जिम्मबार होगा। पहला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जन विरोधी एवं कॉरपोरेट समर्थक नीतियां और दूसरा बिहार भाजपा की सांगठनिक दुरावस्था, और इन दोनों मोर्चो पर नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह काबीज हैं। आज मेरे पडताल का विषय यही है। 

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को बचाने वाली कॉरपोरेट मीडिया भाजपा के नेताओं के उपर लग रहे दाग को व्यापक तरीके से प्रचारित कर रही है क्योंकि यदि बिहार चुनाव में भाजपा की हार हुई, तो उसका ठिकडा कथित घोटालेबाज और अनियमित्ता करने वालों पर फोडा जा सके। हां, एक बात और है कि मोदी समर्थक कॉरपोरेट, मोदी के समकक्ष अन्य किसी भाजपा नेता को खडा नहीं होने देना चाहता है। लिहाजा मोदी पिछड़ी जाति से आते हैं। व्यापमं में फस रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के बारे में भी कहा जाता है कि वे भी अत्यंत पिछडी जाति के हैं और मोदी वाली संभावना भी उनमें दिखती है। दूसरी ओर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मामला है। यदि पूरी भाजपा में देखा जाये तो स्वराज, मोदी की प्रवल विरोधी रही हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले तक स्वराज ने मोदी का जमकर विरोध किया, आज वो भी ललित मोदी प्रकरण वाले मामले में फसती हुई बताई जा रही हैं। बसुंधरा राजे में कुछ भाजपाइयों को नरेन्द्र मोदी वाला गुण दिखा और उनकी ओर जैसे ही कुछ लोगों का झुकाव हुआ राजे भी टारगेट में आ गयी। उधर तीन बार मुख्यमंत्री रहे छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री रमण सिंह पर भी चावल घोआले का आरोप लगने लगा है। उन्हें भी प्रधानमंत्री मटेरियल बताया जा रहा है और उन्हें भी कुछ लोग मोदी के विकल्प के रूप में उभारने की कोशिश कर रहे हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के उपर आरोपों की झरी लग चुकी है और कई मामले में केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेतली पर भी निशना साधा जा रहा है। महाराष्ट्र के प्रभावशाली नेता गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु हो चुकी है और उनकी बेटी पंकजा के उपर अनियमित्ता का अरोप है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विद्यार्थी शाखा के लोकप्रिय नेता रहे मराठा क्षेत्र के प्रभावशाली नेता विनोद तावडे के खिलाफ भी मामला उछल रहा है। वे भी प्रधानमंत्री मटेरियल के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे थे। इधर संघ के चहेते भाजपा नेता नितिन गडकडी के खिलाफ कई मामले लंबित हैं। उन्हें भी प्रधानमंत्री का दावेदार बताया जा रहा था। संघ ने तो डंके की चोट पर महाराष्ट्र से सीधे उन्हें दिल्ली लाकर बिठा दिया, लेकिन कई घोटालों में नाम आने के बाद इन दिनों संघ भी चुप्पी साधे हुए है। अंत में अति इमानदार की छवि वाले गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर को आनन-फानन में केन्द्रीय प्रतिरक्षा मंत्री बनाया गया और नरेन्द्र मोदी के विकल्प की संभावना उनमें तलाशी जाने लगी। इस बीच सुना है कि उनके खिलाफ भी चुनाव के दौरान अपनी शिक्षा के विषय में चुनाव आयोग को गलत जानकारी देने का आरोप लग रहा है। यानि जिन भाजपा नेताओं में प्रधानमंत्री के विकल्प की छवि दिखाई दे रही है उन्ही के खिलाफ अनियमित्ता का अरोप प्रचारित हो रहा है। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता है क्योंकि कई संयोग एक साथ सामने आए तो उसे षड्यंत्र मान लेना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा के अंदर मोदी समर्थकों को बारीकी से बचाया जा रहा है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी के मामले को लगातार मीडिया में दबाये जाने का प्रयास किया जा रहा है। खुद अमित भाई कई मामलों में फसे रहे हैं, लेकिन उनको मीडिया बडी तसल्ली से बचा रही है। इसका संकेत साफ है कि भाजपा के अंदर सत्ता का संघर्ष बडी तेजी से विस्तार प्रप्त कर रहा है। इन दिनों जब भाजपा नेताओं पर घोटालों और अनियमित्ताओं का आरोप प्रचारित हो रहा है तो साफ-साफ भाजपा के दो गुटों के आपसी द्वन्द्व, जो परोक्ष रूप में था वह प्रत्यक्ष होने लगा है। 

