अकालियों के पंथक रणनीति से पंजाब में सिकुर रही है भाजपा की जमीन
गौतम चौधरी
भजपा के वोटबैंक पर कांग्रेस की नजर
भारतीय जनता पार्टी, सिख चरमपंथियों का
मुखर विरोधी रही है। यदि कहा जाये कि पंजाब और उत्तर भारत में भाजपा के एजेंडों
में सिख चरमपंथियों की मुखाल्फल, एक महत्वपूर्ण एजेंडा रहा है, तो अतिशयोक्ति नहीं
होगी। शिरोमणि अकाली दल जैसे घुर सिख समर्थक दल के साथ गठबंधन करने के बाद भी
भाजपा ने अपने इस स्वरूप के साथ कभी समझौता नहीं किया, लेकिन विगत दिनों जो
घटनाएं घटी उससे भाजपा के समर्थकों में यह संदेश जाने लगा है कि पार्टी केन्द्र
में सत्ता प्राप्त करने के बाद अपने कुछ मूल सिद्धांतों से समझौता करने लगी है, उसमें सिख
अतिवादियों का विरोध भी एक मुद्दा है। विगत दिनों दो सिख अतिवादियों को देश के
विभिन्न जेलों से लाकर पंजाब के जेलों में डाला गया। सिख चरमपंथियों की सिफटिंग पर
पंजाब की सियासत गर्म हो रही है। हालांकि सिख आतंकवाद पर गंभीरता से नजर रखने वाले
विष्लेशक एवं पंजाब पुलिस की गुप्तचर शाखा यह मानकर चल रही है कि ये दोनों
आतंकवादी अब महत्वहीन हो चुके हैं और पंजाब के जेलों में इन्हें डाल देने से पंजाब
की शांति पर कोई नकारात्मक प्रभाव पडने वाला नहीं है। इस मामले में सत्तारूढ दल के
खिलाफ राजनीति करने वाले और कुछ तटस्थ चिंतक इस तर्क से सहमत नहीं हैं। उनका मानना
है कि निःसंदेह ये आतंकवादी अपना महत्व खो चुके होंगे, लेकिन जिस तरह सत्ता
ने एक खास वर्ग का दबाव दिखाकर अतिवादियों को पंजाब के जेलों में सिफ्ट किया है उसे
तुष्टिकरण की संज्ञा दी जा सकती है और पंजाब के आतंकवाद का इतिहास देखकर अंदाजा
लगाया जा रहा है कि पंजाब में आने वाले दिनों में एक बार फिर से तुष्टिकरण की
राजनीति प्रारंभ होगी और उसका प्रतिफल पंजाब में नये दौर के आतंकवाद के रूप में
सामने आएगा।
इन दोनों चिंतन का तुलनात्मक अध्यन करें तो
पंजाब की सियासत में आने वाले समय में किसको नफा होगा और किसके जिम्मे नुकसान
जाएगा उसका अंदाजा अभी से लगाया जा सकता है। आम लोगों में संदेश पहुंचाने का
प्रयास किया जा रहा है कि इन अतिवादियों के पंजाब जेल में आने से पंजाब के आतंकवाद
को बल मिलेगा और एक बार फिर से पंजाब में आतंकवाद प्रारंभ हो सकता है। उक्त दोनों
चिंतन के मानने वाले पंजाब में इस घटना को अपने अपने तरीके से देख रहे हैं और उसको
प्रचारित भी कर रहे हैं। आतंकवादियों के सिफ्टिंग से अपने-अपने तरीके से इसमें
पंजाब के दो बडे सियासी दलों को फायदा हो रहा है। इस घटना से जहां एक ओर सत्तारूढ
बादल गुट वाले शिरोमणि अकाली दल के नेता यह साबित करना चाहते हैं कि उनके प्रयास
से सजा काट चुके सिख अतिवादियों को पंजाब में सिफ्ट किया गया है, जबकि कांग्रेस इस
मामले को लेकर अपने समर्थकों और हिन्दू मतदाताओं में प्रचारित करने लगी है कि
आतंकवादियों की सिफ्टिंग से पंजाब में आतंकवाद बढेगा और उसका खामियाजा पूर्व की
तरह हिन्दुओं को उठाना पडेगा। कांग्रेस का लक्ष्य भाजपा के पक्ष में गोलबंद होते
रहे पंजाब का 12 से लेकर 15 प्रतिशत तक उच्च वर्गीय हिन्दू मतदाता है। इसका असर
दिखने भी लगा है। शहरी हिन्दू उच्च वर्ग, जो भाजपा का पारंपरिक मतदाता रहा है, वह अकाली-भाजपा
गठबंधन सरकार से कन्नी काटते दिख रही हैं। इस घटना के बाद भाजपा का जनाधार और
