नये सामरिक टकराहट की ओर बढ रही है दुनिया

गौतम चौधरी 
सीरिया में रूस की बढती अभिरुचि अमन के लिए खतरनाक
रूस की सेना ने सीरिया में अपना आधार बना लिया है। रूसी सेना लगातार इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकी ठिकानों पर हमला भी करने लगी है। बीते दिन रूसी सेना के हवाई आक्रमण के कारण 19 आईएस आतंकियों के मारे जाने की खबर है। रूसी आक्रामकता का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसने सीरिया की सामरिक बंदरगाह पर अपना युद्धक पोत खड़ा कर दिया और आईएस के खिलाफ उसने 40 से अधिक लड़ाकू विमान लगा रखे हैं। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का कहना है कि शीतयुद्ध के बाद पहली बार रूस इतना आक्रामक हुआ है। जो खबर आ रही है वह यदि सत्य है तो जल्द ही रूस ईरान में भी अपना सैन्य आधार बनाने वाला है। इधर पहले से ही शिया समर्थक हूदी आतंकवादी यमन में मोर्चा खोल संयुक्त राज्य अमेरिका के परम मित्र सउदी अरब की नाक में दम किये हुए हैं। हालांकि रूस के बेहद आक्रामक होने पर यह कह देना कि दुनिया से संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभुत्व के दिन लद गये, बेहद गलत आकलन होगा लेकिन रूस के इस अभियान से विश्व का कूटनीतिक परिदृश्य बदलने की संभावना तो है, इसपर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। ऐसे रूस के सीरियायी अभियान पर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने संयमित और संक्षिप्त प्रक्रिया दी है और कहा है कि इससे दुनिया का संतुलन बिगड़ेगा लेकिन अमेरिका के रणनीतिक सहयोगी सउदी अरब ने सीरिया को चेतावनी दी है और कहा है कि सीरियायी राष्ट्रपति बशर हाफिज अल-असद या तो अपना पद छोड़ें नहीं तो सउदी सेना सीरिया पर हवाई हमला तेज करेगी। सीरिया में रूस के द्वारा खोले गये सामरिक मोर्चे को स्वाभाविक रूप से ईरान का समर्थन होगा। चीन अपनी विवशता के कारण रूस का समर्थन करेगा। इसके अलावा मध्य एशिया में कई छोटे-छोटे देश हैं जो इस लड़ाई में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रूस का सहयोग कर सकता है। उधर सीरिया में सउदी अरब की अभिरुचि जबरदस्त है। सउदी अरब के साथ अमेरिका का सहयोग बराबर से रहा है। अमेरिका के साथ होते ही इजरायल का इसमें शामिल होना स्वाभाविक है। जब अमेरिका किसी युद्ध में कूदता है तो वह अकेला नहीं कूदता, उसके साथ उसके मित्र, उत्तर अटलांटिक व्यापार संगठन के देश भी शामिल हो जाते हैं। ऐसे में यदि यह कहा जाये कि सीरिया पर रूस का मोर्चा, आने वाले समय में एक नये प्रकार के वैश्विक शक्तियों के टकराव का संकेत है तो यह गलत नहीं होगा। 

दूसरी ओर दक्षिण चीन सागर में वियतनाम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं भारत चीन के विस्तारवादी रवैये को चुनौती देने के लिए एक मंच पर आ गये हैं। हालांकि वहां मध्य-पूरब की तरह युद्ध और व्यापक अंर्तद्वन्द्व वाली स्थिति तो नहीं है लेकिन आने वाले समय में चीन चुप्प बैठने वाला नहीं है, वह पंगा जरूर लेगा। उसकी नजर चीन सागर के प्राकृतिक तेल और अन्य प्रकार के खनिजों पर है। सरसरी तौर पर भी यदि देखा जाये चीन का जहां आर्थिक हित सधता है वहां वह आक्रामक हो जाता है। इसलिए इस आशंका में दम है कि आने वाले समय में युद्ध का एक मोर्चा दक्षिण चीन सागर में भी खुल सकता है, जहां चीन के नेतृत्व में रूस और उसके सहयोगी देश संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके मित्र देशों को सैन्य चुनौती दे। 

