भारत के लिए पाक से बड़ी चुनौती है चीन और आईएस

दो पाकिस्तानी महिला विश्लेषणकर्त्ताओं का आकलन 
गौतम चौधरी
विगत दिनों पाकिस्तानी स्तंभकार मरियाना बाबर और पाकिस्तानी सेना की संरचना एवं रणनीति पर लगातार लिखने वाली आयशा सिद्दका को सुनने का मौका मिला। दोनों महिलाएं चंडीगढ़ के पीपल्स कनवेंशन सेंटर, सेक्टर 36 में भारत-पाक संबंधों पर बोलने आई थी। संयोग से उस कार्यक्रम का मैं भी हिस्सा था। चूकी दोनों महिलाएं बेहद समझदार थी और कही न कही पाकिस्तान की रणनीतिक कूटनीति से जुड़ी हुई लग रही थी। मुङो ऐसा लगता है कि उनके माध्यम से पाकिस्तान का स्टैब्लिसमेंट बोल रहा था। मरियाना बाबर भारत के एक हिन्दी दैनिक के लिए भी लिखती हैं। अच्छा लिखती है और हिन्दी हॉर्टलैंड में खूब पसंद भी की जाती हैं। इसलिए भी मुो उनको सूनना जरूरी था। दूसरी महिला पाकिस्तानी सेना की अर्थशास्त्र पर किताब लिख चुकी हैं। उस पूरे कार्यक्रम में दोनों महिलाओं ने बेहद सतर्क और समझदारी भरी बातें की लेकिन कई मामलों में उन्होंने पाकिस्तान का बचाव भी किया। वह यह मानने के लिए तैयार नहीं थी कि भारत में जो आतंकवादी घटनाएं घटती है उसके लिए पाकिस्तान जिम्मेबार है लेकिन भारत और पाकिस्तान की दोस्ती को लेकर दोनों महिलाएं चिन्तित दिख रही थी। 
बाबर अपने व्याख्यान के क्रम में अपने को पस्तून बताया। मुो लगता है कि वह यह बात इसलिए भी सार्वजनिक करना चाह रही हो कि पस्तून भारत के प्रति नरम रुख रखते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के लिए अब भारत कोई चुनौती नहीं रहा। आने वाले समय में पाकिस्तान के लिए चीन और आईएसआईए एक बड़ा खतरा बनकर उभरेगा। वह इस बात से भी घबड़ा रही थी कि कही पाकिस्तान में फिर से न तख़्ता पलट जाये और सेना पाकिस्तान की सत्ता पर काबज जो जाये। कुल मिलाकर मरियाना यह कहना चाह रही थी कि चीन के प्रति पाकिस्तान का अवाम बेहद सशंकित है। वह यह भी बता रही थी कि उनकी सरकार को अब इस बात का भी डर सताने लगा है कि कही आईएसआईए उनके देश में भी न सक्रिय हो जाये। अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान में कुछ भी नहीं बचेगा। मरियाना बेलते-बेलते यह भी बोल गयी कि जिस प्रकार का माहौल पाकिस्तान में अभी बना है, उसके कारण लगता है कि पाकिस्तान  को अब सैन्य सरकार से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन सेना की ताकत के सामने अभी भी पाकिस्तान का लोकतंत्र कमजोर है। ऐसे में अभी भी सैन्य शासन का डर पाकिस्तान में बना हुआ है। हालांकि मरियाना ने प्रत्यक्ष रूप से इन तीनों मामलों को लेकर भारत से सहयोग तो नहीं मांगा लेकिन उनके भाषण का कुल लब्बोलुआब यही था कि जिस तीन समस्याओं से पाकिस्तान जूझ रहा है यदि भारत ने उसका साथ नहीं दिया तो पाकिस्तान की ये तीनों चुनौतियां अंततोगत्वा भारत हितों पर ही चोट करने वाली है। ऐसे में भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान के साथ मिल-बैठकर अपनी सारी समस्याओं का समाधान ढुंढ़ ले। 
