भाजपा सरकार का सांस्कृतिक बनाम काॅरपोरेट राष्ट्रवाद का द्वन्द्व
गौतम चौधरी
नरेन्द्र मोदीए जब से केन्द्र सरकार की कमान अपने हाथ में ली है तभी से प्रतिपक्षी उनके उपर आरोप लग रहा है कि उनकी सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर कम कर रही है। यह कितना सत्य है इसपर गंभीरता से पडताल की जरूरत है। लिहाजा मोदी निःसंदेह संघ के स्वयंसेवक हैं। उनका दावा है कि उन्होंने राष्ट्र और संगठन के लिए अपना व्यक्तिगत और परिवारिक जीवन छोड दिया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं इसलिए उनके उपर इस प्रकार का अरोप स्वाभाविक रूप से चिपकाया जा सकता है। फिर वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्ही के समय में सन् 2002 वाला सांप्रदायिक दंगा हुआ। अहमदाबाद के पुरने लोग बताते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री हितेन्द्र भाई देसाई के बाद यह पहला दंगा था जिसमें मुसल्मानों पर हिन्दू भारी पडा। सन् 2002 के दंगे को लेकर तत्कालीन गुजरात की मोदी सरकार की भूमिका पर सवाल खडे किये गये। प्रतिपक्षियों ने आरोप लगाया कि नरेन्द्र मोदी की सरकार सांप्रदायिक बहुसंख्यक ध्रुविकरण के लिए खुद दंगा करवाई है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के उपर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को लागू करने का आरोप लगना स्वाभाविक है।
इधरए जानकारों और विष्लेशकों की मानें तो मोदी सरकार से राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ भी खुश नहीं है। मोदी सरकार पर गाहे बगाहे संघ के नेता तंज कसते रहते हैं। इसे संघ के द्वारा बनाया जाने वाला दबाव भी बताया जाता है लेकिन इस बात पर कही कोई शक नहीं है कि मोदी सरकार ने जितनी दरियादिली काॅरपोरेट जगत के लिए दिखाई है उतनी सदाशयता संघ के सिद्धांतों के प्रति नहीं दिखाई है। भजपा और संघ परिवार का पुराना एजेंडा धारा 370ए अयोध्यार राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माणए समान रागरिक संहिताए सांस्कृतिक राष्टवाद और एकात्म मानववाद के प्रति नरेन्द्र मोदी की सरकार एक ईंच भी आगे नहीं बढी हैए जबकि काॅरपोरेट जगत के लिए मोदी सरकार ने कंपनिक कानून में संशोधन कर दिया। भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधन की प्रक्रिया चला रखी है। न्यायाधीशों की बहाली को लेकर सरकार ने संसद में विधेयक लाई और उसपर कानून भी बना दिया। हद तो तब हो गयी जब सरकार से जुडे कुछ भाजपाई नेताओं ने यहा तक कह दिया कि उनके पुराने सिद्धांत देश के विकास में बाधक बन रहे हैं। जैसी चर्चा हैए अब सरकार खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश का प्रतिशत बढाने के लिए विधेयक लाने पर विचार कर रही हैए जबकि खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा कि उनकी सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है इसलिए राम मंदिर निर्माण को लेकर कानून का बनाया जाना उनकी सरकार के लिए संभव नहीं है। ऐसे में भाजपा सरकार की विश्वासनीयता पर सवाल खडे होने लगे हैं। खांटी और खास किस्म के स्वयंसेवक इस मामले को लेकर उहापोह की स्थिति में है। यही कारण है कि विगत दिनों राष्टवादी चिंतक केण् एनण् गोविन्दचार्य ने सरकार के खिलाफ गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि मोदी सरकार दिशाहीन ही नहीं दृष्टिहीन भी है। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी दिशा और दृष्टि तय नहीं कर पा रही है जिसके कारण समाज और भाजपा समर्थकों में एक भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है।
मोदी सरकार के द्वारा विकास के नाम पर कंपनी विधेयक में संशोधन के माध्यम से बडी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ विचार परिवार के संगठनए भारतीय मजदूर संघ के निशाने पर हैए तो दूसरी ओर भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर भारतीय किसान संघ के निशाने पर आ गयी है। इन दिनों मोदी सरकार ने पाकिस्तान और चीन के साथ लचीला रवैया अपनाया है जो संघ और संघ के द्वीतिये सरसंघचालक माधव राव सदाशिव गोलवलकर के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि मोदी की नीति सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और एकात्म मानववाद के भी खिलाफ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे आर्थिक मामलों के