गजवा-ए-हिंद की मूर्खतापूर्ण प्रचार से सावधान रहें भारतीय मुसलमान



गौतम चौधरी 

कुरान मजीद में लिखा है कि जो कोई एक भी निरपराध व्यक्ति की हत्या करता है, मानो उसने पूरी मानवता की हत्या कर दी हो और यदि एक व्यक्ति को भी बचाता है तो मानों उसने पूरी मानव जाति की रक्षा की है। कुरान किसी को भी बिना वजह मारने के खिलाफ है। पवित्र कुरान कभी निरपराध की हत्या का समर्थन नहीं करता है। लेकिन इस्लाम के नाम पर कई चरमपंथी और कट्टरपंथी, दशकों से यही कर रहे हैं। कुरान मजीद की वे गलत व्याख्या कर नहीं सकते इसलिए हदीस का सहारा लेते हैं गलत तर्जुमा कर नौजवानों को भड़काते हैं। इस प्रकार के आन्दोलन को हवा देने वाले इस्लाम की सच्ची तस्वीर को विकृत करने और अपने स्वयं के अहं को तुष्ट करने में लगे हैं। ऐसा ही एक संगठन भारत में भी अपना पांव पसार रहा है। इसे गजवा-ए हिंद के नाम से जाना जाता है। यह संगठन भारतीय उपमहाद्वीप के भोले-भाले मुस्लिम युवाओं को गुमराह करने के लिए गलत तरीके से हदीस की व्याख्या करने में लगे हैं।



गजवा-ए हिंद का मोटे तौर पर भारत के खिलाफ पवित्र युद्ध के रूप में अनुवाद किया जा सकता है, जिसका उपयोग उसके समर्थकों द्वारा धोखे से मुसलमानों को भारत के खिलाफ क्रांति के लिए उकसाया जाता है। वास्तव में, अधिकांश भारतीय मुसलमान इस आंदोलन के बारे में जानते भी नहीं हैं और जिन्हें इस बारे में जानकारी है, वे इस तरह के आंदोलन में विश्वास नहीं करते हैं क्योंकि यह उन्हें अपने देश के खिलाफ लड़ने के लिए कहता है। बड़े पैमाने पर प्रचार करने के बाद भी भारत का अधिकतर मुसलमान इसका विरोध ही करता दिखता है लेकिन इन दिनों कुछ नौजवानों में ऐसी प्रवृति देखने को मिल रही है।



ऐतिहासिक रूप से, गजवा-ए हिंद मध्ययुगीन इस्लामिक काल में हुआ था। जिसके अलग-अलग संदर्भ और कारण थे। मुसलमानों को हमेशा याद रखना चाहिए कि इस्लाम कभी भी मुसलमानों को किसी भी देश और समुदाय के खिलाफ बिना मतलब लड़ने की अनुमति नहीं देता है। प्रामाणिक ऐतिहासिक ग्रंथ यह साबित करते हैं कि सभी इस्लामिक युद्धों की विशेष पृष्ठभूमि रही है। वे तमाम युद्ध  प्रासंगिक थे। गजवा-ए हिंद का प्रसार कुछ अतिवादी लोगों द्वारा किया जाता है, जिनका विश्वास करना मुस्किल है। वे सिर्फ पैसे और संसाधनों के लिए इस प्रकार के प्रचार में लगे हैं। गजवा-ए-हिन्द के प्रणेताओं को यह समझना चाहिए कि भारत, इस्लामिक स्टेट ऑफ पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तुलना में 180 मिलियन मुसलमानों को समानता, स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण जीवन प्रदान करने वाला एक समतामूलक संप्रभू राष्ट्र है।



गजवा-ए-हिंद शब्द हदीस से लिया गया है। अल्लाह के पैगंबर ने कहा - अल्लाह ने मेरे उम्मा के दो समूहों को जहन्नम की आग से बचाया है। वह समूह जो अल - हिंद (उपमहाद्वीप) पर आक्रमण करेगा और वो समूह जो मरियम के पुत्र (यीशु) के साथ होगा। अबू हुरैरा ने कहा - अल्लाह के दूत ने हमें अल - हिंद (उपमहाद्वीप) की विजय का वादा किया। अगर मैं इसमें शामिल होने में सक्षम हूं, तो मैं इसे अपने धन और अपने जीवन पर खर्च करूंगा। अगर मुझे मार दिया जाता है, तो मैं शहीदों में से सबसे अच्छा हो जाऊंगा और मैं वापस लौटता हूं, तो मैं कयामत के दिन जहन्नुम की आग में जला दिया जाउंगा। हालांकि, कई प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वानों का मानना है कि हदीस की श्रृंखला कमजोर है। इसका अर्थ यह है कि चूकि पैगंबर मोहम्मद के समय में हदीस लिखित रूप में नहीं थे। यह श्रतुओं के जरिये कई लोगों से होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप तक पहुंचा है। श्रुतियों की श्रृंखला को इस्नाद कहा जाता है। यदि श्रृंखला का कोई भी कथन गलत है, तो इसके तथ्य विकृत हो जाते हैं और चरमपंथी समूहों द्वारा स्वयं के स्पष्टीकरण को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग कर लिया जाता है। चरमपंथी जान बूझकर ऐसी कमजोर हदीस का इस्तेमाल मुस्लिम नौजवानों को अपने संगठनों में शामिल करने के लिए तथा उकसाने के लिए करते हैं। बाद में निर्दोष को मार डालते हैं जो पूरी तरह से इस्लामिक धार्मिक कायदे के खिलाफ है।



भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां लाखों मुसलमान वर्षों से शांति और खुशी से रहते आए हैं। कश्मीर में गजवा-ए हिंद का प्रचार करने वाले लोग मुसलमानों को समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन प्रदान करने में विफल रहे हैं। दूसरी ओर, ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं मिलता है कि इस्लाम के सुनहरे वर्षों के दौरान कोई भी युद्ध, क्षेत्र या धन पाने के लिए लड़ा गया हो। इतिहास गवाह है कि इस्लाम के हर युद्ध खुद की रक्षा या फिर विश्वास की रक्षा के लिए लड़ा गया है। जब हजारों भारतीय मुसलमान सेना में हैं और वे मानवता, मातृभूमि और अपने विश्वास के लिए सीमा पर डटे हैं और भारत के लिए मरने को तैयार हैं तो गजवा-ए-हिंद का प्रस्ताव करने वालों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। एक सच्चा भारतीय मुसलमान कभी भी भारत सरकार के खिलाफ खड़ा नहीं होगा क्योंकि वो जानता है कि भारत में हर मजहब के लिए अपनी आस्थाओं के साथ रहने की स्वतंत्रता है।



हजारों कश्मीरी छात्र भारतीय विश्वविद्यालयों से सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। वे उन देशों से समान शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते जो तथाकथित इस्लामिक स्टेट होने का दावा करते हैं, जैसे पाकिस्तान। पाकिस्तान इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। कई कश्मीरी भारत में पेशेवर काम कर रहे हैं और सुंदर वेतन प्राप्त रहे हैं। वे गजवा-ए-हिंद जैसे चरमपंथी आंदोलनों के पीछे की झूट को जानते हैं और इस संगठन के बारे में समय-समय पर अपने लोगों को जागरूक भी करते रहते हैं। सच पूछिए तो गजवा-ए हिंद जैसे संगठन के सरपरस्तों को गजवा-ए चीन का आंदोलन शुरू करना चाहिए क्योंकि चीनी सरकार ने मुसलमानों को सभी मानव अधिकारों से वंचित किया है। चीनी साम्यवादी सरकार ने उन्हें अपने ईश्वर की पूजा करने या स्वतंत्र रूप से आस्था व्यक्त करने तक पर प्रतिबंध लगा रखा है। चीनी हानों द्वारा कई उइगर मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार किया गया और उन्हें गर्भपात करने के लिए मजबूर किया गया है। हालांकि, इन चरमपंथी समूहों द्वारा चीन के खिलाफ एक भी आवाज नहीं उठाई गई है, जबकि भारत में ये लगातार भारतीय लोकतंत्र का फायदा उठाकर अपना प्रचार अभियान चलाते रहते हैं।



यह समय की जरुरत है की सभी भारतीय मुसलमानों को इस तरह के गलत संगठन से अपने आप को दूर रखना चाहिए साथ ही उन उलेमाओं से भी दूरी बनानी चाहिए जो हदीस की चरमपंथी व्याख्या करते हैं और पवित्र कुरान की आयतों को दरकिनाकर कर देते हैं। ऐसे सभी लोगों का उद्देश्य इस्लाम की वास्तविक छवि को बदनाम करना है। इस प्रकार के लोग हर मजहब और पंथ में मिल जाते हैं। इस्लाम की आत्मा शांति और सौहार्द है, जो गजवा-ए हिंद की अवधारणा को खारिज करती है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि गजवा-ए हिंद की विचारधारा का प्रचार और प्रसार केवल इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है, बल्कि उन महान सूफी संतों की शिक्षाओं के खिलाफ भी है जिन्होंने भारत की भूमि को अपने प्रेम और शांति के संदेश से सिंचा है। इस्लाम हमेशा उदारवादी मार्ग पर जोर देता है, जो इस दुनिया में खुशी और शांति से रहने का सबसे अच्छा तरीका है।

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