राज्य और धर्म के बीच की जटिलता को संतुलित करने में अभूतपूर्व भूमिका निभा रहा है भारत
डॉ. अनुभा खान भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है। भारत की एक विशेषता यह भी है कि यहां विभिन्न प्रकार की संस्कृति निवास करती है और भिन्न-भिन्न धार्मिक चिंतनों के कई मत-संप्रदाय विकसित हुए हैं। यही नहीं दुनिया के कुछ ऐसे मत-संप्रदाय के मानने वाले भी भारत में निवास करते हैं जिनका अन्य कहीं वजूद नहीं है और अन्य क्षेत्रों में बड़े सेमेटिक समूहों के हिंसा का शिकार भी होते रहे हैं। यहां ऐसा इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि भारत के लोकतोंत्रिक व्यवस्था में धर्म और राज्य के बीच अनूठा संबंध है। यह संबंध कई मायनों में जटिल भी है। कई पश्चिमी देशों के विपरीत, जो अपनी सख्त परिभाषा के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं, वहां की तुलना में भारत का धर्मनिरपेक्षता के प्रति दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है। जो इसकी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाता है। भारत में एक विविध धार्मिक परिदृश्य है, इसका संविधान स्पष्ट रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को अनिवार्य करता है, जो धर्म और सरकार के स्पष्ट पृथक्करण को दर्शाता है। लेख का उद्देश्य धर्मनिरपेक्षता के प्रति भारत के अनूठे दृष्टिकोण की पेश करना