हॉर्ट ऑफ एषिया में रूस के रूख को गंभीरता से ले भारत

गौतम चौधरी
अफगानिस्तान पर हो रहे सम्मेलन हॉर्ट ऑफ एषिया सम्मेलन का चित्र इस बार बदल-बदला-सा दिख रहा है। चूकी इस बार पाकिस्तान पूरी कूटनीतिक तैयारी से आया है इसलिए वह भारतीय कूटनीति पर भारी भी पड़ है। हालांकि एक बार फिर अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को आतंकवाद की जमीन कहा है और साफ शब्दों में पाकिस्तान की आलोचना करते हुए कहा कि पाकिस्तान भले उसे आर्थिक मदद दे या नहीं अपने देष से आतंकवाद का निर्यात करना वह बंद करे। अफगानिस्तान के इस बयान को भारतीय कूटनीतिज्ञ अपनी जीत के रूप में प्रचारित कर रहे हैं लेकिन इसी सम्मेलन में रूस ने पाकिस्तान का बचाव किया है और भारतीय कूटनीतिज्ञों को साफ शब्दों में कहा कि जिस प्रकार भारत की ओर से पाकिस्तान पर कूटनीतिक आक्रमण हो रहा है उससे दोनों देषों को कोई लाभ होने वाला नहीं है। यह सम्मेलन अफगानिस्तान के माध्यम से क्षेत्र में शांति के लिए हो रहा है न कि दो देषों के बीच आक्रामक कूटनीतिक आलोचनाओं के लिए। भारत को रूस ने सलाह दी है कि इस प्रकार के आपसी आक्रामकता को शांति के लिए काम करने वाले मंचों पर नहीं उठाया जाना चाहिए। रूस का यह बदला हुआ तेवर भारत के लिए खतरनाक साबिह हो सकता है। 
हालांकि हॉर्ट ऑफ एषिया सम्मेलन, मध्य एषिया और अफगानिस्तान की शांति को लेकर हो रहा है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विगत कुछ दिनों में दुनिया की स्थिति जबरदस्त तरीके से बदली है। सीरियायी अभियान में रूस के शामिल होते ही एषिया में नाटो की पकड़ कमजोर होने लगी है। पाकिस्तान दिन-व-दिन रूसी खेमें के निकट होता जा रहा है। विगत दिनों रूस ने पाकिस्तान के साथ हथियार की बड़ी डील की साथ ही रूसी सेना ने पाकिस्तान की सेना के साथ युद्धाभ्यास भी किया। अभी-अभी जो बेहद महत्वपूर्ण खबर आयी है वह यह है कि अब रूसी सेना पाकिस्तान के ग्वाल्दर बंदरगाह का सामरिक उपयोग भी करेगा। पाकिस्तान की रणनीति बड़ी तेजी से बदल रही है। वह पहले से अमेरिका के निकट रहा है। इन दिनों उसने चीन और रूस के साथ भी अपनी नजदीकी बढ़ा ली है। इसका प्रभाव भी अब दिखने लगा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अभी तक चीन ही उसकी तरफदारी करता दिखता था लेकिन अब रूस भी भारत को आंखें दिखाने लगा है। यह संकेत कुछ अच्छे नहीं है और जो लोग विदेष नीति को लेकर महज कुछ बिन्दुओं पर सकारात्मक बयान से ही अपनी पीठ थपथपाने लगते हैं उन्हें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर चीन और रूस का एक साथ पाकिस्तान की ओर झुकना भारत की कूटनीति के लिए कितना हितकर होगा? खैर मामला अभी हाथ से नहीं निकला है और यह मंच भी बेहद छोटा है लेकिन चीन के साथ ही साथ रूस ने जो पाकिस्तान के पक्ष में स्टेंड लिया है वह निर्विवाद रूप से प्रकारांतर में भारत को घाटा पहुंचाएगा। यह कोई साधारण बात नहीं है। यह भारत की विदेष नीति का इतिहासिक मामला साबित होगा। कलतक रूस भारत के पक्ष में खड़ा होता था लेकिन इस बार रूस का बदला हुआ रूप कई मोर्चों पर भारत को हानि पहुंचा सकता है।
हालांकि मैं वर्तमान सरकार की विदेष नीति पर सवाल नहीं उठा रहा हूं लेकिन जो स्थितियां सामने आ रही है उसमें भारत को बड़ी गंभीरता से अपनी रणनीति बनानी होगी। दूसरी ओर हमारे कूटनीतिज्ञ अमेरिका की ओर अपना झुकाव जगजाहिर करते जा रहे हैं लेकिन अमेरिका के होने वाले राष्ट्रपति डोनाड ट्रंप ने विगत दिनों एक बयान के माध्यम से साफ कर दिया कि उनकी सरकार भारत और पाकिस्तान को एक ही नजरों से देखेगी। हालिया बयान में ट्रंप ने कहा कि पाकिस्तान अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण देष है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि पाकिस्तान बड़ा प्यारा देष है। अब भारतीय कूटनीतिज्ञों को समझ लेना चाहिए कि जब पाकिस्तान के साथ भारत जूझेगा तो उसके लिए विष्व समुदाय के तकतवर देषों में से भारत के पक्ष में कौन खड़ा होगा। मैंने पहले भी लिखा है कि जिस प्रकार भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका के दबाव में निर्णय ले रहे हैं उससे दुनिया के दूसरे पक्ष वाले हमसे कटेंगे और हम दुनिया की राजनीति में अलग-थलग पड़ जाएंगे। इसकी शुरूआत प्रारंभ हो गयी है। अब भारत को सोचना होगा कि आखिर वह किस रास्ते चले? 

Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत