तो संभवतः भारतीय उपमहाद्वीप के एकीकरण की रणनीति पर काम कर रहे हैं मोदी


गौतम चैधरी
वर्तमान केन्द्र सरकार भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को सामान्य से बेहतर करने के संकेत दे रही है। इसका प्रमाण विगत दिनों नई दिल्ली में पाकिस्तान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने दूत के तौर पर विदेश राज्यमंत्री वी. के. सिंह को भेजा जाना है। हालांकि केन्द्र सरकार के उस निर्णय की जोरदार भत्र्सना हो रही है लेकिन उस योजना के पक्ष में सरकार के समर्थकों का भी अपना मजबूत तर्क है। उस तर्क से कोई सहमत हो या न हो लेकिन तर्क में दम जरूर है। अपने राज्यारोहण के साथ ही नरेन्द्र भाई ने कई संकेत दिये, जिसमें सबसे पहला संकेत अपने पडोसियों के साथ संबंधों को मधुर बनाना है। उसी योजना के तहत अपने शपथ-ग्रहण समारोह में उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया। यह नरेन्द्र मोदी की सोची-समझी और सैद्धांतिक चाल थी। हालांकि इस योजना में मोदी को अपने विचार परिवार से संभवतः समर्थन प्रप्त नहीं था लेकिन मोदी ने एक चुनौती ली और अपने उपमहाद्वीप के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर दिया। इसका पूरे दुनिया में संदेश गया कि भारत का नव चयनित प्रधानमंत्री पारंपरिक भूराजनीतिक रणनीति से हटकर नयी विदेश नीति अपनाने के फिराक में है। मोदी ने दूसरा सबसे बडा निर्णय चार पडोसी देशों के साथ वीजा आॅन एराइवल की नीति को हरी झंडी दे दी। इसका भी सकारात्मक प्रभाव पडने वाला है। मोदी के नजदीकी सूत्रों की मानें तो वे भारतीय उपमहाद्वीप के तमाम देशों के बीच व्यापार और आने-जाने की सुविधा को बेहद सरल बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो यह भारत के लिए संभावनाओं से भरा हुआ होगा।

हालांकि भारतीय उपमहाद्वीप में चीन का प्रभाव इन दिनों बढा है लेकिन चीनी विस्तारवादी नीति और व्यापार में बेहद बेइमानी के कारण चीन से दुनिया के देश भयाक्रांत हैं, जिसका लाभ अंततोगत्वा भारत को मिलने वाला है लेकिन इसके लिए भारत को अपने रूख में भी बदलाव लाने की जरूरत है। श्रीलंका में सरकार बदल जाने के बाद से स्थिति सामान्य होने गली है। बांग्लादेश में पहले से भारत के प्रति मित्र भाव रखने वाली शेख हसीना की सरकार है। भूट्टान और नेपाल में भारत के प्रति कोई खास विरोध नहीं है। थोडी-बहुत गतिरोध नेपाल में है जो समय में साथ सामान्य होता जा रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के बीच अबाध गति से आवाजाही में सबसे बडी समस्या और चुनौती पाकिस्तान की ओर से मिलती रही है। वैसे पाकिस्तान दुनिया का बेहद खतनाक देशों में से एक है। सत्ता पर सेना का अधिक प्रभाव होने के कारण और सेना का साम्प्रदायिक स्वरूप होने के कारण भारत के साथ पाकिस्तान की दोस्ती सामान्य ढंग से असंभव नही ंतो कठिन जरूर है। फिर भारत और पाकिस्तान स्वतंत्रता के पहले दिन से युद्धरत है। ऐसे में पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों को मधुर बनाने की बात सोचकर ही रोंगटे खडे हो जाते हैं। इतिहास के पन्नों को उलटते ही भारत पाकिस्तान के विभाजन के समय लगभग 10 लाख लोगों के खून वाले छीटों के दृष्य साकार होने लगते हैं। लिहाजा विभाजन के बाद की तीसरी पीढी अब दोनों मुल्कों में जवान हो गयी है लेकिन घाव अभी भी हरे जैसे लगते हैं। ऐसे में पकिस्तान के साथ भारत की दोस्ती बेहद कठिन मामला जान पडता है लेकिन जितना सत्य यह है उतना सत्य यह भी है कि जबतक भारत के साथ पाकिस्तान का संबंध सामान्य नहीं होगा तबतक न तो भारत का समतुल्य विकास संभव है और न पाकिस्तान में अमन की कल्पना की जा सकती है।

