आर्थिक मामलों पर कमजोर पड़ने लगी है मोदी सरकार


गौतम चौधरी 

आज वित्तीय मामलों के कुछ समाचारों पर समीक्षा करने का मन बनाया। उसी लक्ष्य को लेकर लगभग आधा दर्जन हिन्दी और अंग्रेजी के अखबारों का आर्थिक पन्ना पढ़ा। अतः इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत की वित्तीय स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। हालांकि समाचार माध्यमों में कुछ ऐसी खबरें लगाई-दिखाई जा रही है, जिससे भारत की वास्तविक वित्तीय दषा का आकलन करना बेहद कठिन हो गया है लेकिन कुछ तथ्यों पर गंभीरता से मनन करने के बाद साफ हो जाता है कि भारत सरकार की वित्तीय नीति में कही न कही कोई न कोई खोट है और उसका प्रभाव अब भारत के आर्थिक प्रगति पर दिखने लगा है।
वैसे मोदी सरकार के द्वारा किये जा रहे दावों में भी दम है क्योकि जिस गति से डालर के मुकाबले रूपये का अवमूल्यन हो रहा था उसमें कमी आयी है। मुद्रास्फीति की दर कम हुई है और थोड़े ही सही, महगाई पर लगाम जरूर लगा है लेकिन इस उपलब्धि को सरकार की नीतियों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। सत्य तो यह है कि निर्माण क्षेत्र में जो महगाई में कमी आयी है उसका कारण विदेषी निर्यात में आई कमी है, न कि सरकार के द्वारा किया गया कोई प्रयास।
शायद यही कारण होगा कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन जैसे जिम्मेदार व्यक्ति को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अंधों में काना राजा की उक्ति का उपयोग करना पड़ा। सरकार की ओर से इस उक्ति की आलोचना हो रही है। केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने हल्के हाथ ही सही लेकिन राजन को उनके बयान पर आपत्ति दर्ज कराई है। सीतारमण ने राजन के बयान की आलोचना करते हुए कहा है कि जिस प्रकार का बयान राजन ने दिया है, उस प्रकार का बयान उन्हें नहीं देना चाहिए। वे अपनी बात को रखने के लिए बेहतर शब्दों का भी प्रयोग कर सकते थे। इससे साफ हो जाता है कि केन्द्र सरकार राजन के बयान से बेहद असंतुष्ट है। राजन के बयान को हल्के में नहीं लिया जा कसता है। राजन दुनिया के जाने-माने अर्थषास्त्री हैं, राजन भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर हैं, दुनिया में उनका नाम है और अनुभव के मामले में उनकी अलग पहचान भी है। ऐसे में उनका बयान गंभीर हो जाता है। आज की खबर के अनुसार वर्तमान वित्तवर्ष में वस्तुओं का निर्यात लगभग 16 प्रतिषत तक घट गया है। बताया जा रहा है कि थोक और खुदरा महगाई दर में कमी आयी है लेकिन विगत दो महीनों के अंदर दाल की कीमत में लगभग 35 प्रतिषत की बढ़ोतरी हुई है। जो चीनी आज से दो साल पहले 28 रूपये का मिलता था आज उसकी कीमत 40 रूपये प्रति किलो है। चंडीगढ़ बाजार मंडी के एक व्यापारी का कहना है कि कारण चाहे जो भी हो लेकिन बीते 06 महीनों में खाने-पीने के सामान में 25 से लेकर 40 प्रतिषत तक की बढ़ोतरी हुई है। बिल्डिंग मैटेरियल बेचने वाले एक व्यापारी का कहना है कि सरिया, सिमेंट, बालू आदि सामानों के दाम में कमी आयी है लेकिन जैसे-जैसे दामों में कमी आ रही है उसी प्रकार इसका बाजार सिमटता जा रहा है। हरी सब्जी और फलों के दाम घटे हैं लेकिन उसके पीछे का कारण दूसरा है और उसका खामियाजा उत्पादक किसानों को भुगतना पड़ रहा है। निःसंदेह निर्माण के वस्तुओं की कीमत में कमी आयी है लेकिन उसके पीछे