कष्मीरी जनता अपने हितों की खुद करे चिंता


विगत दिनों कष्मीर पर आयोजित सेमिनार में जाने का मौका मिला। सेमिनार पंजाब विष्व विघालय के गांधी विचार विभाग में रखा गया था। कार्यक्राम के दोैरान कई वक्ताओं ने अपने विचार रखें लेकिन प्रो0 हरबंस सिंह ने कहा कि कष्मीर की समस्या को इडस्ट्री यानी उधोग के तरह बनाये रखना है तब तो ठीक है अन्यथा इस समस्या का समाधान कोई कठिन नहीं है। बाद में प्रो0 हरबंस से मेरी बात हुई तो उन्होने कष्मीर की समस्या की औधोगिक व्याखाया की और कहा कि कष्मीर समस्या के तीन चार पक्ष हैं। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को घाटी से खदेड दिया गया वे कष्मीरी पंडित इस समस्या को अब दूसरे नजर से देखने लगे हैं। इधर जम्मू कष्मीर की सरकार इस समस्या की व्याख्या अपने रातनीतिक हितों को घ्यान में रखाकर कर रही है। केन्द्र सरकार अपने ढंग से समस्या की व्याख्या कर रही है। भारतीय सेना के प्रभावषाली अधिकारीयों का नजरिया कुछ और है, फिर कष्मीर में सक्रिय पृथकतावादी तत्वों का अपना नजरिया है। यही नहीं पाकिस्तान और चीन का अपना हित है और पष्चिमी देष कष्मीर की समस्या को अपने चष्मे से देखते हैं। यानि कुल मिलाकर संपूर्णता में देखे तो कष्मीर मेें समस्या बने रहने से सबका हित सध रहा है। हांलाकि उनके पास समय नही होने के कारण ज्यादा बात नहीं हो पायी लेकिन मेरे लिए यह बिलकुल अभिनव और नया अनुभव था।
हिन्दुस्थान समाचार का एक संवाददाता जम्मू का रहने वाला है। नाम बलवान सिंह है और वह पूरे जम्मू कष्मीर  क्षैत्र का हिन्दुस्थान समाचार के लिए संवाद प्रेषण करता है। एक बैठक के दौरान बलवान से मुलाकात हुई। स्वभावतः जम्मू कष्मीर की समस्या पर बात होने लगी उसने जो बताया वह चौकाने वाली है। बलवान ने दो बातें बताई। एक तो उसने कहा कि कष्मीर मे मूलतः जो पहाडी मुस्लमान है वे पृथकावाद की मनोवृति के नहीं है हां घाटी के केवल सुन्नी मुस्लमान जिनकी आबादी कम है वही पृथकावाद कर गतिविधियों के संरक्षक हैं। बलवान का तो यहां तक कहना है कि आंतकी गतिविधि का संचालन अरबी पैसे और बिहार एवं उत्तर प्रदेष से आए मुस्लमानो के द्वारा होता है। बलवान ने एक बात और कही जो लोग घाटी से आंतकवाद परेषान पलायन कर गये अब वे घाटी में लौटने की बात किस आधार पर करते हैं क्योंकि अब तो वे अपनी पूरी चल अचल संपत्ति बेच चुके हैं। यही नही आंतकवाद से पीडित होने के कारण वे सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता पाते हैं। दूसरी ओर उन्हें सयुक्त राष्ट्र संघ ने सरनार्थी घोषित कर रखा है। उसका फायदा भी उन्हें मिलता है। तीसरी बात वे नौकरी कर रहे हैं घाटी में और रहते हैं दिल्ली या जम्मू में। आंतकवाद के कारण उन्हें नौकरी में काम नहीं करना पडता है। कष्मीरी आतंक पीडित चैन से घर बैठे कई प्रकार की सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं। तो भला वे क्यों चाहेंगे कि कष्मीर में शांति स्थापित हो। इसलिए आंतकवाद, घाटी से खदेड दिये गये लोगों को भी फायदा ही पहुचा रहा है। फिर आंतकवाद के नाम पर भारत सरकार कष्मीर को जबरदस्त छुट दे रखी है। कई प्रकार की सब्सीडी रियायत और छुट जम्मू और कष्मीर को पहले से मिला हुआ है। आंतक को निवटाने के नाम पर कष्मीर में करोडों रुपये खर्च किये जाते हैं जो अंततोगत्वा प्रषासनिक और सेना के अधिकारियों का ग्रास बनता है। कष्मीर के आंतकी समूह इसलिए लड रहे हैं कि उनको इस लडाई को जारी रखना दिखाकर अरब देषों से पेट्रो डालर प्राप्त करना है। गोया पाकिस्तान और साम्यवादी चीन का हित जगजाहिर है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और पष्चिमी देष कष्मीर को अपना सैनिक अड्डा बनाना चाहते हैं। पष्चिम के लिए कष्मीर सामारिक महत्व का भूगोल है जबकि पाकिस्तान और चीन का कष्मीर के साथ आर्थिक हित जुडा है। सबको अपनी चिंता है लेकिन कष्मीर की जनता जो हिन्दू भी है और मुस्लमान भी उसके अपने हितों की चिंता नहीं है। मेरे मित्र देहरादून में आजकल ट्ीब्यून के ब्योरो चीफ हैं। प्रेम से हमलोग उन्हें काजमी साहब हैं। संयोग कहिये या दुयोंग उन्होनें कष्मीर में शादी कर रखी है। एक बार उनसे बात हो रही थी। काजमी साहब कष्मीर में किसी समाचार पत्र के लिए काम कर चुके हैं। उनसे बात हो रही थी। उन्होंने कहा कि उनके ससुर की हत्या आंतकवादियों ने कर दी थी। उन्होनें एक और गंभीर बात बताई