देश के लोकतांत्रिक स्वरूप को बिगाड़ने वाले PFI को हतोत्साहित करना जरूरी

 

रजनी राणा चैधरी

 

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) ने नवंबर 2006 में राष्ट्रीय विकास मोर्चा, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और अन्य संगठनों जैसे छोटे दलों के साथ विलय करके राष्ट्रीय फलक पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। हालांकि इस संगठन से जुड़े लोग खुद को समाज के निम्न वर्ग की सेवा के लिए प्रतिबद्ध बताते हैं लेकिन इनका क्षद्म एजेंडा कुछ और ही है। यह संगठन देश की एकता और अखंडता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वास्तव में, यह एक चरमपंथी संगठन है, जिसमें आपराधिक प्रवृत्ति सर्वविदित है। यह एक ऐसा संगठन है, जिसे गुप्त तरीके से संचालन के लिए जाना जाता है। इसकी संलिप्तता अपहरण, हत्या, घृणा अभियान, कट्टरपंथी संगठनों के साथ संबंध, हथियारों के अवैध कारोबार आदि में बार-बार पायी गयी है। 

 

पीएफआई हर साल जकात के नाम पर करोड़ों रुपये जमा करता है। निर्दोष मुसलमानों ने जरूरतमंदों की मदद करने की उम्मीद में पीएफआई जैसे संगठनों को अपने जकात के पैसे दान करते हैं लेकिन यह संगठन उस पैसों से आतंकी गतिविधियों में संलिप्त लोगों को सहयोग करता है। जकात देने वाले सीधे-साधे मुसलमान तो यह भी नहीं जानते हैं कि पीएफआई ने हाल ही में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) को बताया कि उन्हें प्राप्त दान का एक हिस्सा शाहीन बाग मुख्यालय में नकद के रूप में रखा गया है, जिसकी खर्च का कोई लेखा जोखा नहीं है। जांच के दौरान यह भी पाया गया कि पूरे देश में सीएए के विरोध प्रदर्शन के लिए धन का एक हिस्सा डायवर्ट किया गया था। इमान लाने वाले मुसलमान अल्लाह की बातों को मानने वाले होते हैं। अल्लाह ने खुले तौर पर आसमानी किताब पवित्र कुराम में कहा है कि जकात  केवल गरीबों या जरूरतमंदों के लिए है, निराश्रितों को, बन्धुओं को मुक्त करने के लिए, कर्ज में रहने वालों आदि के लिए है। कुरान-9ः60। सीमित ज्ञान वाला कोई भी नौसिखिया भी आसानी से यह बता सकता है कि पीएफआई की गतिविधिया इनमें से किसी भी श्रेणी में नहीं आता है।

 

पीएफआई के पास बड़ी संख्या में चरमपंथी कैडर हंै, जिन्हें खासकर वैचारिक और मजहबी प्रतिद्वंद्वियों पर हमला करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। उन कामों में शामिल होने वाले कैडरों को हथियार, आश्रय और वित्तीय संपोषण करने का काम भी यह संगठन कर रहा है। इसके बहुत सारे उदाहरण सामने आए हैं। मसलन 2008 में मैंगलोर में आयोजित पीएफआई मार्च के ध्वजवाहक सादिक नाम के एक ऐसे वरिष्ठ कैडर ने खुलासा किया कि उनके लोगों ने लालकृष्ण आडवाणी (पूर्व गृह मंत्री) के सुरक्षा से जुड़े एक एनएसजी कमांडो को मार डाला। पीएफआई, खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीय मुसलमानों से धन (करोड़ों की राशि)  एकत्र करता है और हवाला चैनल के माध्यम से इसे भारत भेजता है। इसके अलावा यह रकम 10 लाख रुपये से अधिक नहीं होती है ताकि इसका सरकारी एजेंसी पता न लगा सके। कोई आश्चर्य नहीं कि सादिक जैसे पीएफआई कार्यकर्ताओं को हत्याओं को अंजाम देने के लिए गुर्गे भर्ती करने के लिए यह धन किया जाता होगा। 

 

