समझौता एक्सप्रेस विस्फोट, एक आपराधिक मामल और दो जांच व्याख्या-गौतम चैधरी

इन दिनों संत असीमानंद, लोकेश शर्मा, राजेन्द्र चैधरी और कमल चैहान पंचकूला स्थित राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) के विशेष न्यायालय में अपने को निर्दो’ा साबित करने की लडाई लड रहे हैं। इन चारों पर 18 फरवरी सन् 2007 की रात को अटारी, पाकिस्तान जा रहे समझौता एक्सप्रेस में बम धमाके की साजिश का आरोप है। अद्यतन जानकारी के अनुसार संत असीमानंद ने जांच अभिकरण के विशेष न्यायालय में अपनी जमानत याचिका दाखिल की है। इस साल के प्रथम चरण में संत असीमानंद के अधिवक्ता नरदेव शर्मा ने पंचकूला के विशेष न्यायालय में संत असीमानंद के जमानत के लिए आवेदन किया था। उस आवेदन पर अभी तक मात्र तीन बहसें हो पायी है। दो बहस स्व. शर्मा करके गये और तीसरी बहस विगत 23 अक्टूबर को वरिष्ठ अधिवक्ता मतबेन्दर सिंह ने किया। अब अधिवक्ता नरदेव शर्मा के बहस पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा क्योंकि अधिवक्ता शर्मा की विगत दिनों मृत्यु हो गयी। समझौता विस्फोट मामले में असीमानंद के जुडे पहलू का सबसे खास तथ्य यह है कि जमानत याचिका दाखित करने के बाद विशेष न्यायालय के न्यायाधीश तीन तारीख पर सुनवाई करने से मना कर दिये। जब अधिवक्ता ने न्यायालय से निवेदन किया कि न्यायमूर्ति वही तारीख दें जिस दिन वे सुनवाई कर सकें, तब न्यायालय ने जमानत याचिका पर सुनवाई की प्रक्रिया प्रारंभ की। इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि संत असीमानंद की याचिका दाखित करने के बाद मामले की सुनवाई करने वाले तीन न्यायाधीश बदल चुके हैं। आजकल जो मामले को देख रही हैं वे चैथी न्यायाधीश हैं।
समझौता बम विस्फोट मामले को कई आतंकी घटनाओं से जोडा गया है। सभी मामले को आजकल राष्ट्रीय जांच अभिकरण अपने हिसाब से मामला दर्ज कर जांच कर रहा है। इस मामले को मक्का मस्जिद विस्फाट-हैदराबाद, मोडासा मस्जिद विस्फोट-गुजरात, मालेगांव विस्फोट-महाराष्ट्र आदि से जोड कर जांच की जा रही है। जांच अभिकरण का मानना है कि इन संपूर्ण मामलों में एक ही समूह का हाथ है और वह समूह हिन्दू चरपंथी हैं। इस संदर्भ में विगत दिनों राजनीतिक पार्टियों ने भी बयान दिये और एक नये प्रकार की परिकल्पना प्रतिस्थातिप करने का प्रयास किया। खासकर वर्तमान केन्द्र सरकार की सबसे बडी घटक कांग्रेस के नेताओं ने हिन्दू आतंकवाद को भगवा रंग से जोड दिया और कांग्रेस पार्टी के नेता तथा वर्तमान सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री पी. चितंबरम ने भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया। फिर बाद में कई नेताओं ने भगवा आतंकवाद और हिन्दू आतंकवाद की परिकल्पना को बार बार दुहराया। दरअसल समझौता एक्सप्रेस मामले को हिन्दू आतंकवाद से जोडने की कहानी एनआईए द्वारा फिर से मामला दर्ज करने के बाद प्रारंभ होती है। उससे पहले समझौता एक्सप्रेस मामले के तीन जांच हो चुके हैं।

