चीन के खतरनाक कूटनीतिक चाल को समङो की जरूरत

गौतम चौधरी
याद होगा! विगत दिनों चीन की ओर से एक कूटनीतिक बयान आया था। बयान गौर बरने वाला है। चीन ने भारत सरकार से अनुरोध किया था कि वह भारत-नेपाल-चीन के बीच एक व्यावसायिक कॉलिडोर बनने की इच्छा रखता है। यदि भारत सरकार की हां हो तो चीन इस पर पहल कर सकता है। इस बयान के बाद न तो भारत सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया आयी और न ही चीनी राजनेताओं का कोई बयान अया। चीनी कूटनीतिज्ञों का बयान आया, गया और हो गया। सतही तौर पर कहें तो कुछ ऐसा ही है, लेकिन चीन एक गंभीर देश है और उसकी ओर से इस प्रकार के गंभीर विषय पर आए बयान को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि चीन जिस व्यापारिक कॉलीडोर की बात कर रहा है, वह बिहार के साथ चीन के सैंकड़ों साल के व्यापारिक जुड़ाव और सांस्कृतिक संबंधों का मार्ग रहा है। अंदर की बात तो यह है कि विगत कई वर्षो से नेपाल को विश्वास में लेकर चीन इस दिशा में काम कर रहा है। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि इस मामले में भारत के कूटनीतिज्ञों को कतिपय गहन जानकारियां होगी, लेकिन चीन की चाल को हम न तो नेपाल में मात दे पा रहे हैं और न ही भारत में। इसके पीछे के कारणों की पड़ताल फिर कभी हम कर लेंगे, फिहाल इस बयान के पीछे चीन की कूटनीतिक रणनीति क्या है, इसपर हम गंभीर से विचार कर लेते हैं। 

चीन की ओर से आए बयान के बाद हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूर्व तय यात्र पर मध्य एशिया और रूस गये। रूस के उफा में ब्रिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में भाग लेने के दौरान ऐसे तो भारत के लिए वहां तीन महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटनाएं घटी, लेकिन दो कूटनीतिक घटनाओं का सीधा वास्ता भारत का चीन के साथ है। पहला संघाई सहयोग संगठन में भारत और पाकिस्तान की प्रत्यक्ष एंटरी और दूसरा पाकिस्तान का जम्मू-कश्मीर को अलग रखकर भारत के साथ वार्ता के लिए तैयार होना। यह दोनों कूटनीतिक घटना भारत और चीन के लिए महत्वपूर्ण है। इस कूटनीतिक चाल में चीन की चतुराई को समझने की जरूरत है। याद होगा कि विगत दिनों जब नेपाल के काठमांडू में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक चल रही थी तो पाकिस्तान ने सार्क में चीन को शामिल करने पर पंगा खड़ा कर दिया था। उस दौरान पाकिस्तान के द्वारा सार्क में चीन की एंटरी की मांग पर भारत ने जबरदस्त ऐतराज जताया था। अब चीन ने अपने अधिकार वाले संघाई सहयोग संगठन के साथ भारत को जोड़ लिया है। अब पाकिस्तान सार्क में भारत पर चीन को शामिल करने के लिए दबाव बनाएगा। इससे भारत का मध्य एवं चीन के दोस्तों के बीच कितना प्रभाव बढेगा यह पता नहीं, लेकिन दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव बढना तय है। पहले चीन दक्षिण एशियायी देशों में अवैध रूप से पैसे के बल पर अपना प्रभाव बढा रहा था, लेकिन जब से भारत में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है तब से भारत का विदेश नीति धारदार हुआ है। भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुधारने में जबरदस्त तरीके से पहल किया है। बांग्लादेश में भारत का प्रभाव बढा है। मालदव में भारत की भूमिका सक्रिय होती जा रही है। श्रीलंगा में अब भारत प्रभावी भूमिका निभाने की स्थिति में आ रहा है। इस बात से चीन घबराया हुआ है क्योंकि चीन जिस समुद्री सिल्क मार्ग को मजबूत कर रहा है वह सार्क देशों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। पहले चीन भारत के पड़ोसियों को लालच के बदौलत साधता था लेकिन अब दक्षिण ऐशिया में ऐसी सरकारें आ गयी है, जो चीन की चाल को समझने लगी है। साथ ही भारत भी बड़े भाई की भूमिका में इन देशों के साथ खड़ा होने लगा है। इसलिए चीन अब दक्षिण देशिया में अपने प्रभाव को बढाने के लिए सार्क में प्रत्यक्ष भूमिका चाहता है। चीन ने उसी कूटनीतिक चाल को सफल बनाने के लिए भारत को संघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनाया है। जब हम इस मामले को चीनी कूटनीति द्वारा दिये भारत-नेपाल-चीन के बीच कॉलिडोर वाले बयान से जोड़ते हैं, तो स्थिति स्पष्ट होने लगती है। 

चीन की का खतरनाक खेल इतने पर समाप्त नहीं होता है। चीन की नजर बिहार के साथ ही साथ पूवरेत्तर के राज्यों पर है। चीन नेपाल में सात राजमार्गो का निर्माण कर रहा है। चीन ने उत्तर में कोदारी से लेकर दक्षिण नेताल में वीरगंज तक के लिए सामरिक उपयोग वाला सड़क निर्माण का कार्य अपने हाथ में लिए हुए है। यही नहीं चीनी सड़क निर्माण कंपनी ने नेपाल के त्रिभुवन राजमार्ग का भी ठेका लिया है। यह राजमार्ग पूरे तराई को जोड़ता है और पूरव में झापा जिले के भद्रपुर तक जाता है। पूर्वी नेपाल में चीन की सीमा से भद्रपुर तक के लिए जो राजमार्ग चीन बना रहा है वह भी बेहद सामरिक महत्व का है। इस राजमार्ग को मेची राजमार्ग के नाम से जाना जाता है। उधर बांग्लादेश में चीन, ढाका के पास बहुत बड़ा बंदरगाह बना रहा है। उस बंदरगाह से सीधी सड़क बांग्लादेश के तेनतुलिया तक आती है। बांग्लादेश के तेनतुलिया से लेकर नेपाल के भद्रपुर तक की दूरी मात्र 12 किमी. की है। इस दोनों क्षेत्रों के बीच दो नदियां बहती है। महानंदा जो भारत और बांग्लादेश की सीम बनाती है और मेची जो भारत नेपाल की सीमा पर है। चीन के दबाव में बांग्लादेश अपने अधिकार क्षेत्र में महानंदा पर पुल बना रहा है। इधर नेपाल भी चीन के सहयोग में मेची पर 622 करोड़ रूपये की लागत से पुलि का निर्माण कर रहा है। हालांकि मेची नदी पर बनने वाले पुल का निर्माण कार्य भारतीय सेना के विरोध के कारण थोड़े दिनों के लिए रोक दिया गया था, लेकिन अब उस पुलि का निर्माण कार्य फिर से प्रारंभ कर दिया गया है। चीन नेपाल को विश्वास में लेकर कोदारी से वीरगंज तक के लिए जो चार मार्गीय सड़क का निर्माण कर रहा है वह व्यापारिक वस्तुओं की ढुलाई के साथ ही साथ विपरीत परिस्थिति में भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए भी उसका उपयोग चीन करेगा। दूसरा मार्ग जो चीनी सीमा से लेकर भद्रपुर तक बन रहा है उसे चीन बांग्लादेश के तेनतुलिया वाली सड़क से साथ जोड़ने की योजना में है। इससे चीन भारत के पूवरेत्तर को शेष भारत के साथ जब चाहे काट सके और दूसरा अपना सैन्य साजो सामान इस रास्ते अपने आधिपत्य वाले ढाका बंदरगाह तक पहुंचा सके। चीन ने भारत को ऐसे ही नहीं अपने स्वामित्व वाले संघाई सहयोग संगठन का सदस्य बना लिया है। इस चाल से चीन भारत को घेरने के फिराक में है। चीनी व्यावसायिक कॉलिडोर का मतलब समझने की जरूरत है। ऐसे यह सतही तौर पर यह चीन के द्वारा भारत को विकास का अवसर मुहैया कराने जैसा लगता है। यदि चीन अपनी सीमा नेपाल के रास्ते भारत के लिए खेतला है और उसमें कोई सैन्य हस्तक्षेप नहीं होता है, तो इसे स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन यदि चीन नेपाल के तराई में उसके द्वारा बनाए जा रहे जलविद्युत परियोजनाओं की सुरक्षा के बहाने सैनिक रखता है तो यह समझना चाहिए की चीन की चाल भारत के हित में नहीं है। वह भारत को पूवरेत्तर से काटना चाहता है और नेपाली तराई के साथ ही साथ बिहार को अपना व्यापारिक लक्ष्य बनाना चाहता है तो यह भारत के हित में कैसे होगा। इसलिए संघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनने के बाद भारत को चीन के साथ संबंधों को तसल्ली से विकसित करने की जरूरत है और चीन के चाल को भी परखने की जरूरत है।

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