झारखंड : खूंटी के 70 गावों में दुहरा रहे आरा-केरम के प्रयोग



गौतम चौधरी 

झारखंड का ग्रामीण परिवेस बड़ी तेजी से बदल रहा है। हालांकि अभी भी बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं लेकिन इन चुनौतियों पर विकास अब भारी पड़ने लगा है। जिन क्षेत्रों में कल तक माओवादियों के बूट, बंदूक व बम-गोलों की चर्चा हाती थी, वहां अब ग्रामीण चैपालों पर ग्राम सभा बैठती है और ग्रामीण विकास की बातें हो रही है। विगत दिनों ऐसे ही झारखंड के कुछ गांवों को देखने का मौका मिला। मैं तोरपा के अलंकेल गांव को देखने गया था। वहां मुझे हेमवंती देवी से मुलाकात हुई। हेमवंती, ग्रामीण विकास विभाग की ओर से संचालित दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के तहत आशा दीदी के रूप में यहां प्रतिनियुक्त हैं। हेमवंती ने जो अपना अनुभव बताया वह किसी आश्चर्य से कम नहीं है। हेमवंती ने बताया, जब वह अलंकेल गांव आयी थी तो ग्रामीण महुआ से दारू बनाने में व्यस्त रहते थे लेकिन धीरे-धीरे दो-तीन महीनों में चित्र बदलने लगा। ग्रामीणों ने हेमवंती दीदी को अपना गुरू माल लिया। ग्राम सभाओं की नियमित बैठकें होने लगी। गांव में साफ-सफाई का माहौल बना। महिलाएं इस काम में बढ़-चढ कर हिस्सा लेने लगी। अब सवाल यह उठता है कि यह ग्रामीण विकास और परिवर्तन का आन्दोलन क्या एक-दो महीने में प्रारंभ हो गया? ऐसा नहीं है। इसके पीछे की कहानी कुछ और है। तो आइए हम इस पूरी योजना के रणनीतिकार और उसकी रणनीति को समझते हैं। 


पिछले साल यानी 2019 के अक्टूबर में झरखंड सरकार के मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी के बारे में जानकारी मिली थी। उन्हीं दिनों यह भी जानकारी मिली कि रांची के पास ओरमाझी प्रखंड मुख्यालय से थोड़ी दूरी पर आरा-केरम नामक गांव में ग्रामीण विकास का एक प्रयोग चल रहा है। उसे देखने और समझने आरा-केरम चला गया। गांव के विकास का माॅडल देखा। उपर से तो कोई खास नहीं दिखा, लेकिन जब तसल्ली से रिपोर्ट तैयार करने लगा तो कई महत्वपूर्ण और ग्रामीण विकास के अभिनव प्रयोग की जानकारी मिली। बाद में इस गांव के बारे में कुछ खास जानकारी के लिए मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी से भी मुलाकात की। त्रिपाठी के व्यक्तित्व पर फिर कभी प्रकाश डालूंगा, फिलहाल उनके प्रयोगों पर चर्चा करना बेहद जरूरी हैं। त्रिपाठी ने बताया कि आरा-केरम के प्रयोग से पहले उन्होंने कोडरमा जिले के सिमरकुंडी नामक जनजातीय गांव को विकसित किया। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि जिस ग्रामीण विकास के माॅडल को उन्होंने अपनाया है उसकी सैद्धांतिक भूमिका अन्ना हजारे के द्वारा विकसित की गयी रालेगन सिद्धि गांव से ली गयी है और उसे झारखंड के परिप्रेक्ष्य में परिमार्जित प्रयोग में लाया गया है। त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। भारतीय वन सेवा के अधिकारी होकर वे तत्कालीन बिहार, जो अब झारखंड बन गया है, आए थे। वन विभाग के अधिकारी रहते उन्होंने कई गांवों को विकसित करने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली क्योंकि जो प्रयोग उन्होंने किया उसमें स्थानीयता का आभाव था। उन्हें सफलता सिमकुंडी में जाकर मिली। सिमरकंुडी वाले प्रयोग को त्रिपाठी ने आरा-केरम में दुहराया और आज यह गांव आदर्श गांव बन गया है। 


व्यापक रूप से इस गांव की चर्चा मैने इसलिए की क्योंकि आरा-केरम अब केवल आदर्श गांव नहीं रह गया है। यह गांव अब झारखंड के ग्रामीण विकास का माॅडल बनकर उभरा है। बीते वर्ष झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना की शुरूआत की गयी थी। चूकि इस योजना के देख-रेख की जिम्मेबारी भी मनरेगा आयुक्त त्रिपाठी के जिम्मे ही है इसलिए उन्होंने योजना को बेहतर तरीके से डिजाइन किया। चूकि खूंटी जिले को इस योजना का केन्द्र बनाना तय किया गया था इसलिए इस जिले से सबसे पिछड़े इलाके को प्रयोग के तौर पर चुना गया। पहले झारखंड के विभिन्न जिलों से करीब 40 युवा महिलाओं को ग्रामीण विकास के प्रशिक्षण के चुना गया। इसमें से कुछ तो प्रशिक्षण काल में ही अपने घर लौट गयी। कुछ प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अपने गांव चली गयी लेकिन उसमें से कुछ महिलाओं ने ग्रामीण विकास का संकल्प ले तोरपा जैसे घुर वाम चरमपंथियों के इलाके में दस्तक दी। विगत 10 महीनों से ये महिलाएं अपने क्षेत्र में डटी हुई है। इन महिलाओं के समन्वय के लिए सुनील शर्मा दिन रात मेहनत कर रहे हैं। तोरपा के ग्रामीण इलाकों में सिमरकुंडी और आरा-केरम का प्रयोग दुहराया जा रहा है। परिवर्तन साफ-साफ देखा जा सकता है। अभी हाल ही में तोरपा प्रखंड के दो पंचायत के दो गांवों को देखने का मौका मिला। 


