पूवोत्तर के आतंकी पदचांप को हल्के में न ले भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान

गौतम चौधरी
अभी हाल के दिनों में ही मणिपुर के सुदूर पहाडी क्षेत्र में आतंकियों द्वारा घात लगाकर किये गये हमले में भारतीय थल सेना के 18 जवानों की मृत्यु हो गयी। इस घटना में 11 जवानों के घायल हाने की भी खबर है। आतंकियों ने इससे पहले अप्रैल में अरूणाचल प्रदेश के खांसा नामक स्थान पर भारतीय सेना को निशाना बनाया था। उस हमले में भी सेना के चार जवाने मारे गये थे। यही नहीं आतंकियों ने एक बार फिर से असम राइफल के मुख्य शिविर पर हमला किया है। ये तीनों हमले केन्द्र में आई लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार के शासन में किये गये हमले हैं। पूर्वोत्तर में एक के बाद एक हमले के पीछे किसका हाथ है और हमलों में संलिप्त चरमपंथियों की मनोंवृति क्या है, इसपर व्यापक पडताल की जरूरत है। पूर्वोत्तर के परिपेक्ष में देखा जाये तो अभी हाल के महीनों में सेना के खिलाफ आतंकियों का यह दूसरी बडा हमला था। ऐसे तो इस घटना के बाद प्रतिपक्षी कांग्रेस के साथ ही साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और देश के केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह तक ने बयान जारी किये हैं, लेकिन सबसे गंभीर प्रतिक्रिया केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री किरण रिजिजू की आयी है। रिजिजू की प्रतिक्रया कतिपय तथ्यों को उद्घाटित करती दिख रही है। हालिया आतंकी घटना पर अपनी प्रक्रिया में उन्होंने नागा चरमपंथी संगठन, नेशनल सोसलिस्ट काॅसिल आॅफ नागालैंड-खापलांग पर सीधा हमला बोला है। अपनी प्रतिक्रिया में रिजिजू ने एनएससीएन-खापलांग को भारत की एकता और अखंडता के लिए भीषण खतरा बताया है।

रिजिजू की प्रक्रिया में एक खास प्रकार का दर्द और आसन्न खतरे की पदचांप सुनाई दे रही है। पूर्वोत्तर से जो खबर छनकर सामने आ रही है वह दिल्ली के केन्द्रीय सत्ता पर बैठे लोगों के लिए शुभ नहीं है। संकेत बडे डरावने हैं और चिंता बडी है। हालांकि इस घटना को देश के राजनेता और नौकरशाह यह कहकर भुला दे सकते हैं कि 125 करोड के देश में इस प्रकार की छोटी-माटी घटनाएं घटती रहती है, लेकिन इस घटना को छोटी नहीं कही जा सकती। इस घटना में कई हेतु छुपे हुए हैं। इस घटना के कई आयाम हो सकते हैं। इसे कई दृष्टकोणों से देखा जा सकता है और कई खांचों में फिट किया जा सकता है। किरण रिजिजू ने साफ तौर पर कहा है कि म्यामा नागाओं के नेतृत्व वाले एनएससीएन-खापलांग ही इस हमले के लिए जिम्मबार है। जानकारी में रहे कि विगत दिनों मार्च में एनएससीएन खापलांग ने भारत सरकार के साथ किये अपने युद्धविराम संघी को एकतरफा समाप्त कर लिया। उसके नेता ने घोषणा कर दी है कि वह भारत की केन्द्रीय सत्ता के खिलाफ हथियार के द्वारा ही नागालिम हासिल करेगा। इस एकतरफा युद्धविराम समाप्ति की घोषणा के बाद से मणिपुर में किया गया यह दूसरा बडा हमला है। पूर्वोत्तर में सक्रिय समाचार माध्यमों से मिली खबरों पर भरोसा करें तो एनएससीएन-खापलांग सहित 40 आतंकी संगठनों ने एक महागठबंधन बनाया है। इस गठबंधन को एनएससीएन खापलांग के नेता नेतृत्व और प्रशिक्षण दोनों दे रहे हैं। इन सभी आतंकवादियों के पास प्रशिक्षित गुरिल्ले हैं और व्यापक मात्रा में हथियार भी हैं। एक अनुमान में बताया गया है कि इन आतंकवादियों के पास कम से कम 12 हजार लडाकाओं की प्रशिक्षित सैन्य शक्ति है। यहां यह भी बताना सही होगा कि एनएससीएन-खापलांग ने गत दो तीन साल पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयार्क शहर में अपना एक कार्यालय भी खोला था। वह कार्यालय किस स्थिति में है यह तो खोज का विषय है लेकिन निःसंदेह अमेरिकी ईसाई समूह पूर्वोत्तर में आकार ले रहे नवीन ईसाई राष्ट्र निर्माण के प्रति संवेदनशील हैं। इसका एक छोटा सा उदाहरण विगत दिनों देखने को मिला।

