देश की बिगड़ते माहौल के लिए सत्तारूढ दल और प्रतिपक्ष दोनों जिम्मेदार

गौतम चौधरी

गोमांस के मामले में राजनीति कर रही है सभी राजनीतिक पार्टियां
विगत दो-तीन महीनों से देश के अंदर एक अजीव सा माहौल देखने को मिल रहा है। यह वास्तविक अराजकता है या फिर समाचार माध्यमों की सुर्खियां मात्र बन रही है, इसपर विमर्श की जरूरत है। कुछ प्रेक्षक इस माहौल को बिहार विधानसभा चुनाव के साथ जोड़कर देख रहे हैं। कुछ का कहना है कि केन्द्र सरकार को जब से यह सूचना मिली है कि उनकी छवि खराब हो रही है, तभी से माहौल में नकारात्मक परिवर्तन आया है। कुछ लोग इस माहौल के साथ कॉरपोरेट मुनाफे को जोड़ रहे हैं, तो कुछ ऐसे भी लोग हैं जो दबी जुवान यह कह रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी योजनाबद्ध तरीके से बहुसंख्यकों के ध्रुविकरण पर काम कर रही है। इन तमाम बिन्दुओं के दो पक्ष हैं। जैसे उदारहण के तौर पर, भारतीय जनता पार्टी बहुसंख्यकों के ध्रुविकरण में लगी है, इसका दूसरा पक्ष यह है कि जो लोग भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगा रहे हैं, वह भी वही कर रहे हैं जिसके लिए वे भाजपा को बदनाम कर रहे हैं। खैर जो भी हो, चाहे कुछ लोग इसे समाचार माध्यमों की सुर्खियां ही माने, पर इसमें कही कोई संदेह नहीं है कि इस माहौल के कारण देश के सामाजिक सौहार्द पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 

पहले रांची के मंदिर में गोमांस वाली घटना घटी। उसके बाद बिहार से सटे नेपाल की सीमा में गोमांस पर विवाद की एक घटना प्रकाश में आयी। हद तो तब हो गयी जब दिल्ली के पास नोयडा के ग्रामीण क्षेत्र में कथित तौर पर गाय का मांस खाने का आरोप लगाकर कुछ ग्रामीणों ने ही एक मुस्लमान की पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस घटना ने देश में एक नये प्रकार के घ्रुविकरण को जन्म दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि गाय करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के साथ जुड़ी हुई है लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि गाय को काटे जाने के लिए कत्लखानों का लाइसेंस भी तो केन्द्र सरकार ही देती है। यदि सचमुच केन्द्र की भाजपा सरकार इस मामले में गंभीर है तो कायदे से सारे कत्लखानों का लाइसेंस रद्द कर दे। थोड़ा हटकर देखें तो गुजरात में आरक्षण को लेकर माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया गया। अभी-अभी पंजाब में जो घटनाएं घटी है वह भी बेहद गंभीर है और माहौल को बिगाड़ने वाला है। हाल में ही हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में कुछ कथित गाय तस्करों की हत्या कर दी गयी। कुल मिलाकर देखें तो एक दो महीनों के अंदर गाय विवादों के केन्द्र में आ गयी है। क्या यह अनायास हुआ है, क्या यह महज एक संयोग है, या फिर किसी की सोची समझी चाल है, सवाल बेहद गंभीर है लेकिन जवाब के नाम पर केवल राजनीतिक शोर सुनाई दे रही है। 

अभी दावे के साथ कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इस विवाद को जितनी तेजी से मीडिया के एक खास वर्ग ने बिहार की राजनीति से जोड़ा है, उससे इस आशंका को बल मिलने लगा है कि हो न हो, यह कुछ शातिर कॉरपोरेट लॉबी की कारगुजारी हो। महगाई से देश परेशान है, केन्द्र सरकार के प्रति लोगों का गुस्सा बढ रहा है, केन्द्र सरकार के बारे में जो धारणा बनी रही है, वह बेहद नकारात्मक है, ऐसे में जो लोग सरकार से लाभ कमा रहे हैं उनकी जिम्मेदारी बन जाती है कि वे सरकार की लोकप्रियता को बनाए रखने में सरकार को सहयोग करें। सीधे तौर पर, तुरत-फुरत में केन्द्र सरकार की लोकप्रियता तो लौटती नहीं इसलिए इस मामले पर कुछ सतही काम करना होगा, सो किया जा रहा है। हालांकि कई ऐसे लोग हैं जो इस मत से सहमत नहीं हैं और बार-बार यही आरोप लगा रहे हैं कि गोमांस के कारण भारत का माहौल बिगड़ रहा है। इस मामले पर बीबीसी के संवाददाता रह चुके मार्क टुली कहते हैं कि गोमांस पर जो विवाद देखा जा रहा है वह बेहद सतही है और किसी शातीर दिमाग के द्वारा क्षणिक लाभ के लिए उत्पन्न किया गया है। 

