नरेन्द्र मोदी का अधिनायकवादी व्यक्तित्व-वास्तविकता या मिथक - गौतम चौधरी


विगत दिनों जब गुजराज के विधानसभा का चुनाव हो रहा था तो राष्ट्रीय समाचार माध्यमों पर गुजरात के मु यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी छाए हुए थे। ऐसे तो नरेन्द्र भाई और राजनीतिक चर्चा आज एक दूसरे का प्रयाय हो गया है। ग्रामीण चौपालों से लेकर शहरी नुक्कड़ों तक और बौद्धिक जमातों के विमर्शों से लेकर समाचार माध्यमों के पैनल बहस तक नरेन्द्र भाई की बिना चर्चा के समाप्त नहीं होती है। हर बसह करने वाला  व्यक्ति नरेन्द्र भाई के नए व्यक्तित्व पर प्रकाश डाल रहा होता है। मैं विगत पांच सालों के दौरान कुल 12 बार नरेन्द्र भाई से मिल चुका हूं। इसमें से 07 बार बस नरेन्द्र भाई को सुन और पांच बार नरेन्द्र भाई से बात करने का मौका मिला है। दूरदर्शन वाहिनियों और समाचार माध्यमों में जो नरेन्द्र भाई का व्यक्तित्व दर्शाया जा रहा है उससे मैं कतई सहमत नहीं हूं। आज समाचार माध्यमों के द्वारा दुष्प्रचार से नरेन्द्र भाई के व्यक्तित्व के साथ बिना मतलब के कई मिथक जोड़ दिए गए हैं। इन दिनों नरेन्द्र भाई पर कई किताबें आ चुकी है। मेरी व्यक्तिगत राय में उन किताबों में भी नरेन्द्र भाई के व्यक्तित्व की न्यायोचित व्या या नहीं की गई है। किताबों, मीडिया जगत द्वारा फैलाया गया भ्रम और गुजरात तथा गुजरात के बाहर के लोगों की मन:स्थिति से एकदम भिन्न व्यक्तित्व नरेन्द्र भाई का है और वही व्यक्तित्व नरेन्द्र भाई को अन्य राजनेताओं से भिन्न करता है।
कुछ लोग नरेन्द्र भाई को लोकतांत्रिक अधिनायकवादी मानते हैं। कुछ लोग यह मानकर चलते हैं कि नरेन्द्र भाई कट्टर हिन्दू स प्रदायवादी हैं। गुजरात में इस बात का भी प्रचार किया जाता है कि नरेन्द्र भाई गुजरात की अभिजात्य जातियों के खिलाफ हैं और कांग्रेसी नेता माधव सिंह सोलंकी के खाम  सिद्धांत पर चलकर गुजरात की सत्ता पर लगातार काबिज हो रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि नरेन्द्र भाई कुशल प्रशासक हैं तो कुछ लोग यह मानकर चलने वालों में से हैं कि नरेन्द्र भाई शातिर राजनीतिज्ञ हैं। ये तमाम वैचारिक मिथक नरेन्द्र भाई के व्यक्तित्व के समानांतर चल रहा है। नरेन्द्र भाई के साथ ये जितने प्रकार की मिथकें जोड़ी जा रही हैं मेरी व्यक्तिगत राय में नरेन्द्र भाई इन तमाम मिथकों से ऊपर उठे हुए राजनेता हैं। इसे दूसरे शब्दों में भी कहा जा सकता है कि वे उन तमाम गुणों की उपज हैं जो आधुनिक भारतीय राजनेता में होनी चाहिए। हालांकि प्रतिपक्ष या विरोधी नरेन्द्र भाई का इन्हीं कुछ गुणों के कारण अलोचना भी करते हैं लेकिन फिर उन्हीं खेमों में एक स्वर उस गुण के समर्थन का ाी उभरकर सामने आता है।