पहली जांच हरियाणा एटीएस ने किया। उसके बाद केन्द्रीय जांच एजे”िायों ने जांच किया फिर अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंशी ने भी अपने ढंग से जांच की। तीन जांचों की मिमांशा एक जैसी है। तीनों में एक ही कहानी है। तीनों में मुस्लिम आतंकवादियों को आरोपित किया गया है। तीनों में यही कहा गया है कि पाकिस्तान के आतंकी संगठन, मामले में संलिप्त हैं। पाकिस्तान के आतंकियों ने भारत में अपने सहयोगी आतंकवादी मौड्यूल के साथ मिलकर समझौता एक्सप्रेस में बम रखा जो 18 फरबरी 2007 की रात को पानीपत के पास विस्फोट हुआ।
सन् 2010 से पहले समझौता एक्सप्रेस मामले की जांच करने वाली जांच संस्थाएं यह मानकर चल रही थी कि विस्फोट में लस्करे तोईबा और सिमी का संयुक्त रूप से हाथ है। इस जांच में समझौता एक्सप्रस में बम रखने वालों का नाम, उसके लिए पैसे उपलब्ध कराने वालों का नाम, उसके लिए योजना बनाने वालों का नाम सब उद्घाटित हो चुका था। उस जांच में सबसे बडी भूमिका तत्कालीन स्थानीय वरीय पुलिस अधीक्षक भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी भारतीय अरोडा ने निभाई थी। उस जांच में बताया गया है कि अमेरिकी नागरिक डेविड हेडली समझौता एक्सप्रस का मास्टर माइंड है। इसकी पुष्टि हेडली की पत्नी ने भी किया है। उसी जांच को आधार बनाकर सफदर नागोरी को इंदौर से गिरफ्तार किया गया। फिर जांच एजेंशी ने समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में प्रयुक्त होने वाले सूटकेश का पता लगाया। उस सूटकेश को अभिनव बैग सेंटर, कोठारी मार्केट, इंदौर से खरीदा गया था। बैग खरीदने वालों का भी नाम पूर्व के जांच समितियों ने बताई है। पहले जांच करने वाली समितियों ने स्पष्ट किया है कि कुछ पाकिस्तान और कुछ भारत के असामाजिक और चरमपंथी समूह ने समझौता एक्सप्रेश विस्फोट को अंजाम दिया। उस जांच के आधार पर सफदर और उसके साथियों को मध्य प्रदेश की एक अदालत ने नार्को जांच का आदेश दिया। जांच में खुलासा हुआ कि समझौता विस्फोट में लस्कार और सिमी के आतंकियों की भूमिका थी। इस पूरे मामले पर 10 अप्रैल सन् 2008 को एफ.एस.एल. निदेशक परवेज ने एक पत्रकार वार्ता आयोजित की। उस पत्रकार वार्ता में बताया गया कि नार्को के दौरान नागोरी ने बताया है कि सिद्दकी और अब्दुल नामक व्यक्ति ने समझौता एक्सप्रेस में बम छुपाया था। पैसे की व्यवस्था सिमी के कार्यकत्र्ता अब्दुल रज्जाक ने की। प्राथमिक जांच के आधार पर 2000 पृष्ठों का एक दस्तावेज भारत सरकार ने पाकिस्तान को सौंपा। वही दस्तावेज भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को भी सौंपा और उस 2000 पृष्ठों वाले दस्तावेज को आधार बनाकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लश्कर पर प्रतिबंध लगा दिया। लश्कर के सारे विदेशी बैंक खाते सील कर दिये गये। 
इन तमाम सबूतों को नजदअंदाज कर एनआईए ने जब जांच प्रारंभ की तो एक नई कहानी सामने आई, जो बिलकुल अभिनव और परिकल्पनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया। इस जांच में नये सिरे से संत असीमानंद को समझौता एक्सप्रेस विस्फोट का मुख्य आरोपी बनाया गया। संत को किस आधार पर अरोपी बनाया गया वह अभी तक रहस्य बना हुआ है। इस रहस्य को उदघाटित करने के लिए खुद जांच अभिकरण ने पंचकूला के विशेष न्यायालय में एक आरोप-पत्र प्रस्तुत किया। उसमें जांच अभिकरण ने असीमानंद पर अरोप लगाया है कि असीमानंद ने गुजरात में रहने वाले एक व्यक्ति को 25 हजार रूपये उपलब्ध कराए। जांच अभिकरण ने अपने आरोप-पत्र में असीमानंद से पैसे प्राप्त करने वाले व्यक्ति का नाम भी दर्ज किया है। समझौता एक्सप्रेश विस्फोट की नयी परिकल्पना के आधार को पुख्ता करने के लिए एनआईए ने और आरोपियों को इस मामले से जोडा। उन आरोपियों में से लोकेश शर्मा, कमल चैहान और राजेन्द्र चैधरी पुलिस अभिरक्षण में है। इस मामले में बताया जा रहा है कि एनआईए की पहुंच से तीन आरोपी अभी दूर हैं। कहा जा रहा है कि एक आरोपी सुनील जोशी की हत्या हो चुकी है। दूसरा आरोपी संदीप डांगे और तीसरा आरोपी रामचंद्र कलसांग्रा पर एनआईए ने लाखों रूपये के इनाम रखे हैं, पर यह दोनों अभी भी जांच एजेंशी की गिरफ्त से बाहर है।

इधर असीमानंद की जमानत याचिका पंचकूला के विशेष न्यायालय में लंबित है। जिस गवाहों के बयान पर संत असीमानंद को आरोपित किया गया है उन गवाहों की संख्या लगभत 250 है। संत असीमानंद को आरोपित करने के लिए एनआईए ने तीन प्रकार के जांच को आधार बनाया है। पहला, मालेगांव और अन्य विस्फोट मामले के आरोपियों से असीमानंद की बात-चित। वह भी असीमानंद के चालक के नाम से निर्गत किये गये मोवाइल सीम कार्ड से। दूसरा आधार है, खुद असीमानंद की स्वीकार्यता और तीसरा आधार है, असीमानंद के खिलाफ गवाहों का। ये तीनों आधार न्यायालय में बहस के इंतजार में है। असीमानंद की जमानत याचिका पर कुल तीन बहसों में से पहले वाले दो बहस का अब कोई औचित्य नहीं बताया जा रहा है क्योंकि उस बहस को अंजाम देने वाले अधिवक्ता नरदेव शर्मा की मृत्यु हो चुकी है। अब इस मामले पर नये सिरे वरिष्ठ अधिवक्ता मतबेन्दर सिंह बहस को तैयार हैं। असीमानंद समझौता विस्फोट मामले में अपराधी हैं या नहीं यह तो वक्त बताएग और न्यायालय के न्यायाधीश बहस के बाद तैय करेंगे लेकिन एक ही मामले की दो जांच व्याख्या नहीं हो सकती है। वह भी अपने देश के अंदर के लिए अलग और देश के बाहर के लिए अलग।

नोट ः - समझौता विस्फोट प्रकारण पर अभी लिखता रहूंगा। यह आलेख असीमानंद के अधिवक्ता जिन्होंने न्यायालय में उनके लिए जमानत याचिका दाखित की स्व. नरदेव शर्मा और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के अधिवक्ता बलदेवराज महाजन के साथ वार्ता के आधार पर लिखा गया है। 

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