अब देखना यह है कि इस प्रकार के खराब माहौल से तत्काल लाभ किसको मिल रहा है? मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार दो साल पूरा करने जा रही है। सरकार चाहे जो दावा कर ले लेकिन आम जनता के हितों से जुड़े मामलों में मोदी सरकार अभी तक फिसिड्डी ही साबित हुई है। वैसे कुछ मामलों में सरकार का प्रदर्शन अच्छा रहा है लेकिन उससे आम जनता को फायदा होने के बजाय नुकसान हुआ है। महगाई आसमान छू रही है। हमारे प्रधानमंत्री दुनियाभर की यात्र कर आए लेकिन अभी तक कोई बड़ा निवेश या निवेशक भारत को नहीं मिल पाया है। चर्चा तो यह होने लगी है कि भाजपा नीत वाजपेयी सरकार ने अपने कार्यकाल में होटल बेची थी, मोदी सरकार हास्पीटल बेचने की योजना बना रही है। इसमें कुछ सत्यता भी दिख रही है क्योंकि मोदी सरकार, मुनाफे में चल रही सार्वजनिक उपक्रमों का हिस्सा निजी कंपनियों के हाथों बेचने लगी है। आम लोगों के लिए करें बढाई जा रही है जबकि पूंजी वालों के लिए करों में छूट दी जा रही है। बड़े औद्योगिक घरानों एवं विदेशी निवेशकों के दबाव में मोदी सरकार, श्रम कानून में संशोधन कर रही है। सरकार की छवि पर सबसे प्रतिकूल प्रभाव डाला है भूमि अधिग्रहण कानून में परिवर्तन वाला अध्यादेश। इसके कारण देशभर में मोदी सरकार की किरकिरी हुई। फिर मोदी सरकार की उस नीति के कारण भी लोग सरकार के प्रति अपनी सोच बदने पर विवश हो रहे हैं कि सरकार ने विभिन्न प्रकार के लोक कल्याणकारी योजनाओं में कटौती कर दी जबकि कारखाना मालिकों को कई मामलों में छूट दी गयी है। भाजपा इसे माने या न माने लेकिन इन तमाम मामलों के कारण मोदी सरकार की छवि खराब हुई है। 

यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कई देशों की यात्र कर आए पर अपने पड़ोसी देशों के साथ ही भारत ताल-मेल नहीं बिठा पा रहा है। पाकिस्तान के साथ मामला उलझा पड़ा है। म्यामार के साथ भी घोर सीमा विवाद है। चीन, श्री लंका, नेपाल के साथ भी इन दिनों भारत की ठनी हुई है। भारत का पारंपरिक मित्र देश रूस इन दिनों भारत से ज्यादा भारत का घुर विरोधी चीन और पाकिस्तान को तबज्जो देने लगा है। हालांकि भाजपा के लोग बार-बार इस मामले पर पल्ला झार रहे हैं लेकिन गोमांस के मामले पर विवाद बढता है तो स्वाभाविक रूप से उसका प्रभाव बिहार पर पड़ेगा और उसका लाभ संभव है कि भाजपा को मिल जाये। इन तमाम अंतरदेशीये एवं बाहरी मुद्दों पर भाजपा अब घिरने लगी है। गोमांस और देश के खराब हो रहे माहौल के बीच जो वास्तविक मुद्दे हैं वह अब गौन पड़ने लगे हैं। इसका लाभ सीधे तौर पर सत्तारूढ दल को मिल रहा है। साथ ही उस कॉरपोरेट लॉबी को भी इसका लाभ मिल रहा है जो भाजपा राज में अनरगल मुनाफा कमाने में लगी है। ऐसे में इस मामले को बल मिलने लगा है कि वर्तमान सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा योजनाबद्ध तरीके से देश का माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे बहुसंख्यकों को ध्रुविकरण किया जा सके। ऐसे में प्रतिपक्षी दलों की भूमिका भी गैरजिम्मेदाराणा है। चाहिए यह था कि प्रतिपक्षी दल गोमांस के मामले पर सत्तापक्ष के साथ एकमत हो गोमांस निर्यात और कत्लखाने पर सरकार को घेरती लेकिन वह अल्पसंख्यकों को उकसाने के अलावा और कुछ भी नहीं कर रही है। इससे देश का माहौल बिगड़ रहा है और देश अशांति की ओर बढने लगा है। ऐसी परिस्थिति में भले भाजपा अपने को सुरक्षित कर ले लेकिन अंततोगत्वा यह देश के लिए घातक सिद्ध होगा।

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