स्वाईन फ्लू का हउआ खडा कर बेहद मुनाफा कमाने के फिराक में है दवा लाॅबी

गौतम चौधरी
सरकारी और अखबारी आंकडों में बताया जा रहा है कि पूरे देश में स्वाईन फ्लू नामक बीमारी से कम से कम 850 लोगों की मौत हो गयी है। यह आंकडा कितना विश्वासनीय है इसपर अभी नई व्याख्या आना बांकी है, पर एक आंकडे में बताया गया है कि भारत में हर आधे घंटे में दो से तीन लोगों की मृत्यु टीबी जैसी बीमारी से हो जाती है। यह मौत न तो सुर्खियां पकड रही है और न ही सरकार के कृपा का पात्र बन रही है। एक सनसनी फैलाने वाली खबर के अनुसार गुजरात सरकार ने अहमदाबाद के अंदर स्वाईन फ्लू की भीषण समस्या से लोगों को बचाने के लिए कानून का सहारा लिया है और पूरे अहमदाबाद नगर में धारा 144 लगा दिया गया है। इसी प्रकार की एक जनकल्याणकारी योजना के तहत चंडीगढ संघ राज्य प्रशासन ने विगत दिनों सुखना झील में पाले गये सैंकडों बतखों को इसलिए मार दिया क्योंकि प्रशासन को भय था कि बतखों के कारण चंडीगढ की आम जनता में बाॅर्ड फ्लू नामक बीमार फैल सकती है। 

उन दिनों प्रशासन और समाचार माध्यमों के द्वारा ऐसा माहौल बनाया गया कि सुखना झील से बाॅर्ड फ्लू नामक राक्षस आएगा और पूरे चंडीगढ को निगल जाएगा। झील पर की सारी दुकानें बंद करा दी गयी। झील पर जाने की बात छोडिए झील की ओर जाने वाले सभी रास्ते बंद कर दिये गये। आम आदमी को झील पर जाना बिल्कुल ही रोक दिया गया। खबर यह चली कि जिन कर्मचारियों ने बतखों को मारा उनमे से एक बाॅर्ड फ्लू से संक्रमित हो गया है। हालांकि बाद में वह बाल-बाल बच गया। अब यह खोज का विषय है कि उस कर्मचारी को बीमारी सही में लगी थी, या फिर महज प्रचार था ? क्योंकि एक पेशे से चिकित्सक ने जब सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगी तो बताया गया कि बतखों में से मात्र एक बतख में एच5-एन1 वाॅयरस के लक्षण मिले थे। यदि मात्र एक बतख में इस प्रकार की बीमारे के लक्षण मिले तो उसके उपचार के लिए और भी प्रभावशाली उपाय किये जा सकते थे। साथ ही जिस प्रकार का बवंडर खडा किया गया, उसे भी उचित नहीं कहा जा सकता है। इसे कुल मिलाकर दुष्प्रचार के सिवा और कुछ भी नहीं कहा जाना चाहिए। यही नहीं इस प्राकर का प्रचार बीमारी के माध्यम से दवा का व्यापार काने वालों के लिए ज्यादा हितकारी साबित होता है। इसे एक प्रकार की हिंसा ही कहनी चाहिए।

इस मामले में चंडीगढ सेक्टर 32 के चिकित्सा महाविद्यालय में माॅइक्रो वाॅयोलाजी के प्राध्यापक डाॅ. जगदीश का कहना है कि जिस बतख में उक्त बीमारी के लक्षण पाए गये थे उसे चुपचाप किसी सुरक्षित स्थान पर रखकर उसके लक्षणें का अध्यन किया जाना चाहिए था और प्रचार के या फिर फालतू के अनगल प्रबंधनों को छोड मामले में संजीदगी दिखायी जानी चाहिए था। इससे न तो लोगों में डर पैदा होता और न ही बडे पैमाने पर बतखों को मारने की जरूरत पडती। लिहाजा उस बतख मार अभियान से स्वाईन फ्लू के प्रचार को बल मिल रहा है। डाॅ. जगदीश का अरोप है कि इस मामले में दवा कंपनियों को समाचार माध्यम के द्वारा फायदा पहुंचाया जा रहा है। मामले में उन्होंने सीधे तौर पर सरकार को तो कठघरे में खडा नहीं किया है परंतु उनका आरोप है कि इस प्रकार के दुष्कृत्य में सरकार से जुडे लोगों का हाथ जरूर होता है।

चिकित्सकों की मानें तो बाॅर्ड फ्लू हो या फिर स्वाईन फ्लू,, दोनों बीमारियां एक प्रकार का इन्फ्लूंजा है। पहले सर्दी, खांसी या फिर बुखार के लिए जो वाॅयरस जिम्मेबार होता था उसी वाॅयरस का थोडा बदला हुआ रूप इस बीमारी के लक्षणों को पैदा करने के लिए जिम्मेबार है। जिस स्वाईन फ्लू के कारण साढे आठ सौ लोगों के मर जाने का दावा किया जा रहा है, उसमें से किसी की भी मृत्यु केवल स्वाईन फ्लू के कारण नहीं हुई होगी। तमाम मृतकों को अन्य प्रकार की बीमारियां भी रही होगी, और मृत्यु का कारण अन्य घातक रोग रहा होगा। उन घातक रोगों के साथ ही साथ स्वाईन फ्लू के लक्षण भी पाए गये होंगे, लेकिन बीमारियों से पैसा कमाने वाली लाॅबी इस बात को बडी चालाकी से छुपा रही है और यही प्रचारित किया जा रहा है कि स्वाईन फ्लू के कारण इतने लोगों की मौत हो गयी। स्वाईन फ्लू के लिए एच1-एन1 वाॅयरस जिम्मेबार है। आयुर्वेद के चिकित्सकों का दावा है कि सामान्य तुलसी जी का काढा पी लेने से यह बीमारी गायब हो जाती है क्योंकि इस वाॅयरस से लडने की क्षमता भारतियों के गुणसूत्र में पहले से है। अब सवाल उठता है कि इस बीमारी को लेकर आखिर इतना घातक प्रचार क्यों किया जा रहा है?

जानकार बताते हैं कि इस बीमारी के प्रचार के पीछे राॅस नामक दवा कंपनी का हाथ है। राॅस, स्वाईन फ्लू में काम आने वाली दवा के विपनण का काम करती है जबकि इसके लिए दवा बनाती है अमेरिकी स्वामित्व की कंपनी गिदीएड। इस बीमारी का जितना प्रचार होगा उतना ही इस दवा की बिक्री होगी और कंपनी मुनाफा कमाएगी। जानकार चिकित्सक यह भी बताते हैं कि इस बीमारी में काम आने वाली दवा बेहद सस्ती होती है लेकिन यह कंपनी कई बुना मुनाफा लेकर दवा बेच रही है। कुल मिलाकर देखें तो स्वाईन फ्लू और बाॅड फ्लू बीमारी जितना घातक है नहीं उससे कई गुना ज्यादा बीमारी का प्रचार किया जा रहा है। प्रेक्षकों की मानें तो उस प्रचार के पीछे दवा लाॅबी की भूमिका है। इसे संजीदगी से समझने की जरूरत है। चूकी मामला लोगों के स्वास्थ्य से संबद्ध है इसलिए स्वाभाविक रूप से यह संवेदनशी मामला है और इस मामले में सरकार को भी बिना किसी दबाव में दवा के खतरनाक लाॅबी पर नकेल कसना चाहिए। यदि ऐसा करने में हमारी सरकार नाकाम रहती है तो इसे लोक कल्याणकारी सरकार कहलाने का कोई अधिकार नहीं है।

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