रूस के राष्ट्रपति ब्लादमीर पुतिन जब से रूस की कमान संभाले हैं तब से रूस निरंतर आर्थिक और सामरिक मोर्चे पर अपनी मजबूत पकड़ बनाते जा रहा है। उन्होंने सामरिक कूटनीतिक रणनीति के तहत चीन के साथ बेहद नजदीक का रिश्ता कायम कर लिया है। रूस ने विगत दिनों पाकिस्तान के साथ भी सैन्य समझौता किया। वह पाकिस्तान को हथियार बेचने पर अपनी सहमती जता चुका है। हालांकि हथियारों के व्यापार के जानकारों का कहना है कि हथियार के व्यापार से किसी देश की कूटनीति को तय करना कठिन होता है क्योंकि इसमें हथियारों के व्यापार देश मात्र अपना आर्थिक हित देखते हैं, फिर भी रूस ने विगत चार दशकों के बाद पाकिस्तान के साथ हथियार बेचने पर अपनी सहमती जताई है यह गौर करने वाला विषय है। इसका अर्थ साफ है कि रूस के लिए अब न तो भारत के साथ दोस्ती का महत्व है और न ही पकिस्तान के साथ शीत युद्ध वाला अंतर्विरोध। यह परिवर्तन व्यापक है और विश्व कूटनीति को लम्बे समय तक प्रभावित करने वाला है। यानि रूस अब अमेरिकी प्रभुत्व के खिलाफ अपनी मोर्चेबंदी प्रारंभ कर दी है। हालांकि रूस आंतरिक रूप से यह काम बहुत पहले प्रारंभ कर दिया था लेकिन बाहरी तौर पर वह पहली बार मैदान में उतरा है। यह संकेत है। रूस इस संकेत के माध्यम से दुनिया को खासकर अमेरिका को यह संदेश देना चाह रहा है कि अमेरिका यह न समङो कि दुनिया एक पक्षीय है। वह जिस प्रकार इराक, लीबिया और अफगानिस्तान में बिना किसी बैध कारण के एक राजनीतिक स्थिरता को हानि पहुंचाया वह सीरिया में संभव नहीं हो पाएगा। रूसी राष्ट्रपति का दावा है कि वह एक साल के अंदर आईएस को खत्म कर देंगे। यह दावा वह किस आधार पर कर रहे हैं यह तो पता नहीं लेकिन जो स्थिति बन रही है उसमें पुतीन की बातों पर भरोसा किया जा सकता है। क्योंकि आईएस के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका की कूटनीति एकदम से असफल रही है। कारण चाहे जो हो लेकिन जब से मित्र सेना आईएस के खिलाफ अभियान चलाई है तब से आईएस कमजोर होने के बदले मजबूत हुआ है। गड़बड़ी कहां हुई यह तो शोध का विषय है लेकिन जो तथ्य सामने आ रहे हैं उससे साफ हो जा रहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की कूटनीति न तो इराक में सफल रही, न अफगानिस्तान में सफल हो पायी और न ही अमेरिका लीबिया में सफल रहा। उसके हस्तक्षेप के कारण मध्य-पूरब के देशों में कट्टरता बढी है और युद्ध के दायरों का विस्तार हुआ है। अब मध्य-पूरब के अभियान में रूस शामिल हो गया है। हालांकि रूस की पृष्ठभूमि भी कोई मानवता वादी देश वाला नहीं रहा है। वह भी विस्तारवादी और साम्राज्यवादी देश ही है और कई मामले में वह अमेरिका से ज्यादा खतरनाम है लेकिन विश्व के मानवतावादियों के लिए यह शुभ संदेश है कि अमेरिका को आईना दिखाने के लिए रूस मैदान में उतर गया है।

कुल मिलाकर रूस यदि सीरिया में सफल होता है तो उसका आत्मबल और बढेगा। उसके पास विज्ञान और सामरिक शक्ति का आभाव नहीं है। इन दिनों चीन के साथ होने से वह आर्थिक मोर्चे पर भी मजबूती के साथ आगे बढ रहा है। रूस सेना का अपने देश से बाहर निकलकर लड़ाई लड़ना दुनिया के लिए जहां एक ओर शुभ है वही अशुभ भी है। शुभ इसलिए कि अब अमेरिका की दादागीरी पर थोड़ा रोक लगने की बात हो सकती है। अशुभ इसलिए कि दुनिया एक बार फिर से वैश्विक युद्ध की ओर बढती दिख रही है। मध्य-पूरब में तो मोर्चा खुल गया है। दक्षिण चीन सागर में मोर्चा खुलने की उम्मीद जताई जा रही है। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की जटिलता भी वैश्विक युद्ध का आधार बनाया जा सकता है। हालांकि इसकी संभावना बेहद कम है लेकिन इस मामले में भारत और पाकिस्तान दोनों को सतर्क रहना होगा। भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिज्ञों को इस बात पर ध्यान देना होगा कि दुनिया के अंर्तद्वन्द्व का मंच कह भारत-पाकिस्तान न बन जाये। अभी तो यही लग रहा है कि मध्य-पूरब में दुनिया की ताकतें प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल हो रही हैं। यह ट्रायल है। इसमें जो सफल होगा वह दुसरे स्थानों पर भी मोर्चा अवश्य खोलेगा और इससे विश्व शांति में खलल का पड़ना स्वाभाविक है। पर अब देखना यह है कि किसका पलड़ा भारी होता है और उंट किस करवट बैठता है।

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