कृत्रिम नशा व्यापार का हब बन गया है पंजाब

गौतम चौधरी 
नशा पंजाब की राजनीति को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। पंजाब सरकार के अगुआ बादल गुट वाले शिरोमणि अकाली दल का सीधा आरोप है कि केन्द्र सरकार की ढील के कारण पंजाब में नशा बढ रहा है। अकालियों यह भी आरोप है कि इन दिनों पंजाब में नशा को जो लोग मुद्दा बना रहे हैं वे पंजाब विरोधी हैं और पंजाब को बदनाम करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। एक आरोप यह भी लग रहा है कि केन्द्र ने तीन राज्यों को ओपीएम यानि हफीम उत्पादन की छूट दे रखी है। इस छूट के कारण राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में हफीम की खेती होती है, जबकि पंजाब में हफीम की खेती नहीं होती फिर भी सियासत करने वाले पंजाब में नशा का हल्ला कर रहे हैं। नशा के मामले में कांग्रेस पार्टी, पंजाब के नशा रैकेट की जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो से कराना चाहती है। वे लगातार इस मांग को दुहरा रहे हैं लेकिन पंजाब सरकार कांग्रेस की दलील को मानने के लिए तैयार नहीं है। सरकार नहीं चाहती है कि इस मामले की जांच में किसी केन्द्रीय अभिरण का हस्तक्षेप हो। ऐसा पंजाब सरकार क्यों चाहती है, इसका सरकार ने अभी तक कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया है। ऐसे केन्द्र सरकार की ओर से पंजाब के नशा पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है लेकिन विगत दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मन की बात में नशा पर चर्चा की और कहा कि नशा के द्वारा एकत्रित धन का उपयोग ही आतंकवादी भारत को परेशान करने में खर्च कर रहे हैं। यानि भाजपा का रूख साफ है, भाजपा मानकर चल रही है कि नशा किसी कीमत पर देश हित में नहीं है, यह देश के नौजवानों को बरबाद कर रहा है और आतंकवादियों के लिए अमृत के समान है। इन तमाम बातों के बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर पंजाब में ही नशा के मामले ज्यादा क्यों हैं, पंजाबी नौजवान ही नशों के चपेट में सबसे ज्यादा क्यों है, भारत में कृत्रिम नशा कहां से आता है?

पंजाब भारत का वह प्रांत है जिसकी सीमा पाकिस्तानी सीमा से जुडती है। दुनिया में बडे पैमाने पर हफीम की खेती अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इरान, टर्की, ग्रीस, बुल्गारिया, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया और म्यार होती है। इन देशें में 430 से लेकर 450 टन तक हफीम पैदा किया जाता है। पांच से लेकर 10 टन तक हफीम की स्थानीय खपत है। शेष हफीम को दुनिया के बाजारों में बेचा जाता है। भारत में हफीम और हफीम से बने अन्य कृत्रिम नशे अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आता है। आंकडे बताते हैं कि 2009 में भारत में 2500 किलो ग्राम कृत्रिम नशा पकडा गया, जबकि 2013 में यह बढकर 4750 किलो ग्राम हो गया। ये आंकडें बताता है कि भारत में लगातार इस प्रकार के नशे के उपयोगकत्र्ता बढ रहे हैं। भारत में पूर्वोत्तर को छोड दिया जाये तो पंजाब में सबसे ज्यादा इस प्रकार के नशेरी हैं। एक अध्यन में बात सामने आई है कि पंजाब में नशा का करोबार राजनीतिक और संगठित प्रशासनिक तंत्र की छत्रछाया में प्रसार प्रप्त किया है। पंजाब में नशा को बडी सूनियोजित तरीके से बढाया गया है। इसके पीछे का कारण बडा ही खतरनाक है। प्रेक्षक बताते हैं कि पंजाब कृत्रिम नशा करोबार का हब सा बन गया है। पंजाब में इस प्रकार के नशा यूजरों की संख्या को जानबूझ कर बढाया गया है क्योंकि इस प्राकर के नशा कारोबार में यूजर ही नशीले पदार्थों की ढुलाई और व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन दिनों कुछ समाचार माध्यमों में इस बात की चर्चा की जा रही है कि कृत्रिम नशा काफी महगा है और पंजाब के लोगों की आर्थिक क्षमता ऐसे नशें ग्रहण करने की नहीं है लेकिन तथ्य कुछ और है, पहली बात, इन नशों का जो अंतरराष्ट्रीय कीमत बताया जाता है वह है नहीं। पंजाब में यूजरों को बेहद सस्ते दामों में इस प्रकार के नशे उपलब्ध कराए जा रहे हैं। दूसरी बात यह है कि पंजाब के ज्यादातर यूजर नशा के कारोबार से भी जुडे हैं। या तो वे नशों की ढुलाई करते हैं, या फिर अपना पैसा लगाकर व्यापार करते हैं। पंजाब से बाहर के दशों में बडे पैमाने पर नशा का निर्यात किया जा रहा है। यूजर उस निर्यात के अंग बन गये हैं। पंजाब में इस प्राकर के नशों की बढोतरी के लिए पंजाब के वे व्यापारी भी जिम्मेबार हैं जो पाकिस्तानी व्यापारियों के साथ मसाले और अन्य प्राकर के छोटे-मोटे व्यापार कर रहे हैं। ऐसे व्यापारी अपने माल के बदले नशा ले लेते हैं, जिसमें उनको कई गुणा ज्यादा फायदा होता है।

