सुशील मोदी के आरोपों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए-गौतम चैधरी

देशभर में इन दिनों चारा घोटाले मामले में केन्द्रीय जांच ब्यूरो विशे’ा न्यायालय के फैसला पर चर्चा हो रही है। लगभग प्रत्येक दूरदर्शन वाहिनियां लालू जी की राजनीतिक भवि’य को खंगाल रहा है। इन दिनों लालू जी की राजनीति और उनके पार्टी का नफा नुक्शान चर्चा का वि’ाय बना हुआ है। हर ओर यही चर्चा है कि आखिर, लालू प्रसाद यादव को उसके किये की सजा मिल गयी। हालांकि इस मामले में केवल लालू यादव को ही सजा नहीं सुनाई गयी है, सबसे गंभीर आरोप बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री पं. जगन्नाथ मिश्र पर मढा गया है। सनद रहे कि इस केस में कई नेता और नौकरशाह पहले से जेल की चाहरदिवारी में कैद हैं।

सांसद जगदीश शर्मा को मामले में अहम आरोपी बनाया गया है। इन तमाम चर्चा और आरोपों में एक अहम मामला बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता सुशील कुमार मोदी ने उठाया है। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर चारा घोटाले के मुख्य आरोपी श्याम विहारी सिन्हा से एक करोड रूपये लेने का आरोप लगाया है। हालांकि मोदी जी से पहले इस मामले को बिहार के पूव पशुपालन मंत्री गिरीराज सिंह ने उठाया और दूरदशन वाहिनियों के समक्ष कहा था कि लालू जी तो जेल चले गये, अब नीतीश जी भी जेल जाएंगे। पूर्व उप-मुख्यमंत्री मोदी ने नीतीश की पार्टी के एक और नेता, शिवानन्द तिवारी पर भी 30 लाख रूपये लेने का अरोप लगाया है। मोदी का कहना है कि चारा घोटाले के मुख्य आरोपी श्याम विहारी सिन्हा ने किसी मिथलेश सिंह के माध्यम से नीती”ा कुमार को एक करोड रूपये भिजवाये। उन दिनों नीतीश समता पार्टी बनाकर लालू यादव के खिलाफ संघर्’ा कर रहे थे।

चारा घोटाले में यदि आरोपियों की गवाही पर पं. जगन्नाथ मिश्र और जगदीश शर्मा को सजा हो सकता है, यदि गवाहों के बयान पर नौकरशाह और व्यापारियों पर केस दर्ज हो सकता है, तो फिर मुख्य आरोपी श्याम विहारी सिन्हा की गवाही पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश पर मामला क्यों नहीं दर्ज हो सकता है? यह प्रश्न वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कितना सार्थक है यह तो वक्त बताएगा, लेकिन प्रश्न में दम है क्योंकि जो व्यक्ति प्रश्न खडा कर रहा है, वह कोई साधारन व्यक्ति नहीं है। उसने बिहार की राजनीति में बदलाव का मार्ग प्रसस्थ किया है। चारा घोटाले के खिलाफ सबसे ज्यादा और मजबूती से लडने वाला व्यक्ति नीतीश कुमार पर अरोप लगा रहा है। यही नहीं यह आरोप वह लगा रहा है जो विगत सात वर्’ाों तक नीतीश कुमार के साथ सरकार में बराबर का साझेदार रहा। संयोग से सुशील मोदी नीतीश सरकार में पशुपालन मंत्री भी रहे हैं। इस आरोप की महत्ता तब और बढ जाती है जब चर्चा यह होती है कि उन दिनों चारा घाटाले के मुख्य सह आरोपी कु’ण मोहन प्रसाद से भारतीय जनता पार्टी के कुछ छुटभइये नेता मिला करते थे। हालांकि अभी तक के जांच में इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है कि भाजपा के नेता चारा घोटाले के आरोपियों से पैसा लेते थे या नहीं लेते थे, लेकिन यह बात किसी से भी छुपा नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी के एक तत्कालीन वरिष्ठ नेता, जो आजकल राजनीति की मुख्यधारा में नहीं हैं कृ’ण मोहन प्रसाद के यहां आया-जाया करते थे, बावजूद सुशील कुमार मोदी ने नीतीश कुमार पर आरोप लगया, यह अपने आप में बडी बात है।

