भारत में औद्योगिक क्रांति ला सकता है जर्मन तकनीक

गौतम चौधरी 
जर्मन मोटर ब्हीकलल टेकAोलाजी का सॉफ्ट डेस्टिनेशन बन सकता है भारत 
नरेंद्र मोदी जबसे प्रधानमंत्री बने हैं, दर्जनों विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को भारत की यात्र करा चुके हैं लेकिन ऐसा लगता है कि जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की यह यात्र औरों से कुछ हटकर है, जो भारत-जर्मनी दोस्ती को लम्बे समय तक प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है। जर्मन चांसलर मर्केल की यात्र के दौरान दोनों देशों ने 18 समझौते किए हैं। उनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण, सौर ऊर्जा संबंधी समझौता है। यदि जर्मनी समझौते के अनुसार सवा दो अरब डॉलर सौर ऊर्जा के लिए भारत में लगा दे तो भारत का चित्र बदल जाएगा। भारत धूप का देश है। भारत की धरती पर सूर्य देव की विशेष कृपा है। यहां असीम सौर ऊर्जा की संभावना है। यदि जर्मनों से हमने सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के गुर सीख लिये तो उर्जा के क्षेत्र में दुनिया के विकसित देशों को हम टक्कर दे सकते हैं। किसी भी देश के आधारभूत संरचना निर्माण के लिए इस्पात उद्योग, कपड़ा उद्योग एवं उर्जा उद्योग का होना जरूरी होता है। दुनिया का वही देश समृद्ध और ताकतवर माना जाता है जिसके पास इन तीन आधारभूत संरचना वाले उद्योग का संजाल होता है। 

भारत की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है। जर्मनी के साथ मिलकर भारत अपनी इस समस्या का समाधान ढूंढ सकता है। कुछ मामलों में जर्मन तकनीक दुनिया में सबसे अच्छी तकनीक मानी जाती है। पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने भारत में चार विनिर्माण हब बनाने की योजना बनाई थी। उस योजना के तहत, विनिर्माण के कारखाने लगाये जाने थे। वर्तमान मोदी सरकार भी उसी योजना पर काम कर रही है। विनिर्माण उद्योग को खड़ा करने के लिए भारत को सस्ती और उत्तम तकनीक के साथ ही साथ बड़ी मात्र में पूंजी की जरूरत है। विनिर्माण उद्योग के लिए बड़ी मात्र में विद्युत की भी जरूरत पड़ने वाली है। कुछ तकनीक ऐसा है जिसके मामले में जर्मनी दुनिया के पहले नम्बर पर है। जर्मनी में मोटर वैकिल तकनीक, परमाणु तकनीक, उर्जा तकनीक पर जबरदस्त काम हुआ है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था भी अन्य यूरोपीये देशों की तुलना में बढिया है। यदि तकनीक के मामले में जर्मनी, भारत के साथ सच्चे मन से समझौता कर लेता है तो भारत में एक नये प्रकार की औद्योगिक क्रांति आ सकती है। पहले भारत रूस और रूस के मित्र देशों से मशीन एवं भारी मशीन आयात करता था। रूस की सहायता से रांची में भारी मशीन उद्योग लगाया गया था लेकिन भारत सरकार की गलत नीतियों के कारण वह बंद पड़ा है। लिहाजा आधारभूत संरचना निर्माण के लिए भारत को अभी बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रकार के मशीनों की जरूरत पड़ने वाली है। यही नहीं भारत के पड़ोस में एंव मध्य एशियायी देशों में भी इसका बड़ा बाजार है। भारत खुद के लिए एवं एशिया के बड़े बाजार को अपनी ओर खींचने के लिए जर्मनी के साथ तकनीकी साझीदार की भूमिका निभा सकता है। इससे भारतीय नौजवानों को रोजगार उपलब्ध होगा साथ ही बड़े पैमाने पर निवेश की पृष्टभूमि तैयार होगी। जैसा कि प्रधानमंत्री खुद कहते हैं भारत में अभी 1600 जर्मन कंपनियां सक्रिय है। इन कंपनियों की संख्या में दिनोंदिन बढोतरी हो रही है। जर्मन चांसलर के आगमन के क्रम में भारत के भारी उद्योग विभाग एवं जर्मनी के फ्राउनहोफर के बीच एक समझौता हुआ है। अब ये दोनों कंपनियां भारत में निवेश एवं उद्योग की नयी जमीन तैयार करने वाले हैं। 

