हम कही उग्र राष्ट्रवाद की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं?

गौतम चौधरी@
विगत कई दिनों से मन में एक ही बात घूम रही है कि क्या भारत और पाकिस्तानए अपने विदेश नीति में परिवर्तन कर रहा हैघ् इस मामले में यदि दोनों देशों के आंतरिक राजनीति को गौर से देखेंगे तो मामला साफ होगा। साफ शब्दों में कहा जाए तो अभी भारत में राम मंदिर आन्दोलन चलाने वालों की सरकार है। भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगता रहा है कि वह हिन्दू साम्प्रदायिक रूझान की पार्टी है। भाजपा पर यह भी आरोप लगता रहा है कि वह रूस से ज्यादा संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल को भारत के लिए हितकर मानती रही है।
जब पहली बार भाजपा के नेतृत्व में अटल विहारी बाजपेयी ने सरकार बनाई तो इजरायल और अमेरिका ने भारत से नजदीकी बढाना प्रारंभ किया। हालांकि भाजपा जिस चिंतन को मानने का दावा करती है उस चिंतन के आधार संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सदा से साम्राज्यवादी देशों के खिलाफ अपने विचार रखे और यह कहा कि भारत की विदेश नीति किसी प्रभू राष्ट्र के दबाव में नहीं होना चाहिए। बाजपेयी जी की सरकार में तो इस नीति का थोड़ा पालन होते देखा गयाए पर नरेन्द्र मोदी की सरकार इस नीति को कायम रखने में संभवतः कोताही बरत रही है। इसके कई उदाहरण सामने आ गए हैं और मोदी के इस एक पक्षीय विदेश नीति की आलोचना भी होने लगी है।
यही नहीं भारत में इन दिनों उग्र राष्ट्रवाद को प्रतिस्थापित करने की पूरी कोशिश की जा रहा है और उस राष्ट्रवाद को अमली जामा पहनाने के लिए पाकिस्तान जैसे पारंपरिक दुश्मन देश का डर भी पैदा किया जाने लगा है। हालांकि यह पहले भी होता रहा है लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार में यह बड़ी तेजी से होता दिख रहा है। यदि पाकिस्तानए ईरानए इराकए सउदी अरबए ओमानए यमनए तुर्कीए अफगानिस्तान आदि शीत युद्ध के समय अमेरिक प्रभाव वाले देश को देखें तो वहां भी इसी प्रकार के कुछ पुरातनपंथी राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित किया गया था और उसका परिणाम वहां भयावह हुआ। पाकिस्तान खुद साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद की चपेट में है। इसके कारण पाकिस्तान दुनिया के सामने न केवल बदनाम हुआ अपितु प्रगति में भी वह बेहद पीछे चला गया। इन दिनों पाकिस्तानए ईरान और सउदी अरब बड़ी तेजी से अपनी साम्प्रदायिक छवि को सुधारने का प्रयास कर रहा है। यदि पाकिस्तान की विदेश नीति को गौर से देखें तो वह एक नयी योजना पर काम करने लगा है। जहां एक ओर वह संपूर्ण सुन्नी मुस्लिम राष्ट्रों की जमात का सैन्य नेतृत्व करने की ओर बढ रहा है वहीं दूसरी ओर उसने अपनी छवि को सौफ्ट इस्लाम की बनाने में जुट गया है। जिस राष्ट्र के संविधान में साफ शब्दों में लिखा है कि पाकिस्तान इस्लामिक देश है और यह देश इस्लाम के संरक्षणए संवर्धन के लिए बना हैए उस देश का प्रधानमंत्री यदि सर्वधर्म सम्भाव की बात करता है तो यह कम से कम भारत के लिए नए खतरे की घंटी जरूर है। इसे भारतीय कूटनीति को गंभीरता से लेना चाहिए और बड़ी तसल्ली से सोच.समझ कर पाकिस्तान के लिए अपनी नीति में परिवर्तन करना चाहिए।
सामान्य रूप से अमेरिका और ब्रितानी प्रभाव वाले देशों में साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद देखने को मिलता है। एक सूफी विद्वान ने तो मुझे यहां तक बताया कि सउदी अरब में भी जो चरमपंथी वहावी इस्लाम दिख रहा है वह भी ब्रितानी साम्राज्यवाद का ही लगाया गया पौधा है। उस विद्वान के अपने तर्क हैं और इतिहासिक संदर्भ भी। पाकिस्तान के साम्प्रदायिक स्वरूप के विकास में संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। अफगानिस्तानए इराक में तो साफ.