धम्म सापेक्ष व अम्बेडकर के चिंतन पर केन्द्रित राष्टÑ का निर्माण हमारा लक्ष्य : तथागत जैनेन्द्र कुमार


रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया (अम्बेडकर) के कार्यकारी अध्यक्ष तथागत जैनेन्द्र कुमार से खास बातचीत 

गौतम चौधरी 

स्वातंत्र समर के बाद जब आधुनिक भारत के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो तत्कालिन चिंतकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती राष्ट के भविष्य के स्वरूप की थी। उसके समाधान के लिए देश के एतिहासिक पृष्ठभूमि को खंगालने का काम प्रारंभ हुआ। बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर को इस काम का अगुआ नियुक्त किया गया। उन्होंने भविष्य के भारत का एक खांका बनाया और उसी के आधार पर देश के संविधान का निर्माण हुआ। डॉ. अम्बेडकर को भारत के भविष्य की चिंता थी। उन्हें यह डर था कि भारत फिर से न कहीं गुलाम हो जाए। उसी डर के कारण उन्होंने देश के कमजोर वर्ग की चिंता की और राष्ट की मुख्य धारा में कमजोर वर्ग को जोड़ने के लिए देश के प्रत्येक नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करने वाला नियम बनाया। डॉ. अम्बेडकर केवल संविधान के निर्माता ही नहीं थे, उन्होंने अपने जीवन काल में चार संगठनों का भी निर्माण किया। पहला संगठन मूकनायक था, इस नाम से उन्होंने एक पत्रिका भी प्रारंभ की थी। दूसरा, समता सैनिक दल नामक संगठन का निमार्ण किया। बुद्धिस्ट सोसाइटी आॅफ इंडिया नामक धार्मिक संगठन की रचना की। इसके साथ ही साथ कमजोर वर्ग में राजनीतिक चेतना के निर्माण के लिए उन्होंने वर्ष 1956 में रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया का गठन किया। इसी पार्टी के नेता हैं, तथागत जैनेन्द्र कुमार। बुद्धमय भारत और अखंड राष्ट के निर्माण का व्रत लेकर जैनेन्द्र भगवान बुद्ध और अम्बेडकर के चिंतन को घर-घर पहुंचाने के काम में लगे हैं। दतिल राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक चेतना के प्रचार-प्रसार के लिए अपना जीवन न्यौछावन करने वाले तथागत जैनेन्द्र से वरिष्ठ संवाददता गौतम चौधरी की लंबी बात हुई। उस बात-चीत के दौरान तथागत जैनेन्द्र ने कई समसामयिक व ज्वलंत विषयों पर अपने विचार साझा किए। जैनेन्द्र के द्वारा किए गए विचारों का संपादित अंश हम अपने पाठकों के समझ प्रस्तुत कर रहे हैं। 

आपकी पार्टी का वैचारिक अधिष्ठान क्या है?

जैनेन्द्र : बाबा साहेब नहीं होते, न तो ब्राह्मन वर्चस्व वाला सनातन धर्म बचता और न ही भारत की संस्कृति बचती। हमारी पार्टी का वैचारिक अधिष्ठान बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का चिंतन है। उन्होंने इस देश को धर्मनिर्पेक्ष बनाने का कभी नहीं सोचा था। इसीलिए संविधान की मूल अवधारर्णा में कहीं धर्मर्निपेक्ष शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है। धर्मनिर्पेक्ष शब्द कांग्रेस ने अपने हित के लिए जोड़ा है, जिसका आज तक कोई अर्थ नहीं समझ पाया है। बाबा साहेब मानते थे कि धर्मनिर्पेक्ष कोई हो ही नहीं सकता है। धर्म के सापेक्ष चलकर ही जीवन के अंतिम सत्य की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही धर्म के मार्ग पर चलकर ही भौतिक सुख, समृद्धि और शांति का माहौल बनाया जा सकता है। बाबा साहेब यह चाहते थे कि धम्म सापेक्ष भारत का निर्माण हो, जिसमें प्रत्येक नागरिक को समानता अधिकार प्राप्त हो। बाबा साहेब बुद्धमय राष्टÑ के पक्षधर थे लेकिन कांग्रेस ने ऐसा होने नहीं दिया। हमारी पार्टी उसी बुद्धमय भारत के निर्माण को लेकर आगे बढ़ रही है। तथागत बुद्ध और उनका धम्म हमारी पार्टी का वैचारिक अधिष्ठान है। बाबा साहेब के द्वारा रचित भारत के संविधान की मूल प्रति ही हमारी पार्टी का घोषणा-पत्र है। देश के हर व्यक्ति को समान अधिकार हमारा लक्ष्य है। इसी को लेकर हमने इस पार्टी का झंडा उठाया है। 

इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कठिनाई कहां आ रही है?

जैनेन्द्र : आप सतही तौर पर देख रहे हैं। मनुवादी शक्तियां फिर से प्रभावशाली हो गयी है। मनुवादियों ने दलित, पिछड़ यहां तक कि मुसलमान और ईसाइयों में भी नया मनुवादी सोच पैदा कर दिया है। बाबा साहेब ने मनुस्मृति को जलाया था और साफ शब्दों में कहा था कि जो भारत के समाज को बांटता है, वह नियम हमें नहीं चाहिए। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि मनुस्मृति समाज को बांटता है और इसी कारण से देश कमजोर हो गया है। यही कमजोरी हमें गुलाम होने के लिए बाध्य करती रही है। इसलिए तथागत बुद्ध के चिंतन को अपनाना ही इस देश के लिए श्रेष्ठ होगा। जहां जाति के आधार पर नहीं कर्म के आधार पर लोगों को सम्मान प्राप्त होता है। कर्म भी कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है। भारत के पुरातन समाज व्यवस्था में विभाजन का कोई मूल्य नहीं था। बाहरी आक्रांताओं ने विभाजन को मजबूत किया और भारत के समाज को कमजोर किया। आज फिर से ऐसी व्यवस्था मजबूत होने लगी है। इसे नहीं रोका गया तो देश एक बार फिर से गुलाम बनेगा और इसका सबसे अधिक खामियाजा कमजोर वर्ग के लोगों को उठाना पड़ेगा। हमारी पार्टी ऐसा नहीं चाहती है। हम इसके लिए आम लोगों में समानता और समावेशी समाज के चिंतन को प्रभावशाली तरीके से रखने की कोशिश कर रहे हैं। 

तो आपकी पार्टी ब्राह्मणों का विरोध करती है?

जैनेन्द्र : बिल्कुल नहीं! हमारे आद्य चिंतक तथागत बुद्ध और डॉ. अम्बेडकर कभी भी ब्राह्मणें के विरोधी नहीं रहे। ब्राह्मणों के एक सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि की हैसियत से उन्होंने कहा था कि मैं ब्राह्मणों का विरोधी नहीं हूं लेकिन बाह्मणवाद की मुखालफ़त जीवनभर करता रहूंगा। अगर वे ब्राह्मणवादी के विरोधी होते तो अपने नाम के आगे अम्बेडकर नहीं लगाते। अगर वे ब्राह्मण विरोधी होते तो सविता ताई के साथ शादी नहीं करते। यदि वे ब्राह्मण विरोधी होते तो महिलाओं के समान अधिकार का उल्लेख भारत के संविधान में नहीं करते। मैं और हमारी पार्टी भी ब्राह्मण विरोधी नहीं है। हमलोग तो उस चिंतन का विरोध कर रहे हैं, जो भारत के समाज को बांटता है। देश को कमजोर बनाता है और दुश्मनों के लिए जगह छोड़ता है। हमारी पार्टी में ब्रह्मणों का स्वागत है पर ब्राह्मणवादियों से परहेज है। 

आपकी पार्टी कैसा देश बनाना चाहती है? 