कहा कि भारतीय सेना पूरे कष्मीर फतह से पहले यु़द्व इसलिए नहीं रोकी की भारत के प्रधानमंत्री ने उसके लिए हस्तक्षेप किया अपितु कष्मीर घाटी के कुछ मुस्लमान जो पहले हिन्दू पंडित हुआ करते थे उन लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू पर दबाव बनाया था। काजमी साहब ने बताया कि अगर पूरे कष्मीर पर भारत का अधिपात्य होता तो घाटी के जो बाह्मण मुस्लमान बने है उनकर अधिपात्य कष्मीर पर कभी नहीं होता क्योेंकि पूरे कष्मीर में गुजरों की सख्ंया ज्यादा है और ये पंडित यानि शेख मुस्लमान जो घाटी को अपनी जागीर समझते हैं गुजर मुस्लमानों को दूसरे दर्जे का मुस्लमान मानते हैं उनकी संख्या निहायत कम है। भारत मेें लोकतंत्रिक व्यवस्था का लाभ गुजरों को मिलता और कष्मीर में लोकतंत्र होता लेकिन अब घाटी के मुस्लमानों की राजनीति ही महत्व की है। वे यहां भी राज कर रहे हैं और पाकिस्तान अधिकृत कष्मीर में भी राज कर रहे हैं। इस तर्क में कितनी सत्यता है यह तो जनसांख्यिकी शोध के बाद पता चलेगा लेकिन काजमी साहब की बातोें में दम तो जरूर है। कुल मिलाकर कष्मीर पर जो लोग लगातार विवाद को जन्म दे रहे हैं क्या उनकी समझ में से बात नही है? उनके जेहन में ये बात होगी लेकिन जिस पैसे से कष्मीर का आतंकवाद प्रयोजित है उस पैसे का अंष कुछ प्रभावषाली बुद्विवजीवियों के बीच भी बांटा जा रहा होगा। जिसका एक छोटा सा उदाहरण विगत दिनों अमेरिका में पकडा गया कमष्मीर लॉविस्ट से मिलता है। विगत दिनों पूणे मे एक फिल्म को दिखाया जाना था जिसका विरोध किया गया और फिल्म के प्रदर्षन पर रोक लगा दी गयी। अखबार की खबर है कि उस फिल्म में आतकियों को नायक के रूप में दिखाया गया है। ये फिल्म बनााने वाले कौन लोग हैं, दिखाने वाले कौन लोग है और फिल्म देखने वोले कौन लोग है इस पर बडी गहराई से विचार किया जाना चाहिए। जब अमेकिका में कष्मीर पर लाबिग करने वानो के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है तो कष्मीर तो अभी भारत का अभिनन अंग है तो फिर कष्मीरी आतंकियों को नायक बताने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए? लेकिन भारत में जो कष्मीर पर दो तीन श्रोतों से पैसा रहा है उसपर लगाम लगाने की मानसिकता में कोई नहीं दिखता है। यही कारण है कि शांति भूषण जनमत की बात करते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती लेकिन जो लोग उन्हें समझाने का प्रयास करते हैं उसपर देष की व्यवस्था कार्रवाई कर देती है। अरूधति राय कष्मीर पर जनमत संग्रह की बात करती है। एक विषय पर गंभीरता से विचाार होना चाहिए कि अगर कष्मीर पर जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए तो अन्य प्रंातो में भी ऐसा कराया जाना उचित रहेगा। कष्मीर हो या पंजाब या फिर पूर्वोत्तर केन्द्र सरकार पहले पूरे देष में जनमत संग्रह कराले कि आखिर भारतीय संघ में कौन सा राज्य रहना चाहता और कौन सा राज्य नहीं रहना चाहता है। कष्मीर को दी जाने वाली रियायत केन्द्र सरकार का निर्णय है उसपर क्या देष में जनमत संग्रह कराया गया था। एक जनमत संग्रहतो इस पर भी होना चाहिए कि आखिर भारत यंघ के साथ कौन कौन सा राज्य रहना चाहता है। कष्मीर हो या पंजाब पूर्वोतर हो या बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र या दक्षिण के प्रंात इन्हें अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि उनका हित भारत मेें है। अगर वे भारत से अलग हो गये तो उनकी स्थिति पाकिस्तान जैसी होगी। जिसके पास भाविष्य का कोई चित्र नहीं होगा और वर्तमान अराजक होगा क्योंकि जो लोग भारत से अलग होना चाहते हैं उनका अपना कोई इतिहास नहीं है। इतिहास तो भारत का है भारतीय प्रायद्वीप के किसी भौगोलिक टुकडे का नहीं। पाकिस्तान का क्या इतिहास है इरान ने तो अपना इतिहास अलग से गढ लिया लेकिन पाकिस्तान तो एक पराजीत और अरब गुलाम के रूप में ही देखा जाता है ना। कष्मीर के लोग चाहे वे हिन्दू हों या मुस्लमान विचार करना चाहिए भारत बडा लचीला देष है। उनकी सारी समस्या का समाधान यहां हो सकता है लेकिन भारत से अलग होकर कष्मीर मात्र भूमि का टुकडा बनकर रह जायेगा जिसका उपभोग कभी साम्यवादी चीन करेगा तो कभी पूंजीवादी अमेरिका जब बस चलेगा तो अरब हुक्मरान भी कष्मीर का उपभोग करेंगे। क्या कष्मीरी विचार कर सकते हैं?

गौतम चौधरी


Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत