सत्तारूढ हरियाणा भाजपा के कार्यकर्त्ताओं में बढ रहा है असंतोष

                                                 
 Gautam Chaudhary
"आसन्न स्थानीय निकाय चुनाव पर नकारात्मक असर  की संभावना"
हरियाणा भाजपा का आगामी तीन दिनों तक मैराथन बैठक होने वाली है। गत दिन शाम तक प्रदेश के महामंत्री संगठन सुरेश भट्ट रोहतक से चंडीगढ पहुंच गये थे। विश्वस्थ सूत्रों से मिली खबर में बताया गया है कि आज शाम से जो बैठकों का दौर चलेगा वह आगामी कई दिनों तक चलने वाली है। हालांकि इस बात की जानकारी नहीं मिल पायी है कि भाजपा एवं राष्टकृीय स्वयंसेवक संघ विचार परिवार समन्वय की बैठक हुई है या नहीं, लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि हरियाणा भाजपा की मैराथन बैठक के बाद, कुछ अनु भवी जमात के लिए खुशखबरी संभव है। वैसे हरियाणा की सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का जनाधार खिसकने और दरकने लगा है। इसका अंदाजा विगत दिनों भाजपा के राष्टकृीय अध्यक्ष अमित शाह की करनाल वाली रैली से लगाया जा सकता है। लिहाजा लाख जतन और भगीरथ प्रयास के बाद भी रैली में हरियाणा प्रदेश भाजपा अपेक्षित भीड़ इकट्ठा नहीं कर पायी। इस मामले को भाजपा प्रदेश नेतृत्व भले हल्के में ले रही होगी, लेकिन आने वाले हालिया स्थानीय निकाय चुनाव में इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।

इसमें कही कोई संदेह नहीं है कि स्थानीय निकाय का चुनाव स्थानीय गली-मुहल्लों, गांव-पंचायतों के स्थानीय नुक्कर वाली राजनीति से प्रभावित होता है। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि अमूमन चर्चा में प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर निहायत सज्जन एवं इमानदार हैं, लेकिन हरियाणा भाजपा में कई अंतरविरोध और द्वांद्व ऐसे खडे हो रहे हैं, जिसका प्रभाव न केवल हरियाणा की राजनीति पर पड़ रहा है, अपितु आने वाले 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव पर भी पडने की संभावना है। विश्लेषण बताता है कि सरकार की कार्यप्रणाली से हरियाणा भाजपा का आधार कार्यकर्त्ता बेहद निराश और हताश है। कैथल के राष्टकृीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुडे व्यापक प्रभाव रखने वाले भाजपा नेता ने व्यक्तिगत बात-चीत में हरियाणा सरकार और भाजपा पर गंभीर टिप्पणी कर कहा कि पहले तो भाजपा ने बाहर के लोगों को साथ लेकर पार्टी के मूल चरित्र को खडाब कर दिया और अब बाहर से आए लोगों के कारण भाजपा के वैचारिक कार्यकर्त्ता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा हैं। उन्होंने दो-तीन उदाहरण भी दिये। करनाल शहर में रहने वाले पुराने संघी और पत्रकारिता से जुडे एक स्वयंसेवक का आरोप बडा तीक्ष्ण है कि मुख्यमंत्री के अधिकतर सलाहकार प्रदेश से बाहर के हैं। उन्होंने बताया कि करनाल, अम्बाला, कुरूक्षेत्र, तीन लोकसभा के 27 विधानसभा क्षेत्रों में से 26 विधानसभा क्षेत्रों पर भाजपा को जीत  दिलाने वाले क्षेत्र से मुख्यमंत्री के निकट और सानिध्य प्राप्त करने वाला एक भी कार्यकर्त्ता नजर नहीं आता है। भाजपा का संगठन मंत्री जिसे बनाया गया है वह उत्तराखंड के कुमाउ का है। उन्हें प्रदेश की राजनीति का रत्तीभर ज्ञान नहीं है। यहां तक कि करनाल मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय में पूर्वी उत्तर प्रदेश के व्यक्ति को विशेष कार्याधिकारी नियुक्त किया गया है। ऐसे में भाजपा, संघ के आधार कार्यकर्त्तओं को लगने लगा है कि मुख्यमंत्री जो निहायत आम आदमी हुआ करते थे, एकाएक खास हो गये हैं।
 