मरियाना के इस वक्तव्य के दो अर्थ निकाले जा सकते हैं। एक पाकिस्तान के रणनीतिकार बेहद डरे हुए हैं। उन्हें अपनी गलती का अब एहसास होने लगा है। उन्हें इस बात का डर है कि अगर चीन पाकिस्तान में अपना अड्डा बनाता है तो आने वाले समय में पाकिस्तान का वही हस्र होगा जो तिब्बत और ािंजियांग का है। यही नहीं पाकिस्तानी अवाम और सरकार इस बात को लेकर भी चिंतित है कि कही आईएसआईएस के कट्टरपंथी गुट पाकिस्तान में सक्रिय हो गये तो पाकिस्तान को बचाना संभव नहीं होगा। आईएसआईएस की गतिविधि लगातार बढ़ती जा रही है। जिस प्रकार पश्चिमी शक्तिशाली देशों ने आईएसआईएस के खिलाफ मोर्चा खोला है उससे संभव है कि आईएस को आने वाले समय में पनाह लेने के लिए किसी देश की जरूरत होगी। पाकिस्तान में कट्टरपंथी सुन्नी समुदाय के मुस्लमानों की वहुलता है और संभव है कि आईएसआईएस पाकिस्तान में अपनी जड़ें मजबूत कर ले।  यही नहीं पस्तूनों की लड़ाई, पाकिस्तानी सरकार के साथ लगातार बढ़ती जा रही है। आने वाले समय में संभव है कि ये पस्तून आईएसआईएस को अपने यहां बुला लें। तब पाकिस्तान के लिए पस्तूनों के साथ लड़ना कठिन हो जाएगा। पाकिस्तान इन तीन कारणों से अपने आप को कमजोर महसूस कर रहा है। पाकिस्तान की सरकार इन्ही तीन कारणों से डरी भी हुई है। पाकिस्तान जिस चौराहे पर आकर खड़ा हो  गया है उसमें उसके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मरियाना का मानना है कि इस परिस्थिति में पाकिस्तान को एक मजबूत और विश्वासी पड़ोसी की जरूरत है। 
मेरी दृष्टि में मरियाना की अवधारणा शत प्रतिशत न सही लेकिन कुछ हदतक सत्य जरूर है। हालांकि भारत के प्रति पाकिस्तान का रवैया आज भी बेहद खतरनाक है लेकिन जब पाकिस्तान के अंदर चीन या फिर आईएसआईएस अपनी पकड़ मजबूत कर लेता है तो वह भारत के लिए भी खतरनाक होगा। इसलिए भारत को इस मामले में सतर्कता से काम करना चाहिए। भारत का हित इसी में है कि पाकिस्तान में न तो चीन की तकत बढ़े और न ही आईएसआईएस जैसे कट्टरपंथियों की ताकत बढ़े। पाकिस्तान में जितना लोकतंत्र मजबूत होगा भारत उतना ही फयदे में रहेगा। यह बात और है कि आने वाले समय में जब पाकिस्तान फिर-से मजबूत हो जाएगा तो भारत के सथ वह दगाबाजी कर सकता है लेकिन जो परिस्थिति आज पाकिस्तान के सामने है उसका फायदा भारत को उठाना चाहिए और पाकिस्तान में लोकतंत्र कैसे मजबूत हो इसके लिए भारत को प्रयास करना चाहिए। यही नहीं पाकिस्तान की जमीन पर चीन और आईएसआईएस अपनी जड़ें न जमा पाये, भारत को इसके लिए भी प्रयास करना चाहिए। इसको किस तरह किया जाये, यह तो भारत के कूटनीतिज्ञों को सोचना है लेकिन इसको किया जाना चाहिए कि नहीं इसमें दोमत नहीं होनी चाहिए। अगर भारत इस मौके को चूका तो आने वाले समय में पाकिस्तान के बाद ड्रैगन का अगला निशाना भारत ही होगा। 
ऐसे भी पाकिस्तान भारत के लिए अब कोई बड़ी चुनौती खड़ी करने की स्थिति में नहीं है। यदी इतिहास पर नजर दौराएं तो पाकिस्तान पश्चिमी ताकत के बल पर ही भारत के खिलाफ षडय़त्र करता रहा है। पहले वह ब्रितानियों के सह पर भारत के खिलाफ लड़ता था, बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका के बल पर भारत को परेशान करता लगा। अब पाकिस्तान में चीन सक्रिय हो रहा है। चीन की सक्रियता के बल पर पाकिस्तान, भारत को परेशान कर सकता है, जिसका एक बढ़िया उदाहरण अभी फिलहाल चीन का अजहर मसूद के उपर अपने वीटो के प्रयाग का है। यह दायरा बढ़ेगा। इसे सीमित करने की जरूरत है। 
कुल मिलाकर दोनों महिलाओं की वार्ता सतर्कतापूर्ण थी और दूसरी ओर धमकी भरी हुई भी कही जा सकती है। गोया भारत अगर इस मामले में चूका तो पाकिस्तान, चीन और आईएसआईएस को अपना विकल्प बना सकता है। तब भारत के लिए जो चुनौती सामने आएगी वह वर्तमान पाकिस्तानी चुनौती से कई गुना खतरनाक होगी। 


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