जैनेन्द्र : बुद्धमय राष्ट हमारी पार्टी का लक्ष्य है। बाबा साहेब ने पाकिस्तान का विरोध किया था। बाबा साहेब ने धारा 370 का भी विरोध किया था लेकिन कांग्रेस के तत्कालिन नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए देश की शर्तों पर भारत का विभाजन स्वीकार किया। धारा 370 को संविधान का अंग घोषित कर दिया। ऐसे ही कुछ तथ्यों को लेकर बाबा साहेब का तत्कालिन सरकार से मतभेद हुआ और उन्होंने वर्ष 1956 में रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया का गठन किया। हमारी पार्टी भी अखंड भारत का समर्थन करती है। हमारी पार्टी भारत में समतामूलक समाज का निर्माण करने के दिशा मे अग्रसर है। हमारी पार्टी धर्मनिर्पेक्ष नहीं धम्म सापेक्ष भारत का निर्माण करना चाहती है। बुद्धमय भारत बाबा साहेब का सपना था, हमारी पार्टी उसे पूरा करने में लगी हुई है। अपने समय में बाबा साहेब से जो बन पड़ा वह किया। जैसे - राष्टÑीय ध्वज पर धम्म चक्र, सत्य मेव जयते का घोष, अशोक स्तंभ आदि तो उन्होंने प्रतीक चिन्ह के रूप में संविधान का अंग बना दिया लेकिन बहुत चीजें छूट गयी है। उसे हमारी पार्टी पूरा करेगी। संम्राट अशोक के चिंतन से ही देश का फिर से उद्धार होगा। हमलोग उसी काम में लगे हैं। 

बाबा साहेग के चिंतन को अम्बेडकरवादी भी तो आगे बढ़ा रहे हैं?

जैनेन्द्र : हमलोगों के साथ उनके विचार नहीं मिलते हैं। उन लोगों ने सम्राट अशोक और तथागत बुद्ध को छोड़ बाबा साहेब को ही भगवान मान लिया है, जो कहीं न कहीं ब्राह्मणवाद का समर्थन करता है। यहीं से ब्राह्मणवाद प्रारंभ होता है। यह ब्राह्मणवाद की पहली सीढ़ी है। यह विभाजनकारी चिंतन है। हमलोग इसका समर्थन नहीं कर सकते हैं। भगवान बुद्ध का धम्म हमारा मूल है। बाबा साहेब ने भी उसी को अंगीकार किया था। बाबा साहेब की तरह ही हमलोग भी आरक्षण को तदर्थ व्यवस्था मानते हैं। अम्बेडकरवादी, बाबा साहेब के चिंतन के उलट काम कर रहे हैं और तथागत के चिंतन से काफी दूर जा चुके हैं। इससे बौद्ध धम्म को हानि पहुंच रही है। ये लोग समाज में विभाजन का बीज बो रहे हैं। दुश्मनों का साथ दे रहे हैं। हम उनलोगों का समर्थन नहीं कर सकते हैं। अम्बेडकरवादियों ने बाबा साहेब को दलित चेहरा घोषित कर दिया है, जो वे नहीं थे। बाबा साहेब ने तो भारत के सभी वर्गों की चिंता की। महिलाओं की चिंता की। जितना उन्होंने कमजोर वर्ग का ख्याल रखा उतना ही प्रभू तबके का भी मान रखा। बाबा साहेब पूरे देश के नेता था। वे केवल दलितों का चेहरा नहीं थे। कथित अम्बेडकरवादी इस देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। राष्टÑविरोधियों के साथ समझौता किए हुए हैं। हमलोग उनका समर्थन नहीं कर सकते। इनके करतूतों से बाबा साहेब की आत्मा दुखी होगी। 

निपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया (अम्बेडकर) का क्या इतिहास है?

