पश्चिम के मुकाबले पूरब को ज्यादा महत्व दे रहे हैं प्रधानमंत्री

गौतम चौधरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हालिया विदेश दौरे का हर कोणों से पडताल जारी है। होना भी चाहिए और होना स्वाभाविक है। नरेन्द्र भाई इन दिनों मध्य एशिया और रूस के दौरे पर हैं। यह दौरा भारत के लिए कितना अहम है, इसपर एक गंभीर परख की जरूरत है। इस पूरे दौरे के दौरान एक जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने आई है, वह है भारत के साथ पाकिस्तान की दोस्ती के नये अध्याय का प्रारंभ होना। समाचार माध्यमों से मिली खबर में बताया गया है कि प्रधानमंत्री अगले साल पाकिस्तान के दौरे पर भी जाएंगे। कुल मिलाकर देखें तो प्रधानमंत्री मोदी, पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य करने के प्रयास में लगे हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच विकसित हो रहे नये संबंधों को लेकर कुछ लोग मोदी की सराहना कर रहे हैं, तो कुछ लोग विरोध में उतर आये हैं। दोनों पक्ष के लोगों के अपने अपने तर्क है। मुङो उन दोनों के तर्को पर नहीं जाना है लेकिन मोदी पहल पर संदेह करने वालों को वास्तविकता की जानकारी तो होनी ही चाहिए। दोनों देशों के बीच जो संबंध प्रारंभ हो रहा है यह भारत के लिए कितना हितकर होगा और इसका भारत के खिलाफ क्या प्रभाव पडेगा, इसपर आनन-फानन में प्रतिक्रिया देना किसी कीमत पर यथोचित नहीं है। पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्ते सामान्य होते हैं तो इसमें मोदी की बडी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। नरेन्द्र भाई ने एक सफल और सहृद्य पड़ोसी की तरह एक बार फिर से पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढाया है। 

मैं बार-बार यह दुहरा रहा हूं कि नि:संदेह पाकिस्तान भरोसे के लायक देश नहीं है। आजतक के इतिहास से यही लगता है कि उसकी रणनीति में भारत का विरोध संलगA है, लेकिन मोदी उस हकीकत को समझते हैं कि किसी भी परिस्थिति में पड़ोसी नहीं बदला जा सकता है। चाहे कुछ भी करना पड़े पाकिस्तान के साथ सकारात्मक संबंध में ही भारत का विकास छुपा हुआ है। मैं आजकल पंजाब में रह रहा हूं। पंजाब की राजधानी चंडीगढ में भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती और भाईचारा के लिए काम करने वाले कई लोगों से मिलता हूं और कई संगठनों की बात सुनता हूं। हालांकि वे तमाम लोग मुङो शक की नजर से देखते हैं क्योंकि मेरा भौतिक स्वरूप खांटी हिन्दू वाला है। लिहाजा मैं हर जगह सक्रिय रहता हूं। इन तमाम बातों के बीच जो मैं समझ पाया हूं, वह यह है कि पाकिस्तान के साथ भारत का व्यापारिक रिस्ता कामय होना ही चाहिए। इसके लिए सीमा पर व्यापार हेतु सीमा को थोड़ा खोला जाये, यह जरूरी है। दूसरी बात हमारे प्रधानमंत्री भारत की पहुंच मध्य ऐशिया तक बनाना चाहते हैं। जबतक पाकिस्तान हमें जमीनी रास्ता नहीं देगा तबतक हम मध्य ऐशिया में अपनी पकड मजबूत नहीं कर सकते हैं और आर्थिक प्रतिस्पर्धा में चीन का मुकाबला करने में सफल भी नहीं हो सकते। दूसरी बात इरान के साथ हमारे संबंधों का है। इरान के साथ संबंधों का मुकम्मल विदोहन हम तभी कर सकते हैं जब पाकिस्तान हमें अपनी जमीन का उपयोग करने देगा। रूस के साथ भी यही बात है। जबतक पाकिस्तान हमें अपनी जमीन का इस्तेमान करने की इजाजत नहीं देता हम रूस के साथ संबंधों का भी विदोहन नहीं कर सकते हैं। इसलिए हमें पाकिस्तान को तो अपने पक्ष में लाना ही होगा। प्रधानमंत्री उसी योजना पर काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का हालिया दौरा, कुछ पूर्व के कार्यक्रमों पर तय जैसा लगता है, लेकिन कुछ तो एकदम से तत्काल हुआ है। इस दौरे के दौरान प्रधानमंत्री के खाते में तीन उपलब्धि है। पहला चीन के साथ सकारात्मक पहल। उसके आलोक में चीन ने भारत को अपने आधिपत्य वाले, संधाई सहयोग संगठन के साथ जोड लिया है। दूसरा पाकिस्तान के साथा दोस्ती की पहल है और तीसरा रूस को यह संदेश देना कि भारत में राजनीतिक बदलाव के बाद भी उसके विदेश नीति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। हालांकि रूस वाले मामले को छोड दो मामले को बारीकी से देखें तो चीन के शातिर कूटनीतिक चाल ध्यान में आएगा, लेकिन भारत के पास फिहाल दूसरा कोई विकल्प भी तो नहीं है। क्योंकि अपनी प्रकृति और पारंपरिक वैदेशिक नीति के कारण भारत कभी एक ध्रुविय व्यवस्था का समर्थन नहीं कर सकता है। 

