साम्राज्यवादी मनोवृति का प्रतिफल है नशों का अवैध कारोबार

गौतम चौधरी
नशों के अवैध कारोबार के मकड़जाल को तोड़ना जरूरी
वैश्विक स्तर पर नारकोटिक्स को लेकर एक बार फिर से माहौल गरमाने लगा है। विगत दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका ने कुछ देशों की सूचि जारी कर कहा है कि ये देश नशीले पदार्थो के अवैध व्यापार के रोक-थाम के लिए वैश्विक मानक की अवहेलना कर रहे हैं। इस सूचि में भारत का नाम भी शामिल किया गया है। संयुक्त राज्य द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत नशीले पदार्थो का व्यापाकर मार्ग बन गया है। इस मामले में अभी तक भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बाद स्वाभाविक रूप से वैश्विक राजनीति में एक मोर्चा का बनना तय है। विगत कुछ वर्षो से नशे के कारण भारत में भी खूब हाय-तौवा मचा हुआ है। इन दिनों भारत में पूवरेत्तर राज्यों के अलावा गोवा, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं पंजाब में नशों की खपत जबरदस्त तरीके से बढी है। सतही तौर पर देखें तो मामला सामान्य-सा दिखता है लेकिन पंजाब में जो घटनाएं घट रही है उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि नशों ने अब पंजाब के सामाजिक ताना-बाना को प्रभावित करना प्रारंभ कर दिया है। इसके कारण समाज का परिदृष्य तक बदलने लगा है। सामाजिक परिदृष्य के बदलने से राजनीतिक परिस्थिति में भी जबरदस्त तरीके से बदलाव दिखने लगे हैं। 

संयुक्त राष्ट्र संघ के ड्रग एवं अपराध संस्था की ताजा रिपोर्ट में जो आंकड़े प्रस्तुत किये गये हैं उसके अनुसार पूरी दुनिया में नशीले पदार्थो का कारोबार लगभग 320 खरब डॉलर का होता है। नशा जो बड़े पैमाने पर जो दुनिया को प्रभावित कर रहा है उसमें अफीम, मार्फीन, हेरोइन, गांजा, हशीश, कोकीन, मेथाक्वालोन, एफीड्रायिन आद नशीले पदार्थ हैं। र्पिोट पर भरोसा करें तो दुनिया के तीन स्थानों पर नशों की खेती की जाती है। सबसे ज्यादा अफगानिस्तान में अफीम उगाया जाता है, उसके बाद भारत के पूर्वी सीमा से सटे म्यांमार में नशे की खेती होती है, तीसरा स्थान लैटिन अमेरिकी देश मैक्सिको, पेरू एवं कोलम्बिया है। नशों का सबसे बड़ा ग्राहक देश संयुक्त राज्य अमेरिका को बताया जाता है लेकिन यूरापीये देशों और लैटिन अमेरिका के देश भी इस मामले में कम नहीं हैं। इन दिनों दुनिया में नशों के प्रचलित स्नेतों में कोकीन और अफीम का स्थान प्रमुख है। इन्ही दो आधार नशों से अन्य प्रकार के नशें तैयार किये जाते हैं। जिस प्रकार अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक देश अफगानिस्तान है उसी प्रकार कोकीन का सबसे बड़े उत्पाद देशों में कोलम्बिया, पेरू और बोलीविया का नाम आता है। संयुक्त राज्य द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि अफगानिस्तान में लगभग 02 लाख 11 हजार हेक्टेयर भूमि पर अफीम की खेती की जाती है लेकिन जो अन्य स्नेतों से प्रप्त आंकड़े हैं, उसमें बताया गया है कि इस बार अफगानिस्तान में लगभग 20 लख हेक्टेयर भूमि पर अफीम की खेती हो रही है। जिस रफ्तार से अफगानिस्तान में नशों का उत्पादन बढ रहा है उसी रफ्तार में अन्य क्षेत्रों में भी नशों के उत्पादन में बढोतरी हो रही है। स्नेत नशों के उत्पादन में बढोतरी के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका घबड़ाया हुआ है। अमेरिका को लगने लगा है कि जो उत्पादन हो रहा है उसका सबसे बड़ा बाजार अमेरिका बनेगा और अंततोगत्वा इसका खमियाजा भी अमेरिका को ही भुगतना पड़ेगा। सामान्य रूप से अफीम आदि नशों का कारोबार प्रतिबंधित है। वैधानिक रूप से इन उत्पादों का उपयोग औषधि में किया जाता है लेकिन अवैध रूप से दुनियाभर में इसका बड़ा बाजार है। प्रेक्षकों का कहना है कि दुनिया की जासूसी संस्थाएं इन कारोबार को प्रश्रय देती है। यदि जासूसी संस्थाओं द्वारा इस कारोबार को प्रश्रय देना बंद कर दिया जाये तो इस कारोबार में कमी संभव है। सन् 2002 में रूस ने संयुक्त राज्य अमेरिका पर आरोप लगाया था कि अफगानिस्तान में जो अफीम की खेती और अवैध कारोबार होता है उसमें अफगानी अधिकारियों एवं अमेरिकी जासूसी संस्थाओं की मिली-भगत है। रसियन सेक्यूरीटि सर्विस के हवाले से एक खबर आयी थी कि अफगानिस्तान के 40 उच्चस्थ अधिकारी नशों के अवैध कारोबार में लगे हैं। रशियन नारकोटिक कंट्रोल सर्विस प्रमुख विक्टर इवानोव के हवाले से एक खबर छपी थी कि रूस ने नाटो से आग्रह किया था कि रूस और नाटो मिलकर संयुक्त रूप से अफगानी सुरक्षा गार्ड को एनटी नारकोटिक प्रशिक्षण दें। उस आग्रह को अमेरिकी नेतृत्व वाली नाटों सेना ने ठंढे बस्ते में डाल दिया। यही नहीं रशिया ने संयुक्त राज्य अमेरिका से यह भी आग्रह किया था कि जिस प्रकार आतंकी संगठनों को काली सूचि में वह डालता है उसी प्रकार दुनिया के खतरनाक ड्रग तस्करों को काली सूचि में डाला जाये लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस प्रस्ताव को भी ठंढे बस्ते में डाल दिया। 

