भाजपा की अवसरवादी राजनीति का कही खामियाजा हिन्दुओं को न भुगतना पड़ जाये-गौतम चौधरी


विगत कुछ दिनों से कुछ राजनेता कैराना (उत्तर प्रदेश) में एक समुदाय विशेष के पलायन पर हायतौवा मचाये हुए हैं। इस मामले में केन्द्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी एकाएक अप्रत्याशित तरीके से सक्रिय हो गयी है। जांच के लिए समिति पर समिति बनाई जा रही है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार को संचालित कर रहे समाजवादी पार्टी के नेता भी कई मामले को लेकर अति सजग दिख रहे हैं। गोया आनन-फानन में उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने इस मामले पर एक धार्मिक समिति बनाकर जांच भी करवा ली। कैराना मामले को लेकर दोनों सरकार और दोनों पार्टियों की एकाएक बढ़ी सक्रियता साफ तौर पर यह संकेत दे रही है कि कैराना के कथित पलायन पर समाधान कम और राजनीति ज्यादा हो रही है। 
शमली के पास कैराना नामक जगह है जो इतिहासिक भी है और राजनीतिक दृष्टि से संवेनशील भी। कुछ दिन पहले भाजपा नेता हुकुम सिंह के हवाले से खबर आई कि कैराना से कई हिन्दू परिवार पलायन कर गये हैं। उनकी रपट में बताया गया कि यहां से जो हिन्दू परिवार पलायन कर गये हैं, उनका कहना है कि उन्होंने मुस्लिम आतंक के कारण अपना घर छोड़ दिया है। उस रपट में किसी ऐसे हिन्दू का नाम सामने नहीं आया जो दावे के साथ यह कहे कि हां वह मुस्लिम आतंक के कारण अपना घर छोड़ दिया है। हालांकि मैं खुद उस इलाके का भ्रमण किया हूं और एक समुदाय विशेष के लोगों का आतंक नि:संदेह रूप से वहां है लेकिन कैराना में जो हिन्दू हैं वे इतने कमजोर नहीं हैं जो किसी के डर से अपना घर छोड़ जाएं। वहां के कई हिन्दुओं से मेरी बात हुई है और उन्होंने साफ तौर पर कहा कि परेशानी तो है लेकिन उस परेशानी का मुकाबला वे डटकर कर रहे हैं। यहां सवाल यह नहीं है कि कैराना से कुछ लोग, लफंगों या एक खास समुदाय के लोगों से डर कर पालायन कर गये, यहां सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जो लोग इस मामले को उठा रहे हैं उनकी मन्सा क्या है और वे इस मामले को ऐन विधानसभा चुनाव के पहले ही क्यों उठा रहे हैं? जो लोग इस मामले को उठा रहे हैं उनके बारे में साफ धारणा है कि उनका वोट बैंक बहुसंख्यक ध्रुवीकरण पर ही केन्द्रित है। चूकी उत्तर प्रदेश में आगामी दिनों में विधानसभा का चुनाव होना है और उन्हें चुनाव जीतने के लिए जो वोटों का ध्रुवीकरण चाहिए वह ऐसे ही मुद्दों को उठाकर संभव है, इसलिए वे ऐसा कर रहे होंगे। यह तो सामान्य सी बात है लेकिन इस मुद्दे से फायदा उठाने वाले लोग अपने खास प्रतिपक्षी समाजवादी पार्टी को भी फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मामले में समाजवादी पार्टी ने आनन-फानन में एक धार्मिक समिति बनाकर मौके को अपनी ओर करने की कोशिश की। उस समिति में जो लोग शामिल हुए उनके बारे में भी किसी को भ्रम नहीं होना चाहिए। वे धार्मिक कम और सियासी मामलों में ज्यादा सक्रिय रहने वालों में से हैं। समाजवादी पार्टी को यह लगने लगा है कि मुस्लिम वोट कही उसे छोड़कर मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी की ओर न चला जाए। ऐसे में उसे उत्तर प्रदेश में भाजपा से लड़ने वाली पार्टी के रूप में अपने को स्थापित करना होगा तभी उसे मुस्लिम वोट मिल पाएगा। इस प्रकरण में समाजवादी पार्टी ने अपने को भाजपा से लड़ने वाली पार्टी के रूप में स्थापित करने की पूरी कोशिश की है। 
इस मामले का तीसरा और सबसे अहम पक्ष मामले को उठाने के समय को लेकर सामने आ रहा है। भाजपा को यह लगने लगा है कि वर्तमान माहौल में वह उत्तर प्रदेश का चुनाव नहीं जीत सकता है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश का चुनाव भाजपा के अहम है। ऐसे में अब राम लहर वाला माहौल उत्तर प्रदेश में समाप्त हो चुका है। भाजपा के रणनीतिकारों को यह पक्का भरोसा हो गया है कि अब राम के भरोसे उत्तर प्रदेश फतह नहीं किया जा सकता है। साथ ही उत्तर प्रदेश में फिलवक्त भाजपा के पास कोई करिश्माई नेता भी नहीं है। ऐसे में बहुसंख्यक ध्रुवीकरण ही एक मात्र रास्ता भाजपा के पास बचा हुआ है और उसके लिए संवेदनशील मुद्दे बेहद जरूरी है। दूसरी ओर भाजपा के जीते हुए अधिकतर सांसद अपने क्षेत्र में अप्रासांगिक हो चुके हैं। अभी के माहौल में अगर चुनाव हो जाये तो उत्तर प्रदेश के आधे से