एक बार फिर USCIRF की बेबुनियात आलोचना का शिकार हुआ भारत

 


डॉ. हसन जमालपुरी

भारत एक बार फिर, यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) की बेबुनियाद आलोचना का शिकार हुआ। इस बार, आयोग का दावा है कि भारत धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के लिए एक खतरनाक जगह बनता जा रहा है। यहां सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय मुसलमानों ने ऐसा कहा, या फिर भारत की कोई मुस्लिम संस्था ने इस बात का दावा किया है? यूएससीआईआरएफ यह आरोप किस आधार पर लगाया है यह रहस्य बना हुआ है।

भारत में रहने वाले और ज़मीनी हकीकत को जानने समझने वाले अच्छी तरह वाकफ हैं कि भारत अल्पसंख्यकों के मामले में बेहद संजीदा राष्ट्र है। यूएससीआईआरएफ हमारे देश की भयावह तस्वीर पेश करने पर आमादा हैं। सच तो यह है कि ये रिपोर्टें सिर्फ़ अनावश्यक शोर मचाने से ज्यादा कुछ भी नहीं है। हो सकता है यह मामला हमारे राष्ट्र विरोधी ताकतों की करतूत भी हो। इस मामले से हमें सतर्क रहना चाहिए और समाज के युवकों को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। समुदाय को ऊपर उठाने के लिए काम करने के बजाय, ये तथाकथित ‘वॉचडॉग’ ऐसी कहानियां गढते और फैलाते हैं जो हमें प्रकारांतर में हानि पहुंचाता है। जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया लगातार हमें बताता है कि हम पर हमला हो रहा है पर चिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो हम वैसे ही हैं जैसे पहले थे। हमारे यहां किसी को कोई समस्या नहीं है। हां समस्या थोड़ी कानून व्यवस्था की है लेकिन वह किसी पंथ या धर्म को लक्ष्य करके नहीं किया जा रहा है, जैसा यूएससीआईआरएफ बता रहा है। संविधान व कानून के दायरे में सब हो रहा है। दूसरी बात यह है कि यदि हमें कोई समस्या होगी तो उसका समाधान भी हमहीं ढुंढेंगे अमेरिका हमारा कुछ भी भला नहीं कर सकता है। फिलिस्तीन, सीरिया, अफगानिस्तान और अभी हाल का बांग्लादेश उसका उदाहरण है। वैसे पाकिस्तान भी उसी का बनाया हुआ एक नमूना राष्ट्र है।

यह पहली बार नहीं है जब यूएससीआईआरएफ ने भारत को निशाना बनाया है और अब तक, हम में से कई लोग इसके पैटर्न से परिचित हो चुके हैं। हर साल यूएससीआईआरएफ ऐसी रिपोर्टें पेश करता हैं जो केवल नकारात्मक पहलुओं पर आधारित होता है। भारत को एक ऐसे स्थान के रूप में चित्रित करती हैं जहाँ अल्पसंख्यक डर में रहते हैं लेकिन वे इन समुदायों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए किए गए प्रयासों के बारे में बातना भूल जाते हैं। भारत में जो मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को शिक्षित, रोजगार और सशक्त बनाने की दिशा में काम हो रहा है उसके बारे में यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट मौन है। यह लगभग ऐसा है जैसे ये रिपोर्टें पूर्वनिर्धारित एजेंडे को फिट करने के लिए तैयार की गयी हो। अलग-अलग घटनाओं को उठाकर उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है ताकि यह देशव्यापी संकट लगे।

यूएससीआईआरएफ ऐसा रिपोर्ट तैयार करता है जिससे यह साबित हो कि भारत के अल्पसंख्यक, खासकर मुसलमान सह महसूस करे कि वह सचमुच में अलग-थलग पड़ गया है। अब उसके लिए इस देश में कुछ बचा ही नहीं। ऐसी रिपोर्ट जारी कर यूएससीआईआरएफ भारत में भी एक नए प्रकार के असंतोष को पैदा करना चाहता है, जो कालांतर में देश की एकता और अखंडता के सामने चुनौती प्रस्तुत करे। यूएससीआईआरएफ की एकतरफा कहानी अनावश्यक भय और हताशा पैदा करने की कोशिश है। इससे देश के कट्टरपंथी जमात को बल मिलेगा और दक्षिण एशिया की शांति के लिए खतरा बनेगा।

हमें इस प्रकार के नकारात्मक प्रचार से सावधान रहना होगा। इस प्रकार की संस्थाएं किसी का सहयोग नहीं कर सकती है। इसी प्रकार संरचनाओं ने दुनिया के कई हसते-खेलते सहिष्णु मुस्लिम राष्ट्र को बर्बाद कर दिया है। हमें बाहरी कहानियों से भावुक होने की जरूरत नहीं है। हमें अपने आसपास को देखना चाहिए। हमें इस देश के विकास में अपनी ताकत लगानी चाहिए। हमें नए नए इल्म और तकनीक सीखने चाहिए। दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें तैयार होना होगा। हमारी सरकार जितना कर रही है उसका लाभ उठाना चाहिए। अपने समाज और परिवार को दिशाहीन होने से बचाना चाहिए। यह इस देश के लिए भी सही है और हमारे अपने लिए भी।

पिछले कुछ वर्षों में, सरकार ने अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के उत्थान के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। शैक्षिक छात्रवृत्ति, नौकरियों के लिए कौशल प्रशिक्षण और हमारे समुदाय की महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है। ये वे चीजें हैं जो वास्तव में जमीनी स्तर पर जीवन बदल रही हैं। उदाहरण के लिए शिक्षा को ही लें। मुस्लिम छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता वास्तव में एक बड़ा बदलाव ला रहा है, जिससे उन अवसरों के द्वार खुल रहे हैं जो कभी हमारी पहुंच से बाहर थे। ये पहल इस खाई को पाटने में मदद कर रही हैं। हमारे युवाओं को सफल होने के लिए सशक्त बना रही हैं। फिर भी यूएससीआईआरएफ द्वारा बताए गए कथानक में इनमें से किसी का भी उल्लेख नहीं है। इसके बजाय, वे हिंसा या तनाव की छिटपुट घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और इस बात की बड़ी तस्वीर देखने में विफल रहते हैं कि आज के भारत में मुस्लिमों सहित अल्पसंख्यक किस तरह अपने आप को बदल रहा है और सफलता की सीढियों को पार करता जा रहा है।

लगातार भारत की आलोचना करके और यह दावा करके कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमला हो रहा है, वे एक ऐसे कथानक को बढ़ावा दे रहे हैं जो कुछ अंतरराष्ट्रीय एजेंडों को पूरा करता है। लेकिन भारत में रहने वाले हम जैसे लोग इसे समझ सकते हैं। ये विभाजनकारी रिपोर्ट हमारी दिन-प्रतिदिन की वास्तविकता को नहीं दर्शाती हैं। हां, चुनौतियां हैं, लेकिन निरंतर विनाश और निराशा की कहानी केवल अशांति को भड़काने का काम करती है। भारत हमेशा से एक ऐसा देश रहा है जहाँ विभिन्न धर्म और संस्कृतियाँ सह-अस्तित्व में हैं और हम पक्षपातपूर्ण कथानकों से प्रभावित होने वालों में से नहीं हैं। यह सुनिश्चित करना हमारा काम है कि हमारे मुस्लिम युवा इस देश में अपनी जगह को लेकर आश्वस्त होकर बड़े हों, उन्हें पता हो कि उनका सम्मान, सुरक्षा और रोजगार जैसे मूलभूत हित कहां सुरक्षित हैं।

(लेखक के विचाार स्वतंत्र हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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