विमुद्रीकरण, सरकार की गलतियों की मुकम्मल व्याख्या

गौतम चौधरी
विमुद्रीकरण के नफा-नुकसान पर अभी भी दावे के साथ कुछ कहना संभव नहीं है। क्योंकि इसके कारण जो व्यापार पर प्रभाव पड़ा है उसका मुकम्मल आकलन होना अभी बांकी है। लेकिन सरकार और भारतीर रिजर्व बैंक के द्वारा नियमों में लगातार बदलाव ने यह साबित कर दिया है कि विमुद्रीकरण का फैसला जल्दबाजी में लिया गया फैसला है और उसकी मुकम्मल तैयारी में भयंकर कोताही बरती गयी है। विमुद्रीकरण के बाद भी सरकार ने लगातार गलतियां की। इन गलतियों की लम्बी सूचि है लेकिन मोटे तौर पर जो गलतियां ध्यान में आती है उसकी व्याख्या जरूरी है।
पहली गलती सरकार की यह हुई कि जो घोषणा भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को करनी चाहिए थी वह घोषणा भारत के प्रधानमंत्री ने की। इसके पीछे का तर्क अभी तक समझ में नहीं आ रहा है। हालांकि इस संदर्भ में सवाल तो बहुत उठे हैं लेकिन सरकार की ओर से इस विषय पर आधिकारिक बयान नहीं आया है। कानून के जानकारों का तो यहां तक कहना है कि यह घोषणा संवैधानिक दृष्टि से भी उचित नहीं था। खैर अब इससे संबंधित मामला न्याय के सर्वोच्च पंचायत के पास लंबित है। दूसरी जो सबसे बड़ी गलती सरकार ने की वह थी तैयारी की। एक जानकार के मुताबिक इस आनन-फानन की तैयारी के कारण लाखों करोड़ों रूपये के जाली नोट भारतीय रिजर्व बैंक में जमा हो चुके हैं। जाली नोटों के कारोबारी इस उहापोह का फायदा उठाकर अपने जाली नोटों को ठिकाने लगाने में कामयाबी हासित कर ली।
सरकार की तैयारी की हवा उस समय निकलते दिखी जब लाखों की संख्या में लोग अपना ही पैसा निकालने के लिए कतार में खड़े दिखे। दूसरी ओर भारत का अधिकतर व्यापार नकदी में होता है एकाएक सरकार ने नोट बंद करके व्यापारियों को काम बंद कर देने पर मजबूतर कर दिया। इसके लिए बैंक के अधिकारी और कर्मचारी पहले से तैयार नहीं थे। इसलिए उनका उस स्तर पर प्रषिक्षण भी नहीं हो पाया था और इसके कारण कई विसंगतियां सामने आयी। पुराने नोट बाजार से वापस लेने के दौरान भी कई प्रकार की लापरवाही देखने को मिली। यह लापरवाही कई स्तर पर दिखा जिसे सीमित किया जा सकता था लेकिन वित्त विभाग का ध्यान इस ओर अभी तक नहीं गया है।
उक्त विसंगतियों और लापरवाही के अलावा रूपये की छपाई में भी अनियमितता अब सामने आने लगी है। छपाई जितनी होनी चाहिए थी उतनी नहीं हो पायी जिसके कारण लोगों को पैसे नहीं मिले और लोग परेषान हुए। छपाई के स्तर पर तो और कई अनियमितता हुई होगी लेकिन कुछ बातें खुलकर सामने आयी है और कुछ बातें अभी तक सार्वजनिक नहीं की जा सकी है। इस बीच सरकार के द्वारा दो हजार के नए नोट को बाजार में लाना भी सरकार की नियत पर सवाल खड़े करता है। यदि सरकार सचमुच की बड़े नोटों के पक्ष में नहीं थी तो फिर उसने दो हजार के नोट की छपाई क्यों करवाई। कई अर्थषास्त्रियों का तो यहां तक कहना है कि दो हजार के नोट और अधिक भ्रष्टाचार का करण बनेंगा। इसके कारण काले धन में और अधिक बढ़ोतरी होगी। इस पूरे प्रकरण में सरकार की सबसे बड़ी चूक, सरकारीकृत बैंकों को नयी करेंसी का आवंटन निजी बैंकों की तुलना में कम करना है। विगत दिनों छपी एक खबर के मुताबिक जिन निजी बैंकों का आधार पूंजी और ग्राहक संख्या बेहद कम है उसे तो प्रति दिन प्रति शाखा 10 करोड़ रूपये आवंटित किए जा रहे थे लेकिन सरकारी बैंकों को प्रति दिन प्रति शाखा एक से दो करोड़ आवंटित किए गए। चंडीगढ़ के एक बैंक अधिकारी ने बताया कि उसकी शाखा चंडीगढ़ में सबसे बड़ी शाखा है लेकिन उसके पास दो दिनों तक नए नोट भेजे ही नहीं गए जबकि पास के ही निजी बैंकों में 10 करोड़ नए नोट भेज दिए गये। इस प्रकार की विंगति किस स्तर पर हुई यह तो पड़ताल का विषय है लेकिन इसकी जानकारी सरकार को यदि तत्काल नहीं हुई तो यह भी सरकार की कमजोरी के साथ ही साथ वित्तीय प्रबंधन पर कमजोर पकड़ को चिंहित करता है। बैंक मामले और वित्तीय प्रबंधन के एक जानकार ने बताया कि इस प्रकार के असंतुलित और अव्यावहारिक नोट अवंटन के कारण सबसे ज्यादा लोगों को परेषानी उठानी पड़ी है। हालांकि इस मामले में सरकार को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए थी लेकिन सरकार कार्रवाई करने में अभी तक कोताही बरत रही है। यह सरकार के प्रबंधन और सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा कर रहा है।
अभी तक भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने मातहत बैंकों को लगभग 60 प्रकार का नियम जारी कर चुका है। इसमें से कुछ नियम बाद में वापस भी लिए गए हैं। जैसे हाल ही में पांच हजार रूपये जमा कराने वाला नियम रिजर्व बैंक को वापस लेना पड़ा। इस प्रकार का परिवर्तन न तो अर्थव्यवस्था के लिए सही है और न ही देष के उपर विष्वास को बढ़ाने वाला है। इस प्रकार के लगातार नियम परिवर्तन से देष की जनता भ्रम पाल लेती है जिससे अंततोगत्वा सरकार और देष को ही घाटा होता है। इस विषय को अर्थषस्त्री बारीकी से समझा सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर नियमों में लगातार परिवर्तन सरकार के आत्मबल में आ रही कमी को ही परिलक्षित करता है।
कुल मिलाकर देखें तो विमुद्रीकरण के दौरान सरकार ने कई स्तर पर कई प्रकार की गलतियां की है। हालांकि उन गलतियों की मुकम्मल व्याख्या कम शब्दों में संभव नहीं है। कुछ ऐसी भी गलती सरकार के द्वारा की गयी है जो अभी तक पकड़ में नहीं आयी है साथ ही कुछ ऐसी भी गलतियों सरकारी स्तर पर हुई है जिसको सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है क्योंकि उससे राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। ऐसे में सरकार को अपने किए पर जल्द से जल्द संज्ञान लेना चाहिए और उसे सुधारने की पूरी कोषिष करनी चाहिए। यही नहीं सरकार की योजनाओं को जिन जिम्मेबार लोगों ने पलीता लगाने की पूरी कोषिष की उसके खिलाफ भी सरकार को तत्काल मुकम्मल कार्रवाई करनी चाहिए।

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