जैनेन्द्र : जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं, निपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया की स्थापना खुद बाबा साहेब ने किया था। बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण के बाद कांग्रेस ने निपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया को अपनी पार्टी में विलय करवा लिया। कांग्रेस का एक मात्र लक्ष्य बाबा साहेब के चिंतन को समाप्त कर देना था। हमलोगों ने फिर से इस पार्टी की स्थापना की है और बाबा साहेब के विचार को समाज में स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ते जा रहे हैं। कांग्रेस इस देश और दलित दोनों का दुश्मन है। बाबा साहेब ने कहा था कि दलितों, अपना वोट गढ़े में डाल देना लेकिन कांग्रेस को नहीं देना। हमारी पार्टी अम्बेडकर के विचारों को लेकर आगे बढ़ रही है। जल्द ही देश में एक नए तरीके की राजनीतिकधारा का निर्माण होगा और उसका केन्द्र अम्बेडकर का चिंतन होगा। उसका केन्द्र तथागत बुद्ध का धम्म होगा। 

झारखंड में पार्टी के आगे की क्या कार्ययोजना है?

जैनेन्द्र : हमलोग 10 अप्रैल को झारखंड में कार्याकर्ता सम्मेलन कर रहे हैं। उस सम्मेलन में हमारे राष्टÑीय अध्यक्ष दीपक भाउ निखाल रांची आएंगे। इसके बाद 14 अप्रैल से हमलोग भीम संदेश यात्रा निकालने वाले हैं। यह यात्रा राज्य के प्रत्येक जिला, प्रखंड, पंचायत और गांवों में जाएगी। यह यात्रा दलितों के गांवों को केन्दित करके वहां एक रात विताएगी। बाबा साहेग के संदेशों को प्रचारित करने में इस यात्रा की जबरदस्त भूमिका होने वाली है। यह यात्रा झारखंड की राजनीति का परिवर्तनकारी कार्यक्रम साबित होगा। 

झारखंड की स्थानीय नीति और भाषा नीति पर आपकी पार्टी का क्या दृष्टिकोण है?

जैनेन्द्र : हमारी पार्टी का दृष्टकोण साफ है। बाबा साहेब ने हिन्दी को राष्टÑभाषा माना। हमलोग भी ऐसा ही मानते हैं। अपनी भाषा के बिना देश और समाज गुंगा हो जाता है। दूसरी भाषाओं को हम किसी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकते हैं। दूसरी बात यह है कि क्षेत्रीय भाषा की भी अपनी अहमियत है। उसका भी सम्मान होना चाहिए। झारखंड में जो भाषा बोली जाती है उसका किसी को विरोध नहीं करना चाहिए। हम उसके समर्थक हैं लेकिन मैथिली, भोजपुरी, अंगिका, बांग्ला, उड़िया और मगही भी झारखंड की ही भाषा है। इसे शासन को याद रखना होगा। हेमंत सरकार अपनी असफलता को छिपाने के लिए भाषा और स्थानीयता का विवाद खड़ा कर रहे हैं। इससे राज्य का तो घाटा होगा ही हेमंत सोरेन को भी फायदा नहीं होने वाला है। देश के जिस किसी राज्य का गठन हुआ वहां राज्य गठन के समय जो लोग वहां निवास करते थे उसी को वहां का मूल निवासी माना गया। वर्ष 1932 के खतियान की चर्चा करना हास्यास्पद है। उस समय बिहार, बंगाल, ओड़िशा एक साथ था। उन दिनों के खतियान की बात करने से राज्य के लोगों को घाटा होगा। आगे चलकर नाहक कई विवाद खड़े होंगे। इसलिए वर्ष 2000 को ही स्थानीयता का वर्ष मान लेना चाहिए। यदि हेमंत सोरेन को इससे आपत्ति है तो 2010 में वे सरकार में थे और माननीय झारखंड उच्च न्यायालय ने 1932 के खतियान वाले तर्क को खारिज कर दिया था, उन्हें उसी समय सर्वोच्च न्यायालय जाना चाहिए था। आज इस बात का कोई औचित्य नहीं रह गया है। यह फालतू की राजनीति है। इससे किसी को कोई फायदा नहीं होने वाला है।  


Comments

  1. बहुत ही अच्छा साक्षात्कार है। अगर श्रीमान अपनी बातों पर खड़े उतरे तो जनता जेनेन्द्र जी को भी जनता स्वीकार करेगी।

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