दूसरी ओर मुख्यमंत्री के सख्ती का दंडा दिखा हरियाणा के बेहद चालाक नौकरशाह, आम कार्यकर्त्ताओं की निहात जायज काम भी नहीं होने दे रहे हैं। इसका प्रभाव दिखने लगा है। दो-तीन मामलों में तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल की कार्यशैली और इमानदारी पर भी प्रश्न खडा हुआ है। प्रेक्षकों की मानें तो एक निहायत इमानदार अधिकारी का तीन बार स्थानांतरण किया गया, वह भी बिना किसी वजह के। उस मामले में मुख्यमंत्री की कार्यशैली और इमानदारी प्रश्ना के घेरे में आयी। दूसरा मामला अशोक खेमका का है, जिसका विभाग बिना किसी जायज कारण के बदल दिया गया। प्रशासनिक अधिकारी प्रदीप कासनी के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ। उस वक्त भी मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर प्रश्न उठाए गये। भाजपा से जुडे लोग अब यह कहने लगे हैं कि भाजपा जिन लोगों को बाहर से पार्टी में लेकर आई उसमें से अधिकतर नेता चुनाव हार गये। अब वही लोग विभिन्न मोर्चों पर मलाइदार स्थान प्राप्त कर रहे हैं, या फिर दूसरे प्रदेशों के भाजपा-संघ से जुडे लोग, जिन्हें प्रदेश की राजनीति और आम जन की जानकारी तक नहीं है, मुख्यमंत्री की आंख और कान बने हुए हैं। इन दिनों भाजपा कार्यकत्ताओं के बीच यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर वह कौन सा कारण है जो रॉबर्ट बॉड्र-डीएलएफ डील की जांच को सरकार केन्द्रीय जांच ब्यूरो के हवाले नहीं करना चाह रही है।
 
राजनीति के माहिर प्रेक्षकों का कहना है कि इस तमाम अंतरविरोधों का खामियाजा भाजपा को निचले स्तर पर होने वाले स्थानीय निकाय के चुनाव में भुगतना पडेगा। ऐसे भी हरियाणा में भाजपा का संगठनिक ढांचा बेहद कमजोर है। कायदे से होना यह चाहिए था कि सरकार बनने के बाद भाजपा अपने ढाचे को मजबूत करती और निचले स्तर पर खुद के द्वारा प्रशिक्षित कार्यकर्त्ताओं को महत्व देकर भाूमिका सूनिश्चित करती, लेकिन हो उलटा रहा है। सिरसा के एक संघी पत्रकार की जुवान से कहें तो मुख्यमंत्री कार्यालय में बडे और राष्टकृीय स्तर के नेताओं के पैरवी-पुत्र हावी हैं और स्थानीय लोग आज भी झोला ढो रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने एक ऐसे चिकित्सक से नेता बने व्यक्ति को प्रदेश का प्रभारी नियुक्त कर रखा है, जिसकी कार्यशैली पर निहायत गंभीर आरोप लगते रहे हैं। उत्तराखंड में तो उन दिनों यह बात हर के जुवान पर थी कि डॉ. अनिल जैन के कारण ही भाजपा के उत्तराखंडी नेतृत्व में व्यापक अंतरविरोध है। संभावतः उनके नेतृत्व के उपर उठे सवालों के कारण ही डॉ. जैन को भाजपा, खुड्डे लाईन लगाये हुई थी, लेकिन हरियाणा चुनाव के दौरान जैन फिर से सक्रिय हो गये और आज उन्ही की छत्र-छाया में हरियाणा भाजपा का सांगठनिक ताना-बाना बूना जा रहा है। यह बातें कुछ ऐसी है जो हरियाणा भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रही है। हताशा और निराशा के बीच हरियाणा भाजपा अपने निहायत निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं को कैसे सम्हालेगी वह मुख्यमंत्री के नेतृत्व कौशल पर निर्भर करता है। ऐसे मुख्यमंत्री का पुराना इतिहास कुछ चमत्कारी नहीं रहा है। खट्टर को जानने वाले बताते हैं कि विवाद और नेतृत्व की अकुशलता के कारण ही उन्हें कुछ दिनों के लिए पार्टी की मुख्यधारा से अलग भी कर दिया गया था। 

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