झारखंड आए और हजारीबाग को नहीं देखा तो आपने कुछ भी नहीं देखा


गौतम चौधरी 

सतपुड़ा के घने जंगल।

नींद मे डूबे हुए से

ऊँघते अनमने जंगल।


झाड ऊँचे और नीचे,

चुप खड़े हैं आँख मीचे,

घास चुप है, कास चुप है

मूक शाल, पलाश चुप है।

बन सके तो धँसो इनमें,

धँस न पाती हवा जिनमें,

सतपुड़ा के घने जंगल

ऊँघते अनमने जंगल।


बचपन में आपने भवानी प्रसाद मिश्र की यह कविता जरूर पढ़ी होगी। मैने भी पढ़ी है लेकिन सतपुरा के घने जंगल देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाया। मैने तो उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और झारखंड के ही जंगल देखे। यहां के जंगल भी सतपुरा से कम नहीं है। दरअसल, किसी स्थान, व्यक्ति या अन्य तथ्यों की व्याख्या करने वाला जितना सशक्त होता है, वह उतना ही प्रभावशाली ढंग से विषय की व्याख्या करता है और जिसकी व्याख्या करता है उसको स्थापित कर देता है। चूकि, सतपुरा के घने जंगल की व्याख्या करने वाले आदरणीय मिश्र जी थे, इसलिए हिन्दी जगत में जंगल का प्रयास सतपुरा बन गया लेकिन अभी हाल ही में मुझे हजारीबाग के जंगल का दर्शन हुआ। सच पूछिए तो मुझे बहुत पसंद आया। झारखंड में आने के बाद मेरी व्यक्तिगत राय बनी है कि यदि झारखंड को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाए तो यहां देखने-दिखाने के लिए बहुत कुछ है। 


विगत दिनों मित्र कुमार कौशलेन्द्र कौशल के साथ हजारीबाग गया था। कौशन यानी मुन्ना बाबू ने कहा कि गौतम जी हमलोग कैनेरी हिल चल सकते हैं? घुमने की बात हो और मैं भला तैयार न होउं, ऐसा भी कभी संभव है। मुन्ना बाबू ने कहा और मै चलने को तैयार हो गया। कैनरी हिल हजारीबाग से 3 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहां एक पार्क है जिसका प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा किया जाता है तथा इस क्षेत्र में छोटे-छोटे तीन झीलें भी हैं। यहां एक निरीक्षण टवर है। यहां से हजारीबाग ठीक वैसा ही दिखता है, जैसे मसूरी से देहरादून का नजारा दिखता है। हालांकि मसूरी और देहरादून के बीच अब उतना घना जंगल नहीं है लेकिन कैनरी पहाड़ी और हजारीबाग के बीच घना जंगल है। जो निरीक्षण टावर से हरे मखमली चादर के समान दिखता है। यदि आप यहां जाएंगे तो प्रकृति का  मनमोहक दृश्य बर्बश आपको अपनी ओर आकृष्ट करेगा। पिकनिक के लिए यह एक लोकप्रिय स्थान है तथा यहां पूरे वर्ष लोग आते रहते हैं। हालांकि आजकल कोरोना के कारण कैनेरी हिल वाला वन विभाग का गेस्ट हाउस बंद है और अंदर जाना मना है लेकिन खुलने के बाद आप यहां के घुमने का लुफ्त उठा सकते हैं। पूरी पहाड़ी हरे भरे जंगलों से घिरी हुआ है। वैसे झारखंड सरकार इस क्षेत्र में एक टाइगर सफारी और एक हिरन सफारी स्थापित करने का विचार कर रही है लेकिन अभी तक यह विचार फलीभूत नहीं हो पाया है। हजारीबाग में अनेक पहाड़ियां हैं जिनमें कैनेरी पहाड़ी प्रमुख है। इस पहाड़ी पर तीन झीलें भी हैं जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती है। पहाड़ी पर एक इमारत का निर्माण किया गया है। इस इमारत से हजारीबाग के खूबसूरत दृश्य देखे जा सकते हैं जो पर्यटकों को मंत्र-मुग्ध कर देते हैं। खास कर बारिश के मौस में यह दृश्य इतना खूबसूरत हो जाता है कि पर्यटक इन तस्वीरों को अपने कैमरों में कैद करना नहीं भूलते।


भवानी मिश्र संभवत झारखंड नहीं आए होंगे। यदि वे झारखंड आए होते तो सतपुरा के घने जंगल को भूल जाते। हो सकता है कि मैं गलत होउं लेकिन हिन्दी साहित्य से झारखंड के जंगल अनछुए हैं। उसकी मुकम्मल व्याख्या नहीं हो पायी है। न तो कविताएं लिखी गयी और न ही कहानियां लिखी गयी है। हालांकि कुछ दलित एवं जनजातीय विमर्श वाले साहित्यकारों ने थोड़ी-बहुत लिखने की कोशिश जरूर की है लेकिन अभी भी बहुत कुछ लिखा जाना बांकी है। यहां के जनजाति और उनके जीवन पर तो बहुत कुछ लिखा जा चुका है लेकिन यहां के जंगल और उसकी पीड़ा पर स्वतंत्र रूप से लिखना अभी बाकी है। झारखंड के जंगल के बारे में लोगों को बताया नहीं गया, यदि बताया गया होता तो लोग सतपुरा के जंगल को नहीं झारखंड के जंगलों में अपनी कल्पनाओं के जाल बुनते। 


मुन्ना बाबू ने बताया कि हजारीबाग जिला रांची से भी पुराना है और यह इतना मनोरम और सुंदर दृश्य वाला है कि लोग दूर-दूर से यहां घूमने आते हैं। मुन्ना बाबू ने यह भी बताया कि जिस प्रकार बंगाली पर्यटक साल में कुछ दिनों के लिए बिहार के सिमुलतला में आकर रहते हैं उसी प्रकार हजारीबाग के कैनरी हिल में भी आकर रहते हैं। यहां गर्मी की छुट्टी बिताने के बाद वे अपने घर चले जाते हैं। हजारीबाग आने के बाद मुझे एक बात और जानने को मिला कि हिन्दी साहित्य के महान आंचलिक साहित्यकार आदरणीय फणीश्वर नाथ रेणू को जब लतिका जी से प्रेम हुआ तो हजारीबाग आ गए थे। लतिका जी से शादी के बाद लंबे समय तक हजारीबाग में रहे। दोनों ने शादी भी यहीं चलाई थी। इसलिए इस शहर को आप आंचलिक साहित्यकार रेणू की प्रेम नगरी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मैं तो कहूंगा कि आप भी हजारीबाग आएं और यहां के जंगल, पहाड़, पठार एवं झीलों का आनंद उठाएं। झारखंड के जंगलों को देखें। 


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