का कारण सरकारी खरीद में कमी और बाहरी निर्यात में गिरावट है न की सरकार की नीति में कोई संषोधन। जहां तक सरकार की नीतियों की बात है तो सरकार ने अपनी ओर से महगाई बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सेवा शुल्क में बढ़ोतरी, पेट्रोलियम पदार्थों पर अतिरिक्त शुल्क, रेलवे किराया और ढुलाई किराये में बढ़ोतरी। ये ऐसे कारक हैं जिससे महगाई में बढ़ोतरी स्वाभाविक है। ऐसे में यदि सरकार यह दावा करे कि उसकी नीतियों के कारण कुछ क्षेत्रों में महगाई दर नकारात्मक है तो इसे सही नहीं कहा जा सकता है। अलबत्ता सरकार की इन्ही नीतियों के कारण अब भारत की आर्थिक प्रगति बोझिल-सी होती दिख रही है। इस अवसाद से निजात के लिए सरकार बड़े व्यापारियों के दबाव में आकर बैंकों को ब्याज दर कम करने के लिए कह रही है। सरकार की इस नीति के बारे में आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति कमजोर होगी और आम लोग का बैंकों के उपर विष्वास में कमी आएगी, जो अंततोगत्वा भारत के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए नकारात्मक होगा।
ऐसा दावा किया जा रहा है कि केन्द्र सरकार आर्थिक प्रगति को पटरी पर लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। दुनिया भर के पूंजी को आकर्षित करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार दुनिया भर का प्रवास कर रहे हैं। विदेषी निवेष को आधार प्रदान करने के लिए कई क्षेत्रों को खोला जा रहा है। निवेष को आसान बनाने के लिए कानून में संषोधन किये जा रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री ने भारत को दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए अलग से एक कार्यक्रम, मेक इन इंडिया प्रारंभ किये हैं लेकिन कुछ क्षेत्रों को छोड़कर निवेष के मामले में कोई खास प्रगति देखने को नहीं मिल रही है।
हो सकता है कि विदेषी मुद्रा के मामले में हमारा भंडार मजबूत हो रहा होगा। हो सकता है कि अन्य वित्तीय मामले में हमारा देष मजबूत हो रहा होगा। हथियारों की खरीद में हम दुनिया के कई देषों को पीछे छोड़ दिये होंगे लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देष के 09 राज्यों में पानी की भारी किल्लत हो रही है। किसानों के आत्महत्या करने की संख्या लगातार बढ़ रही है। रोजगार के अवसर छीने जा रहे हैं। रोजमर्रे के सामान महगे हो रहे हैं। आधारभूत संरचना के निर्माण में प्रगति धीमी पड़ रही है। इस प्रकार के वित्तीय परिदृष्य में कोई कितना भी दावा कर ले लेकिन सामान्य लोग तो यही मानने लगे हैं कि भारत की आर्थिक प्रगति अब कमजोर पड़ने लगी है। ऐसे में सरकार की कुछ नीतियों पर आष्चर्य होना स्वाभाविक है।
सरकार को इस दिषा में सोचने की जरूरत है। आने वाले समय में प्रकृति का प्रकोप बढ़ने वाला है। चीन के आक्रामक बाजार नीति के कारण हमारा व्यापार कमजोर पड़ने वाला है। रोजगार के क्षेत्र में और कमी आने वाली है। इसलिए सरकार को चाहिए कि कृषि और सेवा क्षेत्र को मजबूत किया जाये। पर्यटन और मेडिकल क्षेत्र की संभावनाओं को उभारा जाये और सरकार अनामिकता एवं सामोहिकता के सिद्धांत पर चले। इससे न केवल देष का विकास होगा अपितु जिस सिद्धांतों और मूल्यों के लिए वर्तमान सरकार को चलाने वाली पार्टी जानी जाती है उसे भी एक व्यापाक आधार मिलेगा।      

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