चंडीगढ प्रशासन का साम्प्रदायिक चेहरा-गौतम चैधरी

इन दिनों चंडीगढ में रहने वाले एक खास संप्रदाया के लोगों को ऐसा लगने लगा है कि चंडीगढ प्रशासन का सत्ता प्रतिष्ठान उनके सांप्रदायिक हितों की अवहेलना कर रहा है। यह डर क्यों पैदा हुआ, इस डर के पीछे का कारण क्या है, या फिर इस डर का आधार क्या है, इसपर जबरदस्त मिमांशा की गुंजाइस है। निःसंदेह यह खोज का विषय है, लेकिन विगत कुछ दिनों में चंडीगढ प्रशासन द्वारा एक खास संप्रदाया के संदर्भ में लिए गये निर्णयों पर ध्यान केन्द्रित करने पर इस अवधारना को बल मिलने लगा है कि चंडीगढ का सत्ता प्रति’ठान साम्प्रदायिक मनोवृति का शिकार है।

चंडीगढ के इतिहास में यह पहला मैका है जब रामलीला का मंचन करने वाली संस्थाएं लगातार विगत दो महीनों से उपायुक्त कार्यालय का चक्कर लगा रही है, लेकिन चंडीगढ के उपायुक्त इतने व्यस्त हैं कि वे रामलीला मंडलियों को स्थान आवंटित करने के लिए समय ही नहीं निकाल पा रहे हैं।
चंडीगढ में लगभग 45 रामलीला संस्थाएं हैं। दशहरा के दिनों में नगर के विभिन्न स्थानों पर इन रामलीला संस्थाओं के द्वारा रामलीला का कार्यक्रम किया जाता है। सर्वेक्षण पर विश्वास करें तो चंडीगढ में होने वाले रामलीलाओं में लाखों की संख्या में लोग जुटते हैं। दशहरा के दिनों में नगर के विभिन्न क्षेत्रों में रात-रात भर रामलीला खेली जाती है। इसलिए रामलीला मंडलियों से जुडे लोग चंडीगढ प्रशासन को आवेदन देकर दो महीने पहले सारी औपचारिकताएं पूरी करवाते रहे हैंै, लेकिन इस बार उपायुक्त कार्यालय में रामलीला मंडलियां चक्कर लगाती रही बावजूद दशहरा के सप्ताहभर पहले तक उन्हें स्थान की स्वीकृति प्रप्त नहीं हो पायी। रामलीला मंडली चलाने वालों का अरोप है कि वे बार-बार उपायुक्त कार्यालय का चक्कर लगाए लेकिन मामले में उपायुक्त का व्यवहार न केवल रूखा रहा अपितु गैरजिम्मेदाराणा भी दिखा।

ऐसे में स्वाभाविक रूप से रामलीला मंडलियों के सदस्यों में एक संदेश गया कि उपायुक्त एक खास संप्रदाया के लोगों के धार्मिक हितों की अवहेलना कर रहे हैं। जानकार बताते हैं कि नियमानुसार रामलीला मंडलियों के कत्र्ता-धर्ता रामलीला के लिए स्थान की स्वीकृति उपायुक्त कार्यालय से लेने के बाद चंडीगढ नगर निगम से उसकी स्वीकृति प्रप्त करते हैं। इस कार्य के लिए चंडीगढ निगम प्रशासन में भी 15 से 20 दिनों का समय लग जाता है। रामलीला मंडलियों के सदस्यों का अरोप है कि उपायुक्त कार्यालय स्थान स्वीकृति में जान बूझ कर टालमटोल करती रही। चंडीगढ के उपायुक्त कार्यालय में ऐसा पहली बार हुआ। इससे एक संदेश यह भी गया कि उपायुक्त कार्यालय जान बूझकर रामलीला मंडलियों को परेशान कर रहा है। इसके पीछे उपायुक्त की मानसिकता संप्रदाय प्रेरित लगता है और धर्म विशेश के खिलाफ दिखता है। इससे समाज में संदेश यह भी गया कि उपायुक्त परोक्ष रूप से रामलीला में अडंगा लगा रहे हैं।

हालांकि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पर साम्प्रदायिक अरोप लगाना किसी प्रकार से यथोचित नहीं है, लेकिन जब संदर्भों और अरोपों की मिमांशा होती है तो स्वाभाविक रूप से चंडीगढ के उपायुक्त के व्यतित्व पर साम्प्रदायिकता स्प’ट रूप से झलकने लगती है। इसी कडी में आज से लगभग  06 महीने पहले चंडीगढ विश्व हिन्दू परि’ाद् के कार्यकत्र्ताओं ने उत्तराखंड आपदा के लिए कुछ आपदा सामग्री संग्रह कर उपायुक्त कार्यालय को सौंपा।