साफ यह साबित हो चुका है। ऐसे में भारत जिस अमेरिकी परस्त विदेश नीति पर चलने का प्रयास कर रहा है उसका चित्र भी वही होगा या फिर भारत अमेरिकी नीति में संशोधन करके उसे स्वीकारेगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन भारत में भी एक चमपंथी साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद स्वरूप ग्रहण करने लगा है। यह खतरनाक संकेत है और इससे भारत की छवि को धक्का लग सकता है। हालांकि पाकिस्तान या मुसलमान की मनोवृति से भारत और हिन्दुओं की मनोवृति बेहद भिन्न है। यहां पाकिस्तान जैसे जेहादी खड़ा करना उतना आसान नहीं है लेकिन उस दिशा में प्रयास किया जा रहा है तो उसके प्रभाव भी वैसे ही होंगे जैसा पाकिस्तान या अफगानिस्तानए ईरानए इराक आदि देशों में देखने को मिला। इसलिए वर्तमान समय में भारत को बड़ी गंभीरता से अपने तात्कालिक चिंतन की समीक्षा करनी चाहिए।
दूसरी ओर पाकिस्तानए सउदी अरबए ईरान आदि पारंपरिक इस्लामिक राष्ट्र अपनी साम्प्रदासिक छवि को परिवर्तित करने का प्रयास करने लगा है। इस मामले में पाकिस्तान में ज्यादा प्रयोग हो रहे हैं। पीपल्स पार्टी ऑफ पाकिस्तान के युवराज बिलावल भुट्टो हिन्दुओं के साथ होली और दिवाली मनाने लगा है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कटासराज जाकर मंदिर के विकास और वहां धार्मिक पर्यटन को बढावा देने की घोषणा करने लगे हैं। पाकिस्तान के पूर्व सेना अध्यक्ष राहिल शरीफ को इस्लामिक राष्ट्र सैन्य संगठन का मुखिया नियुक्त किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद् के दो प्रभावशाली सदस्य पाकिस्तान के समर्थन में खुलकर बोलने लगे हैं। पाकिस्तान.चीन की संयुक्त महत्वाकांक्षी परियोजना चाइना.पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉलिडोर में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है। चीन की जो नई विदेश नीति आयी है उसमें यह साफ घोषणा है कि दुनिया में जहां.जहां चीन का निवेश होगा वहां.वहां चीन अपनी खुद की सेना भी रखेगा। जो रिपोर्ट आ रही है उसमें बताया गया है कि पाकिस्तान में चीन की सेना अपना बेस बना चुकी है और लगभग 25 हजार चीनी सेना वहां स्थाई रूप से रह रही है। इन दिनों पाकिस्तान ने रूस के साथ सैन्य समझौता किया है। रूसी हथियार पाकिस्तानी बाजार में बिक रहे हैं। उधर पाकिस्तान अमेरिका के साथ भी दोस्ती गांठे हुए है। वह अपनी आंतरिक अंतरद्वंद्वों को भी वह साधने की कोशिश कर रहा है। साथ ही दुनिया के सामने सौफ्ट इस्लाम की छवि प्रस्तुत करने का प्रयास करने लगा है। आर्थिक मामले और आधारभूत संरचना में भी पास्तिान नया कर रहा है। कासा परियोजना 1000 के माध्यम से पाकिस्तान को बड़ी मात्रा में बिजली की आपूर्ति होने वाली है। नए कल.कारखाने और उद्योग पाकिस्तान में लगने लगे हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया है दुनिया के सभी इस्लमिक राष्ट्र में पाकिस्तान का विकास दर इन दिनों सबसे ज्यादा है। इस प्रकार की पाकिस्तानी रणनीति आने वाले समय में भारत के लिए भारी पड़ सकता है।
कुल मिलाकर कहें तो पाकिस्तानए भारत के रास्ते चलने की कोशिश करने लगा है और भारत पाकिस्तान की रणनीति अपनाने लगा है। भारत की रणनीति से भारत को अभी तक लाभ होता रहा है और हमारा विकास भी हुआ है लेकिन पाकिस्तान ने जिस रणनीति अभी तक चला है उससे तो पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र की छवि दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। पाकिस्तान का प्रयोग पराभूत हुआ है जबकि भारत की रणनीति सफल रही है। हमें अपने पारंपरिक रणनीति में यदि परिवर्तन ही करना है तो प्रभू राष्ट्रों से समान दूरी और समान दोस्ती वाली रणनीति अपनानी चाहिए न कि प्रभावशाली राष्ट्र के दबाव में काम करना चाहिए। दूसरा किसी देश के खिलाफ उग्र राष्ट्रवाद भी दूरगामी अच्छा प्रभाव डालने वाला साबित नहीं होगा। तीसरा हिन्दू साम्प्रदायिक राष्ट्र के स्वरूप को त्यागना ही अच्छा रहेगा। इसमें हमें स्वदेशी को युगानुकूल और विदेशी को स्वदेशानुकूल वाले सिद्धान्त पर ही चलना चाहिए। ऐसा नहीं करने से देश की एकता और अखंडता को हानि पहंचने की पूरी संभावना है।

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