पैगंबर मुहम्मद ने मक्का पर विजय प्राप्त करते हुए अपने सबसे बड़े दुश्मन अबू सुफियान में से एक को माफी दी थी। यह पैगंबर की दृष्टि में शांति और प्रेम के महत्व को दर्शाता है। हालांकि, पीएफआई का कहना है कि दुश्मनों को प्यार से जीतने और टकराव न करने की सलाह उसकी कायरता को दर्शाता हैं। अपने आप को इस्लाम के तथाकथित ध्वजवाहक कहने वाला पीएफआई स्पष्ट रूप से अपने प्यारे पैगंबर द्वारा दिए गए सिख के विपरीत काम करता दिख रहा है। पीएफआई का कहना है कि शहादत की कामना करना आस्तिक की विशेषता है, लेकिन पीएफआई के पदाधिकारियों से यह पूछा जाना चाहिए कि शहादत को साबित करने के लिए, क्या शिक्षकों के हाथों को काट देना, इस्लामी चिंतन के अनुसार सही है, गैर-मुस्लिमों को मारना या आतंकवाद आदि के कार्यों में लिप्त होना कायदे इस्लाम के अनुसार जायज है? 


उग्रवादी विचारधारा के साथ, पीएफआई लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का अपमान करने में भी पीछे नहीं हट रहा है। भारत का संविधान इस्लाम के मूल सिद्धांतों पर कभी आघात नहीं करता है लेकिन पीएफआई ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि एक सच्चा मुसलमान भारत के संविधान के प्रति विश्वास या निष्ठा नहीं रख सकता है। यह इस्लाम का प्रचार करने के लिए बल के उपयोग को सही ठहराता है, मुसलमानों को कट्टरपंथी बनाता है और भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित सूफियाना इस्लाम का वहिष्कार करता है। अल-कायदा या फिर इस्लामिक स्टेट वाले चिंतकों से पीएफआई की विचारधारा मिलती है। इसीलिए इस संगठन को यदि जेहादी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

 

वर्तमान समय में भारत के मुस्लिम युवाओं का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है। बहुत सारे संगठन उस शून्य को भरने की कोशिश कर रहे हैं। मुस्लिम युवाओं को उन संगठनों के जाल में नहीं फंसना चाहिए जो उन्हें अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। मुस्लिम युवाओं का नेतृत्व समुदाय के भीतर से आना चाहिए, लेकिन यह पीएफआई की तरह एक राष्ट्र-विरोधी, लोकतंत्र विरोधी और हिंसक संगठन नहीं होना चाहिए। उनके अनुयायियों को भारत के कानून की अवमानना, आपराधिक मामलों में अपमान और घृणा के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा। इस्लाम ने हमेशा शांति और भाईचारे को बढ़ावा दिया है। भारतीय मुसलमानों को इस्लाम की इस विरासत को आगे बढ़ाना चाहिए। हालांकि भारतीय मुसलमानों के बीच यह संगठन बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाया है।

 

इस संगठन का प्रभाव खासकर दक्षिण के प्रांतों में ही सिमटा हुआ है लेकिन इस संगठन के पास संसाधनों की कमी नहीं है। साथ ही यह संगठन इस्लामिक महासंघ की बात करता है और आॅटोमन जैसे आधुनिक इस्लामिक साम्राज्यवाद की परिकल्पना करता है इसलिए भारत के कुछ युवा इस संगठन के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि इसके लिए भारत की वर्तमान बहुसंख्यक कट्टरता भी जिम्मेबार है लेकिन भारतीय बहुसंख्यक मुसलमानों ने जिस प्रकार भारत के संविधान के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है वह काविले तीरीफ है। बड़ी संख्या में मुस्लिम युवा आधुनिक भारत के निर्माण में अपनी भूमिका तय कर रहे हैं। इसे और ज्यादा विस्तार देने की जरूरत है। यदि पीएफआई जैसे संगठन मजबूत होते हैं तो इससे बहुसंख्यक कट्टरतपंथियों को भी बल मिलेगा और यह देश की एकता, अखंडती, शांति और विकास को चोट पहुंचाएगा। तो आइए ऐसे कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ अमन पसंद, भारतीय संविधान में विश्वास करने वाले इकट्ठे हों और पीएफआई जैसे संगठनों को हतोत्साहित करें। 


Comments

Popular posts from this blog

अमेरिकी हिटमैन थ्योरी और भारत में क्रूर पूंजीवाद का दौर

आरक्षण नहीं रोजगार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे सरकार

हमारे संत-फकीरों ने हमें दी है समृद्ध सांस्कृतिक विरासत