अफगानिस्तान में दो महाशक्तियों के बीच पिस रहा भारतीय मिशन

गौतम चौधरी 
इन दिनों अफगानिस्तान में तालिबानी लडाके भारतीय मिशन पर आक्रमण तेज कर दिये हैं। यदि सरसरी निगाह से देखा जाये तो ये आक्रमण तब से तेज हुआए जबसे पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान का गुप्तचर सूचना आदान.प्रदान समझौता हुआ है। अफगानिस्तान में भारतीय मिशनों पर हुए विगत तमाम आक्रमणों के लिए आतंकवादी संगठन तालिबान को ही जिम्मेबार ठहराया गया है। लिहाजा तालिबानियों ने हमारे मिशनों को फिर से क्षति पहुंचाना प्रारंभ कर दिया है। अफगानिस्तान में हमारे मिशनों की सुरक्षा पर प्रश्न खडे होने लगे हैं। हमारे कूटनीतिज्ञों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अफगानिस्तान हमारी कूटनीति का अहम डिस्टीनेशन है। अफगानिस्तान के साथ हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा जुडी हुई है। वहां घटने वाली घटनाओं को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। सतही तैर पर देखें तो यही लगता है कि पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान की नजदीकी के कारण भारतीय मिशन पर आक्रमण हो रहे हैंए लेकिन गंभीरता के साथ विचार किया जयेए तो अफगानिस्तान में खेल कुछ और ही चल रहा है। एक तरह से देखें तो अफगानिस्तान या फिर पाकिस्तान केवल सतही और वाह्य खेल का हिस्सा मात्र हैए असली खेलाडीए तो दुनिया का खलिफा होने का दावा करने वाला संयुक्त राज्य अमेरिका और नये सिरे अपनी चैधराहट स्थापित करने की काशिश में लगाए हमारे खुद का पडोसीए पिपुल्स रिपब्लिक आॅफ चाइना है।

मैं कही एक व्यंग.चित्र देख रहा था। उस चित्र में हमारे अटारी सीमा पर दैनन्दिन होने वाले परेड का दृष्य दिखाया गया है। भारत और पाकिस्तान की सीमा सुरक्षा पुलिसए दोनों ओर से एक दूसरे को अपनी बूट दिखातेए परेड करतेए एक दूसरे की ओर बढ रहे हैं और उपर से पाकिस्तानी रेंजर का हाथ चीन ने पकड रखा हैए तो भारतीय सुरक्षा बल का हाथ संयुक्त राज्य अमेरिका ने पकड रखा है। हालांकि इन दिनों पाकिस्तान में जिस हद तक चीन का हस्तक्षेप चल रहा हैए उतना भारत में संयुक्त राज्य अमेरिका का नहीं हैए लेकिन विगत दो.तीन दशकों से हमारी विदेशिक कूटनीति में अमेरिका की कूटनीति का प्रभाव जरूर दिखने लगा है। इस व्यंग.चित्र का उल्लेख करना यहां उचित समझा। कई बार ऐसे प्रतीकों के माध्यम से हम तथ्यों को सही ढंग से समझ सकते हैं। जबतक अफगानिस्तान में हामिद करजई की सरकार रहीए तबतक अफगानिस्तान का झुकाव भारत की ओर बना रहा और भारत ने अपने कई मिशन अफगानिस्तान में प्ररंभ किये। कारण चाहे जो हो करजई के जाने के वाद जो लोग सत्ता में आए हैंए वे भले लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने लिए गये होंए लेकिन उनका झुकाव पस्तूनों की ओर है और वे तालिबान के प्रति नरम रवैया रखते हैं। अब यह बताना उचित रहेगा कि इन लोगों को आखिर अफगानिस्तान में कहां से उर्जा मिलती है। लिहाजा इन लोगों को सत्ता दिलाने में अमेरिका की ही भूमिका बताई जाती है। साथ ही वर्तमान अफगानी सरकार ने जो पाकिस्तान के साथ गुप्त सूचना आदान.प्रदान का समझौता किया हैए उसमें भी संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका अहम है। ऐसे में यह साबित होता है कि अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति को संयुक्त राज्य अमेरिका अपने हित के लिए सही नहीं मानता है।

