हिंदुत्व के खिलाफ बौद्धिक आतकवाद पर उतरे मीडिया के अभिजात्य

गौतम चौधरी
 
पीछे मैं पढ़ रहा था। घटना संभवतः पंजाब के जैतो मंडी की थी और आरोप कांग्रेस पार्टी की पंजाब शाखा की। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सरदार प्रताप सिंह बाजवा का आरोप है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों ने हथियार लेकर सड़कों पर पथसंचलन किया और स्थानीय प्रशासन मौन रही। पंजाब कांग्रेस ने इस मामले को भरसक तूल देने का प्रयास किया लेकिन न तो कोई मुसलमान उनके समर्थन मंे आया और न ही पंजाब का बहुसंख्यक सिख समाज कांग्रेस के साथ आकर खड़ा हुआ। इस मामले मंे कांग्रेस को उनके पारंपरिक समर्थन ईसाइयों का भी साथ नहीं मिल पाया। हार कर अब पंजाब कांग्रेस चुप बैठ गयी है। 

एक घटना गुजरात के अहमदाबाद स्थित गुजरात विद्यापीठ की है। विद्यापीठ के बारे में मुझे आज की स्थिति की कोई खास जानकारी नहीं है लेकिन उन दिनों विद्यापीठ, गुजरात के तत्कालीक मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी विरोधी गुटों को पनाहगाह हुआ करता था। मैं विगत दिनों अंग्रेजी का समाचार पत्र पढ़ रहा था। अंग्रेजी ट्रिब्यून के संभवतः चैथे या पांचवें पृष्ठ पर अहमदाबाद डेडलाईन की खबर देखी तो पढने की जिज्ञासा को रोक न सका। खबर रोचक है। खबर में गुजरात विद्यापीठ और गांधीजी के निकट सहयोगी श्रदेय महादेव भाई देसाई द्वारा संवर्धित नवजीवन ट्रस्ट के कुछ गांधीवादियों ने उस गीता पर आपत्ति उठाई, जिसे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत दिनों अपने सरकारी यात्रा के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा साहब को भेंट की थी। आपत्ति उठाने वालोें में विद्यापीठ के माननीय कुलपति डाॅ. सुदर्शन आंयगर साहब भी शामिल हैं। आपत्ति सुनेंगे तो हैरान हो जाएंगे, संभवतंः हंसी भी आ जाए। आपत्ति उठाने वालों का तर्क है कि गांधी जी अहिंसक गीता के समर्थक थे। उनके द्वारा अनुदित गीता के मुख्य पृष्ठ पर भगवान श्री कृष्ण के हाथ में उनका प्रिय शस्त्र चक्र सुदर्शन नहीं था, जबकि प्रधानमंत्री द्वारा बराक को भेंट की गई गीता के मुख्य पृष्ठ पर भगवान श्री कृष्ण के हाथ में चक्र सुदर्शन दिखाया गया है, सो मोदी जी द्वारा भेंट की गई गीता हिंसक गीता है, जबकि गांधी अहिंसक गीता के समर्थक थे। 


