कोरोना से उबरने के बाद बदल जाएगा दुनिया का आर्थिक भूगोल


गौतम चौधरी@
कोरोना संक्रमण से उत्पन्न वैश्विक आपदा को लेकर कई प्रकार की भविष्यवाणियां की जा रही है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना प्राकृतिक नहीं यह दुनिया के दो महाशक्तियों के बीच की लड़ाई का नतीजा है। कुछ जानकारों का तो यहां तक कहना है कि आने वाले समय में युद्ध का पारंपरिक तरीका बदल जाएगा और इसी प्रकार एक-दूसरे अपने विरोधियों को परास्त करने के लिए क्षद्म और कूट तरीकों का इस्तेमान करेंगे। इस वायरस के विश्वव्यापी प्रभाव और महाविनाशक क्षमता को लेकर चीन ने अमेरिका और अमेरिका ने चीन पर आरोप लगाए हैं लेकिन इन दोनों देशों के आरोपों से यह तो साबित हो गया है कि इस वायरस को हथियार के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। जो भी हो लेकिन इस जैविक आपदा के बाद दुनिया पूरी तरह बदल-बदली-सी दिखेगी। इसका आभास अभी-से होता दिख रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान दौर का सबसे ताकतवर देश संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) है। उसके पास दुनिया की अर्थव्यवस्था की कुंजी है। उसके पास दुनिया को मिंटों में तबाह करने वाले अत्याधुनिक हथियार हैं। उसके पास अपार खनिज संपदा है। उसके अन्न के भंडार भरे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और ज्ञान-विज्ञान में वह दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सबसे आगे है। सबसे बड़ी बात यह है कि वर्तमान दुनिया को चलाने वाले फ्यूल यानी प्राकृतिक तेल और गैस का सबसे बड़ा भंडार अमेरिका के पास है। इसके अलावा अमेरिका के डालर में ही वर्तमान दुनिया के अधिकतर देश व्यापार करते हैं। यानी पहले अपने करेंसी को डालर में बदलते हैं और फिर दूसरे देशों के साथ व्यापार करते हैं। अमेरिका की ताकत इन बातों से आंकी जा सकता है। वह शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से दुनिया का बेताज बादशाह बना हुआ है। इसकी ताकत को जिसने भी चुनौती दी, उसके खिलाफ अमेरिका ने सैन्य से लेकर आर्थिक युद्ध छेड़ा और कई युद्धों में उसने सफलता भी प्राप्त की है।

सोवियत रूस को ध्वस्त कर देने के बाद अमेरिका ने मानों दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लिया हो लेकिन अब उसे चीन से चुनौती मिलने लगी है। अमेरिकी रणनीतिकारों को यह लगने लगा है कि चीन उसे टक्कर दे सकता है। पीपल्स रिपब्लिक आॅफ चाइना इस तरह का व्यवहार भी करता दिख रहा है। हालांकि चीन में आज जो भी विकास दिख रहा है उसमें अमेरिका की बड़ी भूमिका है लेकिन अब चीन, अमेरिका की आंखों में खटकने लगा है। कोरोना वायरस से चीन उबरता हुआ दिख रहा है, जबकि अमेरिका बुरी तरह प्रभावित होता जा रहा है। पहले लगा था कि चीन की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी लेकिन चीन ने अपने आप को संभाल लिया है। यही नहीं इस वायरस का प्रभाव सोवियत युग वाले साम्यवादी ब्लॉक पर भी बहुत ज्यादा असर नहीं डाल पाया है। चीन के दोस्त इटली और ईरान में इस वायरस का प्रभाव व्यापक परा है लेकिन चीनी सहायता वहां भी पहुंचने लगी है। इसके साथ ही साथ क्यूबा ने भी अपने डॉक्टरों के दल को इन दानों देशों में भेजा है। इससे यह साबित हो रहा है कि कोरोना वायरस के पीछे का रहस्य जो बताया जा रहा है वह नहीं है, कुछ और है।

दूसरी ओर चीन ने वन बेल्ट वन रोड को लेकर दुनिया के देशों को गोलबंद करना प्रारंभ किया है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट-वन रोड (ओबीओर) तहत रेल, सड़क और समुद्री मार्ग से एशिया, यूरोप, अफ्रीका के 70 देश जुड़ेंगे। ओबीओर पर चीन 900 अरब डॉलर (करीब 64 लाख करोड़ रुपए) का खर्च कर रहा है। यह रकम दुनिया की कुल जीडीपी की एक तिहाई है। इसके बाद चीन ने शंघाई सहयोग संगठन नामक एक आर्थिक मोर्चा भी बनाया है। यह मोर्चा अमेरिका के ठीक नाटो की तरह विकसित हो रहा है। इसमें अब भारत और रूस दोनों शामिल हो गए हैं। चीन ने रूस के राष्टÑपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मिल कर ब्रिक्स यानी (भारत, ब्राजिल, रूस, चीन एवं दक्षिण अफ्रिका) नामक वैश्विक आर्थिक मंच बनाया है। इन देशों के राष्टÑाध्यक्षों की अभी हाल ही में हुई बैठक में यह तय हो गया है कि इन देशों के बीच जो भी व्यापार होगा वह आपस करेंसी में ही होगा। अमेरिका इसे भी चुनौती के रूप में देख रहा है।

जिस प्रकार चीन कोरोना आपदा से निवटने के लिए विश्व के देशों को आगे बढ़ कर सहयोग कर रहा है, उससे लगता है कि कोरोना आपदा से उबरने के बाद विश्व पर चीन का प्रभाव बढ़ेगा। आर्थिक बदहाली से जूझ रहे विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्टÑ संघ जैसी संस्था को चीन और रूस मिल कर अपने प्रभाव में ले सकता है क्योंकि अमेरिका ने हाल के दिनों में इन दोनों संगठनों की जबरदस्त तरीके से अवहेलना की है। इसलिए ये दोनों संगठन चीन को सहयोग कर सकते हैं। दुनिया के लगभग 17 प्रतिशत व्यापार पर चीन ने अपना कब्जा जमा लिया है। कोरोना के कारण अमेरिका कमजोर होगा और अमेरिका के अंदर अपने नेतृत्व के प्रति अविश्वास का भाव पैदा होगा। जिसके लक्षण साफ दिख रहे हैं। इसके कारण अमेरिका के वैश्विक मिशन पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसका फायदा चीन उठाएगा और चीन अपने तरीके से दुनिया को डिजाइन करने की कोशिश करेगा। इसमें अमेरिकी राष्टÑवाद से परेशान यूरोपीय संघ के देश भी चीनी लॉबी के साथ खड़े हो जाएंगे। इसलिए आने वाला समय वैश्विक शक्ति के ध्रुव परिवर्तन का है, जिसकी शुरुआत कोरोना आपदा से होने की संभावना साफ दिखाई दे रही है। 

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