खिसकने की उम्मीद है।
इस सिफ्टिंग से अकाली अपने प्रभाव वाले
मतदाताओं को यह समझाने में शायद कामयाब हो जाये कि उसके प्रयास के कारण ही
आतंकवादियों की पंजाब में सिफ्टिंग हुई है, जिसकी मांग विगत दो-तीन वर्षों से गरमपंथी सिख एक्टिविस्ट
करते रहे हैं। इस घटना से अकालियों का अपना वोटबैंक पक्का दिखने लगा है। कम से कम
पंथक समूहों को समझाने के लिए अकालियों के पास यह एक बडा हथियार साबिह हो सकता है
और भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व अकालियों के पंथक एजेंडे के साथ ही पंजाब फतह की
योजना में है, लेकिन
भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व का यह दाव, पंजाब भाजपा के लिए उलटा पडने वाला है। अतिवादियों की
सिफ्टिंग से सबसे ज्यादा घाटा भाजपा को होने वाला है। भाजपा के एक खास नेता ने तो
यहां तक बताया कि यदि ऐसे ही दो-तीन मामले और हो गये तो आसन्न विधानसभा में भाजपा
का पंजाब में खाता खुलना संभव नहीं हो पाएगा। अब सियासी घाटे को देखकर पंजाब भाजपा
यह कहने लगी है कि वह इस मामले को अकालियों के साथ समन्वय की बैठक में उठाएंगी और
जमकर इसका विरोध करेंगी, लेकिन यह सर्वविदित है कि केन्द्र में भाजपा के पूर्ण बहुमत
की सरकार चल रही है। अतिवादियों की सिफ्टिंग बिना केन्द्रीय गृहमंत्रालय की सहमति
से संभव नहीं हो सकता है। ऐसे में यह माना जाने लगा है कि पंजाब के मुख्यमंत्री
सरदार प्रकाश सिंह बादल ने भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को अपने शर्तों पर डील कर
रहे हैं। इसका असर पंजाब के भाजपा समर्थकों पर होने लगा है। यही नहीं जैसे-जैसे इस
बात की जानकारी देश के बहुसंख्यकों को होगी वैसे-वैसे भाजपा समर्थक भाजपा से विमुख
होंगे,
क्योंकि
आतंकवाद के समय में केवल पंजाब के हिन्दू ही नहीं, पूरे देश के
हिन्दुओं ने सिख अतिवाद का दंश झेला है। अकाली बडी चालाकी से इस मामले को प्रचारित
कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है, इसका जितना प्रचार होगा उतना अकालियों को फायदा होगा।
प्रेक्षकों का मानना है कि पंजाब में
भ्रष्टाचार और गैर प्रबंधन के कारण सत्तारूढ अकाली दल की लोकप्रियता जबरदस्त तरीके
से गिर रही है। सत्तारूढ दल एवं सत्तारूढ सरदार प्रकाश सिंह बादल के परिवार को लगने लगा है कि वर्तमान परिस्थिति
में सन् 2017 पंजाब विधानसभा का चुनाव जीतना कठिन है। इस समस्या से निवटने के लिए
अकाली दल के रणनीतिकारों को एक मात्र रास्ता दिख रहा है और वह रास्ता है पंथक
मामलों को हवा देना। यानि पंजाब में धार्मिक उन्माद को बढावा देना। सनद रहे इसी
हथियार से कांग्रेस भी पंजाब को साधती रही है और बाद में उसी पंथक मामले को हवा
देकर अकाली पंजाब की सत्ता पर काबीज होते रहे हैं। अकाली, एक बार फिर से पंथक
मामलों को हवा देने लगे हैं। सरदार सूरत सिंह खालसा का आमरण अनशन, विधायक प्रो. बिरसा
सिंह बल्टोहा का पंजाब विधानसभा में पूर्व आतंकवादी होने की स्वीकार्यता और खुंखार
आतंकवादियों का पंजाब के जेल में सिफ्टिंग यह साबित करने के लिए काफी है कि अकाली
इन दिनों पंजाब में पंथक उभार की रणनीति पर गंभीरता से कम कर रहे हैं। इन सारे
मामलों को प्रेक्षक शिरोमणि अकाली दल की पंथक रणनीति से जोडकर देख रहे हैं।
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