जानकार बताते हैं कि अफगानिस्तान में अमेरिकी कूटनीति की दिलचस्पी व्यापक है। वह अफगानिस्तान के बाजार और वहां की जमीन के अंदर परे खनिज को अपने हितों के लिए उपयोग करने के फिराक में है। यदि भारत का मिशन अफगानिस्तान में कामयाब रहा तो अमेरिका के स्वार्थ पर नकारात्मक प्रभाव पडने का खतरा अमेरिका को लगा रहेगा क्योंकि अफगानिस्तान में भारतीय मिशन जबरदस्त तरीके से लोकप्रिय हो रहा है। दूसरी ओर अमेरिका अपनी सेना को स्वदेश लौटा चुका है। बचे.खुचे सैनिक भी लौट रहे हैं। अमेरिका को यह भी खतरा सता रहा है कि यदि फिर से तालिबान मजबूत हो गया तो दुनियाभर में अमेरिकी हितों पर आक्रमण तेज कर सकता है। ऐसे जो बातें छनकर सामने आ रही है कि इस बार ताकतवर होने के बाद भी तालिबान अमेरिकी हितों पर आक्रमण नहीं करेंगे। इसके लिए अमेरिका ने सीधे तालिबानियों से समझौता किया है। फिर भी अमेरिका यह भी चाहता है कि अफगानिस्तान में उसके हितों का पोषण करने वाली किसी देश की सेना जमी रहे और अमेरिका का काम होता रहे। इस मामले में भारत अमेरिका को सबसे उपयुक्त देश लगा रहा है। अमेरिका यह चाहता है कि भारत अपनी सेना अफगानिस्तान में लगाए और व्यापार अमेरिका खुद करे। भारतीय व्यापारी और मिशनरी अफगानिस्तान छोड दें। भारत इस रणनीति का हिस्सा कैसे बनना चाहिगाए क्योंकि इस रणनीति में खतरा ज्यादा है और फायदा नहीं ंके बराबर है। यही कारण है कि इन दिनों जो अफगानिस्तान में रणनीतिक परिवर्तन दिख रहे हैंए उसमें भारत की भूमिका को अमेरिका ने नजदअंदाज किया हैए और यही कारण है कि अफगानिस्तन में भारतीय मिशनों पर लगातार आक्रमण हो रहे हैं।
इस खेल का दूसरा पाटनर चीन भी है। उसे भी अफगानिस्तान चाहिए। चीन का मिशन.पाकिस्तान तभी सफल होगा जब चीन अपनी ताकत अफगानिस्तान में बढाएगा। चीन को डर है कि उसने पाकिस्तान में जो पैसे लगाने की योजना बनाई हैए उसपर अमेरिकाए तालिबानियों को बहकाकर कही पंगा न डाल दे। फिर चीन के लिए भारत भी एक बडा खतरा है। यदि अफगानिस्तान में भारत होता है तो चीन को भी परेशानी होगी। यही कारण है कि चीन अपनी कूटनीति में लगा हुआ है और किसी प्रकार अफगानिस्तान से भारत को खदेरने की रणनीति बना रहा है। अद्यतन जानकारी के अनुसार चीन के प्रयास से ही अफगानी तालिबान और पाकिस्तान के बीच वार्ता के दौर चल रहे हैं। ऐसे में भारतीय कूटनीति को बडी सावधानी से चलने की जरूरत है।

हमारे नेताओं के बयान भी हमारी कूटनीति का हिस्सा होता है। उसका प्रभाव व्यापक होता है और बडबोलापन कभी.कभी बनते काम को बिगाड देता है। यदि सही तरीके से देखें तो पाकिस्तानए अफगानिस्तन में एक बडा खिलाडी बनकर उभर रहा है। हमारी सरकार को चाहिए कि पाकिस्तान पर दबाव बनाए और उसे वार्ता के मेज पर लाए। इन दिनों भारत में घुर दक्षिणपंथी की सरकार है। इस सरकार से पाकिस्तान घबराया हुआ है। उसे यह लग रहा है कि भारत की वर्तमान सरकार अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए पाकिस्तान के साथ व्यापक स्तर पर पंगा ले सकती है। इसलिए पाकिस्तान विगत दिनों नेपाल के काठमांडू में संपन्न सार्क सिखर सम्मेलन में भी चीन को लेकर पंगा डाला और इन दिनों भी हमारे मिशन को अफगानिस्तान में बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। हमारे कूटनीति को पाकिस्तान की कमजोरियों और कमियों को पकडना चाहिए। पाकिस्तान की सबसे बडी कमजोरी पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र के पस्तून हैं। वार्ता के मेज पर पाकिस्तान को लाने के लिए भारतीय कूटनीति को पस्तूनी तालिबानों का मुद्दा उठाना चाहिए। दूसरा पाकिस्तान इस्लामी विश्व में फैल रहे इस्लामी स्टेट से घबराया हुआ है। उसे डर है कि उसकी पश्चिमी सीमा किसी भी समय इस्लामिक स्टेट के जद में आ सकता है। हालांकि विगत दिनों एक बडी खबर आयी कि इस्लामीक स्टेट पाकिस्तान के साथ परमाणु बम समझौता करने की योजना बना रहा है लेकिन उस खबर में तथ्य का घोर आभाव है। इस्लामिक स्टेट जिस संपूर्ण इस्लामी देश को एक राजनीतिक सीमा में बांधना चाहता है उसमें पाकिस्तान का अस्तित्व ही खतरे में पड जाएगा। ऐसे में इस्लामिक स्टेट का विस्तार पाकिस्तान के हित में नहीं है और पाकिस्तानी कूटनीति इस सत्य से भलीभति परिचित है। यदि भारत पाकिस्तान को यह विश्वास दिला दे कि वह पाकिस्तान को वहां के आंतरिक आतंकवाद से निवटने और इस्लामिक स्टेट से सुरक्षा प्रदान करने में सहयोग करेगाए तो संभव है पाकिस्तान भारत के साथ समझौते के मंच पर आ जाये। हालांकि जिस प्रकार का पाकिस्तान का चरित्र रहा हैए वह दुनिया का घोर अविश्वासी देश हैए लेकिन सतर्कता के साथ पाकिस्तान को यदि हम अपने हितों के लिए राजी कर लेते हैंए तो यह हमारी कूटनीति के लिए अहम होगा। ऐसे में हमारे नेताओं को पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के नेताओं की तरह सतही और भडकाउ भाषा न बोलकरए शालीनता और सकारात्मक कूटनीति का परिचय देना चाहिए। यदि इस मौके पर हमारे नेता पस्तून लडाकों का समर्थन करेंगे तो पाकिस्तान दुनियाभर में कश्मीर में कर रहे अपने कुकृत्यों को सही ठहराने की कोशिश करेगा। ऐसे में हमारे नेतओं को बडी तसल्ली से काम करने की जरूरत है और भडकाउ भाषा से परहेज करने की जरूरत भी।


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