ये सारी संभावनाएं हमारे देश के हुकमरानों पर निर्भर करता है। इस बीच जर्मन कंपनियों ने जो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने अपनी समस्या रखी है वह बेहद निराशाजनक है। जर्मन कंपनी के मालिकों ने हमारे प्रधानमंत्री के सामने दो टूक शब्दों में अपनी समस्या रखी है और कहा है कि भारत से व्यापार करने और यहां पैसा लगाने वालों को बेहद असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। अभी फिलहाल भारत के साथ जर्मनी का व्यापार 20 अरब डॉलर का है। यही नहीं जर्मन कंपनियों का भारत में 10 अरब यूरो का प्रत्यक्ष विनिवेश भी है। यदि उसे उचित सुविधाएं मिलें तो यह पलक झपकते ही कई गुना हो सकता है। जर्मनी यूरोप का सबसे सशक्त और पूंजी वाला राष्ट्र है। भारत के साथ जर्मनी का घनिष्ट संबंध रहा है। जर्मन जनता और भारतीय नागरिकों के बीच एक आत्मस्वीकृत आर्यन संबंध बरसों से चला आ रहा है। आज से लगभग 100 साल पहले काबुल में बनी भारत की प्रवासी सरकार ने अंग्रेजी राज के विरुद्ध सशस्त्र Rांति की जो योजना बनाई थी, उसमें जर्मनी का बड़ा योगदान था। इतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि विनायक दामोदर सावरकर ने अंडमान-निकोबार की जेल में बैठे-बैठे उस Rांति की योजना बनाई थी। सरदार भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ने आजाद हिंद लश्कर की स्थापना जर्मनी में ही की थी और उन्होंने जर्मन रेडियो से भारत के क्रांतिकारियों को संबोधित भी किया था। इस तरह देखा जाये तो जर्मनी का भारत के साथ पुराना और भावात्मक संबंध है। जर्मन विद्वानों ने वेद, उपनिषद, दर्शन, ब्राह्मण-ग्रंथों, आरण्यकों और संस्कृत साहित्य का जितना गहरा अध्ययन किया है, उतना गहरा अध्यन दुनिया के अन्य देशों ने नहीं किया है। 

इस बार जर्मन चांसलर की यात्र के दौरान जिन 18 मामलों को लेकर भारत ने समझौता किया है उसमें रक्षा निर्माण, उन्नत प्रोद्योगिकी एवं खुफिया मामला के आदान-प्रदान को लेकर किया गया समझौता प्रमुख है। हालांकि जर्मनी अपनी जमीन पर अब परमाणु उर्जा को बढावा नहीं दे रहा है लेकिन वह भारत को परमाणु उर्जा के क्षेत्र में भी सहयोग कर सकता है क्योंकि जर्मनी परमाणु फ्यूजन तकनीक के मामले में भी बेहद समृद्ध माना जाता है। 

पीछे कई बिन्दुओं पर विश्व विरादरी में जर्मनी ने भारत का जबरदस्त तरीके से सहयोग किया है। भारत और जर्मनी एक स्वाभाविक मित्र हो सकता है। इससे दोनों देशों को निकट भविष्य में फायदा होगा। हालांकि इन दिनों भारत का जो माहौल बन रहा है वह बेहद खतरनाक है और ऐसी परिस्थिति में विश्व पूंजी भारत को किसी कीमत पर अपना उचित लक्ष्य नहीं मान सकता है। पहली बात तो भारत की नौकरशाही बेहद खतरनाक है। यहां कई स्तर पर कंपनियों को समस्या का सामना करना पड़ता है। दूसरी बात यह है कि जब से नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है तब से एक अजीव सा माहौल बनाया जा रहा है। यह विश्व पूंजी को आकर्षित करने में समस्या उत्पन्न कर सकता है। पूंजी लगाने के लिए इजरायल, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन आदि कई देश तैयार हैं लेकिन आज भी भारत में श्रमिकों के अडंगेबाजी का कोई समाधान नहीं निकल पाया है। भारत में एक समस्या और है जो विश्व पूंजी को आकर्षित करने में बैरियर का काम कर रहा है और वह है भारत में कुशल मजदूरों की बेहद कमी। फिर आधारभूत संरचना का भी घोर आभाव है। ऐसे में पहले भारत सरकार को इन तमाम समस्याओं का समाधान ढुंढना होगा तभी जर्मनी जैसा बेहद पेशेवर देश अपनी पूंजी और अपनी तकनीक का रूख भारत की ओर करेगा।

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