मैं देख रहा हूं जब से केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी है और उसके मुखिया नरेन्द्र मोदी को बनाया गया है तब से ऐसी ही कुछ उलजलूल बातें समाचार माध्यमों और दूरदर्शन के समाचार वाहनियों पर जबरदस्त तरीके से प्रयोजित किया जा रहा है। दूरदर्शन वाहनियों पर कथित अभिजात्य समाचार संग्रह, समाचार मिमांशक और पंचसितारीय चिंतकों की एक जमात लगातार यह साबित करने की कोशिश में लगी है कि भारत मंे लव जेहाद नामक कोई चीज़ नहीं है। यह मोदी सरकार के नीति नियंता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा समाज में फैलाया जा रहा भ्रम है। इधर साहित्य और समाचार के माध्यमों पर एक अजीब सा माहौल देखने को मिल रहा है। हर कहीं बस एक ही बात कही सुनी जा रही है कि मोदी और भाजपा की सरकार बड़ी बुरी तरह हिन्दू संप्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने एजेंडे पर काम कर रहा है और देश का माहौल इस तरह खराब किया जा रहा है कि बस दो, चार, छह महीनों में देश के अल्पसंख्यकों को भारत से बेदखल कर दिया जाएगा। हिन्दी साहित्य की कुछ खास पत्रिकाएं जो सरकारों के विज्ञापनों पर बड़ी बुरी तरह आश्रित है, वे न जाने आज से चार दशक पलहे की जुबान बोल रहे हैं। वे पानी पी पी कर सिंघियों को गलिया रहे हैं। इन दिनों हंस, पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, मुक्ता, दिल्ली प्रेम की और सारी पत्रिका एवं तद्भव जैसी पत्रिकाओं ने मानों संघ, हिंदुत्व, राष्ट्रवाद के खिलाफ बौद्धिक जेहाद ही छोड़ दिया हो। इन गिरोहबाज लेखक और चिंतकों को इस बात का तनिक भी एहसास नहीं है कि देश के युवा बदल रहे हैं। अब देश 2014 का युवा देश है। देश का प्रधानमंत्री अभिजात्य गिरोहबाजों की टोली का सदस्य नहीं है। वह विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और अन्य वैश्विक साम्राज्यवादी देशों की हित पूर्ति करने वाला व्यक्ति नहीं है और न ही समाज के उच्चस्थ सूत्रों का सूत्रसंचालक है। अबकी बार का हमारा प्रधानमंत्री निहायत तसल्लीदार भारतीय किस्म का इंसान है। पंरपंरा एवं प्रयोग को समझता है। वह सूचना एवं तकनीक के महाविष्फोट को अच्छी तरह जानता है और भारत को सचमुच मंे 21वीं सदी मंे ले जाने की निहायत और ईमानदार कोशिश कर रहा है।

मैं मानता हूं कि देश का वातावरण थोड़ा बदला है। मैं यह भी मान लूंगा कि देश अपने परंपरागत मूल्यों की शक्ति को पहचानने लगा है। मैं यह मानने के लिए भी तैयार हूं कि देश का बहुसंख्यक अब अपनी पहचान और उस पर हो रहे आक्रमणों के लिए सजग होने लगा है। ऐसे में कोई वातानुकूलित शीशे वाली चारहदिवारी से समाचार वाहिनी की खिड़की खोलकर चिल्लाने लगे और निहायत फूहड़ टिप्पणियों के साथ कहे कि खाखी निक्कर, जाघ उघाड़, दंडधारी संघी भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति और उसी खाके में पली बढ़ी परंपरागत तहजीब पर प्रहार करने लगा है, इसे भारत का समाज कैसे स्वीकार करेगा?

समाचार, सूचना और राजनीति मनौविज्ञान तैयार करने वाले माध्यमों पर हिंदुत्व के खिलाफ एक सुनियोजित आंतकवाद को स्पेस दिया जा रहा है। इन गिरोहबाजों, सेमेटिक गुरिल्लों को देश पर अबतक राज करने वाले मुगलकालीन भारत में पनपे विदेशी साम्राज्यवाद के औजार, मध्यम वर्ग एवं एंकात्मवाद विरोधियों का सह प्राप्त हो रहा है। गुलाम मानसिकता के विदेशी विचार वाले हथियारों से सज यह जमात, भारतीय चिंतकों को मुठभेड़ के लिए ललकार रहा है। यही नहीं भारत में कमजोर पड़ रही सेमेटिज़्म को फिर से संगठित करने का प्रयास किया जा रहा है। ये तबलीकी गिरोहबाज भारत में इस्लाम, ईसाइत और वाममार्गी एकता के लिए प्रयास करने लगे हैं। इसका सीधा उदाहरण, पश्चिम बंगाल, केरल, बिहार व मध्य भारत में देखा जा सकता है। यह बौद्धिक आंतकवाद लगातार भारत के अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का भाव भर रहा है। इनकी रणनीति भारतीय अल्पसंख्यकों को भड़काकर भारत मंे एक नए प्रकार के पृथकतावाद को खड़ा करना है। ये लोग यह साबित करना चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी, बहुसंख्यक धुव्रीकरण के कारण सत्ता में तो आ गई लेकिन ईराक के तरह अल्पसंख्यकों को बेदखल करने की रणनीति के कारण यह सरकार अपने आप में असफल होती जा रही है। यह सरकार यदि रही या फिर से देश में आई तो देश कई पाकिस्तानों में विभाजित हो जाएगा।

