बड़ी तेजी से राहुल सुधार रहे हैं अपनी छवि

गौतम चौधरी
निःसंदेह इन दिनों कांग्रेस की सभाओं में भीड़ जुट रही है। तटस्थ होकर कहा जाए तो नरेन्द्र भाई की सभा में जितनी भीड़ होती है उतनी भीड़ राहुल गांधी की सभाओं में तो नहीं हो रही है लेकिन पहले की अपेक्षा अब राहुल गांधी को लोग गंभीरता से लेने लगे हैं। इस भीड़ को देखकर कांग्रेस पार्टी को यह लगने लगा है कि वह आगामी आम चुनाव में भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करने में कामयाब हो जाएंगी। वैसे कुछ लोगों को राहुल चमत्कारी नेता के रूप में भी दिखने लगे हैं। इस मामले में एक ही बात कही जा सकती है कि पहले की अपेक्षा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल की स्वीकार्यता तो बढ़ी है लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना में वे अभी भी बेहद कमजोर हैं। 
विगत दिनों गुजरात के मेहसाना में कांग्रेस की रैली हुई। निश्चित तौर पर तो नहीं बताया जा सकता है लेकिन अनुमान लगाने वालों का कहना था कि राहुल की रैली में कम से कम दो लाख से उपर लोग आए थे। याद रहे मेहसाना किसी जमाने में भारतीय जनात पार्टी का गढ़ था। ऐसे में कांग्रस की सभा में यदि इतनी संख्या जुटती है तो यह सचमुच में कांग्रेस के लिए आशा जगाने वाली बात है। इन दिनों उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी राहुल की सभाएं सफल हुई है। प्रेक्षकों का कहना है कि विगत दिनों पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भी राहुल की सभाओं में अच्छी भीड़ देखने को मिली। हालांकि इसके पीछे का कारण क्या है निश्चत तौर पर तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन इतना तो सही है कि राहुल की सभा में आ रही भीड़ भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। अभीतक नरेन्द्र भाई और भाजपा यही समझ रहे हैं कि देश की जनता राहुल गांधी को हल्के में ले रही है लेकिन चित्र बदलने लगे हैं जिसकी आहट राहुल की सभाओं में जुट रही भीड़ में दिखाई दे रही है। 
माटे तौर पर देखा जाए तो राहुल गांधी इन दिनों जबरदस्त मेहनत भी कर रहे हैं। चाहे पार्टी के प्रचार का प्रबंधन कोई भी देखे लेकिन राहुल की सकारात्मकता का जिस प्रकार प्रचार हो रहा है वह सराहनीय है। हालांकि उत्तर प्रदेश को छोड़ दिया जाए तो राहुल क सभा में जो भीड़ थी वह स्थानीय नेताओं के प्रभाव और मेहनत का नतीजा था लेकिन यह भी सत्य है कि भीड़ जुटी जरूर स्थानीय नेता की छवि के कारण, पर उस भीड़ को बांधकर रखना और कांग्रेस के प्रति विश्वास, कार्यकर्त्ताओं में उत्साह राहुल गांधी के कारण ही पैदा हो रहा है। यह निःसंदेह राहुल की प्रबुद्धता को दर्शाता है। इन दिनों राहुल गांधी पहले की अपेक्षा ज्यादा गंभीर भी दिखने लगे हैं। हालांकि प्रतिपक्षी, खासकर भाजपायी उन्हें कई प्रकार की उपमाओं से आज भी अलंकृत कर रहे हैं लेकिन जिस प्रकार राहुल अपनी छवि तेजी से सुधार रहे हैं उससे तो यही कहा जा सकता है कि वह दिन अब ज्यादा दूर नहीं कि नरेन्द्र मोदी के सामने राहुल चट्टान की तरह खड़ा हो जाएं। 
