उत्तराखंडी सियासत में स्कूटर का महत्व

गौतम चौधरी
उत्तराखंड का राजनीतिक तापमान एक बार फिर से गर्म हो गया है। सच पूछिए तो प्रधानमंत्री का स्कूटर वाला बयान भाजपा के गले का फांस बनता जा रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री के बयान पर भाजपा लगातार सफाई दे रही है लेकिन भाजपा के लिए मुकम्मल जवाब उतना आसान नहीं हो पा रहा है। इधर कांग्रेस को बिठे-बिठाए एक बार फिर से मुद्दा मिल गया है। अब कांग्रेस इस मुद्दे को कितना भुना पाती है वह कांग्रेस की रणनीति पर निर्भर करता है लेकिन मामले पर उत्तराखंड भाजपा को प्रधानमंत्री ने बगल झांक लेने पर मजबूर तो कर ही दिया है। गोया प्रधानमंत्री ने जिस स्कूटर पर पैसे खाने का आरोप लगा गए, वह स्कूटर तो इन दिनों भाजपा के कार्यालय की सोभा बढ़ा रहा है, यानी स्कूटर कांड के कथित आरोपी पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आजकल भाजपायी खेमें के योद्धा बने फिर रहे हैं। 
हुआ यूं कि विगत 27 दिसम्बर को उत्तराखंड भाजपा ने ताम-झाम के साथ देहरादून के परेड ग्राउंड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली रखी। बला की भीड़ में प्रधानमंत्री जी ने ताबरतोड़ भाषण दिया। जोश में उन्होंने यह भी कह दिया कि उत्तराखंड में तो स्कूटर भी पैसा खाता है। प्रधानमंत्री के बोलने की अपनी शैली है। वो आरोप भी लगाते हैं तो बड़े मजाकिया तरीके से। इस बार भी वैसा ही हुआ और भाषण के प्रवाह में उन्होंने सत्य सबके सामने रख दी। लेकिन बोलने के क्रम में प्रधानमंत्री यह भूल गए कि जिसके उपर वे आरोप लगा रहे हैं वह आमदी उनके ठीक बगल में बैठा हुआ है। मामला पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल का है। केदारनाथ आपदा के समय इस प्रकार के मामले सामने आए थे। लेकिन बाद में विजय बहुगुणा कांग्रेस का दामन छोड़ गए। आजकल वे भारजीय जनता पार्टी के सम्मानित नेता हैं। इस संदर्भ में उत्तराखंड के एक प्रभावशाली भाजपा नेता से जब मैंने बात की तो उन्होंने साफ-साफ कहा कि भाई यहां तो अब चुप रहने में ही भलाई है। क्योंकि कब किस पार्टी का कौन सा नेता आपके सर पर आकर बैठ जाए पता नहीं। कलतक हम विजय बहुगुणा पर न जाने क्या-क्या आरोप लगाते थे। अपने नेताओं के द्वारा आवंटित तथ्यों पर बहुगुणा जी को न जाने क्या-क्या गालियां दे आते थे लेकिन आजकल वही हमारे सम्मानित नेता हैं। इसलिए अब तो समझदार भाजपायी किसी भी प्रतिपक्षी नेता के खिलाफ कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं। एक भाजपायी ने तो यहां तक कह दिया कि क्या पता हरीश रावत अपने दल-बल के साथ कल हमारी पार्टी में शामिल हो जाएं। इसलिए बड़ा सोच-समझकर बोलना पड़ता है। 
इस संदर्भ में हमारे एक पुराने मित्र बताते हैं कि भाजपा की छवि अब कांग्रेस से अलग नहीं रही। अब भाजपा का कांग्रेसीकरण हो चुका है। हरीश रावत के बारे में यह बताया जाता है कि वह भाजपा और संघ के कई नेताओं के साथ आज भी बेहद करीब हैं। आरोप लगाने वाले तो यहां मोदी जी के बयान के बाद यह भी कह रहे हैं कि विजय बहुगुणा तो बनावटी भाजपयी है लेकिन हरीश रावत तो खांटी हिन्दुवादी हैं। यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी, हरीश रावत को पसंद नहीं करती हैं। गंभीरता से देखें तो हरीश रावत ने अपनी छवि प्रो-हिन्दू की बना रखी है। यह बात भी सही है कि उनके अच्छे संबंध सभी पार्टी के नेताओं के साथ है। दूसरी बात जिस प्रकार कांग्रेस के अन्य नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ आग उगलते हैं उस प्रकार हरीश रावत नहीं बोलते। वे संघ के खिलाफ आक्रामक तो कतई नहीं हैं। ऐसे में यदि कोई यह कहे कि हरीश रावत के इशारे पर ही किसी भाजपायी ने प्रधानमंत्री को उक्त बयान के लिए उकसा दिया है ता,े इसे एकदम से नकारा भी नहीं जा सकता है।  
दूसरी बात यह है कि कांग्रेस से जो नेता भाजपा में शामिल हुए हैं वे तमाम पारंपरिक भाजपा नेताओं की आंखों में खटक रहे हैं। ये तमाम कांग्रेस से आयातित नेता टिकट के दावेदार हैं। इनमें से कुछ मुख्यमंत्री के भी दावेदार हैं। ऐसे में कोई स्थापित भाजपायी इन नेताओं को कैसे बरदास्त कर सकता है। यह द्वंद्व तो रहेगा। और यही द्वंद्व उत्तराखंड में भाजपा की कमजोरी एवं कांग्रेस की मजबूती का रहस्य है। अगर कांग्रेस के पास ये लोग होते तो कांग्रेस किसी भी कीमत पर सत्ता में लौटने की स्थिति में नहीं होती। इन नेताओं के जाते कांग्रेस प्रदेश में एक नई उर्जा के साथ खड़ी होने लगी है जबकि भाजपा के अंदर घमासान थमने के बजाय दिन व दिन बढ़ता ही जा रहा है। आज कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता में लौटने की स्थिति में आ गयी है तो उसके पीछे केवल और केवल हरीश रावत की रणनीति का सूझ-बूझ के कारण। 
खैर मामला चहे जो हो लेकिन फिलहाल उत्तराखंड की राजनीतिक गलियारे में पैसा खाने वाला स्कूटर चर्चा का विषय बना हुआ है। भाजपायी पैसा खाने वाला स्कूटर की चर्चा कर रहे हैं तो कांग्रेसी उस स्कूटर को भाजपा कार्यालय की सोभा बढ़ाने वाला बता रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। दूरदर्शन वाहिनियों पर दोनों ही दलों के नेता चीख-चिल्ला रहे हैं, एक-दूसरे को चोर बता रहे हैं। आपदाओं की राजनीति हो रही है। जनता तमाशा देख रही है लेकिन उसके पास विकल्प का आभाव है। आखिर सियासत की जमीन दो ही दलों की जागीर जो बनकर रह गयी है।  

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