रूस के साथ भारत के पुराने रिश्ते रहे हैं। इन दिनों जब भारत का झुकाव इजरायल और संयुक्त राजय अमेरिका की ओर हो रहा है, तो रूस ने भी भारत के खिलाफ शरारत करना प्रारंभ कर दिया और वह भारत के घुर विरोधी पाकिस्तान को अपने साथ जोडने का भरसक प्रयास किया है। रूस की चाल को भारतीय कूटनीति ने गंभीरता से लिया और रूस को विश्वास में लेने के लिए इस बार की अपनी विदेश यात्र में प्रधानमंत्री ने रूस के साथ अपने संबंधों को भी गति प्रदान की है। रूस को यह नहीं लगे कि भारत उसके खेमे से निकल कर, या उसकी दोस्ती के शर्तो पर अमेरिकन लॉबी का समर्थन करने लगा है। यह एक दृष्टि से सही भी है। हमारे कई प्रकार के व्यापार रूस के साथ हैं। रूस ने हमें विपरीत परिस्थिति में सहयोग किया है। शीत युद्ध के दौरान रूस ने ही भारत का समर्थन किया। इसलिए एकाएक रूसी दोस्ती को छोड भारत का अमेरिकी लॉबी में जा बैठना भारत की विदेश नीति का अंग नहीं हो सकता है और होना भी नहीं चाहिए। इसलिए इस दौरे से प्रधानमंत्री ने तीन कूटनीतिक चाल को गति दी है। पहला चीन को संघाई सहयोग संगठन में सदस्य बनाने के लिए बाध्य करना। दूसरा पाकिस्तान के साथ दोस्ती को दिशा देना और तीसार रूस को विश्वास दिलाना कि भारत में सत्ता परिवर्तन से उसके विदेश नीति में कोई खास बदलाव नहीं आया है।

इन तीनों कूटनीतिक प्रयास से भारत का मध्य एशिया में प्रभाव बढेगा। दूसरा चीन पर भारत के साथ सकारात्क होने का दबाव पडेगा। तीसार पाकिस्तान के साथ संबंधों के सकारात्मक होने से भारत के विकास की गति में तेजी आएगी। पाकिस्तान के साथ संबंध विकसित होने से सबसे ज्यादा फायदा भारत के सीमावर्ती राज्यों को होगा। हमारे उद्यमी कई मामलों में पाकिस्तान का सहयोग कर सकते हैं और अपने व्यापार को विस्तार दे सकते हैं। हालांकि इस दोस्ती में भारत को सतर्क रहना होगा क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच विगत कई दशकों से जमे शरारती तत्व अपने हितों को साधने में नकारात्मक प्रयास कर सकते हैं, लेकिन जब दोनों देशों के बीच समझ विकसित हो जाएगा तो अन्य मुद्दों का समाधान भी देर सबेर निकाल ही लिया जाएगा। नरेन्द्र मोदी की इस कूटनीतिक पहल से भारत के पुराने सिद्धांतों को भी बल मिलेगा और पश्चिम के मुकाबले पूरब को खडा करने में बडी कामयाबी मिल सकती है। गौर से देखें तो चीन, रूस या फिर भारत कुल मिलाकर पश्चिम के विरोध में ही तो खडे होते रहे हैं। इस बार की यात्र में मोदी ने इसी थीम पर काम किया है, जो भारत के लिए ही नहीं संपूर्ण एशिया के लिए बेहतरी का द्वार खोलेगा। एशिया में चल रही लडाई कमजोर होगी और अमन के नये रास्ते खुलेंगे। यही तो भारत का चिंतन है कि दुनिया कुटुंब की तरह अमन और शांति के साथ जीये।

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