भगवान वाल्मीकि मंदिर को तीर्थ बनाने की योजना में जुटी पंजाब सरकार-गौतम चैधरी

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधी: काममोहितम॥ 
यह श्लोक भगवान वाल्मीकि के मुख से अनायास ही नहीं निकला था। इस श्लोक के पीछे भवान वाल्मीकि के हजारों साल की तपस्या थी। कहते हैं कि जब वाल्मीकि के मुख से उक्त श्लोक फूटा, तो वहां ब्रह्मा प्रकट हुए और इस श्लोक का नामाकरण करते हुए उन्होंने वाल्मीकि से कहा कि आज से आप ऋषि हुए और दुनिया आपको ऋषि बालमीकि के नाम से पुकारेगी। प्रशन्न होकर श्रृष्टि के रचइता ने कहा कि आपके मुह से निकला छंद, अनुष्टुप छंद कहलाएगा। भगवान ब्रह्मा ने वाल्मीकि से अनुष्टुप छंद में एक महान ग्रथ के प्रणयन का निवेदन किया। अपनी बात कहकर भगवान ब्रह्मा अंतरध्यान हो गये, लेकिन वाल्मीकि को चैन कहा। ब्रह्मा की प्रेरणा से भगवान वाल्मीकि ने एक ग्रथ की रचना की जिसका नायक उन्होंने मर्यादा पुषोत्तम भगवान श्री राम को बनाया। कालांतर में ग्रंथ को वाल्मीकि रामायण के नाम से ख्याति मिली।
दरअसल भगवान बालमीकि उसी ग्रंथ अमर हो गये। उन्होंने रामायण में जिस आदर्श का चित्रण किया है, वह अभिनव है। ग्रंथ में आदर्श की पराकाष्ठा का वरणन मिलता है। भगवान राम ग्रंथ के नायक हैं और भगवति माता सीता ग्रंथ की नायिका हैं। ग्रंथ के अनुसार माता सीता के दोनों पुत्रों का न केवल संस्कार भगवान वाल्मीकि के आश्रम में हुआ था, अपितु लव और कुश के संपुर्ण व्यक्तित्व के निर्माण में भगवान वाल्मीकि की अपूर्व भूमिका थी।
भगवान बालमीकि के जन्म स्थान के बारे में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि वाल्मीकि का जन्म सदानीरा यानि नारायणी नदि के किनारे नारायणी के धरावतरण वाले स्थान पर हुआ था, लेकिन इस तथ्य का खंडन भी कई विद्वानों ने किया है। बालमीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि ने श्लोक संख्या 7/93/16, 7/96/18, और 7/111/11 में लिखा है कि वे प्रचेता के पुत्र हैं। मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है।
बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्मा के पुत्र बताए जाते हैं। यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम अग्नि शर्मा एवं रत्नाकर था। भगवान वाल्मीकि रामायण में भी वाल्मीकि के जन्म स्थान के बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। लेकिन वाल्मीकि रामायण में वर्णित तथ्यों के आधर पर विद्वान इतिहासकरों के एक समूह का मानना है कि भगवान वाल्मीकि का जन्म स्थल शिवालिग की तलहटी में हुआ हागा। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान वाल्मीकि को नाग जाति का भी बताया गया है।
नाग जातियों की कुल आठ शाखाएं भारत में पायी जाति थी। इन्हें शेष, वासुकी, कर्कोटक, पद्म, तक्षत, महापद्म, शंख और कुलिक के नाम से जाना जाता है। इस बात का कही जिक्र नहीं मिलता है कि भगवान वाल्मीकि का जन्म नाग जाति की किस शाखा में हुई थी। तथ्यों की मिमांशा से यह बात सामने आयी है कि भगवान वाल्मीकि भारत के तत्कालीन अभिजात्य जाति से अपना संबंध नहीं रखते थे।
किंवदन्ती है कि बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक नि:संतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेम पूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहाँ का भील समुदाय असभ्य था और वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म ही उनके लिये जीवन यापन का मुख्य साधन था। हत्या जैसा जघन्य अपराध उनके लिए सामान्य बात थी। उन्हीं क्रूर भीलों की संगति में रत्नाकर पले, बढ़े, और दस्युकर्म में लिप्त हो गये।