जानकार विचारक एसण् गुरूमूर्ति ने भी मोदी सरकार की आलोचना की है। यही नहीं मोदी की कार्यशैली संघ के चिंतक प्रोण् बजरंगलाल गुप्त के द्वारा लिखी गयी किताबए सुमंगलम अर्थ चिंतन से भी मेल नहीं खाती है। मोदी सरकार ने बहुसंख्यकों के साथ जो सबसे बडा बजाक किया हैए वह है न्यायाधीशों की नियुक्ति वाली समिति में सदस्यों के चलय की प्रक्रिया में आरक्षण का जोडा जाना। देश के संवैधानिक इतिहास में अल्पसंख्यकों को पहली बार किसी संवैधानिक संस्था में आरक्षण का विधान नरेन्द्र मोदी की सरकार ने की है। इससे यह संदेश जाने लगा है कि मोदी सरकार काॅरपोरेट के सामने संघ विचारधारा को तरजीह देने में कोताही बरत रहे हैं।
यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी अब मोदी सरकार के चारो ओर से घेरने की मुकम्मल योजना बनाने लगी है। इसका संकेत विगत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेए थोडा दिया है। मुम्बई में डाॅण् सुब्रमण्यम स्वामी के द्वारा बुलाई गयी बैठकए संघ की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के दौरान बडी चालाकी से नरेन्द्र मोदी ने काॅरपोरेट लाॅबी और संगठन का फ्यूजन कराया। इसके कारण नरेन्द्र मोदी को पूरे देश में सफलता मिली। उन्हें एक खास प्रकार के नौकरशाह और काॅरपोरेट द्वारा खडे किये गये सामाजिक कार्यकत्र्ताओं का सहयोग मिला। जिसके कारण नरेन्द्र मोदी को भाजपा और जनसंघ के इतिहास में सबसे ज्यादा लोकसभा की सीटें मिली। यह मोदी की कुशलता को चिंहित करता है लेकिन अब मोदी की यही कुशलता उनके लिए खतरा पदा करने वाला है। यदि इस समिकरण को मोदी नहीं साध पायेए तो आने वाले समय में मोदी सरकार के लिए एक बडा संकट सामने आने वाला है। यही नहीं यह संघ की भावी रणनीति के लिए भी खतरनाक होगा। घाटा तो मोदी समर्थक खास प्रकार के काॅरपोरेट समूह को भी होगा लेकिन वे व्यापारी हैं और उन्हें दाम लगाना एवं व्यापार करना आता है। वे किसी की सरकार में अपने को स्थापित कर लेंगे लेकिन सबसे बडा संकट संघ विचार परिवार के लिए खडा होने वाला है। वह संकट मोदी के काॅरपोरेट राष्ट्रवाद और संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का अंतरद्वंद्वा होगा।
नरेन्द्र मोदीए जब से केन्द्र सरकार की कमान अपने हाथ में ली है तभी से प्रतिपक्षी उनके उपर आरोप लग रहा है कि उनकी सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर कम कर रही है। यह कितना सत्य है इसपर गंभीरता से पडताल की जरूरत है। लिहाजा मोदी निःसंदेह संघ के स्वयंसेवक हैं। उनका दावा है कि उन्होंने राष्ट्र और संगठन के लिए अपना व्यक्तिगत और परिवारिक जीवन छोड दिया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं इसलिए उनके उपर इस प्रकार का अरोप स्वाभाविक रूप से चिपकाया जा सकता है। फिर वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्ही के समय में सन् 2002 वाला सांप्रदायिक दंगा हुआ। अहमदाबाद के पुरने लोग बताते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री हितेन्द्र भाई देसाई के बाद यह पहला दंगा था जिसमें मुसल्मानों पर हिन्दू भारी पडा। सन् 2002 के दंगे को लेकर तत्कालीन गुजरात की मोदी सरकार की भूमिका पर सवाल खडे किये गये। प्रतिपक्षियों ने आरोप लगाया कि नरेन्द्र मोदी की सरकार सांप्रदायिक बहुसंख्यक ध्रुविकरण के लिए खुद दंगा करवाई है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के उपर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को लागू करने का आरोप लगना स्वाभाविक है।
इधरए जानकारों और विष्लेशकों की मानें तो मोदी सरकार से राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ भी खुश नहीं है। मोदी सरकार पर गाहे बगाहे संघ के नेता तंज कसते रहते हैं। इसे संघ के द्वारा बनाया जाने वाला दबाव भी बताया जाता है लेकिन इस बात पर कही कोई शक नहीं है कि मोदी सरकार ने जितनी दरियादिली काॅरपोरेट जगत के लिए दिखाई है उतनी सदाशयता संघ के सिद्धांतों के प्रति नहीं दिखाई है। भजपा और संघ परिवार का पुराना एजेंडा धारा 370ए अयोध्यार राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माणए समान रागरिक संहिताए सांस्कृतिक राष्टवाद और एकात्म मानववाद के प्रति नरेन्द्र मोदी की सरकार एक ईंच भी आगे नहीं बढी हैए जबकि काॅरपोरेट जगत के लिए मोदी सरकार ने कंपनिक कानून में संशोधन कर