मोदी जानते हैं कि नीतीश कुमार के खिलाफ बोलने के बाद नीतीश और उनकी पार्टी के लोग भी भाजपा पर हमला बोलेंगे। मोदी यह भी अच्छी तरह जानते है कि उनकी पार्टी के नेता चारा घोटाले के आरोपियों से मिलते हरे हैं, लेकिन मोदी ने नीतीश कुमार पर अरोप मढकर यह साबित कर दिया है कि मोदी चारा घोटाले की जांच को एक निश्चित दिशा देना चाहते हैं। सुशील मोदी का अरोप सही है या गलता यह तो केन्द्रीय जांच ब्यूरो ही बता सकता है लेकिन मोदी के आरोप की मिमाशा पर कई सवाल खडे होते हैं।

उन दिनों रांची में यह बात सारेआम चर्चा में थी कि श्याम विहारी सिन्हा केवल लालू यादव या लालू यादव की पार्टी को ही पैसा नहीं दिया करते हैं अपितु वे विपक्षी दलों के नेताओं को भी उपकृत करते हैं। यह कितना सत्य है यह तो पता नहीं लेकिन उन दिनों अखबरों की शुखियां यह भी बनी कि चारा घोटाले के मुख्य आरोपी श्याम विहारी सिन्हा और कृ’ण मोहन प्रसाद ने रांची और तत्कालीन बिहार के जनजातीय क्षेत्र में कुछ सामाजिक संगठनों को भी पैसा उपलब्ध कराया। श्याम विहारी सिन्हा के द्वारा सीबीआई जांच के दौरान कबूलनामों की सूचि सार्वजनिक की जाये तो कई लोग और कई संगठन के नुमाईंदे बेनकाब हो जाएंगे। कहा जाता है कि अपने कार्यकाल में मुख्यमंत्री पं. जगन्नाथ मिश्र ने श्याम विहारी सिन्हा को सेवा विस्तार के लिए आदेश जारी किया था।

कुछ बातें आज केन्द्रीय जांच ब्यूरो के आरकाईव में दफन है, जो समय के साथ बाहर आएगी। श्याम विहारी सिन्हा के अलावा चारा घोटाले में बनाए गये मुख्य सह आरोपी कृ’ण मोहन प्रसाद के संबंधों को खंगालेंगे तो बात बहुत उपर तक जाएगी। एक जानकार का तो यहां तक कहना है कि उन दिनों श्याम विहारी सिन्हा और कृ’ण मोहन प्रसाद रांची के कई गैर सरकारी संगठनों को पैसा दिया करते थे। ये दोनों एक ऐसे व्यक्ति थे जो राजनीतिक व्यक्तियों को न केवल चुनाव के समय पैसा दिया करते थे अपितु छोटे-छोटे कार्यक्रमों को लेकर भी पैसा उपलब्ध कराते थे। सुशील कुमार मोदी की बातों को हो सकता है कुछ लोग, हल्के में ले रहे हों लेकिन मोदी छोटी बात करने वाले नेताओं में से नहीं हैं। मोदी ने बडी गंभीरता से चारा घोटाले की लडाई लडी और उस लडाई को लक्ष्य तक पहुंचाया। हालांकि चारा घोटाले में लालू खलनायक बनकर सामने आये लेकिन पर्दे के पीछे कई बडे लोग हैं जिन्होंने चारा घोटाले के पैसे को बडी बारीकी और शातिराना तरीके से ठिकाने लगाया है। मोदी का बयान उन राजों को बाहर निकाल सकता है। 

उन दिनों रांची में मुख्य मार्ग में दो बडे मार्केट कप्लेक्स बनाए गये। एक मार्केट को जीएलई चर्च कप्लेक्स के नाम से जाना जाता है तो दूसरे को सैनिक मार्केट कहते हैं। दोनों मार्केट कप्लेक्स किसने बनवाए और उसके पैसे का श्रोत क्या है, इसपर जांच हो तो और कई राज खुल सकते हैंं। उन दिनों पटना से छपने वाली एक हिन्दी दैनिक के ब्यूरो प्रमुख कोई राय साहब हुआ करते थे। उन्होंने अपने बेटे के लिए जीएलई चर्च कप्लेक्स में एक दुकान बुक करवाया था। यह घटना आज से 15 साल पहले की है। जीएलई चर्च कप्लेक्स को बनाने में कांग्रेस के एक बडे नेता का हाथ बताया जाता है। वह कांग्रेसी नेता कप्लेक्स मार्केट का अध्यक्ष भी रह चुके हैं। स्थानीय जानकार बताते हैं कि चारा घोटाले का पैसा उस चर्च कप्लेक्स में भी लगा है। चर्चा तो यहां तक है कि इस बात को अखबर और समाचारों में मैनेज करने के लिए उक्त पत्रकार को भी उपकृत किया गया था।