जब भारतीय सुरक्षा और गुप्तचर संस्थाओं ने आतंकी घटना की जांच की तो पता चला कि आतंकियों ने जिन हथियारों से भारतीय सेना के जवारों को निशाना बनाया वह हथियार संयुक्त राज्य अमेरिका का बना हुआ है। संभव है कि अमेरिका का सत्ता प्रतिष्ठान इन आतंकवादियों को समर्थन नहीं दे रहा होगा, लेकिन इससे यह साबित होता है कि अमेरिका में कुछ समूह हैं जो भारत के सुदूर पूर्वी भाग में एक नये ईसाई राष्ट्र निर्माण की भूमिका लिख रहे हैं।  सुरक्षा बलों के जांच पर एक बात और सामने आयी है कि हमले की रणनीति थोडा-थोडा माओवादियों के हमले से मिलता-जुलता सा है। हालांकि इस छोटी सी बात से यह कह देना कि पूर्वोत्तर के आतंकी समूहों का एक व्यापक गठजोड शेष भारत में सक्रिय माओवादी चरमपंथियों के साथ है, जल्दबाजी होगी, लेकिन जानकारों की मानें तो पूर्वोत्तर के अधिकतर आतंकवादियों की पृष्ठभूमि चरमवामपंथियों की रही ही है। इधर एक खबर यह भी आ रही है कि माओवादियों के सर्वोच्च नेता कां. मोपला लक्षमण राव उर्फ गणपति इन दिनों पूर्वोत्तर में ही डेरा डाले हुए हैं। एक जानकारी के अनुसार जब से भारत सरकार ने माओवादियों के खिलाफ आॅप्रेशन ग्रीनहंट प्रारंभ किया है, तब से माओवादी बेहद दबाव में हैं। माओवादी आप्रेशन के जानकार बताते हैं कि आप्रेशन ग्रीनहंट के कारण प्रथम पंक्ति के अधिकतर माओवाद नेता मारे जा चुके हैं, या फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। हालांकि विगत दिनों माओवादियों ने अपने पीपल्स रिब्रेशन आर्मी की घोषणा की लेकिन उनके पास लडाकों की कमी हो रही है। फिर उनके लडाके बडी संख्या में मारे भी जा रहे हैं। ऐसे में माओवादी प्रधान गणपति पूर्वोत्तर के आतंकियों के साथ मिलकर भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ एक बडी जंग की योजना बना रहे हैं। यदि माओवादियों का पूर्वोत्तर के आतंकियो के साथ संबंध विकसित हो रहा है तो, पूर्वोत्तर के आतंकियों का आपसी गठजोड माओवादियों के व्यापक योजना का प्रथम चरण माना जाना चाहिए। क्योंकि माओवादी अब अपने योजना के चैथे चरण में प्रवेश कर रहे हैं। यदि गांडापल्ली सीतारमइया द्वारा लिखी किताब पर गौर करें तो माओवादियों की योजना में भारतीय संघ के खिलाफ लड रहे आतंकवादियों को गोलबंद करना उनकी योजना में शामिल है। जानकार बताते हैं कि माओवादियों ने अपना एक समानांतर आर्थिक ढंचा भी खडा कर लिया है। उनके ढाचे में कुछ बडे व्यापारी शामिल हैं। जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ और झारखंड-बिहार में माओवादी व्यापारी सडक और भवन निर्माण करोबार का ठेका बडे पैमाने पर प्रप्त कर रहे हैं। विगत दिनों उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी अपनी समानांतर व्यवस्था खडे करने के संकेत दिये हैं।

माओवादी भारतीय सुरक्षा अभिकरणों को पूर्वोत्तर में उलझाना चाहते हैं। पूर्वोत्तर में 40 आतंकवादियों का जो समूह इकट्ठा हुआ है, उसमें माओवादी नेताओं की व्यापक भूमिका संभव है। यदि ऐसा है तो यह भारतीय लोकतंत्र और सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक है। इससे भारतीय सुरक्षा अभिकरण को दो मोर्चों पर लडना होगा। सेना को माओवादी बराबर का टक्कर देने की योजना में हैं। इन सामोहिक संगठित आतंकी मोर्चा के पास ताकत, पैसा और प्रशिक्षित गुरिल्ले बडी संख्या में होंगे। दूसरी ओर भारतीय सेना और सुरक्षा अभिकरणों में हताशा और निराशा का माहौल बन रहा है। इस परिस्थिति की चर्चा भी गांडापल्ली सीतारमइया ने अपनी किताब में की है। इसका सबसे बडा कारण भ्रष्टाचार और भारत सरकार की वह नीति है जिसमें सरकार ने लोक कल्याणकारी योजनाओं के प्रति उदासीनता दिखाई है। हाल के दिनों में मोदी सरकार की रणनीति को देखकर ऐसा लगता है कि उनकी सरकार सत्ता को और व्यावसायिक बनाने के पक्ष में है। यदि ऐसा हुआ और सत्ता व्यवस्था में भ्रष्टाचार कायम रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में एक व्यापक अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। उसे सम्हालने के लिए हमारे पास कोई ताकत नहीं रह जाएगी। इसका फायदा माओवादी उठाने की योजना में हैं। पूर्वोत्तर के आतंकी आक्रमणों की पदचांप को समझने की जरूरत है। यदि उस पदचांप को समझने में देर की गयी तो भारतीय राष्ट्रवाद के लिए बेहद खतरनाक होगा।

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