सिसई की रहने वाली हेमवंती देवी ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा आशा दीदी का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद तोरपा के अलंकेल गांव अपने संकल्प के साथ विकसित कर रही हैं। यह गांव विशुद्ध रूप से जनजातीय गांव है। हेमवंती के आने से पहले यहां के ग्रामीण महुआ से दारू बनाते थे और बड़े पैमाने पर दारू पीते भी थे लेकिन हेमवंती के अथक प्रयास ने गांव में पूर्ण रूपेण तो नहीं लेकिन बहुत हद तक दारू पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस मामले में हेमवंती ने बताया कि उसे समय-समय पर कुछ असामाजिक तत्वों ने धकमी भी दी लेकिन वह घबड़ाई नहीं। संकल्प के साथ डटी रही। हेमवंती ने बताया कि गांव की महिलाएं एवं बड़ी संख्या में पुरूषों ने उसका साथ दिया और आज गांव उत्तरोत्तर विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। दारू में बहुत हत तक कमी आ गयी है। दो पंचायतों में दो हजार से ज्यादा फलदार वृक्ष लगाए जा चुके हैं। प्रत्येक सप्ताह ग्राम सभा की बैठक होती है। गांव में महिला सखी मंडल का निर्माण तो पहले से हो रखा था लेकिन अब महिलाएं कई मामले में अपना निर्णय खुद लेने लगी है। गांव में यदि किसी को आर्थिक सहायता की जरूरत पड़ती है तो सखी मंडल की महिलाएं उसे सहयोग करती है। इस कारण अब गांव में जो सूदखारी का प्रचलन था उसपर अंकुश लग चुका है। 


इस मामले में दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना के काॅडिनेटर सुनिल शर्मा ने बताया कि आरा-केरम के प्रयोग को हम अब तोरपा प्रखंड के लगभग 70 गांवों में लागू कर रहे हैं। हमलोगों ने पिछले साल करीब 36 आशा दीदियों को प्रशिक्षित किया था। उसमें से 32 आशा दीदियों को गांव आवंटित कर दिया गया है। अलंकेल जैसे हमारे पास लगभग 70 गांव हैं। इसमें बड़े पैमाने पर ग्रामीण विकास का काम चल रहा है। हमलोगों ने ग्रामीण विकास के पारंपरिक प्रयोगों में थोड़ा परिवर्तन किया है। शर्मा ने बताया कि विकास भारती विशुनपुर और चक्रिय विकास का माॅडल जोड़ा गया है। साथ ही दीनदयाल उपाध्याय के द्वारा विकसित चिंतन को भी आत्मसात किया गया है। हमारा प्रयोग गांधी, लोहिया और दीनदयाल के स्वदेशी ग्राम विकास चिंतन पर आधारित है। इन तमाम चिंतनों और प्रयोगों के साथ ही साथ हमलोगों ने आदिवासी परंपरा, रूढ़ि और प्राकृतिक चिंतन को भी अपने ग्रामीण विकास के प्रयोग में जोड़ा है। यही कारण है कि हमारा प्रयोग सफलता की सीढ़ी चढ़ रहा है। ग्रामीण विकास के लिए हम बाहर से कुछ भी लेने के पक्ष में नहीं हैं। हम चाहते हैं कि गांव खुद के संसाधन पर स्वावलंबी बने। आशा दीदी उत्पे्ररक का काम कर रही हैं। यह प्रयोग सफलता की ओर है। एक साल में हम बेहतर स्थिति में हैं। 


तोरपा झारखंड के माओवादी प्रभाव वाले प्रखंडों में से एक है। इन इलाकों में प्रवेश करना आज भी खतरे से खाली नहीं है लेकिन आशा दीदी के माध्यम से गांव में विकास का कार्य सचमुच अपने आप में आश्चर्य से कम नहीं है। इन गांवों में आशा दीदियों के माध्यम से बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलाम्बर-पिताम्बर जल समृद्धि योजना, मनरेगा, सखी मंडल, गांव की साफ-सफाई, टीकाकरण, पढ़ाई आदि सरकार की कई योजनाएं बेहतर तरीके से लागू की जा रही है। इन योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन से तोरपा के इन इलाकों में माओवादी गतिविधियों में जबरदस्त कमी आयी है। हालांकि आशा दीदियों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में काम करना आसान नहीं है लेकिन महिलाओं का जागरण इस बात का संकेत है कि आने वाला भविष्य बेहतर होगा। 


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