युवा हो जाने पर रत्नाकर का विवाह उसी समुदाय की एक भीलनी से कर दिया गया और गृहस्थ जीवन में प्रवेश के बाद वे अनेक संतानों के पिता बन गये। परिवार में वृद्धि के कारण अधिक धनोपार्जन करने के लिये वे और भी अधिक पाप कर्म करने लगे।
एक दिन नारद ऋषि उस वन प्रदेश से गुजर रहे थे। रत्नाकर ने उनसे धन की मांग की और धन न देने की स्थिति में हत्या कर देने की धमकी भी दी। नारद मुनि के यह पूछने पर कि वह ये पाप कर्म किस लिए करता है तो रत्नाकर ने बताया कि परिवार के लिये। इस पर नारद जी ने पूछा कि जिस तरह तुम्हारे पाप कर्म से प्राप्त धन का उपभोग तुम्हारे समस्त परिजन करते हैं क्या उसी तरह तुम्हारे पाप कर्मों के दण्ड में भी वे भागीदार होंगे? रत्नाकर ने कहा कि न तो मुझे पता है और न ही कभी मैने इस विषय में सोचा है।
नारद जी ने कहा कि जाकर अपने परिवार के लोगों से पूछ कर आओ और यदि वे तुम्हारे पाप कर्म के दण्ड के भागीदार होने के लिये तैयार हैं तो अवश्य लूटमार करते रहना वरना इस कार्य को छोड़ देना, यदि तुम्हें संदेह है कि हम भाग जायेंगे तो हमें वृक्षों से बांधकर चले जाओ।
नारद जी को पेड़ से बांधकर रत्नाकर अपने परिजनों के पास पहुँचे। पत्नी, संतान, माता-पिता आदि में से कोई भी उनके पाप कर्म में के फल में भागीदार होने के लिये तैयार न था, सभी का कहना था कि भला किसी एक के कर्म का फल कोई दूसरा कैसे भोग सकता है!
रत्नाकर को अपने परिजनों की बातें सुनकर बहुत दुख हुआ और नारद जी से क्षमा मांग कर उन्हें छोड़ दिया। नारद जी से रत्नाकर ने अपने पापों से उद्धार का उपाय भी पूछा। नारद जी ने उन्हें तमसा नदी के तट पर जाकर राम-राम का जाप करने का परामर्श दिया। रत्नाकर ने वैसा ही किया परंतु वे राम शब्द को भूल जाने के कारण मरा-मरा का जाप करते हुये अखण्ड तपस्या में लीन हो गये। तपस्या के फलस्वरूप उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुये।

ऋषि वाल्मीकि के जन्म स्थान पर विवादों से दूर एक तथ्य यह भी है कि उनका जन्म अमृतसर से 11 किमी. पश्चिम स्थित चोगावाला रोड के रामतीर्थ नामक स्थान पर हुआ था। पंजाब सरकान ने उक्त स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाने की योजना बनाई है। पंजाब सरकार ने मंदिर की प्रतिकृति जारी कर दी है। सरकार ने अमृतसर के रामतीर्थ नामक स्थान पर बनने वाले भव्य मंदिर के लिए 115 करोड रूपये निर्गत किये हैं। मंदिर के निर्माण में सरकार काफी रूचि ले रही है। इस मंदिर का अस्थापत्य पंजाब-सिख शैली पर आधारित होगा। मंदिर निर्माण के लिए गुरूनानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर की तकनीक और भवन निर्माण अस्थापत्य विज्ञान की सहायता ली जा रही है। सूचना के अनुसार मंदिर परिसर 34104 घन फिट के क्षेत्रफल में फैला होगा। मंदिर का गर्भगृह 84 फिट लम्बा, 84 फिट चैरा और 84 फिट उचा होगा। मंदिर में गुरूद्वारे की तरह चार द्वार होंगे। इसके अलावे लंगर हॉल, गाडी पार्किंग आदि का निर्माण होगा। पंजाब सरकार के द्वारा प्रस्तावित वाल्मीकि मंदिर तक जाने के लिए व्यवस्थित सडक मार्ग की व्यवस्था की जाएगी।
पंजाब सरकार ने इस स्थान को वाल्मीकि मंदिर के लिए अनायास ही नहीं चुना है। इतिहासिक तथ्यों के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि वालमीकि ने तमसा नदी के किनारे तपस्या की थी। यही नहीं भगवान राम के दोनों बेटे लव एवं कुश का पंचनद प्रदेश से खास लगाव था। भगवान राम के बाद अयोध्या की राजगद्दी पर लव बैठे और उनके सेना की कमान कुश के हाथ में दिया गया। उस समय पंचनद प्रदेश जो पांच नदियों रावि, सतलुज, व्यासा, झेलम और चेनाव के दोआवों में वितृत था उसपर लगातर मध्य ऐशिया से आने वाली