झारखंड भाजपा का आंतरिक कलह हेमंत सरकार को दे रहा जीवनदान


गौतम चौधरी

राजस्थान में राजनीतिक उठा-पटक के बीच झारखंड में भी राजनीतिक गतिरोध की सुगबुगाहट प्रारंभ हो गई है। हालांकि फिलहाल हेमंत सोरेन की सरकार को गिराना उतना आसान नहीं होगा। वैसे भारतीय जनता पार्टी की नई टीम गठन के बाद इस दिशा में तेजी आने के संकेत मिल रहे हैं। राजनीति के माहिर जानकारों का आकलन है की जब तक झारखंड की सत्ता भाजपा के हाथ में नहीं आएगी तब तक बिहार का चुनाव एनडीए के पक्ष में संभव नहीं है। इस कारण भारतीय जनता पार्टी पूरी तसल्ली से झारखंड में सत्ता समीकरण परिवर्तित करने की कोशिश करेगी। इसकी शुरुआत कब होगी इसका ठीक ठीक अनुमान लगाना फिलहाल कठिन है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय से लेकर झारखंड प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अधिकारियों तक में इस बात की चर्चा प्रारंभ हो गई है कि अब भाजपा झारखंड के सोरेन सरकार को अस्थिर करने की पूरी कोशिश करेगी। लिहाजा विगत दिनों एक डिजिटल न्यूज़ चैनल के साक्षात्कार में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष इरफान अंसारी ने स्वीकार कि भाजपा महागठबंधन की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है। भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर बताया कि बहुत जल्द ही सोरेन की सरकार गिर जाएगी। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि यह सरकार भारतीय जनता पार्टी या किसी बाहरी दबाव के कारण नहीं, अपितु आंतरिक कलह के कारण धराशाई होगी।

भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों की ओर से जो संकेत मिल रहे हैं उससे यह लगने लगा है कि सोरेन सरकार बहुत ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है लेकिन झारखंड भाजपा का आंतरिक कलह इतना ज्यादा प्रभावशाली हो गया है कि फिलहाल पार्टी को इससे उबर पाना कठिन प्रतीत होता है। ऐसेे में भाजपा सोरेन सरकार को अस्थिर करने में सफल नहीं हो पाएगी। यहां पर झारखंड भाजपा के आंतरिक कलह पर प्रकाश जानी जरूरी है। मतलन पहले झारखंड भाजपा दो गुटों में विभाजित थी। एक गुट का नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के जिम्मे था तो दूसरे गुट के सरपरस्त केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा संभाल रहे थे। संपन्न विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की करारी हार भी इन्हीं दोनों नेताओं के आपसी गतिरोध के कारण संभव हो पाया। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री और भाजपा के नेता रघुवर दास ने अर्जुन मुंडा को हरने की पूरी कोशिश की लेकिन मुंडा किसी तरह अपना सीट निकाल ले गए। मुंडा को इस बात की तकलीफ थी और विधानसभा चुनाव में मुंडा, रघुवर दास को हराने के लिए अपने सारे घोड़े खोल दिए। सच पूछिए तो जमशेदपुर पश्चिम से रघुवर दास की करारी हार भारतीय जनता पार्टी के अंदर गुटों के बीच चल रहे महासंग्राम का नतीजा था। चूंकि सरजू राय मुंडा गुट के माने जाते थे और विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे मैं रघुवर दास की चली, इसलिए जमशेदपुर पूर्वी से राय की टिकट भाजपा ने काट दिया। इसका परिणाम सबके सामने है। रघुवर दास को मुंह की खानी पड़ी और प्रदेश के मुख्यमंत्री तो नहीं ही बन पाए, उन्हें अपनी सीट भी गंवानी पड़ी।