यहां नरेन्द्र भाई के दो गुणों की मिमांशा करना चाहूंगा। पहला तो हिन्दुवादी छवि का और दूसरा लोकतांत्रिक अधिनायकवाद का। पहली बात तो देश या दुनिया को यह समझ लेना चाहिए कि हिन्दुवादी होना किसी भी अन्य विचार, पंथ के खिलाफ नहीं है। हिन्दू जीवन दर्शन ही सहस्तित्व में विश्वास करने वाला जीवन दर्शन है इसलिए पश्चिम बंगाल में 28 प्रतिशत मुस्लिम जनसं या होने के बाद भी सरकारी विभागों में मुस्लिम कर्मचारियों की भागीदारी मात्र 04 से 05 प्रतिशत है जबकि गुजरात की पूरी जनसं या का मात्र 09 प्रतिशत मुस्लमान है बावजूद इसके सरकारी महकमों में मुस्लिम कर्मचारी और अधिकारियों की सं या तुलनात्मक और अनुपातिक दृष्टि से दोगुनी है। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती या फिर सा यवादी सरकारों ने अपने शासन काल में किसी मुस्लिम अधिकारी को महत्त्वपूर्ण पद प्रदान नहीं किया जबकि नरेन्द्र भाई ने अपने शासन काल के दौरान प्रदेश पुलिस विभाग का सबसे महत्त्वपूर्ण पद पुलिस महानिदेशक मुस्लिम अधिकारी को सौंप दिया था। इसे क्या कहा जाना चाहिए। साल 2002 गोधरा त्रासदी के बाद राज्य में भड़की हिंसा के लिए लगातार नरेन्द्र भाई मोदी को जि मेवाद ठहराया जाता है पर आज भी अहमदाबाद के खानपुर, लाल दरवाजा, शाह आलम आदि क्षेत्रों में हिन्दुओं को रहने की इजाजत नहीं है।  साल 2010 में अहमदाबाद के घीकांटा तथा कुछ अन्य भागों में सा प्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। घटना के पीछे का कारण मुस्लिम चरमपंथियों ने चार बागडिय़ों (गुजरात के अनुसूचित हिन्दू) की हत्या था। दंगों के बाद आरोप लगे कि मुस्लमानों की हत्या के लिए केवल और केवल नरेन्द्र भाई जि मेदार हैं लेकिन जब साल 2002 में दंगा हुआ तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी जमकर मुस्लमानों की हत्या की। यह कहना कि नरेन्द्र भाई कट्टर हिन्दू स प्रदायवादी है तो यह सर्वथा गलत है। नरेन्द्र भाई मेरी दृष्टि में सचमुच के एक कुशल प्रशासक हैं जिन्होंने गुजरात की पूरी जनता की चिंता की नहीं तो सूरत बलात्कार कांड के बाद एक बार फिर गुजरात जलता जिसे बड़े प्रशासनिक चतुराई से नरेन्द्र भाई ने बचा लिया।
दूसरा आरोप नरेन्द्र भाई पर यह लगाया जाता रहा है कि वे लोकतांत्रिक अधिनायकवाद में विश्वास करते हैं। इस आरोपों पर भी उदाहरण देना ठीक रहेगा जिससे नरेन्द्र भाई के व्यक्तित्व को सही तरीके से समझा जा सकेगा। निसंदेह नरेन्द्र भाई के आवास और कार्यालय पर अकर्मण्य लोगों की जमात नहीं होती। नरेन्द्र भाई उस व्यक्ति को ज्यादा पसंद करते हैं जो काम में विश्वास रखता है। अधिनायक उसे कहा जाना चाहिए जो बिना किसी सामोहिक निर्णय के आपकी बात, अपनी योजना और अपना चिंतन समूह पर थोपता है। नरेन्द्र भाई के व्यवहार से ऐसा कही नहीं झलकता है। राज्य के विकास के लिए, जनता के हितों के लिए उन्होंने कुछ कठोर निर्णय लिए जैसे भारतीय किसान संघ की मांग थी कि सरकार किसानों को मु त में बिजली दे पर नरेन्द्र भाई ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि किसानों को 24 घंटे बिजली की आपूॢत का वादा है लेकिन मु