कुछ दिनों के बाद उपायुक्त कार्यालय के एक कर्मचारी ने विश्व हिन्दू परि’ाद् के नेताओं को नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर सूचना दी कि उनके द्वारा सौंपी गयी राहत सामग्री उपायुक्त भंडार-गृह में ही रखा है। सामान खडाब हो रहा है। उपयुक्त को संपर्क कर उसे या तो उत्तराखंड भेजवाने की व्यवस्था करें या फिर वे अपना सामान वापस ले जाएं।

इस मामले को लेकर विश्व हिन्दू परिशद् के नेताओं ने जब उपायक्त से संपर्क किया तो वे नाराज हो गये और सीधे शब्दों में कह दिया कि विश्व हिन्दू परिशद् द्वारा प्रप्त राहत सामग्री किसी कीमत पर उत्तराखंड नहीं भेजा जाएगा। यह उपायुक्त के अधिकार क्षेत्र में आता है कि वह कौन सी सामग्री भेजे और कौन सी सामग्री न भेजे। प्रशासन विहिप की राहत सामग्री उत्तराखंड नहीं भेजेगी विहिप को जो करना है वह कर ले।

चंडीगढ के उपायुक्त का साम्प्रदायिक चेहरा वहां भी देखने को मिला। इस प्रकार के कथन से स्वाभाविक रूप से एक खास सम्प्रदाय विशे’ा के लोगों में संदेश गया कि उपायुक्त उक्त संप्रदाय के प्रति सकारात्मक दृ’िटकोण नहीं रखते हैं।

अभी हाल में एक ऐसी घटना घटी जिससे उक्त संप्रदाया विशे’ा के लोगों के मन में चंडीगढ प्रशासन के प्रति जबरदस्त घृणा का बोध हुआ। चंडीगढ संघ राज्य क्षेत्र के नगरीय परिक्षेत्र में आवारा पशुओं के पर प्रतिबंध है। ऐसे में प्रशासन का पशु कैचमेंट विभाग पशुओं को पकड कर उसे विभिन्न गोशालाओं में भेजती रही है।

उन पशुओं के लिए गोशालाओं को आर्थिक मदद भी दिया जाता रहा है। पहले जब कभी भी चंडीगढ प्रशासन के द्वारा पशुओं को पकडा जाता था उसे स्थानीय, पंजाब या हरियाणा के गोशालाओं को  उपलब्ध करा दिया जाता था लेकिन इस बार बेवजह मथुर के गोशालाओं को पशु भेजने की व्यवस्था की गयी। चंडीगढ प्रशासन ने सैंकडों की संख्या में गाय और सांढों को मथुरा भेजी। इधर जिन गाडियों से पशुओं को भेजी जा रही थी वे गाडियां निश्चित रास्ते को छोड, राजस्थान का रास्ता पकड ली। ऐसा कैसे हुआ उसकी जांच चल रही है। जिस रास्ते से गाय भरी ट्रकें मथुरा जा रही थी, उस रास्ते के गांव वालों को पता चला कि गायें कत्लखाने भेजी जा रही है। गोभक्तों ने भिवानी जिले में चंडीगढ प्रशासन द्वारा भेजी गयी गायों के ट्रकों को घेर लिया और गाये उतार ले गये। गाय वाली ट्रकों में आग लगा दी गयी और प्रशासन के कर्मचारियों की जबरदस्त पिटाई हुई। जब लोग गाय उतार रहे थे तो उसमें से कई गायें कथित रूप से मृत पयी यगी। गाय लूटने वालों का अरोप है कि चंडीगढ प्रशासन द्वारा मथुरा भेजी गयी गायों को प्रशासन के किसी खास व्यक्ति के इशारे पर कत्लखाना ले जाने की योजना थी, जिसे गोभक्तों की सतर्कता से बचा लिया गया।

इस दुर्धटना के बाद गोभक्तों को लगने लगा है की चंडीगढ प्रशासन के द्वारा उनके साथ कही न कही धोखा किया जा रहा है। उनकी धर्मिक भावनाओं पर प्रहार किया रहा है। चाहे जो हो लेकिन इस तीन घटनाओं ने चंडीगढ के एक खास संप्रदाया के लोगों को यह सोचने के लिए बाध्य कर दिया है कि चंडीगढ प्रशासन में कुछ ऐसे प्रशासक हैं, जो साम्प्रायिक मुद्दों पर लोगों को विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं और एक खास सम्प्रदाय के लोगों की धार्मिक भावनाओं पर लगातार प्रहार कर रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या उस प्रशासक की अदूरदर्शी सोच पर सत्ता सज्ञान लेगी?


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