बिहार का जनजातिय क्षेत्र विभिन्न प्रकार के शो’ाण का शिकरा रहा है। रांची में कांग्रेस के एक बडे नेता हुआ करते थे। वर्दमान कम्पाउंड में उनका निवास था। नेता जी अब नहीं रहे। उनके छोटे भाई ने एक्टिव पाॅलटिक्स सिखाने के लिए एक कालेज भी खोला, जो नहीं चल पाया। शायद आजकल उस नेता जी की विरासत उनका भाई सम्हाल रहा है। रांची के सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री उनके सामने बच्चे थे। जिस समय बिहार के साथ झारखंड जुडा था उस समय उक्त नेता जी पर पूरे बिहार के कांग्रेसी चुनावखर्च का जिम्मा होता था।

कालांतर में उन्होंने एक हिन्दी का साप्ताहिक निकाला। उन दिनों रांची से रांची एक्सप्रेस नाम की हिन्दी में दैनिक छपता था। जब कांग्रेस के नेता ने अखबर निकाल लिया तो कुछ समर्थकों ने कहा कि वे उसे वे दैनिक करें। बाद में अखबर दैनिक हो गया। उन्ही दिनों एक बडे उद्योग समूह के दामाद, तार बनाने वाली कम्पनी के मालिक को बिहार के जनजातिय क्षेत्र में अपना पैर पसारने के लिए एक अखबर की आवश्यकता महसूस हुई और उक्त कांग्रेसी नेता के स्वामित्व में निकलने वाला अखबर मात्र दो करोड में बिक गया। उस अखबर के लिए साम्यवादी मनोवृति के एक सरकारी सेवा से त्याग-पत्र देकर पूर्व प्रधानमंत्री के प्रेस सलाह रह चुके उत्तर प्रदेश के बलिया निवासी को रांची लाया गया। महाशय अखबर के संपादक हो गये। उन्होंने जबरदस्त प्रचार किया कि वे जयप्रकाश नारायण की धार के हैं। संयोग से वे जयप्रकाश जी के गांव के ही रहने वाले हैं। उस अखबर के छपने और आगे बढने का समय तथा चारा घोटाले का समय लगभग एक जैसा है। हालांकि अखबर के संपादक अपने को समाजवादी बताते रहे हैं, लेकिन उनको जानने वाले उन्हें अच्छी तरह जानते हैं कि वे बनारस हिन्दू विवि. में का. लाल बहादुर सिंह नामक चरम साम्यवादी के साथ काम किया
करते थे। जानकारी में रहे कि लाल बहादुर सिंह भारतीय की कम्यूनिस्ट पार्टी मार्कवादी-लनिनवादी लिब्रेशन से जुडे थे।

उन दिनों रांची में एकाएक कई लोगों का उत्थान हुआ। उन दिनों रांची में हत्यांए भी खूब हुई। जो शहर एक सडक का शहर होता था और रांची काॅलेज जाने के रास्ते में लोगों को डर लगता था, वह शहर होटलों, कप्लेक्सों से भर दिया गया। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हर एक निर्माण में चारा घोटाले का पैसा ही लगा हो, लेकिन कुछ ऐसे निर्माण हुए जिसके मालिक का प्रत्येक्ष या परोक्ष संबंध चारा घोटाले के आरोपियों के साथ था।

इसलिए सुशील कुमार मोदी जब कोई बात कहते हैं तो उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। जिसे लालू जी सामाजिक न्याय कहने हैं और नीतीश जी समावेशी विकास का नारा दे रहे हैं, उस राजनीति के वास्तविक स्वरूप को दुनिया के सामने आना जरूरी है। यदि चारा घोटाले में ध्रुव भगत पर अरोप लगा तो वे भी जेल गये। उसी प्रकार नीतीश के बारे में यदि जांच अभिरण को जानकारी मिली है तो उनके खिलाफ भी मामला बनता है और कम से कम उनके और उनके सहयोगी जनता दल-यू के प्रवक्ता शिवानन्द तिवारी पर मामला तो दर्ज जरूर होनी चाहिए।




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