त में बिजली नहीं दी जाएगी इसे अधिनायकवाद की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए क्योंकि यह राज्य के हित का मामला है फिर निर्णय के पीछे स पूर्ण मंत्रिमंडल और प्रतिपक्ष खड़ा था। प्रतिपक्षी आरोप लगाते हैं कि नरेन्द्र भाई ने विधानसभा की कार्यवाही का समय घटा दिया है। आज जितना गुजरात विधानसभा चलता है उतने समय के लिए ाी प्रतिपक्ष के पास मुद्दे नहीं होते हैं और प्रतिपक्ष विधानसभा के अंदर ही हिंसा पर ऊतारू हो जाता है। जब अशोक भट्ट विधानसभा के अध्यक्ष थे तो एक दिन सत्ता पक्ष की एक विधाइका ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से 420 कहना चाहा जिस पर विधानसभा अध्यक्ष ने तुरंत संज्ञान लिया और कहा - आ संसदीय भाषा नयी, बेन हूं तमे विनती करछू कि गुजरात विधानसभा की गरिमा बरकरार रहे तमे आ भाषा नी प्रयोग करो। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा में हंगामा किया और मेज पर लगे माईक तोड़ दिए। गुजरात में नरेन्द्र भाई के समय एक आदर्श राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था की नींव रखी गई है। सोमवार को प्रत्येक मंत्री सत्ता एवं विपक्ष के विधायकों से मिलेंगे। मंगलवार को जनता से मुलाकात करेंगे और मंगलवार को ही मंत्रिमंडल की बैठक होती है। बुधवार को बैठक के निर्णय को जारी कर दिया जाता है। यहां की सत्ता और सरकार यह नहीं देखती कि कौन सा समाचार माध्यम अभिजात्य और कौन सा सर्वहारा है। समान रूप से प्रत्येक समाचार माध्यमों को गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी में प्रेस विज्ञप्ती भेज दिया जाता है। विषय गंभीर रहा तो सरकारी प्रवक्ता का मौखिक ब्रीफ होता है। मैं समझता हूं ऐसी आदर्श परंपरा अन्य किसी राज्य सरकार में नहीं है। नरेन्द्र भाई साल में दो चिंतन शिविर लगाते हैं। उसमें प्रत्येक छोटे बड़े अधिकारी और मंत्रिमंडल के सदस्य भाग लेते हैं। वहां खुलकर चर्चा होती है। इस व्यवस्था को अगर अधिनायकवाद कहा जाए तो मेरी राय में ऐसा अधिनायकवाद प्रत्येक जगह होना चाहिए। हालांकि नरेन्द्र भाई यह भी दावा करते हैं कि वे किसी मंत्री के विभाग में हस्तक्षेप नहीं करते लेकिन किसी संस्था या सरकार का प्रधान अपने मातहत विभाग के प्रधान के कार्य में साकारात्मक हस्तक्षेप करता है तो इसमें बुराई क्या है। फिर उस हस्तक्षेप का साकारात्मक परिणाम आ रहा है तो वह स्वागत योग्य है।
कुल मिलाकर देखें तो नरेन्द्र भाई के व्यक्तित्व के दो पक्षों की जो लगातार नाकारात्मक व्या या की जाती है वह तर्कों से परे और निराधार है जिसका कोई वजूद ही नहीं है लेकिन समाचार माध्यमों को और कुछ प्रतिपक्षी जमात को खबर में बने रहने के लिए अनरगल हथकंडे अपनाने होते हैं जिसका जीता जागता उदाहरण नरेन्द्र भाई के साथ अनरगल मिथकों का जोड़ा जाना है। वास्तविकता से इसका कोई लेना देना नहीं है।

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