इस मामले में मेघायल के पुलिस निदेशक राजीव मेहता के हवाले से ब्रिटिश ब्रोडकास्टिंग सेंटर के द्वारा जारी एक समाचार में बताया गया है कि जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो उसने अफीम की खेती को गैर इस्लामिक घोषित कर दिया और उसपर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में तालिबान ने फिर से अफगानिस्तान में अफीम की खेती प्रारंभ करवाई। इसके बाद नाटो सेना अफगानिस्तान को अपने गिरफ्त में लिया लेकिन नाटो सेना ने भी अफीम की खेती पर प्रतिबंध नहीं लगा सकी। लिहाजा अफगानिस्तान में अफीम की खेती जारी रही। मेहता का कहना है कि नाटो सेना के अधिकार के दौरान अफगानिस्तान में अफीम की खेती में बढोतरी हुई। इस बात पर जब अन्य मित्र देशों की सेना ने आपत्ति जताई तो संयुक्त राज्य ने स्पष्ट किया कि यदि अफीम की खेती बंद करवा दिया जाएगा तो अफगान फिर से तालिबान के कब्जे में चला जाएगा। इसके पीछे के कारण के बारे में प्रेक्षकों का मानना है, चूंकी अमेरिका पाकिस्तान के साथ भी अपना संबंध नहीं बिगाड़ना चाहता है। पाकिस्तानी जासूसी संगठन आईएसआई के आमदनी का सबसे बड़ा स्नेत अफीम एवं अफीम से बने नशीले पदार्थो की अवैध तस्करी है। इस मामले को लेकर अमेरिका शुरु से पाकिस्तान के दबाव में रहा और यही कारण है कि अमेरिकी नेतृत्व वाली नाटो सेना के कब्जे में रहने के बाद भी अफगानिस्तान में अफीम की खेती कम नहीं हो पायी अपितु उसमें बढोतरी हुई। 

उधर अमेरिका भी लगातार यही आरोप लगाता रहा है कि रूस एवं चीन नशों के अवैध व्यापार में किसी न किसी रूप से संलिप्त है। यूनाईटेड सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक के समय में संयुक्त राज्य का तो यही आरोप होता था कि केजीबी के संरक्षण में नशों का अवैध कारोबार चलता है। इन दिनों चीन पर भी यही आरोप लग रहे हैं। हालिया संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा जो रिपोर्ट जारी किया गया है उसमें 21 देशों का नाम है। इसमें से कुछ देश तो प्रत्यक्ष रूप से खेती कर रहे हैं लेकिन कुछ देश व्यापार का मार्ग बन रहा है। इन तमाम तथ्यों को यदि बारीकी से देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि अपने अभियान को धार देने के लिए दुनिया की तमाम जासूसी संस्थाएं किसी न किसी रूप से नशे के धंधे को बढावा दे रही हैं। जिस प्रकार नशों का कारोबार बढ रहा है और पीढियां बरबाद हो रही है, यदि इसपर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो दुनिया नशेड़ियों की जिंदा कब्रगाह बनकर रह जाएगा। इस विषय पर दुनिया के तमाम देशों को साम्राज्यवादी और विस्तारवादी सोच से उपर उठकर मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आज अपने ही द्वारा बनाए गये गढे में जिस प्रकार अमेरिका गिरने वाला है उसी प्रकार अन्य देश भी देर सवेर नशों के मकड़जाल में फसेंगे, जिसका परिणाम किसी कीमत पर सकारात्मक नहीं होगा। 

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