उत्तराखंड राजनीतिक संकट के तीन कारण

इसके अलावे भाजपा के लिए कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था!
गौतम चैधरी
विगत कई दिनों से मैं यही सोच रहा था कि आखिर उत्तराखंड के मामले में भारतीय जनता पार्टी एकदम से आक्रामक क्यों हो गयी। बड़े जांच पड़ताल के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इसके पीछे तीन कारण मैजूद हैं। तीनों कारणों की व्याख्या से स्पष्ट हो जाएगा कि इस मामले में भाजपा का द्वंन्द्व क्या है।
उन दिनों मैं उत्तराखंड में एक समाचार एजेंसी के लिए काम करता था। भुवन चन्द्र खंडूरी, प्रदेष के मुख्यमंत्री बनाये गये थे। बेहद इमानदार छवि लेकर राजनीति में आने वाले ज. खंडूरी के उपर उन दिनों कई आरोप लगे लेकिन उन आरोपों के बाद भी वे प्रदेष में अपनी लोकप्रियता बनाए रखने में कामयाब रहे। उन दिनों एक चर्चा जबरदस्त तरीके से चली कि ज. खंडूरी प्रदेष के जलस्रोतों पर व्यापक रूप से काम कर रहे हैं। इस काम के लिए उन्हें गुजराती पृष्ठभूमि की बिजली बनाने वाली कंपनी से सहयोग मिल रहा है। जब मैं इस मामले को लेकर खंडूरी जी के खास माने जाने वाले अधिकारी अरूणेन्द्र चैहान से बात की तो उन्होंने बताया कि सरकार के पास पूरे प्रदेष के जलस्रोतों की बिजली क्षमता कितनी है उसका पहले से आकलन है। उन्होंने बताया कि हमारे पास जो जलस्रोत हैं उससे कम से कम हम दो लाख मेगावाट बिजली बना सकते हैं लेकिन एक स्थानीय जानकार का आकलन है कि उत्तराखंड में जो जलस्रोत हैं उसमें से सभी जलस्रोतों पर पनबिजली नहीं बनाई जा सकती है। ऐसे में उत्तराखंड के पास वर्तमान में 50 हजार मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता है। यही नहीं यदि उत्तराखंड में बिजली बनती है तो उसे बाजार भी मिलेगा क्योंकि अगल-बगल के प्रदेषों में बिजली की खपत ज्यादा है और उत्पादन कम है। उन दिनों उत्तराखंड सरकार बड़ी तेजी से इस दिषा में काम कर रही थी लेकिन ऐन मौके खंडूरी जी की सरकार चली गयी और डाॅ. रमेष पोखरियाल निषंक प्रदेष के मुख्यमंत्री हो गये। उन्होंने इस दिषा में ध्यान ही नहीं दिया और काम ठंढ़े बस्ते में डाल दिया गया। जलस्रोतों कि विदोहन के काम में लगने वाली गुजरात पृष्ठभूमि की बिजली कंपनी की गिद्धदृष्टि आज भी उत्तराखंड के जलस्रोतों पर है। अब केन्द्र में भाजपा की सरकार है। वह बिजली कंपनी फिर से संपूर्ण जलस्रोतों के विदोहन के फिराक में है। ऐसे में स्थानीय सरकार कोई अड़ंगा न लगाए, संभव है इसलिए भी कांग्रेस की सरकार को गिरायी गयी होगी। वैसे यह मेरा व्यक्तिगत आकलन है। यह आकलन तब और मजबूत आधार ग्रहण करने लगा जब हाल में ही एक खबर के हवाले से बताया गया है कि भाजपा ने उत्तराखंड के राज्यपाल से खनन नीति में परिवर्तन करने की मांग की है। हालांकि सोषल मीडिया पर आने वाली कई खबरों का कोई आधार नहीं होता है लेकिन यह खबर जिस हवाले से आई है उसमें दम है। इससे साफ हो जाता है कि खनन नीति को लेकर भाजपा चिंतित है और उत्तराखंड में खनन मामले की नीति में परिवर्तन कराना चाहती है। इससे जलस्रोतों के विदोहन में भी बंदरबांट की संभावना बढ़ेगी। संभव है कि भाजपा इस कारण से भी हरीष रावत की सरकार को गिराने के लिए आक्रामक रवैया अपनाई हो।