संभवतः नरेन्द्र भाई इस बात को अन्य नेताओं से ज्यादा बेहतर तरीके से समझ रहे हैं यही कारण है कि कई मामलों में पाकिस्तानी रणनीतिकारों के द्वारा आंख तरेडने के बाद भी वे सौम्यता का परिचार उन्होंने दिया है। भारत के साथ संबंध अच्छा होने से श्रीलंका, बांग्लादेश, भुट्टान, नेपाल, म्यामार, फीजी  आदि सभी पडोसियों को फायदा होने वाला है। इन देशों के साथ संबंधों की मधुरता का लाभ पाकिस्तान को भी मिलेगा। पाकिस्तानी राष्ट्रवाद को पश्चिम सीमावर्ती क्षेत्र से सटे इस्लमिक स्टेट जैसे आतंकवादी गिरोह और देश के अंदर खुंखार तालिवानियों से मजबूत चुनौती मिल रही है। अकेले पाकिस्तान इस चुनौती का सामना ज्यादा दिनों तक नहीं कर सकता है। आने वाले समय में इस चुनौती का सामना करने के लिए पाकिस्तान को न तो चीन का सहयोग मिलेगा और न ही संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान को सहयोग करेगा। ऐसे में यदि पाकिस्तानी रणनीतिकार भारत के साथ अपना संबंध सुधारते हैं तो पाकिस्तान दोनों ही मोर्चों पर मजबूती के साथ लडाई लड सकता है। इस बात को अब पाकिस्तानी कूटनीति भी समझने लगे हैं। यही कारण है कि इन दिनों पाकिस्तानी नेताओं के सुर में तब्दिली आई है। उनकी ओर से भी बडे फूक-फूक कर बयान दिये जा रहे हैं। हालांकि पाकिस्तान की सेना अभी भी अपने अकड में है लेकिन वह ज्यादा दिनों तक चलने वाली नहीं है। आज नहीं ंतो कल पाकिस्तान को यदि जिंदा रहना है तो भारत के साथ संबंधों को उसे ठीक करना ही होगा।

रही बात भारत की तो पाकिस्तान के साथ दोस्ती के बाद भारत के लिए मध्य एवं पश्चिम एशिया का रास्ता खुल जाएगा। भारत का संबंध सउदी अबर एवं इरान दोनों के साथ अच्छे हैं। यदि भारत का हस्तक्षेप एशिया माईनर एवं एशिया मेजर में होता है तो उससे भारत के व्यापारी एवं प्रोफेसनलों को व्यापक पैमाने पर काम और व्यापार मिलेगा। मध्य ऐशियाई देशों में हाइड्रो कार्बन, प्राकृतिक तेल एवं गैस, युरेनियम आदि के खान भरे पडे हैं लेकिन उसके विदोहन के लिए मध्य एवं पश्चिम एशिया में दुनिया के बडे बडे देश जाने से कतरा रहे हैं। यदि पाकिस्तान, भारतीय व्यापारी और प्रशिक्षित श्रमिकों के लिए रास्ता खोल दे तो एक आंकडे के अनुसार कम से कम पांच करोड लोगों को रोजगार मिल सकता है। इरान के साथ भारत के अच्छे संबंध होने के कारण भारत वहां रेलवे ट्रैक बनाने की योजना में है। उस रेल लाईन को इरान मास्को के साथ जोडना चाहता है। दूसरा चीन यूरोप के साथ व्यापक संबंध बनाने के लिए पुराने शिल्क मार्ग को फिर से जीवित कर रहा है। आने वाले समय में वह मार्ग व्यापार के लिए महत्वपूर्ण होगा। साथ ही चीन का मध्य एवं पश्चिम ऐशिया में दबदबा भी बढ जाएगा। यदि भारत पाकिस्तान के साथ समझौता कर अपना मार्ग भी मध्य एवं पश्चिम ऐशिया तक के लिए बना ले तो आने वाले समय में भारत चीन के साथ व्यापारिक होर में टक्कर ले सकता है अन्यथा भारत पीछे रह जाएगा और चीन हमसे कई गुना ज्यादा आगे निकल जाएगा। फिर दूसरी बात पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध हैं। कई ऐसी चीज हमारे व्यापारी पाकिस्तान में बेच सकते हैं। पाकिस्तान, भारत के लिए एक बडा बाजार भी हो सकता है। फिर आने जाने के साथ संभव है कि हमारे दोनों देशों के समाजों के बीच जो वैचारिक और सांस्कृतिक खाई दिख रही है वह भर जाये क्योंकि हिन्दुस्थान और पाकिस्तान में मजहब को हटा दिया जाये तो कुछ भी भिन्न नहीं है। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान के साथ मित्रता की पहल को सकारात्मक तरीके से लिया जाना चाहिए।

रही बात जम्मू और कश्मीर के विवाद की तो जब अन्य मामलों में भारत और पाकिस्तान के खयालात मिल जाएंगे तो जम्मू-कश्मीर का मामला खुद व खुद सुलझ जाएगा। दोनों देशों को यह नहीं भूलना चाहिए कि आने वाले समय में चाहे वह चीन हो या संयुक्त राज्य या फिर साम्राज्यवादी मनोवृति का देश रूस, ये और खतरनाक तरीके से अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए आगे बढेगें। यदि इन साम्राज्यवादी देशों के साथ लोहा लेना है अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है तो भारतीय उपमहाद्वीप के देशों को एकत्रित होना ही पडेगा। ऐसे भी महान समाजवादी चिंतक एवं भारतीय राष्ट्रवाद के व्याख्याताओं में से एक डाॅ. राम मनोहर लोहिया ने भारीय परिसंघ की परिकल्पना रखी थी। मोदी संभवतः डाॅ. लोहिया की परिकल्पना को साकार रूप देने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। यदि ऐसा है तो दूर की सोचकर मोदी के इस कदम की सारथकता पर प्रश्न नहीं खडा किया जाना चाहिए।

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