नई आपदाओं को निमंत्रण देने लगा है आकाषी नदियां

गौतम चौधरी
इतिहास इस संदर्भ का साक्षी है कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण कई समृद्ध सभ्यताएं नष्ट हो गयी। मानवीय विज्ञान चाहे कितना भी प्रगति कर ले लेकिन प्रकृति पर अब भी कब्जा नहीं जमाया जा सका है। सच पूछिए तो यह संभव भी नहीं है। हां विज्ञान और तकनीकी की प्रगति से हम होने वाले नुकसान को सीमित जरूर कर सकते हैं लेकिन आपदाओं को निर्मूल नहीं किया जा सकता है। अबतक हम बाढ़, सुखा, भूकम्प, ज्वालामुखी, बारिष, बादल का फटना, सुनामी, आकाषी आपदा आदि का नाम ही सुनते रहे हैं लेकिन जैसे-जैसे हम प्रकृति के रहस्यों के उपर से पर्दा उठाते जा रहे हैं नई-नई आपदाओं और उसके काम करने के तरीकों तथा उसके द्वारा होने वाले नुकसानों का पता चल रहा है। इन दिनों इन्ही आपदाओं में एक आकाषीय नदी में आने वाली बाढ़ को चिंहित किया जा रहा है।
कभी-कभी किसी खास क्षेत्र में अप्रत्याषित तरीके से बारिष हो जाती है। वह बारिष भी इतनी हो जाती है कि वहां बाढ़ जैसे स्थिति उत्पन्न होने लगती है। जबकि अमूमन लोग यह मानकर चलते हैं कि वह क्षेत्र बारिष की दृष्टि से औसत वर्षा वाला क्षेत्र है। उदाहरण के लिए इन दिनों राजस्थान के उन इलाकों में खूब बारिष हो रही है जहां किसी जमाने में बारिष होती ही नहीं थी। वैसे ही पष्चिमी घाट पर्वत श्रेणी के पष्चिमी ढलान पर बारिष की बेहद कम गुंजाइस है। लेकिन इन दिनों वहां भी बारिष अपेक्षा से ज्यादा हो रही है। सबसे चौकाने वाली बात यह है कि विध्य पर्वत श्रृींखला के दक्षिणी पदीय भाग में बारिष नहीं होनी चाहिए क्योंकि यहां बारिष होने के अनुकूल माहौल नहीं हैं लेकिन इन दिनों वहां भी बारिष हो रही है। विगत दिनों मध्य प्रदेष के कुछ इलाकों में जो बाढ़ आई उसके लिए उन इलाकों में अपेक्षा से अधिक जलवृष्टि का होना ही बताया जा रहा है। आखिर इस प्रकार के उटपटांग बारिष के पीछे का कारण क्या है? इस संदर्भ को मौसम विज्ञानियों ने बड़ी गंभीरता से लिया और इस प्रकार के अप्रत्याषित बारिष पर शोध प्रारंभ हुआ। ऐसा केवल भारत में ही नहीं हुआ है। दुनिया के अन्य देषों में भी इस प्रकार की अप्रत्याषित प्राकृतिक घटनाएं घटी है। संयुक्त राज्य अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और चीन में बारिष के इस रूप पर मौसम विज्ञानियों ने जब शोध किया तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि आकाष में पृथ्वी के वायुमंडल के अंदर ही एक स्तर पर कई जगह विषालकाय नदियों का निर्माण हो गया है। हालांकि हमारे पौराणिक मिथकों में आकाष गंगा की चर्चा है लेकिन इसके बारे में मुकम्मल जानकारी किसी के पास नहीं थी। अब विज्ञान के पास इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि आकाष में भी नदियां हो सकती है। ये नदियां समय-समय पर व्यापक तबाही भी मचा सकती है। अब इस प्रकार के शोध सार्वजनिक होने लगे हैं।
पहली बार मैसाच्युसेट्स विष्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने सन् 1990 में इस तथ्य को सार्वजनिक किया और बताया कि गर्म हवा हल्की होकर उपर चली जाती है। यह पहले घनीभूत होती है और बाद में जल के बंुदों के रूप में इकट्ठा हो जाती है। यही जल आकाष में एक तल बनाकर यहां वहां घूमने लगते हैं। जब वायुमंडल के उपरी परतों पर दबाव पड़ता है तो यह नीचे की ओर झुक जाते हैं और जहां झुकते हैं वहां भारी तबाही मचा देते हैं। उस स्थान पर अप्रत्याषित बारिष हो जाती है। शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस प्रकार की नदियां ज्यादा तबाही मचा सकती है।
शोधकर्त्ताओं ने इसके आकार-प्रकार के बारे में भी बताया है। इसकी लंबाई दो हजार से लेकर चार हजार किलोमीटर तक की होती है। इसकी चौड़ाई के बारे में बताया गया है कि यह तीन सौ से लेकर पांच सौ किलोमीटर तक की हो सकती है। नदी का मार्ग बिल्कुल धरती पर बहने वाली नदियों के समान एकदम फिक्स तो नहीं होता है लेकिन इसकी धारा लगभग तय होती है। इसके प्रवाह की दिषा भी तय होती है। जिस प्रकार उंचे स्थानों से नीचे स्थानों की ओर धरती की नदियां बहती है उसी प्रकरा आकाष की नदियों में भी यही गुण होता है। इन नदियों का ज्यादातर हिस्सा वाष्पीकृत होता है। ये नदियां वायुमंडल के उपर सतह पर चलने वाली हवा के पष्चिमी प्रवाह से ज्यादा प्रभावित होती है। बारिष के कारणों के बारे में भी लगभग इसी प्रकार की बातें बताई जाती है।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस प्रकार की आपदा से विगत दो साल के अंदर कम से कम 10 हजार लोगों की जान जा चुकी है। इन आपदाओं में विगत दो वर्षों के अंदर लगभग 200 अरब डालर कर नुकषान हो चुका है। दुनिया में कई उदाहरण हैं जो यह साबित करने के लिए काफी है कि इस प्रकार की नदियां आने वाले समय में और अधिक तबाही मचा सकती है। इस प्रकारी की तबाही को रोकने के लिए प्रयास तो किए जा रहे हैं लेकिन अभी तक इसपर कोई ठोस प्रबंधन विकसित नहीं किसा जा सका है।

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