दूसरा कारण, बाबा रामदेव हो सकते हैं। बाबा के बारे में जग-जाहिर है कि वे भारतीय जनता पार्टी के जबरदस्त समर्थक हैं। नरेन्द्र मोदी को केन्द्र की सत्ता दिलवाने में उन्होंने भी बड़ा प्रयास किया था। ऐसे में कोई कंग्रेसी मुख्यमंत्री बाबा के खिलाफ कोई कार्रवाई करे, यह वे कैसे बरदस्त कर सकते हैं। अभी केन्द्र में बाबा समर्थक सरकार है और बाबा एवं बाबा की कंपनी के उपर उत्तराखंड में मामले पर मामले दर्ज हो रहे हैं। यह बाबा और बाबा समर्थक केन्द्र सरकार कैसे सह सकती है। ऐसे में उत्तराखंड सरकार को गिराने में एक एंगल यह भी संभव है।
तीसरा जो सबसे अहम कारण है वह है भाजपा की हताषा। भाजपा को अब यह लगने लगा है कि उसकी लोकप्रियता घटने लगी है। उसे यह भी लगने लगा है कि इस संकट का समाधान जल्द से जल्द नहीं किया गया तो यह संकट और भयावह होगा। आनन-फानन में भाजपा को अभी कोई अन्य रास्ता दिख नहीं रहा है। केन्द्र की भाजपा सरकार सभी मोर्चों पर विफल साबित हो रही है। अभी जो पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उसमें भी भाजपा की हालत पतली ही रहने वाली है। यही नहीं प्रेक्षकों का आकलन है कि आने वाले 2017 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा कोई चमत्कार करने वाली नहीं है। ऐसे में भाजपा यह चाह रही है कि किसी तरह केन्द्र की सत्ता को चमकदार बनाये रखा जाये और राज्यसभा में बहुमत का जुगाड़ कर लिया जाये। उत्तराखंड जैसे छोटे-छोटे राज्यों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करने के लिए भाजपा का यह बैकडोर प्लान है। भाजपा के रणनीतिकार यह समझ रहे हैं कि यदि अपने हाथ में सत्ता रहते हुए वहां चुनाव हुआ तो वे संभव है कि जीत जाएं। उत्तराख्ंाड का राजनीतिक संकट इस कारण से भी उभर गया होगा।
उत्तराखंड में जो परिस्थिति बनी है उसमें हरीष रावत बेहद ताकतवर नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। स्थानीय भाजपा भितरघात के कारण बेहद कमजोर हो चुकी है। स्थानीय नेताओं ने अनरगल राजनीति करके अपने दो कद्दावर नेता, ज. खंडूरी और भगत सिंह कोष्यारी को कमजोर कर चुकी है। उत्तराखंड भाजपा के सभी नेता आज कांग्रेसी हरीष रावत के सामने बैंने दिख रहे हैं। यही नहीं उत्तराखंड में ठाकुर यानि राजपूतों की संख्या ज्यादा है लेकिन भाजपा में गढवाली ब्राह्मणों दबदबा है। ऐसे में भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को यह संदेष मिल गया होगा कि आसन्न विधानसभा चुनाव यदि कायदे से लड़ा गया तो वे हरीष रावत को नहीं हरा पाएंगे। तब केन्द्र सरकार की और फजीहत होगी। इसलिए भी हरीष रावत की सरकार को गिराने की रणनीति बनी होगी।
भला विधानसभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आरोप लगाने वाले हरक सिंह रावत को सामान्य तरीके से भाजपा कैसे स्वीकार कर सकती है? यही नहीं भाजपा विजय बहुगुणा पर तो कई गंभीर आरोप लगाती रही है। भाजपा का एकाएक हृदय परिवर्तन हो जाना कई रहस्यों को जन्म देता है। इन रहस्यों के उपर से पर्दा हटना बांकी है। कुछ भी कह लें आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा जीते या हारे लेकिन भाजपा ने हरीष रावत को एक बड़ मैदान तो दे ही दिया है। यह रणनीति भाजपा के लिए अच्छा है या बुरा, इसका आकलन होना अभी बांकी है लेकिन इस रणनीति के अलावे हरीष रावत ने भाजपा के लिए कोई रास्ता भी तो नहीं छोड़ा था!   

Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत