ढाई साल में नरेन्द्र भाई चले ढाई घर

गौतम चौधरी
कुल मिलाकर देखें तो नरेन्द्र भाई के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार का रिपोर्ट कार्ड उतना खराब नहीं है जितना प्रचार किया जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार में अभी तक कोई भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आए हैं। हालांकि सरकार के उपर यह आरोप लग रहा है कि नरेन्द्र भाई ने जो वादे किए थे उसमें से एक भी वादे पूरे नहीं किए। इस आरोप में तो दम है लेकिन इस मामले को लेकर जब मैंने गुजरात के राज्यपाल ओम प्रकाश कोहली जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि लोगों को भी धैर्य रखना होगा। किसी व्यवस्था को बनाने में समय तो लगता ही है। उन्होंने बताया कि सरकार की क्या स्थिति है मुकम्मल तौर पर तो मैं नहीं जानता लेकिन सरकार अपने वादे पूरे करने की पूरी कोशिश कर रही है। उन्होंने बताया कि मैं खुद देख रहा हूं कि अब विभागों में एक नए प्रकार की कार्यसंस्कृति का विकास हो रहा है। अब अधिकारी सरकार एवं जनता के प्रति जिम्मेबार होने लगे हैं। इसी विषय पर जब हमने दिल्ली के कुछ भाजपायी कार्यकर्त्ताओं से पूछा तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि पहले की तुलना में अब आम आदमियों के लिए सरकारी कार्यालय सहज-सा दिखने लगा है। हालांकि वे सामान्य कार्यकर्त्ता दिल्ली की केजरीवाल सरकार से जब भाजपा की केन्द्र सरकार की तुलना करने लगे तो उन्होंने यह भी बताया कि केन्द्र सरकार की तुलना में दिल्ली सरकार ज्यादा सक्रिय है। इस मामले में केजरीवाल की सरकार से केन्द्र सरकार को सीखनी चाहिए। 
प्रतिपक्षी तो प्रतिपक्षी होते हैं लेकिन जब सरकार के ढाई साल के कार्यकाल का आकलन करने मैं उत्तराखंड पहुंचा तो यहां प्रतिपक्षी कांग्रेस के लोग भी केन्द्र सरकार के कार्य से खुश दिखे। हालांकि कांग्रेस और अन्य दलों के लोगों का यह भी कहना था कि नोटबंदी के कारण मोदी जी की बड़ी किरकिरी हो रही है। उत्तराखंड के पहाड़ पर मोदी जी के प्रति लोगों की धारणा सकारात्मक है लेकिन मैदानी क्षेत्रों में इसका उलटा दिखा। मैदान के लोग मोदी जी के नोटबंदी से ज्यादा नाखुश दिख रहे थे। मैंने अनुभव दिया कि नोटबंदी को यदि हटा दिया जाए तो सरकार के प्रति कोई ज्यादा आक्रोश नहीं है। क्या विरोधी, क्या समर्थक दोनों यही कहते सुने गए कि सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धी यदि है तो भ्रष्टाचार मुक्त शासन। व्यक्तिगत रूप से मैं भी यही मानता हूं कि विगत ढाई वर्षों में नरेन्द्र भाई की सरकार में कोई भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आए हैं। और यह सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धी तो है। 
प्रथम चरण में सरकार ने पाकिस्तान के प्रति थोड़ी नरमी तो दिखाई थी और उसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ा लेकिन बाद में सरकार की सीमाई सक्रियता ने देश को सुरक्षित करने में बड़ी भूमिका निभाई। कुल मिलाकर अपने पड़ोसियों पर प्रभाव डालने में भी नरेन्द्र भाई की सरकार सफल दिख रही है। यदि पाकिस्तान को छोड़ दिया जाए तो भारत का अन्य पड़ोसियों के साथ संबंध सामान्य ही हुआ है। हालांकि यह नीति पहले के सरकार की ही थी जिसपर नरेन्द्र मोदी की सरकार अब अमल कर रही है और वह सफल भी हो रही है। अमेरिका के उक्सावे पर दक्षिण चीन सागर में भारत का जाना आने वाले समय में बेहद खतरनाक साबित होगा। यही नहीं नरेन्द्र भाई की सरकार ने अमेरिका के प्रति ज्यादा झुकाव दिखाया जिसके कारण रूस से हमारी दूरी बढ़ने लगी है जो आने वाले समय में हमें घाटा पहुंचाने वाला साबित होगा लेकिन इजराइल, सउदी अरब, ईरान आदि देशों के साथ संबंध सामान्य करके इस सराकर ने देश के युवाओं के लिए कई अवसर खोल दिए हैं जिसका दूरगामी प्रभाव सकारात्मक पड़ने वाला है। विदेश नीति में यदि थोड़ा बदलाव दिख रहा है तो वह अपने ढंग से चलने की कोशिश कही जाए या फिर भाजपा का अमेरिका प्रेम यह समझ में नहीं आता है लेकिन इस नीति से अंततोगत्वा भारत को घाटा ही होने वाला है। 
सीमावर्ती क्षेत्रों में सबसे कठिन काम जो विगत स्वतंत्रता प्राप्त के बाद से अंटका हुआ था उसे नरेन्द्र मोदी की सरकार ने पूरा किया। बांग्लादेश के साथ जो सीमा विवाद था उसे सुलझा लिया गया। उसका हमें अब फायदा भी होने लगा है। बांग्लादेश अब बड़ी तेजी से अपने यहां के चरमपंथियों के उपर कार्रवाई करने लगा है। लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या यथावत है। इस सरकार को इसे भी सौल्भ करना था लेकिन ढाई साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने उस दिशा में पहल नहीं की जबकि यह सत्तारूढ दल का सदा का घोषित एजेंडा रहा है। कश्मीर आज भी जल रहा है। घाटी में अशांति है। इस सराकर को चाहिए कि वहां जल्द से जल्द शांति स्थापित करवाए लेकिन सरकार जिस नीति पर काम कर रही है उस नीति से कश्मीर में स्थाई शांति कभी संभव नहीं होगा। यह विचार मेरे नहीं किसी कश्मीर मामले को लेकर काम कर चुके एक प्रभावशाली कूटनीतिक का है। पंजाब में भी आतंकवादी अब सिर उठाने लगे हैं। इसे केन्द्र सरकार की असफलताओं से ही जोड़कर देखा जाना चाहिए क्योंकि केन्द्र में जिस पार्टी की सरकार है वह पार्टी पंजाब में सत्तारूढ गठबंधन में शामिल है। 
भाजपा चाहे कुछ भी कह ले लेकिन देश के औद्योगिक राज्यों में आन्दोलन खड़ा होना इसे महज संयोग कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पहले गुजरात फिर हरियाणा इसके बाद बैग्लोर और अभी फिलहाल महाराष्ट्र, ये तमाम औद्योगिक क्षेत्र हैं जहां आन्दोलन हो रहे हैं। भाजपा की केन्द्र सरकार इसे संभालने में भी असफल रही है। विरोधी तो कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में भी दंगे भाजपा वालों ने ही करवाए लेकिन मैं इस मामले में थोड़ अलग विचार रखता हूं। मैंने कई स्थानों पर दंगों के बारे में जानने की कोशिश तो पता चला कि इस मामले में स्थानीय प्रशासन की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। इस प्रकार आंतरिक सुरक्षा के मामले में मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड विगत ढाई साल में बेहद खराब रहा है। हालांकि कोई बड़ी आतंकी घटनाएं नहीं हुई है लेकिन छिट-फुट घटनाओं में कोई कमी भी नहीं आई है। 
कई रिपोर्टें तो आई नहीं है लेकिन आम लोगों के शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में सरकार अभी तक कुछ भी नहीं कर पायी है। मंहगाई के मामले में तो सरकार एकदम कमजोर परी हुई है। इन क्षेत्रों में सरकार की प्रगति बेहद कमजोर है। लेकिन आधारभूत संरचना के निर्माण में सरकार जबरदस्त काम कर रही है। खासकर भूतल परिवहण एवं जहाज रानी आदि क्षेत्रों में सरकार का काम दिख रहा है। वही रेलवे में सरकार की प्रगति कमजोर है। एक वरिष्ठ स्तंभकार का आकलन है कि रेलवे ब्यूटीफिकशन में लगी है। यह दिखता भी है। जो करना चाहिए वह हो नहीं रहा है और जिसकी जरूरत नहीं है उसे प्रायोरिटी के आधार पर किया जा रहा है। 
यह सरकार विवादों में भी रही। कभी अल्पसंख्यक उत्पीड़ण के लिए तो कभी दलित उत्पीड़ण के लिए। इस मामले में कई प्रतिष्ठा-प्रप्त लोगों ने अपने सम्मान भी लौटाए। इस मामले में मुझे लगता है थोड़ी राजनीति भी हुई और सरकार को बदनाम करने की कोशिश भी की गयी। लेकिन इन विवादों से अपने को बचाने के लिए सरकार ने कोई उपाय भी नहीं किया उलट बहुसंख्यक घ्रुवीकरण के सिद्धांत पर चलती रही। मजदूर विधेयक, भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन, कर्मचारी भविष्यनिधि विवाद आदि कुछ ऐसे निर्णय सरकार ने लिए जिसके कारण आम लोगों में यह संदेश गया कि यह सरकार पूंजीपरस्तों की है। हालांकि सरकार ने बाद में कुछ ऐसे भी निर्णय लिए जो आमजन के हितों का निर्णय है पर तबतक देर हो चुकी थी। 
अंत में सरकार ने नोटबंदी कर आम लोगों के कमर पर प्रहार किया। खासकर व्यापार के रीढ कहे जाने वाले छोटे व्यापारियों पर तो यह करके सरकार ने कहर ही ढा दिया। इसका दूरगामी परिणाम क्या होगा यह तो भगवान जाने लेकिन तात्कालिक परिणाम बेहद खतरनाक है। बाजार बंद, व्यापार बंद, रोजगार बंद। हालांकि जब सरकार को यह आभास हुआ कि उसने गलती की है तो अब अपने को सुधारने की पूरी कोशिश कर रही है लेकिन मामला बहुत बिगड़ चुका है और लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। हालांकि सरकार के नजदीकियों का कहना है कि अभी काम थोड़ा हुआ है सब ठीक हो जाएगा पर मुझे इसकी उम्मीद कम ही दिखती है। यदि ठीक हो जाए तो बढिया न ठीक हुआ तो इसका घाटा सत्तारूढ दल को उठाना ही पड़ेगा। 
कुल मिलाकर सरकार के कुछ अच्छे काम हुए हैं जिसकी सार्वजनिक सराहना होनी चाहिए लेकिन जो सरकार की गलती है उसपर भी चर्चा खुलकर हो। मैं समझता हूं कि इस सरकार को अपना चमत्कार दिखाने के लिए थोड़ा और वक्त दिया जाना चाहिए। कम से कम इस सरकार में अभी तक भ्रष्टाचार के तो मामले नहीं हैं। यह सरकार की उपलब्धि के साथ ही साथ यह सरकार की ताकत भी है। मोटे तौर पर कहें तो नरेन्द्र भाई की सरकार ढाई साल में ढाई घर ही चल पायी है। 

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