मुङो ऐसा लगता है कि यह संघर्ष आने वाले दिनों में और बढेगा। विगत दिनों मैंने भाजपा के वैचारिक द्वन्द्व पर लिखा था। इन दिनों भाजपा के अंदर भौतिक द्वन्द्व भी चल रहा है, जो चरम की ओर बढेगा क्योंकि जहां सबसे ज्यादा व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है, वही वह सबसे ज्यादा असुरक्षित भी होता है। भाजपा और संघ परिवार की विडम्वणा यह है कि उन्हें यह लगने लगा है, वे इन दिनों सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं, लेकिन मुङो लगता है कि वर्तमान दौर में संघ विचार परिवार जबरदस्त संक्रमण से गुजर रहा है, जिसका प्रतिफ आने वाले समय संपूर्ण विचार परिवार पर दिखेगा। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में उन दिनों अपने कार्यकत्र्ताओं के प्रशिक्षण के दौरान बताया जाता था कि सामोहिता के साथ संगठन संभव है। नरेन्द्र मोदी ने जो सरकार बनाने के लिए अपनी टीम बनाई है, उसमें सामोहिकता का घोर आभाव दिखता है। दूसरी बात जो संघ में बताई जाती थी, वह अनामिकता है। मोदी जी की कार्यशैली में इसका भी आभाव दिखता है। इनकी सरकार करती कम है और प्रचार ज्यादा कर रही है। कई मामलों में तो नकारात्मक बात को भी सकारात्मक तरीके से प्रचारित करने का प्रयास किया गया है। दूसरा इन घोटालों और अनियमित्ताओं से अंततोगत्वा प्रधानमंत्री और उनके खास सहयोगी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को फायदा होता दिख रहा है। आने वाले समय में बिहार, बंगाल के विधानसभा का चुनाव है। दोनों स्थान पर पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं बतायी जा रही है। बिहार में तो नीतीश कुमार के महागठबंधन के बाद से भाजपा ताबरतोड रणनीति बना रही है। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को संभवत: भरोसा हो गया है कि बिहार का चुनाव वे हार भी सकते हैं। यदि बिहार के चुनाव में भाजपा की हार हुई तो उसे सीधे प्रधानमंत्री की कार्यशैली और अध्यक्ष के सांगठनिक कौशल से जोडकर देखा जाने वाला था, लेकिन उससे पहले ही घोटालों और अनियमित्ताओं का प्रचार प्रारंभ हो गया है। अब इन घोटालों और अनियमित्ताओं के प्रचार ने मोदी की कार्यशैली एवं शाह के संगठन कौशल पर प्रश्न खडा नहीं होगा। अब प्रचारित यह किया जाएगा कि बिहार एवं बंगाल की हार के लिए घोटाले एवं अनियमित्ता वाले नेता जिम्मेबार हैं, न कि मोदी की जनविरोधी नीतियां और शाह का संगठन कौशल। इसलिए कुल मिलाकर कहा जाये तो नरेन्द्र भाई और अमित भाई, बडी बारीकी से भाजपा के खिलाफ हो रहे प्रचार को अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने एवं अपने फायदे के रूप में उपयोग करने में सफल हो रहे हैं, ऐसा कहना गलत नहीं होगा। 

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