वर्तमान कांग्रेस का न तो सांगठनिक ढंचा दुरूस्त है और न ही उनके पास मोदी के टक्कर का कोई कद्दाबर नेता है। लेकिन भाजपा को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी में नरेन्द्र भाई के उदय से दूसरी पंक्ति के नेताओं का घोर आभाव हो गया है। जो नेता मजबूत थे उसे किनारे लगा दिया गया है और जो बेहद कमजोर हैं उसे आगे बढ़ा दिया गया है। इसके कारण नरेन्द्र भाई के बाद कोई कद्दाबर नेता भाजपा में नहीं दिखता जो नरेन्द्र भाई की विरासत को संभाल सके। वहीं कांग्रेस में राहुल गांधी की छवि जिस प्रकार प्रभावशाली तरीके से उभर रही है उससे कांग्रेस में फिर से जान आने की पूरी उम्मीद है। हालांकि यह सरतीया तौर पर नहीं कहा जा सकता है लेकिन संभावना अभी पूरी मरी नहीं है लेकिन यह तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि जिस प्रकार भाजपा और नरेन्द्र भाई ने डंके की चोट पर कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था वह निकट भविष्य में तो नहीं दिख रहा है। 
यदि पंजाब में कांग्रेस पार्टी फिर से सत्ता में आ जाती है तो 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में साम्यवादी दलों के साथ एक बड़ा गठबंधन आकार लेने की पूरी संभावना है। इस गठबंधन का नेतृत्व सरतीया तौर पर राहुल करेंगे। पर्दे के पीछे से राहुल को सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का साथ मिलेगा। उस समय तक राहुल युवा कांग्रेसियों की अपनी टीम भी बना लिए होंगे। इस प्रकार कांग्रेस का फिर से सत्ता में आना संभव हो सकता है। 
इधर बड़ी तेजी से नरेन्द्र भाई और भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है। हालांकि लगातार नरेन्द्र भाई डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन स्थिति बहुत अच्छी नहीं हो रही है। रोजगार के मामले में सरकार का ग्राफ बेहद कमजोर है। महंगाई के मामले में भी सरकार कमजोर पड़ रही है। नोटबंदी में जो लोगों को परेशानी उठानी पड़ी है उसके कारण भी आम धारणा भाजपा सरकार के खिलाफ ही गयी है। ऐसे में कांग्रेस, वाम और समसजवादियों के साथ मिलकर भाजपा के सामने चुनौती प्रस्तुत करने की पूरी कोशश करेगी और संभवतः वह उसमें बाजी मार भी सकती है। हालांकि अभी वर्तमान सरकार के लिए ढ़ाई साल बचे हैं। इस बीच सरकार धुआधार निर्णय लेकर अपनी छवि सुधार सकती है। यदि नरेन्द्र भाई अपने वादे पर 25 प्रतिशत भी अमल कर लेते हैं तो बाजी पलट सकती है। 
अभी फिलहाल पांच राज्यों के चुनाव होने हैं। उसमें से नरेन्द्र भाई का गृहराज्य गुजरात भी शामिल है। जो स्थिति बन रही है उसमें गुजरात में भी भाजपा की ताकत कमजोर ही हुई है। पंजाब में भी सत्तारूढ गठबंधन की स्थिति अच्छी नहीं है। हालांकि उत्तर प्रदेश में पहले की अपेक्षा भाजपा थोड़ी मजबूत तो हुई है लेकिन प्रेक्षकों की मानें तो भाजपा की जीत तभी सूनिश्चित हो पाएगी जब मुस्लिम मतों का विभाजन होगा। यदि मुस्लिम मत किसी एक दल या गठबंधन को मिल जाता है तो फिर भाजपा को जीतने की गुंजाइस कम रहेगी। इसलिए अभी उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की जीत तय नहीं कहा जा सकता है। गोवा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस इस बार भाजपा को बराबर का टक्कर देने वाली है। 
इसलिए यदि भाजपा को सचमुच का कांग्रेस मुक्त भारत बनाना है तो उसे बड़ी तेजी से अपने चुनावी वादे को पूरा करना होगा। कम से कम मंहगाई और रोजगार पर तो अविलम्ब कुछ न कुछ करना होगा। नहीं तो भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत नारा केवल नारा ही बनकर रह जाएगा। 

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