जातियों का आक्रमण हो रहा था। साथ ही पंचनद प्रदेश, जातियों में विभाजित और अशांत था। चूकी भगवान वाल्मीकि इस क्षेत्र को संगठित और व्यवस्थित देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने दोनों शिÓय लव और कुश को पंचनद प्रदेश में शांति स्थापित करने के लिए प्ररित किया। कहा जाता है कि लव और कुश ने पंचनद प्रदेश को न केवल शांत किया अपितु फिर से संगठित भी किया। विद्वानों का मानना है कि शांत पंचनद में भगवान वाल्मीकि ने अपना आश्रम बनाया और कई बडे ग्रेथों की रचना की। भगवान वाल्मीकि का जन्म कहां हुआ था इसपर भले विवाद हो लेकिन इस बात पर विद्वान एक मत हैं कि पंचनद प्रदेश को भगवान राम के दोनों पुत्रों ने फिर से संगठित किया था। पुरानों में भगवान वाल्मीकि के आश्रम की भी चर्चा है जो रावि और व्यास के दोआव में कही अवस्थि था। हालांकि नेपाल के वीरगंज नामक जिले के भइसालोटन नामक स्थान में वाल्मीकि मुनि के आश्रम की कथा सुनायी जाती है, लेकिन पंचनद प्रदेश से चूकि लव और कुश का संबंध रहा है इसलिए वाल्मीकि के आश्रम की अवधारणा को नकारा नहीं जा सकता है। संभवत: वाल्मीकि का जन्म पंचनद प्रदेश में हुआ होगा और वे तत्कालीन मिथला में जाकर तपस्या किये होंगे। संभव है कि उन्होंने लव और कुश को सदानीरा नदि के किनारे शिक्षा दी हो, लेकिन रामायण की रचना के लिए जो माहौल मिलना चाहिए और जिस प्रकार के साहित्यिक वातावरण होना चाहिए वह पंचनद प्रदेश में ही संभव हो सकता था। इसलिए यह निर्विवाद है कि रामतीर्थ का स्थान वाल्मीकि के जीवन से जुडा होने का इतिहासिक महत्व रखता है। आज भी पंजाब के सोढी और वेदी आने आप को भगवान राम के वंसज बताते हैं। उनका मानना है कि वे लव, कुश के संतान हैं।
गुराज में पटेलों की दो शाखा पायी जाती है। एक शाखा को लेउआ पटेल कहते हैं और दूसरी शाखा करूआ पटेलों की है। उनका मानना है कि वे दोनों मूलत: मध्य एशिया के उम्मा नामक नदि के पास से भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश किये। दोनों शाखाओं के आदि पुरूष लव और कुश हैं। हालांकि कुछ पटेलों का मानना है कि पंजाब के जिस क्षेत्र में लव ने शांति स्थापित की उस क्षेत्र के पटेल लेउआ कहलाए और जिसे कुश ने शांत किया उसे करूआ पटेल कहा जाने लगा। गुजरात के पटेल अपने को पंजाब से ही स्थानांतरित मानते हैं।
इस मामले में पंजाब में और कई शोधों का मार्ग प्रसस्थ होता है, लेकिन वाल्मीकि मंदिर की आधारशिला से पंजाब के पुरातन इतिहास पर से एक बार फिर से पर्दा उठने की उम्मीद जताई जा रही है। पंचनद प्रदेश की सीमा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में अरब सागर तक थी और पश्चिम में बसरा से लेकर पूरव में सरस्वती नहीं तक फैली थी। समय के परिवर्तन से न केवल इसका इतिहास बदला है अपितु पंचनद का भूगोल भी बदल गया है। तथ्यों के खोज की जरूरत है। जिस प्रकार लुप्त हो गयी सरस्वती पर लगातार शोध हो रहे हैं, उसी प्रकार पंजाब और पंचनद पर व्यापक शोध की गुंजाइस है। पंजाब के अनुभवी और दूरद्रÓटा मुख्यमंत्री सरदार परकाश सिंह बादल ने वाल्मीकि मंदिर बनाने का निर्णय लेकिर पंजाब के वियावानों में छुपे विभूतियों को फिर से उजागर करने का बीरा उठाया है उसी प्रकार पंजाब सरकार पंचनद पर एक समिति बनाकर व्यापक शोध कराएगी ऐसी अपेक्षा लोगों की हो रही है। पंचनद के विचारकों, ऋषियों और महान राजाओं के इतिहास पर व्यापक काम की योजना बने पंजाब सरकार से ऐसी अपेक्षा है। ऐसे नि:सन्देह रामतीर्थ का वाल्मीकि मंदिर देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पन्ना जोडने वाला साबित होगा।

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