चुनाव के बाद पार्टी को फिर से संगठित करने की चुनौती प्रदेश के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह के जिम्में लगाई गई। धर्मपाल सिंह की रणनीति के अनुसार पार्टी को व्यवस्थित और संगठित करने का काम प्रारंभ किया गया। योजना के तहत पुराने भाजपाई और प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी को पार्टी में शामिल किया गया। यहां बता दें कि भाजपा छोड़ने के बाद बाबूलाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा नामक राजनीतिक दल बनाकर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे। 2014 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा ने विधानसभा के कई सीट जीते लेकिन बाद में अधिकतर विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और कई विधायकों को भाजपा की रघुवर सरकार ने मंत्री पद से भी नवाजा। 2019 के विधानसभा चुनाव में भी जेवीएम की टिकट पर तीन विधायक जीते। इस बार खुद बाबूलाल मरांडी भी चुनाव जीते हैं। अब बाबूलाल मरांडी अपनी पूरी पार्टी के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं लेकिन उनके दो विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गए। बाबूलाल और उनकी पार्टी का लफड़ा अलग है और यही कारण है कि बाबूलाल भाजपा विधायक दल के नेता होने के बाद भी प्रतिपक्ष के नेता नहीं हो पाए। इस समय भी भारतीय जनता पार्टी के आंतरिक कलह को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। बाबूलाल के भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी में एक नए ग्रुप का निर्माण हो गया है। प्रदेश के वर्तमान अध्यक्ष दीपक प्रकाश बाबूलाल मरांडी के बेहद नजदीकी बताए जाते हैं। भाजपा के जितने भी पुराने नेता हैं उसमें से अधिकतर बाबूलाल मरांडी के निकट हैं। ऐसे में अब प्रदेश भाजपा के अंदर तीन गुणों का निर्माण हो चुका है। चूंकि बाबूलाल मरांडी कद्दावर नेता है और एक बार भाजपा की तरफ से प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। वर्तमान में विधायक भी हैं। बाबूलाल मरांडी के साथ सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यह है कि वे आदिवासी समाज से आते हैं। यदि अभी हेमंत सोरेन की सरकार गिरती है तो भाजपा की ओर से बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री के सबसे मजबूत दावेदार होंगे। यह न तो रघुवर दास को पसंद होगा और नहीं अर्जुन मुंडा को। ऐसे में यह दोनों नेता सोरेन की सरकार गिराने में दिलचस्पी क्यों लेंगे।

दूसरी ओर रघुवर खेमा अपनी रणनीति के अनुसार प्रदेश की राजनीति में फिर से दखल जमाना प्रारंभ कर दिया है। अध्यक्ष को छोड़कर प्रदेश की पूरी टीम पर रघुवर की प्रतीक्षाया साफ दिखाई दे रही है। टीम के गठन के बाद से अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी दोनों बुरी तरह सक्रिय हो गए हैं। इधर रघुवर खेमा इस फिराक में है कि कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह की मृत्यु के बाद खाली हुए बेरमो सीट से रघुवर विधानसभा का चुनाव लड़े। रघुवर खेमे को यह भी उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव के समय जो परिस्थितियां थी वह अब खत्म हो चुकी है और प्रदेश के लोगों को रघुवर दास की कमी खलने लगी है। यह खेमा रघुवर दास को बेरमो लगाकर प्रदेश की राजनीति में रघुवर दास को फिर से स्थापित करने की मुहिम में लग गया है। रघुवर दास की रणनीति के अनुरूप यदि भाजपा चलती रहे तो बेरमो विधानसभा उपचुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति में बदलाव के संकेत है। से पहले हेमंत सरकार को कोई खतरा दिखाई नहीं दे रहा है।

यहां यह भी बता देना उचित होगा कि राजस्थान हो या मध्य प्रदेश वहां के स्थापित नेता को जब तक भारतीय जनता पार्टी मना नहीं ली तब तक सत्ता परिवर्तन की कोशिश प्रारंभ नहीं कर पायी। राजस्थान में भाजपा का ऑपरेशन इसीलिए फेल हुआ कि भाजपा की केंद्रीय टीम ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को विश्वास में नहीं लिया था। यदि वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनाने की बात होती तो संभव है कि भाजपा का ऑपरेशन राजस्थान पूरा हो गया होता। झारखंड में भी कुछ कुछ उसी प्रकार की परिस्थिति है। जब तक भाजपा रघुवर दास को नहीं मनाएगी तब तक सोरेन सरकार का गिरना संभव नहीं है। यदि रघुवर मान भी जाते हैं तो अर्जुन और बाबूलाल रघुवर के पूरी रणनीति का हवा निकालने में कोई भी कसर नहीं छोड़ेंगे। इसलिए फिलहाल हेमंत सोरेन सरकार को कोई खतरा नहीं दिख रहा है।

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