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Showing posts from October, 2024

मुस्लिम महिलाओं को सरकार की विभिन्न योजनाओं तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है स्वयं सहायता समूह

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डॉ. रश्मि खान शाहनवाज  महिलाओं की आर्थिक स्थिति स्थापित करने और उनके समग्र सशक्तिकरण में योगदान देने के लिए कौशल विकसित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, स्वयं सहायता समूह यानी एसएचजी अक्सर कानूनी अधिकार और सरकारी मान्यता के आधार पर स्कूलों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों, स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों और कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिससे महिलाओं को महत्वपूर्ण ज्ञान व तकनीक तक पहुँच में सुविधा होती है। शिक्षा क्षेत्र में एसएचजी का उल्लेखनीय प्रभाव देखा गया है। जैसे-जैसे मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक स्थिति अधिक स्थिर होती जाती है, वे अपने बच्चों की शिक्षा में निवेश करते हैं, जिससे न केवल समाज और कौम का भला होता है अपितु देश भी विकास की ओर आपे-आप अग्रसर हो जाता है। यह योजना खासकर लड़कियों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रही है। अब मुस्लिम महिलाओं में भी लड़कियों को पढ़ाने की दिशा में जागरूकता बढ़ी है। इसका असर स्वास्थ्य और स्वतंत्रता, परिवार नियोजन और मातृ देखभाल जैसे विषयों पर व्यापक दिख रहा है। अब तक जो वर्ग हाशिए पर था वह एकाएक मुख्यधारा का आधार बनता जा रहा है।  एसएचजी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान मुस्

एक बार फिर USCIRF की बेबुनियात आलोचना का शिकार हुआ भारत

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  डॉ. हसन जमालपुरी भारत एक बार फिर, यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) की बेबुनियाद आलोचना का शिकार हुआ। इस बार, आयोग का दावा है कि भारत धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के लिए एक खतरनाक जगह बनता जा रहा है। यहां सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय मुसलमानों ने ऐसा कहा, या फिर भारत की कोई मुस्लिम संस्था ने इस बात का दावा किया है? यूएससीआईआरएफ यह आरोप किस आधार पर लगाया है यह रहस्य बना हुआ है। भारत में रहने वाले और ज़मीनी हकीकत को जानने समझने वाले अच्छी तरह वाकफ हैं कि भारत अल्पसंख्यकों के मामले में बेहद संजीदा राष्ट्र है। यूएससीआईआरएफ हमारे देश की भयावह तस्वीर पेश करने पर आमादा हैं। सच तो यह है कि ये रिपोर्टें सिर्फ़ अनावश्यक शोर मचाने से ज्यादा कुछ भी नहीं है। हो सकता है यह मामला हमारे राष्ट्र विरोधी ताकतों की करतूत भी हो। इस मामले से हमें सतर्क रहना चाहिए और समाज के युवकों को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। समुदाय को ऊपर उठाने के लिए काम करने के बजाय, ये तथाकथित ‘वॉचडॉग’ ऐसी कहानियां गढते और फैलाते हैं जो हमें प्रकारांतर में हानि पहुंचाता है। जब अंत

वक्फ़ को कुशल प्रबंधन की जरूरत, लेकिन स्वायत्ता पर आंच नहीं आनी चाहिए

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कलीमुल्ला खान  आजकल वक्फ को लेकर चर्चाएं चल रही है। न केवल इस्लाम के मामने वाले इस विषय को लेकर संजीदा हैं अपितु इस मामले को लेकर केन्द्र और प्रदेश की सरकारें भी थोड़ी गंभीर दिखने लगी है। आखिर वक्फ एकाएक चर्चाओं के केन्द्र में कैसे चला आया? इसका एक सीधा-सा उत्तर यह है कि इस संस्था के पास संपत्ति की कोई कमी नहीं है लेकिन जिस काम के लिए इसे बनाया गया था उस दिशा में यह काम करना छोड़ बांकी का सारा काम कर रहा है।  वक्फ, धर्मार्थ बंदोबस्ती की एक इस्लामी संस्था है, जो अल्लाह की सेवा और जनता के लाभ के लिए संपत्ति या संपदा समर्पित करने के विचार पर आधारित है। एक बार वक्फ घोषित होने के बाद ये संपत्तियां धर्मार्थ कार्यों के लिए सौंप दी जाती हैं और इन्हें रद्द, बेचा या बदला नहीं जा सकता है। इन संपत्तियों से प्राप्त आय का उद्देश्य सभी समुदायों की जरूरतों को पूरा करने वाली मस्जिदों, मदरसों, अनाथालयों, अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं को निधि देना है। हालांकि, भारत में वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग और कम उपयोग लंबे समय से चिंता का विषय रहा है, जिसमें भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और अत