महामंदी से निवटने के लिए वैकल्पिक रास्ते की तलाश जरूरी

Gautam Chaudhary
आम लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है रघुराम राजन की चेतावनी 
भारतीय रिजर्व बैंक के गवरनर रघुराम राजन की आशंका और चिंता को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। राजन दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री हैं और उनके बारे में जानकार बताते हैं कि राजन दुनिया के अर्थ प्रणाली पर अच्छी पकड रखते हैं, इसलिए यदि उन्होंने आशंका जाहिर की है कि दुनिया एक बार फिर से महामंदी की ओर बढ रहा है, तो इसे हमारी सराकर को ही नहीं आम जन को भी गंभीरता से लेना चाहिए। हालांकि मैं अर्थशास्त्र का न तो छात्र रहा हूं और न ही कभी अर्थशास्त्र का गंभीरता से अध्यन किया है, लेकिन मोटे तौर पर मंदी के दंश को समझता हूं। बाजार की मंदी का मतलब, आम तौर पर अमूमन आम लोगों की क्रय शक्ति की कमजोरी से लगाया जाता है। बाजर में उत्पाद तो होता है लेकिन उसके खरीददार नहीं होते। ऐसी परिस्थिति में बाजार कमजोर पड जाता है और कंपनियां घाटे में चली जाती है। बैंकों के दिवाले निकल जाते हैं क्योंकि कंपनियों के द्वारा लिया गया कर्ज बैंक को प्राप्त नहीं हो पाता। कंपनियां दिवालिया हो जाती है। देखते ही देखते मूल्य का ह्रास होने लगता है और इसका प्रभाव रोजगार पर पडता है। रोजगार की गति मंद पडती है। मंदी के दूसरे चरण में उत्पादन में कमी आने लगती है और बाजार रूक सा जाता है।

राजन की टिप्पणी पर सरकार और काॅरपोरेट को ही केवल संज्ञान लेने की जरूरत नहीं है, इसके लिए आम लोगों को भी सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि ऐसे में न तो कंपनियों को घाटा होता है और न ही सरकार को घाटा होता है। मंदी के दौरान हर तरफ से आम लोग और छोटे निवेशकों को इसका खामियाजा भुगतना पडता है। हालांकि अभी भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है। दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में विकास की गति ज्यादा व्यवस्थित है। हमारे यहां आधारभूत संरचना का विकास हो रहा है। आधारभूत संरचना के विकास में श्रम के उपयोग के कारण हमारे यहां रोजगार का स्तर भी लगभग ठीक स्थिति में है। फिर औद्योगिक उत्पाद की खपत सरकार द्वारा आधारभूत संरचना के निर्माण में होने से उद्योग जगत भी फायदे में है। कुल मिलाकर देखें तो उद्योग जगत और सेवा जगत की कम गति से ही सही पर विकास हो रहा है, लेकिन दुनिया के बाजार महामंदी का शिकार होता है तो उसका दुष्प्रभव भारत पर भी पडता तय है। इसलिए हमारी सरकार को अभी से उस खतरे को समझकर अपनी रणनीति बनानी होगी।

यदि दुनिया में महामंदी आयी तो हमारे पेशेवर जो दुनिया के विभिन्न देशों में रोजगार कर रहे हैं उन्हें रोजगार का संकट खडा हो सकता है। दूसरा खतरा हमारे वायदा बाजार और प्रतिभूति बाजार पर है। हमारे यहां इन दोनों बाजारों में दुनिया के लोगों की पूंजी लगी हुई है। मंदी होती है तो वह अपनी पूंजी वापस ले सकते हैं। ऐसे में हमारा प्रतिभूति बाजार और वायदा बाजार लडखडा जाएगा, जिसका नकारात्मक प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर पडना तय है। अमूमन मंदी के दौरान न तो सरकार के संगठित श्रमिकों को कोई खास प्रकार की हानि होती है और न ही इसके कारण काॅरपोरेट जगत को कोई खास घाटा होता है। सबसे ज्यादा मंदी का दंश आम आम आदमी और छोटे निवेशकों को झेलना पडता है। मंदी के कारण जहां एक ओर बैंक दिवालिया होने लगता है, वहीं उद्योग जगत अपने कर्मचारियों की छटनी करना प्रारंभ कर देता है। बैंक में आम आदमी और छोटे निवेशकों का पैसा जमा होता है जिसे पब्लिक मनी के नाम से जाना जाता है, लेकिन उसका उपयोग सरकार आधारभूत संरचना खडी करने एवं काॅरपोरेट उद्योजक उसी पैसे को बैंक से प्रप्त कर अपनी कमाई में लगाते हैं। मंदी के कारण काॅरपोरेट उद्योगजक दिवालिया हाने लगते हैं और आम आदमी का पैसा जिसे पब्लिक मनी के नाम से जानते हैं वह रूक जाता है। दूसरी ओर मंदी के नाम पर कंपनियां अपने कर्मचारियों की छटनी कर देता है। उन कर्मचारियों में भी बडा हिस्सा आम आदमी के परिवार के नौजवान और नवयुवतियों का होता है। विगत कुछ दिनों पहले रिजर्व बैंक के प्रधान ने एक और बयान दिया था जो भारत की अर्थ व्यवस्था के लिए अहम बयान है। बैंकों से जो ऋण आवंटित किया जाता है, वह ऋण यदि अपभोक्ता चुकता नहीं करे तो उसे बैंक गौर निष्पादित परिसंपत्ति घोषित कर देता है। भारतीय बैंकों का कुल गैर निष्पादित परिसंपत्ति वर्तमान में चार लाख करोड के कारीब है। राजन का कहना है कि यह गैर निष्पादित परिसंपत्ति आने वाले समय में बेतरह बढने वाला है। गौर करके देखें तो रघुराम राजन की पहली टिप्पणी गैर निष्पादित परिसंपत्ति की वृद्धि पर आयी थी और फिर महामंदी का बयान उन्होंने जारी किया। राजन का मतलब साफ है कि भारतीय उद्योजक बैंक से लिए ऋण को अपनी संपत्ति समझने लगते हैं और भारतीय कानून में कमी का फायदा उठा वे आर्थिक अपराध कर भी बचते रहते हैं। इसके हजारों मामले आर्थिक न्याधिकरण, न्यायालयों में लंबित हैं। हमारी सरकार उस पैसे को वसूलने के बजाय कंपनियों को नये नये ऋण देने के लिए और कई प्रकार की छूट को देकर उसे निवेश के लिए आमंत्रित कर रही है। यह संकेत अच्छे नहीं है। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी नमारात्मक प्रभाव पडना तय है। दूसरी ओर हमारी नयी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार दो ऐसे संवैधानिक संशोधन पर जिद्द बांध रखी है, जो मंदी के दुष्प्रभाव को और बढाने वाला है। पहला भूमि अधिग्रहण विधेयक में आमूल चूल परिवर्तन और दूसरा कंपनी एवं श्रम कानून में व्यापक संशोधन। मोदी सरकार के ये दोनों कदम काॅरपोरेट को ध्यान में रखकर उठाया जा रहा है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होगा। रघुराम राजन सरकारी व्यवस्था के अंग हैं इसलिए स्पष्ट कहने में संकोच कर रहे होंगे, लेकिन उन्होंने इशारे इशारे में सरकार को चेतावनी दी है कि यदि सरकार आसन्न आर्थिक खतरों पर संजीदगी से विचार नहीं की और मामला इसी प्रकार लचर रहा तो दुनिया में आने वाली महामंदी के बाढ से भारतीय अर्थव्यवस्था की बडी-बडी मीनारें और परकोटे धाराशाई हो जाएगंगे। राजन केवल सरकार को ही चेतावनी नहीं दे रहे हैं, उन्होंने आम जन एवं छोटे निवेशकों तथा सामान्य पेशेवरों को भी समझाने की कोशिश की है। उनका कहना साफ है कि दुनिया की महामंदी से यदि निवटना है तो आम जन को भी अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए। साथ ही रोजगार और निवेश के वैकल्पिक साधनों का इंतजाक अभी से कर लेना चाहिए क्योंकि महामंदी में न तो सरकार पर भरोसा किया जा सकता है और न ही सराकर के हमसफर काॅरपोरेट पर।

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