ऐसे विचार का प्रचार करने वालों का जवाब केवल सरकारी स्तर पर ही संभव ही नहीं है। देश के बहुसंख्यकों को अपने पास पड़ोस मंे रहने वाले किसी भी प्रकार के अल्पसंख्यकों को अपने व्यवहार से समझाना होगा कि देश अब 21वीं सदी में प्रवेश कर रहा है। हिंदू हो या मुसलमान, ईसाई हो या वामधर्मी सबको अच्छी शिक्षा, सुरक्षा, सुविधा संपन्न जीवन दिनचर्या चाहिए। वह तभी संभव है जब रामफल के फसल की सुरक्षा रोजीद करेगा। रोजीद और रसीद की बेटी की शादी मंे वेद प्रकाश चावल पहुंचाएगा। रघुबीर की शादी में अल्बर्ट तन मन धन से काम करेगा और कामरेड गांधी की मृत्यु पर सब मिलकर मर्सिया पढ़ेंगे। इन सामाजिक संबंधों के दायरे को और बढ़ाने की जरूरत है। क्या फर्क पड़ता है कोई मंदिर मंे घंटी बजाए या मस्जिद के मीनारों पर से अल्ला हो अकबर करे। क्या फर्क पड़ता है कोई ईशु बाबा के सजदे में खुद पर क्राॅस बना ले या दास कैपिटल पर घंटों बहस करे। भारत के हर नौजवान को रोजगार चाहिए। देख के हर व्यक्ति को पेय जल चाहिए। रहने के लिए घर, आवागमन की सुविधा, 24 घंटे बिजली, शिक्षा और स्वच्छता, सुरक्षा और संमृद्धि, मूल्यों की रक्षा एवं परंपरा और पूर्वजों का सम्मान चाहिए। नई सूचनाएं, समाज में साकारात्मकता का संचार देश के हर व्यक्ति को चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार जिस व्यक्ति के हाथ में देश की कमान है, वह हमंे इन तमाम सुविधाओं का आनंद दे सकता है लेकिन इसके लिए हमंे भी प्रयास करना होगा। देश के हर व्यक्ति के घर के सामने भारत का प्रधानमंत्री झाड़ू तो नहीं लगा सकता है न! यदि आलू का दाम बढ़ रहा है और जमाखोरी बढ़ रही है तो इसके लिए थोडा हमें भी सजग होना होगा। जमाखोरों को ढूंढना और उसे दंड दिलवाना समाज का भी काम है। यदि प्रशासक काम नहीं करती है तो आंदोलन के विकल्प खुला रहे और यह मान कर चले कि सत्ता, समाज के लिए है, समाज सत्ता के लिए नहीं है। हमारी एकता रहेगी तो हम अपना पोषण करने वाले सम्राट का निर्माण कर लेंगे। मोदी न तो अपरिहार्य है और न ही अंतिम। भारत को सचमुच का भारत बनाना है तो मोदी के ईमानदार प्रयास को साथ दें और संगठित होकर समाज के अंर्तसंबंधों को एक बार फिर से मजबूत करने की कोशिश करें,  और हां! इन पंचसितारा किस्म के दूरदर्शन वाहिनियों पर गिरोहबाजी करने वालों से सावधान रहें।

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