दिया। भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधन की प्रक्रिया चला रखी है। न्यायाधीशों की बहाली को लेकर सरकार ने संसद में विधेयक लाई और उसपर कानून भी बना दिया। हद तो तब हो गयी जब सरकार से जुडे कुछ भाजपाई नेताओं ने यहा तक कह दिया कि उनके पुराने सिद्धांत देश के विकास में बाधक बन रहे हैं। जैसी चर्चा हैए अब सरकार खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश का प्रतिशत बढाने के लिए विधेयक लाने पर विचार कर रही हैए जबकि खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा कि उनकी सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है इसलिए राम मंदिर निर्माण को लेकर कानून का बनाया जाना उनकी सरकार के लिए संभव नहीं है। ऐसे में भाजपा सरकार की विश्वासनीयता पर सवाल खडे होने लगे हैं। खांटी और खास किस्म के स्वयंसेवक इस मामले को लेकर उहापोह की स्थिति में है। यही कारण है कि विगत दिनों राष्टवादी चिंतक केण् एनण् गोविन्दचार्य ने सरकार के खिलाफ गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि मोदी सरकार दिशाहीन ही नहीं दृष्टिहीन भी है। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी दिशा और दृष्टि तय नहीं कर पा रही है जिसके कारण समाज और भाजपा समर्थकों में एक भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है।
मोदी सरकार के द्वारा विकास के नाम पर कंपनी विधेयक में संशोधन के माध्यम से बडी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ विचार परिवार के संगठनए भारतीय मजदूर संघ के निशाने पर हैए तो दूसरी ओर भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर भारतीय किसान संघ के निशाने पर आ गयी है। इन दिनों मोदी सरकार ने पाकिस्तान और चीन के साथ लचीला रवैया अपनाया है जो संघ और संघ के द्वीतिये सरसंघचालक माधव राव सदाशिव गोलवलकर के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि मोदी की नीति सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और एकात्म मानववाद के भी खिलाफ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे आर्थिक मामलों के जानकार विचारक एसण् गुरूमूर्ति ने भी मोदी सरकार की आलोचना की है। यही नहीं मोदी की कार्यशैली संघ के चिंतक प्रोण् बजरंगलाल गुप्त के द्वारा लिखी गयी किताबए सुमंगलम अर्थ चिंतन से भी मेल नहीं खाती है। मोदी सरकार ने बहुसंख्यकों के साथ जो सबसे बडा बजाक किया हैए वह है न्यायाधीशों की नियुक्ति वाली समिति में सदस्यों के चलय की प्रक्रिया में आरक्षण का जोडा जाना। देश के संवैधानिक इतिहास में अल्पसंख्यकों को पहली बार किसी संवैधानिक संस्था में आरक्षण का विधान नरेन्द्र मोदी की सरकार ने की है। इससे यह संदेश जाने लगा है कि मोदी सरकार काॅरपोरेट के सामने संघ विचारधारा को तरजीह देने में कोताही बरत रहे हैं।
यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी अब मोदी सरकार के चारो ओर से घेरने की मुकम्मल योजना बनाने लगी है। इसका संकेत विगत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेए थोडा दिया है। मुम्बई में डाॅण् सुब्रमण्यम स्वामी के द्वारा बुलाई गयी बैठकए संघ की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के दौरान बडी चालाकी से नरेन्द्र मोदी ने काॅरपोरेट लाॅबी और संगठन का फ्यूजन कराया। इसके कारण नरेन्द्र मोदी को पूरे देश में सफलता मिली। उन्हें एक खास प्रकार के नौकरशाह और काॅरपोरेट द्वारा खडे किये गये सामाजिक कार्यकत्र्ताओं का सहयोग मिला। जिसके कारण नरेन्द्र मोदी को भाजपा और जनसंघ के इतिहास में सबसे ज्यादा लोकसभा की सीटें मिली। यह मोदी की कुशलता को चिंहित करता है लेकिन अब मोदी की यही कुशलता उनके लिए खतरा पदा करने वाला है। यदि इस समिकरण को मोदी नहीं साध पायेए तो आने वाले समय में मोदी सरकार के लिए एक बडा संकट सामने आने वाला है। यही नहीं यह संघ की भावी रणनीति के लिए भी खतरनाक होगा। घाटा तो मोदी समर्थक खास प्रकार के काॅरपोरेट समूह को भी होगा लेकिन वे व्यापारी हैं और उन्हें दाम लगाना एवं व्यापार करना आता है। वे किसी की सरकार में अपने को स्थापित कर लेंगे लेकिन सबसे बडा संकट संघ विचार परिवार के लिए खडा होने वाला है। वह संकट मोदी के काॅरपोरेट राष्ट्रवाद और संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का अंतरद्वंद्वा होगा।
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