बाढ़ की स्थाई समस्या समाधान के लिए गंगा की अविरलता जरूरी

Gautam Chaudhary
बिहार के मुख्यामंत्री नीतीष कुमार ने समाजवादियों की बेहद पुरानी मांग दुहराकर नए बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने केन्द्र सरकार से मांग की है कि फरक्का में गंगा नदी पर बताए गए डैम को तोड़ दिया जाए। इसके दुष्प्रभाव के बारे में भी उन्होंने बताया है और कहा है कि इसके कारण गंगा और उसकी सहायक नदियों की तलहटी में बालू जमा हो गया है, जो बिहार में बाढ़ के लिए जिम्मेबार है। गोया समाजवादी चिंतक अनिल प्रकाष इस मुद्दे को बेहद गंभीरता के साथ उठाते रहे हैं।
नीतीष जी गंगा की अविरलता पर भी अपनी टिप्पणी दे चुके हैं। नीतीष कुमार का मानना है कि गंगा की अविरलता गंगा बेसीन में निवास करने वाले करोड़ों लोगों के हित में है। उनका यह भी मानना है कि गंगा के पानी पर सबसे पहला अधिकार गंगा के किनारे बसने वालों का है। यदि गंगा का पानी गंगापुत्रों को नहीं दे कर दिल्ली के लोगों को दिया जाता है तो यह गंगा के नजदीक बसने वालों के अधिकार का हनन है। सतही तौर पर देखा जाए तो देष के अधिकतर क्षेत्र में पानी का आभाव रहता है लेकिन बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेष, पष्चिम बंगाल, असम और मेधालय आदि राज्यों में पानी की अधिकता ही समस्या बन गयी है जो बाढ़ के लिए जिम्मेबार है। फौरी तौर पर यह समस्या केवल इन्ही प्रांतों के साथ नहीं है। समय-समय पर अन्य प्रांत भी बाढ़ से प्रभावित होते रहे हैं। एक शोध के हवाले से छपे द हिन्दू के संपादकीय के अनुसार वर्ष 1978 से लेकर 2006 तक देष भर में 2,443 बार बाढ़ आ चुकी है। इन बाढ़ों में 45 हजार के करीब लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 16 सौ करोड़ डालर की आर्थिक हानि हो चुकी है। यदि सरकार सकारात्मक तरीके से सोचती और अपनी बेहतर भूमिका में होती तो इस क्षति को कम किया जा सकता था लेकिन इस दिषा में कभी भी गंभीरता के साथ नहीं सोचा गया।
मैं बाढ़ पीड़ित क्षेत्र का रहने वाला हूं और बाढ़ के कारण लोगों को कितनी परेषानी झेलनी पड़ती है, मैंने खुद महसूस किया है। बाढ़ क्षेत्र में रहते-रहते मैंने अनुभव किया कि बाढ़ आने का मुख्य कारण आधुनिक विज्ञान की बेतरतीव योजना और नदी जल के प्रबंधन का घोर अभाव है। मैं समझता हूं कि देष में सबसे ज्यादा बाढ़ का प्रकोप बिहार के लोगों को झेलना पड़ता है। उसमें भी बागमती और कोषी नदी घाटी के लोगों को सबसे ज्यादा बाढ़ की विभीषिका से दो-चार होने पड़ते हैं। कोषी और बागमती में बाढ़ तब से आना प्रारंभ हुआ है जब से फरक्का में गांगा को बांध कर डैम बना दिया गया। हालांकि पहले नारायणी, सरयू और सोन में भी बाढ़ आती थी लेकिन जब से इन दोनों नदियों के जल का प्रबंधन व्यवस्थित कर दिया गया तब से इस क्षेत्र के लोग व्यवस्थित हो गए हैं। लेकिन कोषी और बागमती घाटी के लोग आज भी बाढ़ के कारण परेषान हो रहे हैं। सच पूछिए तो इस परेषानी के लिए पूरी तरह केन्द्र सरकार जिम्मेबार है। पहला तो केन्द्र सरकार ने गंगा को बांध दिया और अविरल धार में बहने वाला बालू नदि घाटियों में बने बड़े-बड़े चैर, यानि तालाब को भर गए। उस तालाब में बालू होने कारण कोई खेती नहीं होती है और पानी जो वहां भरता था वह भी जमना बंद हो गया। वह पानी अब लोगों को परेषान करता है और खरीफ की फसल बरबाद हो जाती है। दूसरा, नदी घाटियों में बालू भर जाने के कारण नदी की धारा अवरूद्ध हो जाती है। यह भी बाढ़ का एक बड़ा कारण है। तीसरा, भारत सरकार ने अभी तक नेपाल सरकार के साथ जल प्रबंधन पर कोई मुकम्मल समझौता नहीं किया है। इसके कारण नेपाल पानी के मामले में मनमानी करता है। जब चाहे वह बिना किसी सूचना के पानी छोड़ देता है और नेपाल के तराई एवं भारत के बागमती, कोषी बेसीन में बाढ़ आ जाती है।
नीतीष कुमार को केवल फरक्का बैराज तोड़ने का ही मुद्दा नहीं उठाना चाहिए अपितु उन्हें गंगा की अविरलता के लिए गंगा पर बने सभी बैराज को तोड़ने की बात करनी चाहिए। साथ ही साथ उन्हें यह भी मांग करनी चाहिए कि गांगा के पानी पर सबसे पहले गंगापुत्रों का हक होना चाहिए। इसके बाद पानी बचे, तो उसे अन्य राज्यों को दिया जाए। गंगा का जो पवित्र जल है उसमें से मात्र आठ प्रतिषत ही बिहार को मिल पाता है। ज्यादातर पानी पष्चिमी उत्तर प्रदेष और दिल्ली को चला जाता है। हालांकि पष्चिमी उत्तर प्रदेष का भी गंगा पर अधिकार है लेकिन प्रतिषत के आधार पर देखा जाए तो पष्चिमी उत्तर प्रदेष अपने हिस्से से अधिक गंगा के पानी का उपयोग कर लेता है। वहीं दूसरी ओर दिल्ली के लोगों को तो गंगा के पानी पर कोई अधिकार ही नहीं है, फिर भी सरकार दिल्ली को गंगा का पानी उपलब्ध करा रही है। दूसरी ओर जब गंगा में पानी ज्यादा हो जाता है तो उसको संभालने के लिए केन्द्र सरकार के पास कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसी परिस्थिति में वह पानी बिहार में छोड़ दिया जाता है और बिहार के लोग उस पानी में डूब कर मरने के लिए अभिषप्त होते हैं।
इसलिए यदि नीतीष कुमार इस मामले को उठा रहे हैं तो यह जायज है और इसे गंभीरता के साथ उठाना चाहिए। क्योंकि बाढ़ के कारण बिहार की अर्थव्यवस्था ही नहीं नस्ल तक प्रभावित हो रही है। और यह बाढ़ प्राकृतिक आपदा कम भारत संघ के द्वारा प्रायोजित आपदा अधिक दिख रहा है। इसे समय रहते सुलझाने की जरूरत है अन्यथा आने वाले समय में यह और अधिक विसंगति पैदा करने वाला साबित होगा। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से देष की 40 करोड़ जनसंख्या बाढ़ के कारण प्रभावित होती है। किसी भी कीमत पर इसे सुलझाना ही होगा अन्यथा आने वाले समय में पानी पर घमासान छिड़ने वाला है। इधर नीतीष जी को भी चाहिए कि वे बिना किसी राजनीति और पूवाग्रह से इस मामले को उठाएं और केन्द्र पर दबाव डालकर गंगा की अविरलता को सूनिष्चित करवाएं। साथ ही नेपाल के साथ जल समझौता को सिरे चढ़वाएं। यह दोनों जिस दिन होगा उसी दिन इस देष का कल्याण हो जाएगा बिहार जैसे बाढ़ प्रभावित राज्यों को सही में आजादी मिल पाएगी।     

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