अधिक सांसद हार जाएंगे। इस माहौल में भाजपा की रणनीति साफ तौर पर हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की है। हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में ऐसी कोई बड़ी घटना नहीं घटी जो एकाएक बहुसंख्यकों को ध्रुवीकृत कर दे। ऐसे में कैराना को मुद्दा बनाया गया और कोशिश की गयी कि उसके माध्यम से कम से कम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिन्दुओं को गोलबंद कर लिया जाये। पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई हिन्दुवादी नेता हैं जिनके सहारे अच्छे खासे वोट बटोरे जा सकते हैं। लेकिन भाजपा को यह सोचना चाहिए कि जिस हिन्दू मतों के सहारे वह सत्ता में आती रही है उस हिन्दू के लिए उसने क्या किया? आज भी कश्मीर के हिन्दू दर-व-दर भटकने को मजबूर हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने बांग्लादेश के साथ सीमा का समझौता तो कर लिया लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बांग्लादेशी घुसपैठ का कोई समाधान नहीं निकाल पाए। हिन्दू जाति का लगातार ह्रास हो रहा है। नेपाल, भुट्टान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यामार, पाकिस्तान आदि सीमवर्ती देशों में लगातार हिन्दुओं की संख्या घट रही है। देश के अंदर हिन्दुओं को परेशान किया जा रहा है। पंजाब में आतंकवाद के दौर में लगभग एक लाख हिन्दू अपने मूल स्थान को छोड़ने के लिए मजबूर हुए। बिहार के किसनगंज में हिन्दुओं के साथ अन्याय पर अन्याय हो रहा है। गुजरात के भेंट द्वारका द्वीप पर लगातार मुस्लिम आबादी बढ़ रही है और गिने-चुने हिन्दू परिवार वहां से पलायन करने को मजबूर हैं। हिन्दू मठ-मंदिरों को सरकार अपने नियंत्रण में लेकर उसकी संपत्ति को राष्ट्रीयकृत कर रही है लेकिन देश के अन्य धर्मावलंवियों की आमदनी पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। उलट उन्हें सरकारी सहायता दी जा रही है। ऐसे में यदि भाजपा सचमुच की हिन्दू हितकारी पार्टी कहने का दंभ भरती है तो वह सीधे तौर पर हिन्दुओं के हितों की चिंता करे। तब सही मायने में देश के बहुसंख्यक हिन्दू भाजपा को मन से स्वीकार करेंगे अन्यथा भाजपा के उपर हिन्दुओं को छलने का आरोप लगता रहेगा। 
दूसरी ओर गरीबी, बेरोजगारी, भूख और कई प्रकार के भय से अन्य जगह के लोग भी पलायन कर रहे हैं। मैं विगत दिनों एक महिला पत्रकार की रपट पढ़ रहा था। विदर्भ से सूखे के कारण पलायन करके हजारों परिवार मुम्बई में आकर डेरा जमाये हुए हैं। इस मामले में सरकार कुछ भी करने के पक्ष में नहीं दिख रही है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से प्रति दिन हजारों की संख्या में लोग बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं लेकिन इस बात की चिंता भाजपा को नहीं है। उत्तराखंड का पहाड़ अब लगभग खाली हो गया है। जिस गढ़वाल में मुस्लमानों को प्रवेश नहीं दिया जाता था आज उस गढ़वाल के अधिकतर शहर मुस्लिम व्यापारियों से अटा-पटा दिख रहा है। इन मुद्दों पर भाजपा कुछ भी बोलने और करने की स्थिति में नहीं दिखती है लेकिन कैराना के कुछ लोगों के प्रति भाजपा के नेता एकाएक संवेदनशील हो गये यह। साबित करता है कि भाजपा भी अन्य दलों की तरह अवसरवादी राजनीति करने में माहिर होती जा रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि आजतक देश में अल्पसंख्यकों को केन्द्र में रखकर राजनीति होती रही है और अब भाजपा बहुसंख्यकों को राजनीति के केन्द्र में ला दी है। इससे साफ तौर पर फायदा भाजपा और उससे जुड़े लोगों का दिख रहा है लेकिन जो फायदा अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वालों ने अल्पसंख्यकों दिलाई उस फायदे से अभी तक बहुसंख्यक हिन्दू कोशों दूर हैं। आने वाले समय में इस राजनीति का फायदा हिन्दुओं को कितना मिलेगा यह तो पता नहीं लेकिन भाजपा के धारदार बहुसंख्यक ध्रुवीकरण की राजनीति ने हिन्दुओं को युद्ध के मैदान में लाकर खड़ा कर दिया है। फिलहाल तो नहीं लेकिन इसके आसन्न खतरे भी कम नहीं हैं। इसलिए उन खतरों से निवटने के लिए हिन्दुओं को आज से अपनी तैयारी करनी होगी क्योंकि राजनीति करने वाले लोग माहौल के बदलते पाला बदल लेते हैं और उसका खामियाजा समाज को उठाना पड़ता है। फिलहाल तो ध्रुवीकारण की राजनीति के प्रति सजग रहने की जरूरत है।

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