जो लेग भारत के राज्यों में नशा उत्पादन को पंजाब में बढ रहे नशों के लिए जिम्मेबार ठहरा रहे हैं वे निहायत गलत हैं। आंकडे बताते हैं कि भारत के राज्यों में हफीम का उत्पादन सीमित क्षेत्रों में किया जाता है। यह उत्पादन सरकार की देख-रेख में होता है। यही नहीं उत्पादित हफीम के बिक्रय की जिम्मेबारी भी सरकार की ही होती है। उत्पादित हफीम में से 80 प्रतिशत हफीम का माॅर्फिन बना लिया जाता है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के दवाओं में होता है। इसके अलावा 20 प्रतिशत हफीम को दुनिया के बाजार में निर्यात कर दिया जाता है। यह निर्यात भी दवा कंपनियों के लिए किया जाता है। इसलिए खालिस आरोप लगाना कि देश के अंदर सरकार के संरक्षण में उगाए जा रहे हफीम पंजाब के नौजवानों को नशा के लिए प्रेरित कर रहा है महज सियासी आरोप के अलावा और कुछ नहीं है।

पंजाब में नशा के कारोबार और नशा के यूजरों पर पंजाब सरकार ने एक रिपोर्ट न्यायालय में सौंपी है। उसमें कहा गया है कि पंजाब में 70 प्रतिशत नौजवान नशों के गिरफ्त में हैं। हालांकि यह सभी प्रकार के नशों का आंकडा होगा लेकिन जानकारों का अनुमान है कि पंजाब में कृत्रिम नशा के यूजरों की संख्या कम से कम 50 प्रतिशत के करीब है। नशा कारोबार और यूजरों पर नकेल कसने के लिए सन् 1997-98 में ए. आर. मासेलकर के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया था। उस समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि नशा पर नकेल के लिए पुलिस को और अधिक ताकत दिया जाना चाहिए। मासेलकर समिति की आख्या पर ध्यान देकर केन्द्र सरकार ने एक कानून भी बना दी, जिसमें नशा पर सिकंजा कसने के लिए पुलिस को और अधिक ताकत देने की बात कही गयी है लेकिन पंजाब सरकार ने पुलिस को ताकत देने के बदले नशा पर नकेल के लिए सरकारी चिकित्सकों को ताकत दे रखी है। पंजाब में नशा के यूजरों की संख्या बढने के लिए यहां के चिकित्सक भी जिम्मेबार हैं। नशा के रैकेट में पुलिस जबतक पहुचती है तबतक नशा के कारोबारी बडी चतुराई से गायब हो चुके होते हैं। यदि नशा के उनमूलन के लिए डाॅक्टरों के साथ पुलिस को भी ताकत दिया जाये तो पंजाब में नशों के कारोबार पर लगाम लग सकता है।  

कुल मिलाकर देखें तो पंजाब में नशों के यूजर और करोबार के लिए पंजाब का प्रशासनिक ढांचा और राजनीतिक सेटप जिम्मेबार है। पंजाब में नशा पाकिस्तान सीमा से अंदर आता है। सीमा पर के लोग इस कारोबार में लगे हैं। सीमा सुरक्षा बल के पास जो क्षमता है उससे बेहद शातिर और संगठित नशा के कारोबार पर अंकुश लगाना संभव नहीं है। इसलिए पंजाब के उप मुख्यमंत्री सरदार सुखबीर सिंह बादल की मांग को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार को सीमा पर और अधिक सख्ती करने की जरूरत है, साथ ही सीमा पर बडे इफ्रास्टक्चर खडे किये जाने की भी जरूरत है। सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों को जागरूक और संपन्न बनाना केवल राज्य सरकार की ही जिम्मेबारी नहीं है, इसके लिए केन्द्र सरकार को भी सोचना चाहिए। दूसरी ओर पंजाब में जो प्रशासनिक ढंचा है उसके भ्रष्टाचारी सुराखों को बंद करना राज्य सरकार का काम है। राज्य सरकार यदि चाह ले तो पंजाब में नशा का कारोबार बंद हो कसता है। हालांकि राज्य सरकार के सालाना बजट से कही बडे बजट का कारोबार इन नशेरियों का है, फिर भी सरकार चाह ले तो पंजाब में नशा रोका जा सकता है। दूसरी ओर सरकार, सचमुच इमानदार पहल करना चाहती है तो नशा रैकेट की जांच में केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की सहायता लेने में सरकार को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लिजाहा पीढी और जीवन को तवाह करने वाले कारोबारियों के खिलाफ सख्त कानून भी बनने चाहिए। इस मामले में न तो केन्द्र और ही राज्य सरकार अपनी जिम्मेबारी से भाग सकती है।

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